•   Saturday Jul 26
Revenue Minister Jagat Singh Negi Visits Syathi Village in Dharmapur, Reviews Relief and Rehabilitation Work
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राजस्व मंत्री जगत सिंह नेगी ने धर्मपुर के स्याठी गांव का किया दौरा, राहत एवं पुनर्निर्माण कार्यों की ली समीक्षा

राजस्व, बागवानी, जनजातीय विकास और जन शिकायत निवारण मंत्री जगत सिंह नेगी ने शनिवार को धर्मपुर उपमंडल के स्याठी गांव का दौरा कर प्राकृतिक आपदा से प्रभावित क्षेत्रों में जारी राहत एवं पुनर्निर्माण कार्यों का बारीकी से निरीक्षण किया। प्रभावित लोगों से मिलकर हालचाल जाना और उनकी समस्याओं को सीधे समझने के साथ उन्होंने अधिकारियों को कार्यों में तेजी लाने के निर्देश दिए। उन्होंने कहा कि प्रदेश सरकार की सर्वोच्च प्राथमिकता है कि हर प्रभावित व्यक्ति तक राहत सामग्री और आर्थिक मदद पहुंचे। मुख्यमंत्री ठाकुर सुखविंद्र सिंह सुक्खू ने आपदा के 24 घंटे के भीतर प्रभावित इलाकों का दौरा कर प्रशासन को राहत एवं पुनर्वास कार्यों के कड़े निर्देश दिए हैं। मंत्री ने स्पष्ट किया कि जिन परिवारों के घर पूरी तरह क्षतिग्रस्त हुए हैं, उन्हें अधिकतम 7 लाख रुपये तक की आर्थिक सहायता दी जाएगी, जो देश में अब तक किसी राज्य सरकार द्वारा दी गई सबसे बड़ी राहत राशि है। हालांकि, भूमि की उपलब्धता एक बड़ी चुनौती बनी हुई है क्योंकि अधिकतर खाली जमीन वन क्षेत्र में आती है। इस समस्या के समाधान के लिए राज्य सरकार ने वन संरक्षण अधिनियम में संशोधन हेतु केंद्र को प्रस्ताव भेजा है। वहीं, वन अधिकार अधिनियम के तहत भी आजीविका पर निर्भर परिवारों को जमीन उपलब्ध कराई जाएगी। इसके अतिरिक्त, प्रभावित खेतों और बागीचों के नुकसान का आकलन राजस्व, कृषि और बागवानी विभाग संयुक्त रूप से करेंगे और मुआवज़ा राशि बढ़ाई गई है। राजस्व मंत्री ने लोक निर्माण विभाग, जल शक्ति विभाग और विद्युत बोर्ड के पुनर्निर्माण कार्यों की प्रगति की जानकारी ली और उन्हें कार्यों में तेजी लाने के निर्देश दिए। उन्होंने अटल आदर्श विद्यालय मढ़ी का भी निरीक्षण किया। इस दौरान विधायक चन्द्रशेखर ने क्षेत्र के प्रभावित परिवारों की संख्या बताई और मुख्यमंत्री व सरकार के त्वरित राहत कार्यों के लिए आभार जताया। एसडीएम धर्मपुर जोगिंद्र पटियाल ने बताया कि अब तक प्रभावितों को लगभग 3.85 लाख रुपये की सहायता राशि विभिन्न मदों में दी जा चुकी है। 26 पूरी तरह से क्षतिग्रस्त पक्के घरों व 3 कच्चे घरों को 2.50 लाख रुपये, आंशिक रूप से क्षतिग्रस्त 10 पक्के व 18 कच्चे घरों को 70 हजार रुपये की अग्रिम राहत दी गई है। साथ ही गौशालाओं को 65 हजार रुपये की सहायता प्रदान की गई। राहत सामग्री के तहत 29 राशन किट, 16 कंबल, 612 तिरपाल और गैस सिलेंडर आदि वितरण किए गए हैं। पेयजल योजनाओं में अधिकांश कार्य आंशिक रूप से बहाल हो चुके हैं और कुछ सड़कों की मरम्मत प्रगति पर है।    

“Above, it's Indra; below, it's Sukhvinder... both have made life miserable for the people” – Sattpal Satti
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ऊपर इंद्र, नीचे सुखविंदर....दोनों ने जनता को बेहाल कर दिया : सत्तपाल सत्ती

हिमाचल प्रदेश में बीजेपी विधायक और पूर्व प्रदेश अध्यक्ष सतपाल सत्ती ने मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू पर तीखा तंज कसते हुए कहा, “ऊपर इंद्र और नीचे सुखविंदर, दोनों ने जनता की परेशानी बढ़ा दी है।” उन्होंने कहा कि आज हालात ऐसे हैं कि या तो जनता के ग्रह भारी हैं या फिर राजा के, लेकिन असर सीधा आम आदमी पर हो रहा है। सत्ती बोले, “अब जनता तय कर चुकी है कि इस राजा को बदलना ही होगा।” सराज से भेदभाव, हॉर्टिकल्चर कॉलेज का मुद्दा गरमाया सत्ती ने सराज विधानसभा क्षेत्र में थुनाग स्थित हॉर्टिकल्चर कॉलेज को शिफ्ट करने के फैसले को भेदभावपूर्ण बताया। उन्होंने कहा कि कांग्रेस सरकार बनने के बाद बीजेपी विधायकों के क्षेत्रों के साथ जानबूझकर भेदभाव किया जा रहा है। उन्होंने आरोप लगाया कि सरकार ने विधानसभा में कॉलेज न शिफ्ट करने का आश्वासन दिया था, लेकिन इसके बावजूद उसे हटा दिया गया। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि कॉलेज भवन को कोई नुकसान नहीं हुआ है, फिर भी वहां से कॉलेज को शिफ्ट करना जनता के हितों के खिलाफ है। इसी कारण, राजस्व मंत्री को जनता के विरोध का सामना करना पड़ा, और उल्टे 60 लोगों पर FIR दर्ज कर दी गई। ऊना पेखुबेला पावर प्रोजेक्ट में भारी फिजूलखर्ची का आरोप ऊना के पेखुबेला में 240 करोड़ रुपये की लागत से बने पावर प्रोजेक्ट को लेकर सत्ती ने गंभीर सवाल उठाए। उन्होंने बताया कि यह प्रोजेक्ट पानी में डूब गया है, कर्मचारी सैलरी न मिलने के चलते हड़ताल पर हैं और प्रोजेक्ट कभी भी ठप हो सकता है। उन्होंने आरोप लगाया कि जलभराव वाले क्षेत्र में बिना सोच-विचार के इतनी बड़ी परियोजना शुरू कर दी गई। कानून-व्यवस्था और गौ-तस्करी पर भी उठाए सवाल सत्ती ने कहा कि हिमाचल में लॉ एंड ऑर्डर की हालत खराब हो गई है। दिनदहाड़े फायरिंग हो रही है और गौ-तस्करी के मामले लगातार बढ़ रहे हैं। उन्होंने हाल ही में स्वारघाट में पकड़े गए टैंकर का ज़िक्र किया जिसमें गाय-बैल भरकर जम्मू-कश्मीर ले जाए जा रहे थे। देसराज की पोस्टिंग और SP शिमला पर सवाल सत्ती ने बिजली बोर्ड में देसराज की नियुक्ति को दुर्भाग्यपूर्ण बताया और कहा कि यह वही अधिकारी हैं जिन पर आत्महत्या के लिए उकसाने का आरोप लगा था। हाईकोर्ट से फटकार खाने के बावजूद SP शिमला को भी उसी जगह दोबारा पोस्टिंग देना सरकार की मंशा पर सवाल खड़े करता है।

Himachal Apple Season: Special Road Tax Exemption for Trucks from Other States, Government Issues Notification
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हिमाचल सेब सीजन: बाहरी राज्यों के ट्रकों को विशेष पथकर से छूट, सरकार ने जारी की अधिसूचना

हिमाचल प्रदेश में सेब सीजन ने रफ्तार पकड़ ली है, और इसी के साथ सरकार ने बागवानों और किसानों को राहत देने की दिशा में एक अहम फैसला लिया है। प्रदेश में अब 1 अगस्त से 31 अक्तूबर तक बाहरी राज्यों से आने वाले ट्रकों को विशेष पथकर (Special Road Tax) से छूट दी जाएगी। खास बात यह है कि यह छूट उन ट्रकों को भी दी जाएगी जो नेशनल परमिट के दायरे में नहीं आते हैं, लेकिन हिमाचल में आलू और सेब जैसे कृषि उत्पादों का परिवहन कर रहे हैं। इस संबंध में प्रदेश के परिवहन विभाग ने अधिसूचना भी जारी कर दी है। विभाग का उद्देश्य है कि मौजूदा सेब और आलू सीजन के दौरान किसानों और बागवानों को परिवहन में कोई अतिरिक्त वित्तीय बोझ न उठाना पड़े और उनके उत्पाद समय पर मंडियों तक पहुंच सकें। उपमुख्यमंत्री मुकेश अग्निहोत्री ने कहा कि यह कदम किसानों और बागवानों के हितों की रक्षा के लिए उठाया गया है। उन्होंने कहा कि सेब और आलू के परिवहन को आसान और किफायती बनाने के लिए प्रदेश सरकार लगातार प्रयासरत है। उन्होंने जानकारी दी कि सेब सीजन और बरसात के चलते परिवहन विभाग ने सभी जरूरी तैयारियां पूरी कर ली हैं और सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए आवश्यक एहतियात भी सुनिश्चित किए गए हैं। इसके साथ ही उपमुख्यमंत्री ने सभी हितधारकों से अनुरोध किया है कि वे सड़क सुरक्षा नियमों का पूरी तरह पालन करें ताकि सेब सीजन के दौरान सुचारु और सुरक्षित परिवहन व्यवस्था बनी रहे।

