मंडी उपचुनाव : तो क्या अभी से पराजय स्वीकार कर चुके है कांग्रेस के दिग्गज ?

कौल सिंह ठाकुर मंडी संसदीय क्षेत्र का उप चुनाव लड़ने से इंकार कर चुके है। वीरभद्र सिंह का परिवार उप चुनाव लड़ने में रूचि नहीं दिखा रहा। पार्टी टिकट पर पिछले चुनाव हार चुके आश्रय शर्मा भी उपचुनाव को लेकर ज्यादा उत्सुक नहीं दिख रहे। तो क्या कांग्रेस के दिग्गज अभी से पराजय स्वीकार कर चुके है ? या पार्टी के आदेश पर कोई बड़ा नाम उपचुनाव के सियासी चक्रव्यूह को भेदने के लिए चुनावी रणभूमि में उतरेगा। या फिर पार्टी इस उप चुनाव में किसी नए युवा चेहरे को अभिमन्यु बनाकर उतारेगी? अब कांग्रेस की ओर से इस सियासी रण में कोई अनुभवी 'अर्जुन' उतरेगा या युवा 'अभिमन्यु', विजय श्री मिलेगी या पराजय, इसे लेकर कयास लगने का सिलसिला शुरू हो चुका है।
वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव की बात करें तो मंडी संसदीय सीट से भाजपा ने पंडित रामस्वरूप का टिकट बरकरार रखा था। वहीं 2017 में कांग्रेस को झटका देकर भाजपा में आए पंडित सुखराम अपने पोते आश्रय को सांसद बना देखना चाहते थे। इसी अरमान के साथ दादा - पोता कांग्रेस में चले गए। कांग्रेस ने आश्रय को टिकट भी दे दिया, पर हुआ वहीँ जो तमाम राजनीतिक पंडित मानकर चल रहे थे। 4 लाख 5 हज़ार 459 वोट के अंतर से आश्रय बुरी तरह चुनाव हार गए। शायद भाजपा ने भी नहीं सोचा होगा कि उनकी जीत का अंतर इतना विशाल होगा। इस हार के बाद से ही मंडी में कांग्रेस कभी भी प्रभावशाली नहीं दिखी। कमोबेश ऐसा ही हाल आश्रय शर्मा का भी है। आश्रय अब तक स्थापित होने की जद्दोजहद में ही है, राजनीति में भी और पार्टी में भी। यूँ तो आश्रय को पीसीसी का महासचिव बनाया गया है, लेकिन मंडी कांग्रेस में ही उनकी स्वीकार्यता को लेकर संशय है। इसमें कोई शक- ओ -शुबह नहीं है कि कई दिग्गजों नेताओं के दबदबे के चलते वे कभी सहज हो ही नहीं पाएं। इस पर 2019 में मिली करारी हार की टीस अभी कम भी नहीं हुई और अनचाहा उपचुनाव सामने आ गया। अब संभवतः आश्रय पशोपेश में हो, यदि पार्टी आदेश देती है तो उन्हें चुनाव में उतरना पड़ेगा, पर यदि पार्टी के दिग्गजों का सहयोग न मिला तो नतीजा पहले से ही दिख रहा है।
2019 के लाेकसभा चुनाव पर नज़र डाले तो भाजपा ने कांग्रेस काे मंडी संसदीय क्षेत्र के तहत आने वाली हर विधानसभा सीट पर पराजित किया था। उस चुनाव में रामस्वरूप शर्मा को 6 लाख 47 हजार 189 मत पड़े थे। जबकि कांग्रेस के आश्रय शर्मा को 2 लाख 41 हजार 730 मत मिले थे। यहां तक कि जिन विधानसभा क्षेत्राें में कांग्रेस के विधायक थे, वहां पर भी कांग्रेस के आश्रय काे बढ़त नहीं मिल पाई थी। यानी किन्नौर, कुल्लू और रामपुर विधानसभा क्षेत्राें में कांग्रेस के नुमाइंदे होने पर भी जनता ने कांग्रेस पर भरोसा नहीं जताया था।
2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा को मिली बढ़त
विधानसभा क्षेत्र भाजपा को बढ़त
