एक गुमनाम पत्र ने गिरा दी थी इस सीएम की कुर्सी
ये नेता जब सीएम बना तो टिम्बर घोटाला हुआ, राज्यपाल बना तो लोकतंत्र की हत्या कर दी
हिमाचल का ये नेता जब मुख्यमंत्री बना तो उसे देवदार के पेड़ खाने वाला सीएम कहा गया। यहीं नेता जब राज्यपाल बना तो उसे लोकतंत्र खाने वाला राज्यपाल कहा गया। हम बात कर रहे है ठाकुर रामलाल की। वही ठाकुर रामलाल जो 1957 से 1998 तक 9 बार जुब्बल कोटखाई से विधायक चुने गए। वहीँ ठाकुर रामलाल जिन्होंने 18 साल सीएम रहे डॉ यशवंत सिंह परमार की राजनैतिक विदाई का ताना बाना बुना और वहीँ ठाकुर रामलाल जिन्हें हिमाचल का तिकड़मबाज सीएम कहा गया।
संजय गाँधी की पसंद से बने पहली बार सीएम
28 जनवरी 1977 को हिमाचल निर्माता और पहले मुख्यमंत्री डॉ यशवंत सिंह परमार इस्तीफा दे देते है। इसे डॉ परमार की समझ कहे या ठाकुर रामलाल की पोलिटिकल मैनेजमेंट, कि खुद डॉ परमार पार्टी आलाकमान का रुख भांपते हुए ठाकुर रामलाल के नाम का प्रस्ताव देते है। उसी दिन शाम को ठाकुर रामलाल पहली बार हिमाचल के सीएम पद की शपथ लेते है।
ऐसा अकस्मात नहीं हुआ था। दरअसल इससे करीब एक सप्ताह पहले ठाकुर रामलाल 22 विधायकों की परेड प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी के समक्ष करवा चुके थे। वैसे भी इमरजेंसी के दौरान ठाकुर रामलाल संजय गाँधी के करीबी हो चुके थे। रामलाल, डॉ परमार की कैबिनेट में स्वास्थ्य मंत्री थे और उन्होंने संजय के नसबंदी अभियान को अपने क्षेत्र में पुरे जोर- शोर के साथ चलाया था। इसका लाभ भी उन्हें मिला।
शांता को पता भी नहीं चला और उनके विधायक ठाकुर रामलाल के साथ हो लिए
निर्दलीय विधायकों के सहारे बने तीसरी बार सीएम
बतौर मुख्यमंत्री ठाकुर रामलाल का पहला कार्यकाल महज तीन माह का ही रहा। दरअसल इमर्जेन्सी के बाद हुए आम चुनाव में कांग्रेस का सूपड़ा साफ़ हो गया और मोरारजी देसाई की सरकार ने कई प्रदेशों की सरकारें डिसमिस कर दी और चुनाव करवा दिए।हिमाचल भी इन्हीं राज्यों में से एक था। चुनाव हुए और शांता कुमार अगले मुख्यमंत्री बने। पर शांता भी सत्ता का सुख ज्यादा नहीं भोग पाए।फरवरी 1980 में ठाकुर रामलाल ने एक बार फिर अपनी तिगड़मबाज़ी दिखाई और शांता कुमार के 22 विधायक ठाकुर के साथ हो लिए। इस बीच मोरारजी देसाई की सरकार गिर गई और इंदिरा की सत्ता में वापसी हुई। इंदिरा ने भी वहीँ किया जो मोरारजी ने किया था। हिमाचल सहित कई प्रदेशों की सरकारों को डिसमिस किया। 1982 में फिर चुनाव हुए और हिमाचल में पहली बार किसी भी पार्टी को बहुमत नहीं मिला। कांग्रेस को 31 सीटें मिली जो बहुमत से चार कम थी और 6 निर्दलीय विधायक भी चुन कर आये थे। और एक बार फिर ठाकुर रामलाल की राजनैतिक करामात कांग्रेस के काम आई और 5 निर्दलीय विधायकों के समर्थन से रामलाल तीसरी बार हिमाचल के मुख्यमंत्री बने।