हिमाचल के शहरी क्षेत्रों में भवन निर्माण के लिए अब अनिवार्य होगी ज्योलॉजिकल और स्ट्रक्चरल डिजाइन रिपोर्ट
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हिमाचल के शहरी क्षेत्रों में भवन निर्माण के लिए अब अनिवार्य होगी ज्योलॉजिकल और स्ट्रक्चरल डिजाइन रिपोर्ट

हिमाचल प्रदेश के शहरी इलाकों में भवन निर्माण के लिए अब ज्योलॉजिकल (भूगर्भीय) और संरचना डिजाइन (स्ट्रक्चर डिजाइन) की रिपोर्ट देना अनिवार्य कर दिया गया है। यह नियम शिमला, कुल्लू, धर्मशाला, ऊना, किन्नौर, मंडी, सोलन, नाहन और चंबा जैसे शहरों में लागू होगा। टीसीपी विभाग द्वारा तैयार किए जा रहे नए डेवलपमेंट प्लान में इंजीनियर और स्ट्रक्चर डिजाइन की रिपोर्ट रखना जरूरी होगा। इस योजना का मकसद हिमाचल में प्राकृतिक आपदाओं से होने वाले भवन नुकसान को रोकना है।   राजेश धर्माणी, टीसीपी मंत्री ने बताया कि सरकारी भवनों में यह नियम पहले से लागू है और अब इसे शहरी निजी भवनों पर भी लागू किया जा रहा है। इसके तहत नालों से कम से कम 5 मीटर और खड्डों या नदियों से 7 मीटर की दूरी पर ही भवन निर्माण की अनुमति दी जाएगी। इससे पहले नालों से 3 मीटर तथा खड्डों और नदियों से 5 मीटर की दूरी तय होती थी।   हिमाचल में 2018 से लगातार प्राकृतिक आपदाओं का कहर जारी है, जिसके कारण कई भवन ढहे और जनहानि भी हुई है। अधिकारियों के मुताबिक ज्योलॉजिकल और स्ट्रक्चरल रिपोर्ट न होने के कारण कई भवन प्राकृतिक आपदा में असुरक्षित साबित हुए हैं। शिमला प्लानिंग एरिया में 5 मीटर चौड़ी सड़क वाले इलाकों में पांच मंजिला भवन निर्माण की अनुमति दी गई है, जबकि सड़क सुविधा न होने पर दो मंजिला भवन एवं एटिक का निर्माण ही संभव होगा। टीसीपी विभाग का मानना है कि इन नियमों के कड़ाई से पालन से भवन निर्माण अधिक सुरक्षित और मजबूती से होगा, जिससे भविष्य में आपदाओं का असर कम होगा।    

The Deities Do Not Approve the Ropeway
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'देवताओं को रोपवे मंज़ूर नहीं'.... बिजली महादेव रोपवे के खिलाफ सड़कों पर उतरी कुल्लू की जनता

बिजली महादेव रोपवे... यह रोपवे अब महज रोपवे नहीं रहा बल्कि कुल्लू की जनता के लिए उनकी आस्था, जंगल और पहचान की लड़ाई बन गया है। इस रोपवे निर्माण ने मानो प्रदेश में देवताओं की सत्ता और खुद को सत्ता के देवता मानने वालों के बीच एक जंग छेड़ दी है। हालांकि कुल्लू की जनता अब और सहने के मूड में बिल्कुल नहीं। इस रोपवे के विरोध में आज लोग एक साथ बाहर निकल आए। कुल्लू की सड़कों पर आज जो नज़ारा दिखा, वह सिर्फ एक प्रदर्शन नहीं, बल्कि लोगों की भावनाओं का विस्फोट था। सैकड़ों लोग अपने देवता के आदेश, जंगल की शांति और घाटी की अस्मिता बचाने के लिए सड़क पर उतर आए। विरोध की आवाज़ पूरी घाटी में गूंज गई। प्रदर्शनकारी एक ही मांग कर रहे थे... किसी भी हालत में यह प्रोजेक्ट नहीं लगना चाहिए। ढोल नगाड़ों के बिना, नारों के साथ निकली, कुल्लू के रामशीला से ढालपुर मैदान तक फैली यह आक्रोश रैली केवल एक परियोजना का विरोध नहीं थी... यह एक चेतावनी थी कि अगर देवभूमि की चेतना को अनसुना किया गया, तो विरोध अब आवाज नहीं, लहर बन जाएगा। कुल्लू ही नहीं, मंडी के सेरी मंच पर भी लोगों ने रोष रैली निकालकर इस प्रोजेक्ट का विरोध जताया। लेकिन एक रोपवे का इतना विरोध क्यों हो रहा है? क्या कुल्लू के लोगों को विकास से परहेज है? आइए इस विरोध के पीछे की वजहों को ठहरकर समझने की कोशिश करते हैं। बिजली महादेव संघर्ष समिति के अध्यक्ष सुरेश नेगी के मुताबिक, देववाणी में आदेश हुआ कि भगवान बिजली महादेव को रोपवे मंजूर नहीं। यह बात सुनते ही घाटी की जनता सड़कों पर उतर आई। ग्रामीणों का दावा है कि रोपवे के निर्माण से पहले देवताओं की सहमति नहीं ली गई और जबरन हजारों की संख्या में पेड़ काट दिए गए। सरकारी फाइलों में सिर्फ 72 पेड़ काटने की इजाजत थी, लेकिन स्थानीय लोगों का कहना है कि असल संख्या 100 के पार है। देवदार जैसे सदियों पुराने पेड़ों का यूं कट जाना न सिर्फ पर्यावरण के लिए खतरा है, बल्कि यह देवस्थल की आत्मा को ठेस पहुंचाने जैसा है। सिर्फ आस्था नहीं, आजीविका भी दांव पर बिजली महादेव पहुंचने के लिए अभी तीन घंटे की ट्रैकिंग करनी पड़ती है। यह सिर्फ एक रास्ता नहीं, बल्कि एक पूरा लोकल इकॉनमी है। घोड़े खच्चर वाले, ट्रैकिंग गाइड, ढाबे और छोटे व्यापारी, सभी की रोजी-रोटी इसी पर टिकी है। रोपवे बनते ही यह सिस्टम चरमरा जाएगा। स्थानीय बुजुर्ग शिवनाथ ने चेतावनी दी है कि यदि यह प्रोजेक्ट जबरन थोपा गया तो वे आत्मदाह तक कर सकते हैं। उनका कहना है, “देवताओं की इच्छा के विरुद्ध कुछ भी हुआ तो इसका असर पूरे क्षेत्र पर पड़ेगा।” विरोध के बीच सरकार की दलीलें सरकार कह रही है कि रोपवे से ट्रैफिक कम होगा, यात्रा आसान होगी और पर्यटन को बढ़ावा मिलेगा। बिजली महादेव की तीन घंटे की चढ़ाई अब सिर्फ 7 मिनट की सवारी में बदलेगी। रोजाना 36 हजार लोग मंदिर तक पहुंच सकेंगे और ऑल वेदर कनेक्टिविटी भी सुनिश्चित होगी। बता दें कि मार्च 2024 में केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने इस प्रोजेक्ट का वर्चुअल शिलान्यास किया था और 272 करोड़ रुपये मंजूर किए थे। यह प्रोजेक्ट नेशनल हाईवे लॉजिस्टिक्स मैनेजमेंट लिमिटेड (NHLML) द्वारा 2026 तक पूरा किया जाना है। यह 2.3 किलोमीटर लंबा रोपवे 'पर्वतमाला' प्रोजेक्ट के तहत बन रहा है। लेकिन सियासत यहां भी है... एक दौर में इस प्रोजेक्ट के समर्थक रहे भाजपा के वरिष्ठ नेता राम सिंह, अरविंद चंदेल और नरोत्तम ठाकुर अब इसके खिलाफ हैं। यहां तक कि पूर्व सांसद महेश्वर सिंह ने भूमि पूजन में शामिल होने के बाद मीडिया के सामने सफाई दी कि वे इस प्रोजेक्ट के समर्थक नहीं हैं। वहीं कांग्रेस विधायक सुंदर सिंह ठाकुर इस प्रोजेक्ट को विकास का प्रतीक बता रहे हैं। कुल्लू की राजनीति भी तीन हिस्सों में बंटी हुई दिख रही है, एक धड़ा आस्था और पर्यावरण के साथ खड़ा है, दूसरा पर्यटन और विकास के साथ, और तीसरा राजनीतिक मजबूरियों के बीच उलझा हुआ। बिना जनसुनवाई, बिना सहमति? स्थानीय संगठनों का आरोप है कि इस प्रोजेक्ट को बिना पर्यावरण प्रभाव मूल्यांकन (EIA) और बिना जनसुनवाई के मंजूरी दी गई। कई ग्रामीणों को तब तक इसकी भनक तक नहीं लगी जब तक पेड़ कटने शुरू नहीं हुए।

 Himachal: Possibility of rain in some areas even today, yellow alert from tomorrow till July 30
In Himachal