पांगी-भरमौर 19726
लाहौल स्पीति 3962
मनाली 16863
कुल्लू 24385
बंजार 21973
आनी 24569
करसोग 26860
सुंदरनगर 23427
नाचन 26395
सराज 37147
द्रंग 25517
जोगिंद्रनगर 36292
मंडी 27491
बल्ह 33168
सरकाघाट 31021
रामपुर 11550
किन्नौर 7048
17 विधानसभा क्षेत्रों का बनेगा रिपोर्ट कार्ड
मंडी संसदीय क्षेत्र में दरअसल 17 विधानसभा क्षेत्र आते है। जाहिर है ऐसे में दोनों मुख्य राजनीतिक दलों का सभी 17 विधानसभा क्षेत्रों में इम्तिहान होगा। ये हिमाचल की कुल 68 विधानसभा सीटों का 25 फीसदी है। ऐसे में 2022 से पहले मंडी संसदीय उपचुनाव में बेहतर करने का दबाव दोनों राजनीतिक दलों पर होगा। जीत मिले या हार, पर विश्लेषण सभी 17 विधानसभा क्षेत्रों का होना है। जाहिर है स्थानीय नेताओं पर भी बेहतर करने का दबाव रहेगा। फिलवक्त इन 17 विधानसभा क्षेत्रों में से सिर्फ किन्नौर, रामपुर और कुल्लू में ही कांग्रेस के विधायक है। 2022 के लिए कांग्रेसी की कितनी तैयारी है , इसकी झलक भी लोकसभा उपचुनाव में देखने को मिलेगी। चुनाव के बाद सभी सम्बंधित विधानसभा क्षेत्रों का रिपोर्ट कार्ड बनना भी तय है।
पांच साल में दस गुना बढ़ा था हार का अंतर
2014 के लोकसभा चुनाव में मंडी संसदीय सीट से वीरभद्र सिंह की पत्नी प्रतिभा सिंह कांग्रेस उम्मीदवार थी और उस चुनाव में उन्हें करीब 40 हज़ार वोटों से शिकस्त मिली थी। जबकि 2019 में आश्रय शर्मा 4 लाख से भी अधिक वोटों से हारे थे। यानी 2014 में जो अंतर करीब 40 हज़ार था वो पांच साल में 10 गुना बढ़कर करीब चार लाख हो गया।
दिग्गज भी धराशाई हुए है मंडी में
इमरजेंसी के बाद हुए 1977 के आम चुनाव में इंदिरा विरोधी लहर में वीरभद्र सिंह मंडी से करीब 36 हज़ार वोट से चुनाव हार गए थे। 1989 में पंडित सुखराम करीब 28 हज़ार वोट से चुनाव हारे। उन्हें महेश्वर सिंह ने चुनाव हराया था। इसके बाद 1991 में महेश्वर सिंह को पंडित सुखराम ने परास्त किया। 1998 में महेश्वर सिंह ने प्रतिभा सिंह को चुनाव हराया। 1999 में महेश्वर ने कौल सिंह ठाकुर को हराया। महेश्वर सिंह इसके बाद 2004 में प्रतिभा सिंह से और 2009 में वीरभद्र सिंह के सामने चुनाव हार गए। वर्तमान में सूबे के मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर 2013 के उप चुनाव में प्रतिभा सिंह से हारे । वहीं 2014 के आम चुनाव में प्रतिभा सिंह को रामस्वरूप शर्मा ने हराया।
अजब -गजब राजनीति, मझधार में कांग्रेस
वरिष्ठ नेता पंडित सुखराम पोते सहित कांग्रेस का हाथ थामे हुए है, तो उनके पुत्र अनिल शर्मा कहने को तो भाजपा के विधायक है लेकिन उनकी स्थिति किसी से छिपी नहीं है। पिता अनिल शर्मा भाजपा के लिए बेगाने है तो पुत्र आश्रय भी कांग्रेस में असहज दिखते है। माना जा रहा है कि 2022 चुनाव से पहले अनिल की कांग्रेस में घर वापसी होगी। पर तब तक पंडित सुखराम एंड फैमिली की इस अजब -गजब राजनीति के चलते कांग्रेस मझधार में अटकी है।