एक गुमनाम पत्र ने गिरा दी कुर्सी
सीएम ठाकुर रामलाल के लिए सब कुछ ठीक चल रहा था। इसी बीच जनवरी 1983 में हिमाचल प्रदेश के मुख्य न्यायधीश को एक गुमनाम पत्र मिलता है। पत्र में लिखा गया था कि ठाकुर रामलाल के दामाद पदम् सिंह, बेटे जगदीश और उनके मित्र मस्तराम द्वारा जुब्बल-कोटखाई व चौपाल इलाके में सरकारी भूमि से देवदार की लकड़ी काटी जा रही है, जिसकी कीमत करोड़ों में है। न्यायधीश ने जांच बैठाई जिसके बाद ठाकुर रामलाल पर खुले तौर पर टिम्बर घोटाले के आरोप लगने लगे। शायद ठाकुर रामलाल इस स्थिति को भी संभाल लेते लेकिन उनसे एक और चूक हो गई जिसका खामियाजा उन्हें सीएम की कुर्सी गवाकर चुकाना पड़ा। दरअसल ठाकुर रामलाल ने दिल्ली में पत्रकार वार्ता कर ये कह दिया कि उन्हें राजीव गाँधी ने आश्वासन दिया है कि उन्हें टिम्बर घोटाले को लेकर परेशान नहीं किया जायेगा। इसके बाद राजीव गाँधी पर आरोप लगने लगे कि वे भ्रष्टाचार के आरोपी का बचाव कर रहे है। नतीजन ठाकुर रामलाल को इस्तीफा देना पड़ा। दिलचस्प बात ये रही कि जिस तरह डॉ यशवंत सिंह परमार ने इस्तीफा देकर ठाकुर रामलाल का नाम प्रतावित किया था, उसी तरह ठाकुर रामलाल को इस्तीफा देकर वीरभद्र सिंह के नाम का प्रस्ताव देना पड़ा।
राज्यपाल बनकर की लोकतंत्र की हत्या
ठाकुर रामलाल के बतौर मुख्यमंत्री सफर पर तो वीरभद्र सिंह के सत्ता सँभालने के बाद ही विराम लग गया था, किन्तु अभी तो ठाकुर रामलाल द्वारा लोकतंत्र की हत्या होना बाकी था। कांग्रेस ने रामलाल को आंध्र प्रदेश का राज्यपाल बनाकर भेज दिया था। आंध्र में 1983 में चुनाव हुए थे जिसमें एन टी रामाराव मुख्यमंत्री बने थे। इसी दौरान अगस्त 1983 में एन टी रामाराव उपचार के लिए विदेश चले गए। ठाकुर रामलाल की राजनैतिक महत्वकांशा अभी बाकी थी, सो रामलाल ने कांग्रेस नेता विजय भास्कर राव को बिना विधायकों की परेड के ही सीएम बना दिया। वे इंदिरा के दरबार में अपनी कुव्वत बढ़ाना चाहते थे, पर हुआ उल्टा। एनटी रामाराव वापस वतन लौटे और व्हील चेयर पर बैठ दिल्ली में 181 विधायकों के साथ जुलूस निकाला। कांग्रेस की जमकर थू-थू हुई और रातों रात ठाकुर रामलाल के स्थान पर शंकर दयाल शर्मा को राज्यपाल बना दिया गया। इसके बाद रामलाल ने कांग्रेस छोड़ी, वापस भी आये पर स्थापित नहीं हो पाए।
वीरभद्र को चुनाव हराने वाला नेता
वीरभद्र सिंह से बड़े कद का नेता शायद ही हिमाचल की राजनीति में दूसरा कोई हो। वीरभद्र अपने राजनैतिक जीवन में सिर्फ एक चुनाव हारे है। 1990 के विधानसभा चुनाव में ठाकुर रामलाल ने उन्हें जुब्बल कोटखाई से चुनाव हारकर साबित कर दिया था कि उस क्षेत्र में उनसे बड़ा कोई नेता नहीं हुआ।