हिमाचल :आज भी कुछ क्षेत्रों में बारिश की संभावना , कल से 30 जुलाई तक येलो अलर्ट

राजधानी शिमला में वीरवार सुबह मौसम साफ रहा। दोपहर बाद अचानक मौसम बदला और शिमला व सोलन में बादल झमाझम बरसे। मैदानी जिलों में मौसम साफ रहने के साथ धूप खिली। वीरवार शाम तक मनाली-कोटली एनएच समेत 274 सड़कें, 56 बिजली ट्रांसफार्मर और 173 पेयजल योजनाएं ठप रहीं। चंबा के चुराह में बिजली गिरने से दो मवेशियों की मौत हो गई। शुक्रवार को भी प्रदेश के कुछ क्षेत्रों में बारिश के आसार हैं। 26 से 30 जुलाई कई क्षेत्रों में बारिश का येलो अलर्ट जारी हुआ है। प्रदेश के कई क्षेत्रों में मौसम भले ही खुल गया है, लेकिन दुश्वारियां अभी बरकरार हैं। तेज बारिश और भूस्खलन की वजह से पेयजल योजनाएं ठप होने से कई जगह पीने के पानी का संकट गहरा गया है। बिजली ट्रांसफार्मर बंद होने से कई गांवों में अंधेरा छाया हुआ है। हालांकि, वीरवार को धूप खिलने के बाद विभागों ने बिजली-पानी और सड़कों को बहाल करने का काम तेज कर दिया है। जिला कुल्लू में बंजार से गुशैणी सड़क को लोक निर्माण विभाग ने तीन दिन बाद छोटे वाहनों के लिए बहाल कर दिया है। हाईवे-305 चार दिन से अवरुद्ध है। हमीरपुर जिले में सुबह से ही धूप खिली रही। धूप खिलने से फिर गर्मी बढ़ने लगी है। ऊना जिले में वीरवार सुबह से ही मौसम साफ रहा। मौसम खुलने के बाद किसान खेतों में कीटनाशक का छिड़काव करने में जुट गए हैं। कांगड़ा जिले में वीरवार को पूरा दिन मौसम साफ रहा। हालांकि, शाम को थोड़े बादल दिखे, लेकिन बारिश नहीं हुई।

From Nadda and Nitish to Ram Nath Thakur... Speculation Intensifies Over the Next Vice President
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नड्डा, नीतीश से लेकर रामनाथ ठाकुर तक... उपराष्ट्रपति उम्मीदवार को लेकर अटकलें तेज

राजनीति की गाड़ी में कोई ब्रेक नहीं होता। कल तक जो कुर्सी पर था, आज इस्तीफा दे चुका है। और अब सबकी नजर इसी पर है कि इस कुर्सी पर अगला कौन होगा? हम बात कर रहे हैं देश के दूसरे सबसे बड़े संवैधानिक पद की। उपराष्ट्रपति के पद की। जगदीप धनखड़ ने सेहत का हवाला देकर इस्तीफा दे दिया। अब कुर्सी खाली है और जल्द चुनाव होंगे। जाहिर है कि इस चुनाव में सत्ता पक्ष और विपक्ष दोनों ही अपने अपने उम्मीदवार मैदान में उतारेंगे, लेकिन चूंकि इस वक्त संसद में एनडीए का संख्याबल अधिक है, इसलिए स्वाभाविक रूप से सभी की निगाहें एनडीए के संभावित उम्मीदवारों पर टिकी हैं। सवाल यह है कि एनडीए किसे अपना प्रत्याशी बनाएगा? कोई कह रहा है कि इस पद पर नीतीश कुमार को सेटल कर दिया जाएगा, तो कोई कहता है कि यह पद तो शशि थरूर को मिलना चाहिए। नाम हरिवंश नारायण सिंह का भी आ रहा है और रामनाथ ठाकुर का भी। चर्चा तो जगत प्रकाश नड्डा के नाम की भी खूब है। संभावित नामों की सूची लंबी है और हर नाम के पीछे अपनी राजनीतिक रणनीति और समीकरण छिपे हैं। क्या हैं ये रणनीतियां, क्या हैं ये समीकरण और इस संभावित सूची में किस किस का नाम शामिल है आइए विस्तार से आपको बताते हैं। एनडीए खेमे में सबसे चर्चित नाम है जनता दल (यूनाइटेड) के राज्यसभा सांसद हरिवंश नारायण सिंह का। वे 2020 से राज्यसभा के उपसभापति हैं और फिलहाल नए उपराष्ट्रपति के चुनाव तक राज्यसभा के कार्यवाहक सभापति की भूमिका निभा रहे हैं। 2020 में हुए राज्यसभा उपसभापति चुनाव में हरिवंश ने विपक्षी उम्मीदवार और राजद नेता मनोज झा को हराया था। संसदीय कार्यवाही के संचालन में उनकी दक्षता और साफ छवि उन्हें एक मजबूत उम्मीदवार बनाती है। जेडीयू के ही एक और बड़े नेता, रामनाथ ठाकुर, जो पूर्व मुख्यमंत्री कर्पूरी ठाकुर के बेटे हैं, भी उपराष्ट्रपति पद के लिए संभावित नामों में शामिल हैं। ये जेडीयू कोटे से राज्यसभा सांसद हैं और केंद्र सरकार में कृषि एवं किसान कल्याण राज्यमंत्री के रूप में कार्यरत हैं। इनकी छवि ईमानदार नेता की है और ये अति पिछड़ा वर्ग से आते हैं। इस सामाजिक पृष्ठभूमि के कारण ये भी एक सर्वमान्य और राजनीतिक दृष्टिकोण से रणनीतिक उम्मीदवार हो सकते हैं। हाल ही में जेपी नड्डा के साथ इनकी मुलाकात ने अटकलों को और बल दिया है। यह मुलाकात भले ही बिहार में वोटर लिस्ट रिवीजन को लेकर हुई हो, लेकिन राजनीतिक गलियारों में इसे उपराष्ट्रपति चुनाव से जोड़कर देखा जा रहा है। सबसे चौंकाने वाला नाम जो इस रेस में चर्चा में आया है, वह है खुद बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का। हालांकि उनका इस पद के लिए उम्मीदवार बनना व्यावहारिक रूप से कठिन माना जा रहा है, क्योंकि उन्हें चुनाव से पहले मुख्यमंत्री पद छोड़ना होगा। फिर भी, एनडीए के सहयोगी उपेंद्र कुशवाहा ने यह सुझाव जरूर दिया है कि नीतीश कुमार को अगली पीढ़ी के लिए रास्ता बनाना चाहिए और इस्तीफा देकर उपराष्ट्रपति बनने का मार्ग प्रशस्त करना चाहिए। एक अन्य संभावित नाम है जम्मू कश्मीर के उपराज्यपाल मनोज सिन्हा का। वे इस अगस्त में अपने पांच साल का कार्यकाल पूरा कर लेंगे, जिससे उनकी उम्मीदवारी की संभावना प्रबल हो जाती है। सिन्हा पूर्व सांसद, केंद्रीय मंत्री और उत्तर प्रदेश के पूर्वांचल क्षेत्र से भाजपा के पुराने वफादार नेता रहे हैं। जम्मू कश्मीर में उनके प्रशासनिक अनुभव और राजनीतिक संतुलन को देखते हुए, वे एक सशक्त नाम के रूप में देखे जा सकते हैं। भाजपा के भीतर भी दो वरिष्ठ केंद्रीय मंत्रियों के नाम चर्चा में हैं, स्वास्थ्य मंत्री जेपी नड्डा और रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह। दोनों ही नेता राष्ट्रीय राजनीति में महत्वपूर्ण चेहरा हैं और उनके अनुभव, समर्पण और नेतृत्व क्षमताएं उन्हें इस पद के लिए उपयुक्त बनाती हैं। हालांकि अभी तक भाजपा की ओर से इस पर कोई आधिकारिक संकेत नहीं आया है। विपक्ष खेमे से भी एक चौंकाने वाला नाम सामने आ रहा है, कांग्रेस नेता शशि थरूर। कुछ वर्गों में उन्हें उपराष्ट्रपति पद के लिए एक संभावित उम्मीदवार के रूप में देखा जा रहा है। हालांकि थरूर को यह पद स्वीकार करने के लिए अपनी लोकसभा की सदस्यता छोड़नी होगी। इसके अलावा, कांग्रेस के साथ उनके संबंधों में आई तल्खी इस संभावना को जटिल बना देती है। एक अन्य नाम है बिहार के राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान का। वे पूर्व सांसद रह चुके हैं और अतीत में कांग्रेस और जनता दल दोनों से जुड़े रहे हैं। 1986 में शाह बानो मामले को लेकर उन्होंने कांग्रेस से इस्तीफा दे दिया था। राजनीतिक दृष्टिकोण से उनका अनुभव, वैचारिक स्पष्टता और अल्पसंख्यक समुदाय से संबंध उन्हें एक रणनीतिक दावेदार बना सकते हैं। राष्ट्रपति के मामले में संविधान कहता है कि कुर्सी खाली होने पर छह महीने के भीतर चुनाव करा दो, लेकिन उपराष्ट्रपति के लिए कोई तय समयसीमा नहीं है। बस इतना लिखा है कि पद खाली होते ही चुनाव जल्द से जल्द कराया जाए। इसकी पूरी जिम्मेदारी होती है चुनाव आयोग की। जब चुनाव कराने की बारी आती है तो परंपरा के अनुसार संसद के किसी एक सदन, लोकसभा या राज्यसभा, के महासचिव को चुनाव अधिकारी बना दिया जाता है। चुनाव होता है ‘राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति चुनाव अधिनियम, 1952’ के तहत। अब चूंकि जगदीप धनखड़ का इस्तीफा उनके कार्यकाल के बीच में आया है, तो जो नया उपराष्ट्रपति चुना जाएगा, वह पूरे पांच साल के लिए होगा,  ना कि सिर्फ बचे हुए समय के लिए। अब आते हैं सबसे अहम हिस्से पर, वोट कौन देता है? तो बता दें कि उपराष्ट्रपति को सिर्फ संसद के सदस्य चुनते हैं। इसमें लोकसभा और राज्यसभा के सभी चुने हुए सांसद शामिल होते हैं। इतना ही नहीं, राज्यसभा और लोकसभा के नामित सदस्य भी वोट करते हैं। लेकिन ध्यान दीजिए, इसमें राज्य विधानसभाओं के विधायक शामिल नहीं होते। जबकि राष्ट्रपति चुनाव में विधायक भी वोट डालते हैं। अब जानते हैं कि वोटिंग होती कैसे है। इसमें 'गुप्त मतदान' होता है यानी किसने किसे वोट दिया, यह बाहर नहीं आता। और तरीका होता है, सिंगल ट्रांसफरेबल वोट सिस्टम। मतलब सांसदों को मतपत्र पर उम्मीदवारों की पसंद का क्रम लिखना होता है, पहला नंबर किसे देना है, दूसरा किसे, और आगे किसे। अगर किसी को कुल वैध मतों के आधे से एक ज्यादा वोट मिल जाते हैं, तो वही उपराष्ट्रपति बन जाता है। अगर पहले राउंड में कोई भी उम्मीदवार जरूरी कोटा पार नहीं कर पाता, तो सबसे कम वोट वाले उम्मीदवार को बाहर कर दिया जाता है। फिर उसके वोट दूसरी पसंद के हिसाब से बाकी बचे उम्मीदवारों में बांटे जाते हैं। यह प्रक्रिया तब तक चलती है, जब तक कोई उम्मीदवार तय सीमा पार नहीं कर लेता। अब अगर आप सोच रहे हैं कि उपराष्ट्रपति बनने के लिए योग्यता क्या चाहिए, तो सुनिए। सबसे पहले, वह भारत का नागरिक होना चाहिए। उसकी उम्र कम से कम 35 साल होनी चाहिए। वह राज्यसभा के लिए चुनाव लड़ने के काबिल होना चाहिए। उसका नाम किसी भी संसदीय क्षेत्र की वोटर लिस्ट में होना चाहिए। और हां, वह केंद्र या राज्य सरकार के किसी लाभ के पद पर नहीं होना चाहिए, सिवाय राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, राज्यपाल या मंत्री के पद को छोड़कर। तो बात सीधी है, रेस लंबी है, नाम कई हैं, समीकरण पेचीदा हैं। बीजेपी अतीत में ऐसे नाम सामने ला चुकी है जो ऐन वक्त पर सबको चौंका देते हैं। इस बार भी हो सकता है वैसा ही कोई सरप्राइज। लेकिन जब तक चुनाव नहीं हो जाता, चर्चाएं गर्म रहेंगी, नए नाम तैरते रहेंगे और सियासी गलियारे में हलचल बनी रहेगी।

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नड्डा, नीतीश से लेकर रामनाथ ठाकुर तक... उपराष्ट्रपति उम्मीदवार को लेकर अटकलें तेज

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From Nadda and Nitish to Ram Nath Thakur... Speculation Intensifies Over the Next Vice President

राजनीति की गाड़ी में कोई ब्रेक नहीं होता। कल तक जो कुर्सी पर था, आज इस्तीफा दे चुका है। और अब सबकी नजर इसी पर है कि इस कुर्सी पर अगला कौन होगा? हम बात कर रहे हैं देश के दूसरे सबसे बड़े संवैधानिक पद की। उपराष्ट्रपति के पद की। जगदीप धनखड़ ने सेहत का हवाला देकर इस्तीफा दे दिया। अब कुर्सी खाली है और जल्द चुनाव होंगे। जाहिर है कि इस चुनाव में सत्ता पक्ष और विपक्ष दोनों ही अपने अपने उम्मीदवार मैदान में उतारेंगे, लेकिन चूंकि इस वक्त संसद में एनडीए का संख्याबल अधिक है, इसलिए स्वाभाविक रूप से सभी की निगाहें एनडीए के संभावित उम्मीदवारों पर टिकी हैं। सवाल यह है कि एनडीए किसे अपना प्रत्याशी बनाएगा? कोई कह रहा है कि इस पद पर नीतीश कुमार को सेटल कर दिया जाएगा, तो कोई कहता है कि यह पद तो शशि थरूर को मिलना चाहिए। नाम हरिवंश नारायण सिंह का भी आ रहा है और रामनाथ ठाकुर का भी। चर्चा तो जगत प्रकाश नड्डा के नाम की भी खूब है। संभावित नामों की सूची लंबी है और हर नाम के पीछे अपनी राजनीतिक रणनीति और समीकरण छिपे हैं। क्या हैं ये रणनीतियां, क्या हैं ये समीकरण और इस संभावित सूची में किस किस का नाम शामिल है आइए विस्तार से आपको बताते हैं। एनडीए खेमे में सबसे चर्चित नाम है जनता दल (यूनाइटेड) के राज्यसभा सांसद हरिवंश नारायण सिंह का। वे 2020 से राज्यसभा के उपसभापति हैं और फिलहाल नए उपराष्ट्रपति के चुनाव तक राज्यसभा के कार्यवाहक सभापति की भूमिका निभा रहे हैं। 2020 में हुए राज्यसभा उपसभापति चुनाव में हरिवंश ने विपक्षी उम्मीदवार और राजद नेता मनोज झा को हराया था। संसदीय कार्यवाही के संचालन में उनकी दक्षता और साफ छवि उन्हें एक मजबूत उम्मीदवार बनाती है। जेडीयू के ही एक और बड़े नेता, रामनाथ ठाकुर, जो पूर्व मुख्यमंत्री कर्पूरी ठाकुर के बेटे हैं, भी उपराष्ट्रपति पद के लिए संभावित नामों में शामिल हैं। ये जेडीयू कोटे से राज्यसभा सांसद हैं और केंद्र सरकार में कृषि एवं किसान कल्याण राज्यमंत्री के रूप में कार्यरत हैं। इनकी छवि ईमानदार नेता की है और ये अति पिछड़ा वर्ग से आते हैं। इस सामाजिक पृष्ठभूमि के कारण ये भी एक सर्वमान्य और राजनीतिक दृष्टिकोण से रणनीतिक उम्मीदवार हो सकते हैं। हाल ही में जेपी नड्डा के साथ इनकी मुलाकात ने अटकलों को और बल दिया है। यह मुलाकात भले ही बिहार में वोटर लिस्ट रिवीजन को लेकर हुई हो, लेकिन राजनीतिक गलियारों में इसे उपराष्ट्रपति चुनाव से जोड़कर देखा जा रहा है। सबसे चौंकाने वाला नाम जो इस रेस में चर्चा में आया है, वह है खुद बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का। हालांकि उनका इस पद के लिए उम्मीदवार बनना व्यावहारिक रूप से कठिन माना जा रहा है, क्योंकि उन्हें चुनाव से पहले मुख्यमंत्री पद छोड़ना होगा। फिर भी, एनडीए के सहयोगी उपेंद्र कुशवाहा ने यह सुझाव जरूर दिया है कि नीतीश कुमार को अगली पीढ़ी के लिए रास्ता बनाना चाहिए और इस्तीफा देकर उपराष्ट्रपति बनने का मार्ग प्रशस्त करना चाहिए। एक अन्य संभावित नाम है जम्मू कश्मीर के उपराज्यपाल मनोज सिन्हा का। वे इस अगस्त में अपने पांच साल का कार्यकाल पूरा कर लेंगे, जिससे उनकी उम्मीदवारी की संभावना प्रबल हो जाती है। सिन्हा पूर्व सांसद, केंद्रीय मंत्री और उत्तर प्रदेश के पूर्वांचल क्षेत्र से भाजपा के पुराने वफादार नेता रहे हैं। जम्मू कश्मीर में उनके प्रशासनिक अनुभव और राजनीतिक संतुलन को देखते हुए, वे एक सशक्त नाम के रूप में देखे जा सकते हैं। भाजपा के भीतर भी दो वरिष्ठ केंद्रीय मंत्रियों के नाम चर्चा में हैं, स्वास्थ्य मंत्री जेपी नड्डा और रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह। दोनों ही नेता राष्ट्रीय राजनीति में महत्वपूर्ण चेहरा हैं और उनके अनुभव, समर्पण और नेतृत्व क्षमताएं उन्हें इस पद के लिए उपयुक्त बनाती हैं। हालांकि अभी तक भाजपा की ओर से इस पर कोई आधिकारिक संकेत नहीं आया है। विपक्ष खेमे से भी एक चौंकाने वाला नाम सामने आ रहा है, कांग्रेस नेता शशि थरूर। कुछ वर्गों में उन्हें उपराष्ट्रपति पद के लिए एक संभावित उम्मीदवार के रूप में देखा जा रहा है। हालांकि थरूर को यह पद स्वीकार करने के लिए अपनी लोकसभा की सदस्यता छोड़नी होगी। इसके अलावा, कांग्रेस के साथ उनके संबंधों में आई तल्खी इस संभावना को जटिल बना देती है। एक अन्य नाम है बिहार के राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान का। वे पूर्व सांसद रह चुके हैं और अतीत में कांग्रेस और जनता दल दोनों से जुड़े रहे हैं। 1986 में शाह बानो मामले को लेकर उन्होंने कांग्रेस से इस्तीफा दे दिया था। राजनीतिक दृष्टिकोण से उनका अनुभव, वैचारिक स्पष्टता और अल्पसंख्यक समुदाय से संबंध उन्हें एक रणनीतिक दावेदार बना सकते हैं। राष्ट्रपति के मामले में संविधान कहता है कि कुर्सी खाली होने पर छह महीने के भीतर चुनाव करा दो, लेकिन उपराष्ट्रपति के लिए कोई तय समयसीमा नहीं है। बस इतना लिखा है कि पद खाली होते ही चुनाव जल्द से जल्द कराया जाए। इसकी पूरी जिम्मेदारी होती है चुनाव आयोग की। जब चुनाव कराने की बारी आती है तो परंपरा के अनुसार संसद के किसी एक सदन, लोकसभा या राज्यसभा, के महासचिव को चुनाव अधिकारी बना दिया जाता है। चुनाव होता है ‘राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति चुनाव अधिनियम, 1952’ के तहत। अब चूंकि जगदीप धनखड़ का इस्तीफा उनके कार्यकाल के बीच में आया है, तो जो नया उपराष्ट्रपति चुना जाएगा, वह पूरे पांच साल के लिए होगा,  ना कि सिर्फ बचे हुए समय के लिए। अब आते हैं सबसे अहम हिस्से पर, वोट कौन देता है? तो बता दें कि उपराष्ट्रपति को सिर्फ संसद के सदस्य चुनते हैं। इसमें लोकसभा और राज्यसभा के सभी चुने हुए सांसद शामिल होते हैं। इतना ही नहीं, राज्यसभा और लोकसभा के नामित सदस्य भी वोट करते हैं। लेकिन ध्यान दीजिए, इसमें राज्य विधानसभाओं के विधायक शामिल नहीं होते। जबकि राष्ट्रपति चुनाव में विधायक भी वोट डालते हैं। अब जानते हैं कि वोटिंग होती कैसे है। इसमें 'गुप्त मतदान' होता है यानी किसने किसे वोट दिया, यह बाहर नहीं आता। और तरीका होता है, सिंगल ट्रांसफरेबल वोट सिस्टम। मतलब सांसदों को मतपत्र पर उम्मीदवारों की पसंद का क्रम लिखना होता है, पहला नंबर किसे देना है, दूसरा किसे, और आगे किसे। अगर किसी को कुल वैध मतों के आधे से एक ज्यादा वोट मिल जाते हैं, तो वही उपराष्ट्रपति बन जाता है। अगर पहले राउंड में कोई भी उम्मीदवार जरूरी कोटा पार नहीं कर पाता, तो सबसे कम वोट वाले उम्मीदवार को बाहर कर दिया जाता है। फिर उसके वोट दूसरी पसंद के हिसाब से बाकी बचे उम्मीदवारों में बांटे जाते हैं। यह प्रक्रिया तब तक चलती है, जब तक कोई उम्मीदवार तय सीमा पार नहीं कर लेता। अब अगर आप सोच रहे हैं कि उपराष्ट्रपति बनने के लिए योग्यता क्या चाहिए, तो सुनिए। सबसे पहले, वह भारत का नागरिक होना चाहिए। उसकी उम्र कम से कम 35 साल होनी चाहिए। वह राज्यसभा के लिए चुनाव लड़ने के काबिल होना चाहिए। उसका नाम किसी भी संसदीय क्षेत्र की वोटर लिस्ट में होना चाहिए। और हां, वह केंद्र या राज्य सरकार के किसी लाभ के पद पर नहीं होना चाहिए, सिवाय राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, राज्यपाल या मंत्री के पद को छोड़कर। तो बात सीधी है, रेस लंबी है, नाम कई हैं, समीकरण पेचीदा हैं। बीजेपी अतीत में ऐसे नाम सामने ला चुकी है जो ऐन वक्त पर सबको चौंका देते हैं। इस बार भी हो सकता है वैसा ही कोई सरप्राइज। लेकिन जब तक चुनाव नहीं हो जाता, चर्चाएं गर्म रहेंगी, नए नाम तैरते रहेंगे और सियासी गलियारे में हलचल बनी रहेगी।

मोदी की स्वास्थ्य गारंटी : आयुष्मान भारत डिजिटल मिशन से जुड़े 56.67 करोड़ लोग

In Health
guarantee: 56.67 crore people connected to Ayushman Bharat Digital Mission

पीएम मोदी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार ने साल 2021 में आयुष्मान भारत डिजिटल मिशन की शुरुआत की थी। मोदी के नेतृत्व में ही 2021-2022 से 2025-2026 तक 5 वर्षों के लिए 1,600 करोड़ रुपये की डिजिटल स्वास्थ्य इकोसिस्टम बनाने के लिए आयुष्मान भारत डिजिटल मिशन शुरू किया गया था। इसकी वजह से पीएम मोदी के गारंटी का भी असर देखने को साफ मिला और इस योजना के तहत 29 फरवरी, 2024 तक 56.67 करोड़ लोगों के आयुष्मान भारत स्वास्थ्य खाते बनाए जा चुके हैं। इसके अलावा आयुष्मान भारत डिजिटल मिशन ने लैंगिक समानता हासिल करने की दिशा में भी प्रगति की है। 29 फरवरी, 2024 तक, 27.73 करोड़ महिलाएं और 29.11 करोड़ पुरुषों को आभा कार्ड से लाभ हुआ है। वहीं 34.89 करोड़ से अधिक स्वास्थ्य दस्तावेजों को इससे जोड़ा गया है। क्या है आयुष्मान भारत डिजिटल मिशन  आयुष्मान भारत डिजिटल मिशन का उद्देश्य देश में यूनिफाइड डिजिटल स्वास्थ्य बुनियादी ढांचे की मदद करने के लिए जरूरी आधार तैयार करना है। इससे सीमित इंटरनेट कनेक्टिविटी वाले क्षेत्रों में आयुष्मान भारत स्वास्थ्य खाता खोलने के लिए ऑफलाइन मोड को मदद पहुंचती है। इसके अलावा भारत सरकार ने स्वास्थ्य सुविधा के लिए आभा ऐप और आरोग्य सेतु जैसे विभिन्न एप्लिकेशन भी लॉन्च किए गए हैं, जो आम लोगों को मदद पहुंचाती है। आभा ऐप एक प्रकार का डिजिटल स्टोरेज है, जो किसी भी व्यक्ति के मेडिकल दस्तावेजों का रखने का काम आता है। इस ऐप के जरिए मरीज रजिस्टर्ड स्वास्थ्य पेशेवरों से संपर्क भी कर सकते हैं।    भारत में बीजेपी की मोदी सरकार ने बीते 10 सालों के अपनी सरकार में कई सारे मील के पत्थर हासिल किया है। इन 10 सालों में पीएम मोदी के विजन ने भारत को अगले 23 साल बाद यानी साल 2047 तक विकसित भारत बनाने के ओर मजबूती से कदम भी बढ़ा लिया है। पीएम मोदी के नेतृत्व में बीजेपी सरकार ने देश के हित में जो भी फैसले लिए है, उनमें से हेल्थ सेक्टर को सर्वोच्च प्राथमिकता देने का प्रयास किया गया है।        

हिमाचल : प्रदेश में विद्यार्थियों की शून्य संख्या वाले 103 स्कूल होंगे बंद, सीएम ने दी मंजूरी

In Education
Himachal: 103 schools with zero number of students in the state will be closed, CM gave approval

प्रदेश में विद्यार्थियों की कम संख्या वाले 618 स्कूल बंद, मर्ज और डाउन ग्रेड होंगे। शिक्षा विभाग के इस प्रस्ताव को मुख्यमंत्री सुखविंद्र सिंह सुक्खू ने मंजूरी दे दी है। प्रदेश में विद्यार्थियों की शून्य संख्या वाले 103 स्कूल बंद होंगे। दस बच्चों की संख्या वाले 443 स्कूल मर्ज किए जाएंगे और 75 स्कूलों का दर्जा घटाया जाएगा। मर्ज होने वाले स्कूलों के विद्यार्थियों का चार से पांच किलोमीटर के दायरे में आने वाले अधिक दाखिलों वाले स्कूलों में समायोजन किया जाएगा। शिक्षा मंत्री रोहित ठाकुर ने बताया कि मुख्यमंत्री से मंजूरी मिल गई है और विभाग जल्द इस की अधिसूचना जारी करेगा। वही 618 स्कूल मर्ज, डाउन ग्रेड और बंद करने से 1,120 शिक्षक सरप्लस होंगे। इन शिक्षकों को अन्य आवश्यकता वाले स्कूलों में स्थानांतरित किया जाएगा। विद्यार्थियों की शून्य संख्या वाले 72 प्राइमरी, 28 मिडल और 3 उच्च स्कूल डिनोटिफाई (बंद) करने का फैसला लिया गया। 203 प्राइमरी स्कूल ऐसे हैं, जहां विद्यार्थियों की संख्या पांच से उससे कम है। इन स्कूलों को दो किलोमीटर के दायरे में आने वाले अन्य स्कूलों में मर्ज किया जाएगा। पांच से कम विद्यार्थियों की संख्या वाले 142 प्राइमरी स्कूल ऐसे हैं, जिनके दाे किलोमीटर के दायरे में अन्य स्कूल नहीं हैं। इन्हें तीन किलाेमीटर की दूरी पर मर्ज किया जाएगा। 92 मिडल स्कूलों में दस या उससे कम विद्यार्थी हैं, इन्हें तीन किमी, बीस विद्यार्थियों की संख्या वाले सात हाई स्कूलों को चार किलोमीटर के दायरे में मर्ज किया जाएगा। विद्यार्थियों की कम संख्या वाले 75 उच्च और वरिष्ठ माध्यमिक स्कूलों का दर्जा कम किया जाएगा। रोहित ठाकुर ने कहा कि प्रदेश में 100 विद्यार्थियों की संख्या वाले कॉलेजों को भी मर्ज किया जाएगा। जनजातीय और दुर्गम क्षेत्रों में स्थित कॉलेजों के लिए विद्यार्थियों की संख्या 75 रखी गई है। कई कॉलेजों में बीते कुछ वर्षों से नामांकन बहुत कम हो रहे हैं। ऐसे कॉलेजों को आगे चलाना अब आसान नहीं है। ऐसे में शिक्षा निदेशालय से कॉलेज मर्ज करने के लिए प्रस्ताव मांगा गया है।  

धर्मशाला को मिली 3 IPL मैचों की मेजबानी

In Sports
DHRAMSHALA-TO-HOST-THREE-IPL-MATCHES-IN-2025

 बीसीसीआई द्वारा इंडियन प्रीमियर लीग के 18वें सीजन आईपीएल-2025 के शैड्यूल का ऐलान कर दिया गया है।  एचपीसीए स्टेडियम धर्मशाला को 3 आईपीएल मैचों की मेजबानी करने का मौका मिला है।  धर्मशाला स्टेडियम में 4 मई को  पंजाब किंग्स की टीम लखनऊ सुपर जायंट्स के साथ अपना लीग मैच खेलेगी, जबकि 8 मई को पंजाब का मुकाबला दिल्ली कैपिटल्स के साथ होगा। ये दोनों ही मुकाबले शाम साढ़े 7 बजे शुरू होंगे। वहीं 11 मई को दोपहर साढ़े 3 बजे पंजाब की टीम मुंबई इंडियंस के खिलाफ स्टेडियम में उतरेगी। आईपीएल  चेयरमैन अरुण धूमल ने बीते दिनों बिलासपुर में आयोजित सांसद खेल महाकुंभ के शुभारंभ पर ही धर्मशाला स्टेडियम को आईपीएल के 3 मैचों की मेजबानी के संकेत दे दिए थे। अब इस पर आधिकारिक मुहर लग चुकी है। आईपीएल 2024 में धर्मशाला को मिले थे दो मैच वर्ष 2024 में धर्मशाला में पंजाब किंग्स की टीम के दो मैच चेन्नई सुपर किंग्स और रायल चैलेंजर बेंगलुरु से हुए थे। पहला मुकाबला पांच मई को भारतीय टीम के पूर्व कप्तान महेंद्र सिंह धोनी की चेन्नई सुपर किंग्स के साथ हुआ था। नौ मई को पंजाब का मुकाबला आरसीबी के साथ खेला गया था।

स्टीव जॉब्स से विराट कोहली तक, नीम करोली बाबा के आश्रम में सब नतमस्तक

In First Blessing
NEEM-KARORI-BABA

  नीम करोली बाबा के आश्रम में स्टीव जॉब्स और मार्क जुकरबर्ग को मिली आध्यात्मिक शान्ति भारत में कई ऐसे पावन तीर्थ हैं, जहां पर श्रद्धा एवं भक्ति के साथ जाने मात्र से व्यक्ति के समस्त मनोरथ पूरे हो जाते हैं। ऐसा ही एक पावन तीर्थ देवभूमि उत्तराखंड की वादियों में है, जिसे लोग 'कैंची धाम' के नाम से जानते हैं। कैंची धाम के नीब करौरी बाबा (नीम करौली) की ख्याति विश्वभर में है। नैनीताल से लगभग 65 किलोमीटर दूर कैंची धाम को लेकर मान्यता है कि यहां आने वाला व्यक्ति कभी भी खाली हाथ वापस नहीं लौटता। यहां पर हर मन्नत पूर्णतया फलदायी होती है। यही कारण है कि देश-विदेश से हज़ारों लोग यहां हनुमान जी का आशीर्वाद लेने आते हैं। बाबा के भक्तों में एक आम आदमी से लेकर अरबपति-खरबपति तक शामिल हैं। बाबा के इस पावन धाम में होने वाले नित-नये चमत्कारों को सुनकर दुनिया के कोने-कोने से लोग यहां पर खिंचे चले आते हैं। बाबा के भक्त और जाने-माने लेखक रिचर्ड अल्बर्ट ने मिरेकल आफ लव नाम से बाबा पर पुस्तक लिखी है। इस पुस्तक में बाबा नीब करौरी के चमत्कारों का विस्तार से वर्णन है। इनके अलावा हॉलीवुड अभिनेत्री जूलिया राबर्ट्स, एप्पल के फाउंडर स्टीव जाब्स और फेसबुक के संस्थापक मार्क जुकरबर्ग जैसी बड़ी विदेशी हस्तियां बाबा के भक्त हैं।  कुछ माह पूर्व स्टार क्रिकेटर विराट कोहली और उनकी पत्नी और अभिनेत्री अनुष्का शर्मा के यहां पहुंचते ही इस धाम को देखने और बाबा के दर्शन करने वालों की होड़ सी लग गई। 1964 में बाबा ने की थी आश्रम की स्थापना  नीम करोली बाबा या नीब करोली बाबा की गणना बीसवीं शताब्दी के सबसे महान संतों में की जाती है। इनका जन्म स्थान ग्राम अकबरपुर जिला फ़िरोज़ाबाद उत्तर प्रदेश में हुआ था। कैंची, नैनीताल, भुवाली से 7 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। बाबा नीब करौरी ने इस आश्रम की स्थापना 1964 में की थी। बाबा नीम करौरी 1961 में पहली बार यहां आए और उन्होंने अपने पुराने मित्र पूर्णानंद जी के साथ मिल कर यहां आश्रम बनाने का विचार किया। इस धाम को कैंची मंदिर, नीम करौली धाम और नीम करौली आश्रम के नाम से जाना जाता है। उत्तराखंड में हिमालय की तलहटी में बसा एक छोटा सा आश्रम है नीम करोली बाबा आश्रम। मंदिर के आंगन और चारों ओर से साफ सुथरे कमरों में रसीली हरियाली के साथ, आश्रम एक शांत और एकांत विश्राम के लिए एकदम सही जगह प्रस्तुत करता है। यहाँ कोई टेलीफोन लाइनें नहीं हैं, इसलिए किसी को बाहरी दुनिया से परेशान नहीं किया जा सकता है। श्री हनुमान जी के अवतार माने जाने वाले नीम करोरी बाबा के इस पावन धाम पर पूरे साल श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है, लेकिन हर साल 15 जून को यहां पर एक विशाल मेले व भंडारे का आयोजन होता है। यहां इस दिन इस पावन धाम में स्थापना दिवस मनाया जाता है। कई चमत्कारों के किस्से सुन खींचे आते है भक्त  मान्यता है कि बाबा नीम करौरी को हनुमान जी की उपासना से अनेक चामत्कारिक सिद्धियां प्राप्त थीं। लोग उन्हें हनुमान जी का अवतार भी मानते हैं। हालांकि वह आडंबरों से दूर रहते थे। न तो उनके माथे पर तिलक होता था और न ही गले में कंठी माला। एक आम आदमी की तरह जीवन जीने वाले बाबा अपना पैर किसी को नहीं छूने देते थे। यदि कोई छूने की कोशिश करता तो वह उसे श्री हनुमान जी के पैर छूने को कहते थे। बाबा नीब करौरी के इस पावन धाम को लेकर तमाम तरह के चमत्कार जुड़े हैं। जनश्रुतियों के अनुसार, एक बार भंडारे के दौरान कैंची धाम में घी की कमी पड़ गई थी। बाबा जी के आदेश पर नीचे बहती नदी से कनस्तर में जल भरकर लाया गया। उसे प्रसाद बनाने हेतु जब उपयोग में लाया गया तो वह जल घी में बदल गया। ऐसे ही एक बार बाबा नीब करौरी महाराज ने अपने भक्त को गर्मी की तपती धूप में बचाने के लिए उसे बादल की छतरी बनाकर, उसे उसकी मंजिल तक पहुंचवाया। ऐसे न जाने कितने किस्से बाबा और उनके पावन धाम से जुड़े हुए हैं, जिन्हें सुनकर लोग यहां पर खिंचे चले आते हैं। बाबा के दुनियाभर में 108 आश्रम  बाबा नीब करौरी को कैंची धाम बहुत प्रिय था। अक्सर गर्मियों में वे यहीं आकर रहते थे। बाबा के भक्तों ने इस स्थान पर हनुमान का भव्य मन्दिर बनवाया। उस मन्दिर में हनुमान की मूर्ति के साथ-साथ अन्य देवताओं की मूर्तियाँ भी हैं। यहां बाबा नीब करौरी की भी एक भव्य मूर्ति स्थापित की गयी है। बाबा नीब करौरी महाराज के देश-दुनिया में 108 आश्रम हैं। इन आश्रमों में सबसे बड़ा कैंची धाम तथा अमेरिका के न्यू मैक्सिको सिटी स्थित टाउस आश्रम है। स्टीव जॉब्स को आश्रम से मिला एप्पल के लोगो का आईडिया ! भारत की धरती सदा से ही अध्यात्म के खोजियों को अपनी ओर खींचती रही है। दुनिया की कई बड़ी हस्तियों में भारत भूमि पर ही अपना सच्चा आध्यात्मिक गुरु पाया है। एप्पल कंपनी के संस्थापक स्टीव जॉब्स 1974 से 1976 के बीच भारत भ्रमण पर निकले। वह पर्यटन के मकसद से भारत नहीं आए थे, बल्कि आध्यात्मिक खोज में यहां आए थे। उन्हें एक सच्चे गुरु की तलाश थी।स्टीव पहले हरिद्वार पहुंचे और इसके बाद वह कैंची धाम तक पहुंच गए। यहां पहुंचकर उन्हें पता लगा कि बाबा समाधि ले चुके हैं। कहते है कि स्टीव को एप्पल के लोगो का आइडिया बाबा के आश्रम से ही मिला था। नीम करौली बाबा को कथित तौर पर सेब बहुत पसंद थे और यही वजह थी कि स्टीव ने अपनी कंपनी के लोगों के लिए कटे हुए एप्पल को चुना। हालांकि इस कहानी की सत्यता के बारे में कुछ नहीं कहा जा सकता है। जुकरबर्ग को मिली आध्यात्मिक शांति, शीर्ष पर पहुंचा फेसबुक  बाबा से जुड़ा एक किस्सा फेसबुक के मालिक मार्क जुकरबर्ग ने 27 सितंबर 2015 को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को बताया था, तब पीएम मोदी फेसबुक के मुख्यालय में गए थे। इस दौरान जुकरबर्ग ने पीएम को भारत भ्रमण की बात बताई। उन्होंने कहा कि जब वे इस संशय में थे कि फेसबुक को बेचा जाए या नहीं, तब एप्पल के फाउंडर स्टीव जॉब्स ने इन्हें भारत में नीम करोली बाबा के स्थान पर  जाने की सलाह दी थी। जुकरबर्ग ने बताया था कि वे एक महीना भारत में रहे। इस दौरान वह नीम करोली बाबा के मंदिर में भी गए थे। जुकरबर्ग आए तो यहां एक दिन के लिए थे, लेकिन मौसम खराब हो जाने के कारण वह यहां दो दिन रुके थे। जुकरबर्ग मानते हैं कि भारत में मिली अध्यात्मिक शांति के बाद उन्हें फेसबुक को नए मुकाम पर ले जाने की ऊर्जा मिली। बाबा की तस्वीर को देख जूलिया ने अपनाया हिन्दू धर्म  हॉलिवुड की मशहूर अदाकारा जूलिया रॉबर्ट्स ने 2009 में हिंदू धर्म अपना लिया था। वह फिल्म ‘ईट, प्रे, लव’ की शूटिंग के लिए भारत आईं थीं। जूलिया रॉबर्ट्स ने एक इंटरव्यू में यह खुलासा किया था कि वह नीम करौली बाबा की तस्वीर से इतना प्रभावित हुई थीं कि उन्होंने हिन्दू धर्म अपनाने का फैसला कर डाला। जूलिया इन दिनों हिन्दू धर्म का पालन कर रही हैं।    

पाताल भुवनेश्वर मंदिर: रहस्य, आस्था और आध्यात्मिकता का अद्भुत संगम

In Entertainment
Patal Bhuvaneshwar Temple: A wonderful confluence of mystery, faith and spirituality

  क्या आपने कभी कल्पना की है कि कहीं ऐसा स्थान भी हो सकता है, जहां सृष्टि के अंत का रहस्य छिपा हो? कोई ऐसा मंदिर, जहां चारों धामों के दर्शन एक ही स्थान पर संभव हों? उत्तराखंड के पिथौरागढ़ जिले में स्थित पाताल भुवनेश्वर मंदिर ऐसा ही एक रहस्यमयी और दिव्य स्थल है, जो हर भक्त को आस्था, रहस्य और आध्यात्मिकता की गहराइयों से जोड़ता है। यह मंदिर एक गुफा के भीतर स्थित है, जिसे प्राचीन काल से चमत्कारी और गूढ़ माना गया है। गुफा में प्रवेश करते ही ऐसा लगता है मानो आप किसी अद्भुत आध्यात्मिक संसार में प्रवेश कर चुके हों। मान्यता है कि यहां भगवान शिव के साथ-साथ 33 कोटि देवी-देवताओं का वास है। यहां स्थित भगवान गणेश का कटा हुआ मस्तक स्वयं में एक रहस्य है, जो इस स्थान की अलौकिकता को और भी गहरा बनाता है। यहां स्थित शिवलिंग के बारे में मान्यता है कि वह निरंतर बढ़ रहा है, और जिस दिन वह गुफा की छत से टकराएगा, उस दिन प्रलय होगा। यह धारणा श्रद्धालुओं को एक अकल्पनीय आध्यात्मिक अनुभव और चेतना की गहराई से जोड़ती है।गुफा के भीतर चार रहस्यमयी द्वार मानव जीवन के चार प्रमुख पड़ावों का प्रतीक माने जाते हैं। कहा जाता है कि रावण की मृत्यु के बाद पाप द्वार और महाभारत युद्ध के बाद रण द्वार बंद हो गए। अब केवल धर्म द्वार और मोक्ष द्वार खुले हैं, जो जीवन के सत्य और मोक्ष के मार्ग की ओर संकेत करते हैं। पौराणिक इतिहास की दृष्टि से इस मंदिर का उल्लेख त्रेता युग में मिलता है। सूर्य वंश के राजा ऋतुपर्ण ने सबसे पहले इस गुफा की खोज की थी। कहा जाता है कि पांडवों ने भी यहां भगवान शिव के साथ चौपड़ खेला था। बाद में 819 ईस्वी में जगत गुरु शंकराचार्य ने इस स्थल की पुनः खोज की और यहां पूजा आरंभ की। कैसे पहुंचे पाताल भुवनेश्वर? यह दिव्य स्थल पिथौरागढ़ से लगभग 90 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। निकटतम हवाई अड्डा पंतनगर है, जबकि सबसे नजदीकी रेलवे स्टेशन टनकपुर है। सड़क मार्ग से यह स्थान सुगम रूप से जुड़ा हुआ है और उत्तराखंड के खूबसूरत पर्वतीय रास्तों से होकर गुज़रता है, जो यात्रा को और भी आनंददायक बना देता है। यह मंदिर न केवल धार्मिक आस्था का केंद्र है, बल्कि रहस्य और आध्यात्मिकता के अनूठे संगम के कारण भी यह स्थल भक्तों और शोधकर्ताओं के लिए आकर्षण का केंद्र बना हुआ है। पाताल भुवनेश्वर की इस अद्भुत गुफा में जाकर आप स्वयं उस दिव्यता और रहस्यमय ऊर्जा का अनुभव कर सकते हैं, जो सदियों से लोगों को अपनी ओर आकर्षित करती आ रही है।

राजस्व मंत्री जगत सिंह नेगी ने धर्मपुर के स्याठी गांव का किया दौरा, राहत एवं पुनर्निर्माण कार्यों की ली समीक्षा

In News
Revenue Minister Jagat Singh Negi Visits Syathi Village in Dharmapur, Reviews Relief and Rehabilitation Work

राजस्व, बागवानी, जनजातीय विकास और जन शिकायत निवारण मंत्री जगत सिंह नेगी ने शनिवार को धर्मपुर उपमंडल के स्याठी गांव का दौरा कर प्राकृतिक आपदा से प्रभावित क्षेत्रों में जारी राहत एवं पुनर्निर्माण कार्यों का बारीकी से निरीक्षण किया। प्रभावित लोगों से मिलकर हालचाल जाना और उनकी समस्याओं को सीधे समझने के साथ उन्होंने अधिकारियों को कार्यों में तेजी लाने के निर्देश दिए। उन्होंने कहा कि प्रदेश सरकार की सर्वोच्च प्राथमिकता है कि हर प्रभावित व्यक्ति तक राहत सामग्री और आर्थिक मदद पहुंचे। मुख्यमंत्री ठाकुर सुखविंद्र सिंह सुक्खू ने आपदा के 24 घंटे के भीतर प्रभावित इलाकों का दौरा कर प्रशासन को राहत एवं पुनर्वास कार्यों के कड़े निर्देश दिए हैं। मंत्री ने स्पष्ट किया कि जिन परिवारों के घर पूरी तरह क्षतिग्रस्त हुए हैं, उन्हें अधिकतम 7 लाख रुपये तक की आर्थिक सहायता दी जाएगी, जो देश में अब तक किसी राज्य सरकार द्वारा दी गई सबसे बड़ी राहत राशि है। हालांकि, भूमि की उपलब्धता एक बड़ी चुनौती बनी हुई है क्योंकि अधिकतर खाली जमीन वन क्षेत्र में आती है। इस समस्या के समाधान के लिए राज्य सरकार ने वन संरक्षण अधिनियम में संशोधन हेतु केंद्र को प्रस्ताव भेजा है। वहीं, वन अधिकार अधिनियम के तहत भी आजीविका पर निर्भर परिवारों को जमीन उपलब्ध कराई जाएगी। इसके अतिरिक्त, प्रभावित खेतों और बागीचों के नुकसान का आकलन राजस्व, कृषि और बागवानी विभाग संयुक्त रूप से करेंगे और मुआवज़ा राशि बढ़ाई गई है। राजस्व मंत्री ने लोक निर्माण विभाग, जल शक्ति विभाग और विद्युत बोर्ड के पुनर्निर्माण कार्यों की प्रगति की जानकारी ली और उन्हें कार्यों में तेजी लाने के निर्देश दिए। उन्होंने अटल आदर्श विद्यालय मढ़ी का भी निरीक्षण किया। इस दौरान विधायक चन्द्रशेखर ने क्षेत्र के प्रभावित परिवारों की संख्या बताई और मुख्यमंत्री व सरकार के त्वरित राहत कार्यों के लिए आभार जताया। एसडीएम धर्मपुर जोगिंद्र पटियाल ने बताया कि अब तक प्रभावितों को लगभग 3.85 लाख रुपये की सहायता राशि विभिन्न मदों में दी जा चुकी है। 26 पूरी तरह से क्षतिग्रस्त पक्के घरों व 3 कच्चे घरों को 2.50 लाख रुपये, आंशिक रूप से क्षतिग्रस्त 10 पक्के व 18 कच्चे घरों को 70 हजार रुपये की अग्रिम राहत दी गई है। साथ ही गौशालाओं को 65 हजार रुपये की सहायता प्रदान की गई। राहत सामग्री के तहत 29 राशन किट, 16 कंबल, 612 तिरपाल और गैस सिलेंडर आदि वितरण किए गए हैं। पेयजल योजनाओं में अधिकांश कार्य आंशिक रूप से बहाल हो चुके हैं और कुछ सड़कों की मरम्मत प्रगति पर है।    

नड्डा, नीतीश से लेकर रामनाथ ठाकुर तक... उपराष्ट्रपति उम्मीदवार को लेकर अटकलें तेज

In National News
From Nadda and Nitish to Ram Nath Thakur... Speculation Intensifies Over the Next Vice President

राजनीति की गाड़ी में कोई ब्रेक नहीं होता। कल तक जो कुर्सी पर था, आज इस्तीफा दे चुका है। और अब सबकी नजर इसी पर है कि इस कुर्सी पर अगला कौन होगा? हम बात कर रहे हैं देश के दूसरे सबसे बड़े संवैधानिक पद की। उपराष्ट्रपति के पद की। जगदीप धनखड़ ने सेहत का हवाला देकर इस्तीफा दे दिया। अब कुर्सी खाली है और जल्द चुनाव होंगे। जाहिर है कि इस चुनाव में सत्ता पक्ष और विपक्ष दोनों ही अपने अपने उम्मीदवार मैदान में उतारेंगे, लेकिन चूंकि इस वक्त संसद में एनडीए का संख्याबल अधिक है, इसलिए स्वाभाविक रूप से सभी की निगाहें एनडीए के संभावित उम्मीदवारों पर टिकी हैं। सवाल यह है कि एनडीए किसे अपना प्रत्याशी बनाएगा? कोई कह रहा है कि इस पद पर नीतीश कुमार को सेटल कर दिया जाएगा, तो कोई कहता है कि यह पद तो शशि थरूर को मिलना चाहिए। नाम हरिवंश नारायण सिंह का भी आ रहा है और रामनाथ ठाकुर का भी। चर्चा तो जगत प्रकाश नड्डा के नाम की भी खूब है। संभावित नामों की सूची लंबी है और हर नाम के पीछे अपनी राजनीतिक रणनीति और समीकरण छिपे हैं। क्या हैं ये रणनीतियां, क्या हैं ये समीकरण और इस संभावित सूची में किस किस का नाम शामिल है आइए विस्तार से आपको बताते हैं। एनडीए खेमे में सबसे चर्चित नाम है जनता दल (यूनाइटेड) के राज्यसभा सांसद हरिवंश नारायण सिंह का। वे 2020 से राज्यसभा के उपसभापति हैं और फिलहाल नए उपराष्ट्रपति के चुनाव तक राज्यसभा के कार्यवाहक सभापति की भूमिका निभा रहे हैं। 2020 में हुए राज्यसभा उपसभापति चुनाव में हरिवंश ने विपक्षी उम्मीदवार और राजद नेता मनोज झा को हराया था। संसदीय कार्यवाही के संचालन में उनकी दक्षता और साफ छवि उन्हें एक मजबूत उम्मीदवार बनाती है। जेडीयू के ही एक और बड़े नेता, रामनाथ ठाकुर, जो पूर्व मुख्यमंत्री कर्पूरी ठाकुर के बेटे हैं, भी उपराष्ट्रपति पद के लिए संभावित नामों में शामिल हैं। ये जेडीयू कोटे से राज्यसभा सांसद हैं और केंद्र सरकार में कृषि एवं किसान कल्याण राज्यमंत्री के रूप में कार्यरत हैं। इनकी छवि ईमानदार नेता की है और ये अति पिछड़ा वर्ग से आते हैं। इस सामाजिक पृष्ठभूमि के कारण ये भी एक सर्वमान्य और राजनीतिक दृष्टिकोण से रणनीतिक उम्मीदवार हो सकते हैं। हाल ही में जेपी नड्डा के साथ इनकी मुलाकात ने अटकलों को और बल दिया है। यह मुलाकात भले ही बिहार में वोटर लिस्ट रिवीजन को लेकर हुई हो, लेकिन राजनीतिक गलियारों में इसे उपराष्ट्रपति चुनाव से जोड़कर देखा जा रहा है। सबसे चौंकाने वाला नाम जो इस रेस में चर्चा में आया है, वह है खुद बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का। हालांकि उनका इस पद के लिए उम्मीदवार बनना व्यावहारिक रूप से कठिन माना जा रहा है, क्योंकि उन्हें चुनाव से पहले मुख्यमंत्री पद छोड़ना होगा। फिर भी, एनडीए के सहयोगी उपेंद्र कुशवाहा ने यह सुझाव जरूर दिया है कि नीतीश कुमार को अगली पीढ़ी के लिए रास्ता बनाना चाहिए और इस्तीफा देकर उपराष्ट्रपति बनने का मार्ग प्रशस्त करना चाहिए। एक अन्य संभावित नाम है जम्मू कश्मीर के उपराज्यपाल मनोज सिन्हा का। वे इस अगस्त में अपने पांच साल का कार्यकाल पूरा कर लेंगे, जिससे उनकी उम्मीदवारी की संभावना प्रबल हो जाती है। सिन्हा पूर्व सांसद, केंद्रीय मंत्री और उत्तर प्रदेश के पूर्वांचल क्षेत्र से भाजपा के पुराने वफादार नेता रहे हैं। जम्मू कश्मीर में उनके प्रशासनिक अनुभव और राजनीतिक संतुलन को देखते हुए, वे एक सशक्त नाम के रूप में देखे जा सकते हैं। भाजपा के भीतर भी दो वरिष्ठ केंद्रीय मंत्रियों के नाम चर्चा में हैं, स्वास्थ्य मंत्री जेपी नड्डा और रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह। दोनों ही नेता राष्ट्रीय राजनीति में महत्वपूर्ण चेहरा हैं और उनके अनुभव, समर्पण और नेतृत्व क्षमताएं उन्हें इस पद के लिए उपयुक्त बनाती हैं। हालांकि अभी तक भाजपा की ओर से इस पर कोई आधिकारिक संकेत नहीं आया है। विपक्ष खेमे से भी एक चौंकाने वाला नाम सामने आ रहा है, कांग्रेस नेता शशि थरूर। कुछ वर्गों में उन्हें उपराष्ट्रपति पद के लिए एक संभावित उम्मीदवार के रूप में देखा जा रहा है। हालांकि थरूर को यह पद स्वीकार करने के लिए अपनी लोकसभा की सदस्यता छोड़नी होगी। इसके अलावा, कांग्रेस के साथ उनके संबंधों में आई तल्खी इस संभावना को जटिल बना देती है। एक अन्य नाम है बिहार के राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान का। वे पूर्व सांसद रह चुके हैं और अतीत में कांग्रेस और जनता दल दोनों से जुड़े रहे हैं। 1986 में शाह बानो मामले को लेकर उन्होंने कांग्रेस से इस्तीफा दे दिया था। राजनीतिक दृष्टिकोण से उनका अनुभव, वैचारिक स्पष्टता और अल्पसंख्यक समुदाय से संबंध उन्हें एक रणनीतिक दावेदार बना सकते हैं। राष्ट्रपति के मामले में संविधान कहता है कि कुर्सी खाली होने पर छह महीने के भीतर चुनाव करा दो, लेकिन उपराष्ट्रपति के लिए कोई तय समयसीमा नहीं है। बस इतना लिखा है कि पद खाली होते ही चुनाव जल्द से जल्द कराया जाए। इसकी पूरी जिम्मेदारी होती है चुनाव आयोग की। जब चुनाव कराने की बारी आती है तो परंपरा के अनुसार संसद के किसी एक सदन, लोकसभा या राज्यसभा, के महासचिव को चुनाव अधिकारी बना दिया जाता है। चुनाव होता है ‘राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति चुनाव अधिनियम, 1952’ के तहत। अब चूंकि जगदीप धनखड़ का इस्तीफा उनके कार्यकाल के बीच में आया है, तो जो नया उपराष्ट्रपति चुना जाएगा, वह पूरे पांच साल के लिए होगा,  ना कि सिर्फ बचे हुए समय के लिए। अब आते हैं सबसे अहम हिस्से पर, वोट कौन देता है? तो बता दें कि उपराष्ट्रपति को सिर्फ संसद के सदस्य चुनते हैं। इसमें लोकसभा और राज्यसभा के सभी चुने हुए सांसद शामिल होते हैं। इतना ही नहीं, राज्यसभा और लोकसभा के नामित सदस्य भी वोट करते हैं। लेकिन ध्यान दीजिए, इसमें राज्य विधानसभाओं के विधायक शामिल नहीं होते। जबकि राष्ट्रपति चुनाव में विधायक भी वोट डालते हैं। अब जानते हैं कि वोटिंग होती कैसे है। इसमें 'गुप्त मतदान' होता है यानी किसने किसे वोट दिया, यह बाहर नहीं आता। और तरीका होता है, सिंगल ट्रांसफरेबल वोट सिस्टम। मतलब सांसदों को मतपत्र पर उम्मीदवारों की पसंद का क्रम लिखना होता है, पहला नंबर किसे देना है, दूसरा किसे, और आगे किसे। अगर किसी को कुल वैध मतों के आधे से एक ज्यादा वोट मिल जाते हैं, तो वही उपराष्ट्रपति बन जाता है। अगर पहले राउंड में कोई भी उम्मीदवार जरूरी कोटा पार नहीं कर पाता, तो सबसे कम वोट वाले उम्मीदवार को बाहर कर दिया जाता है। फिर उसके वोट दूसरी पसंद के हिसाब से बाकी बचे उम्मीदवारों में बांटे जाते हैं। यह प्रक्रिया तब तक चलती है, जब तक कोई उम्मीदवार तय सीमा पार नहीं कर लेता। अब अगर आप सोच रहे हैं कि उपराष्ट्रपति बनने के लिए योग्यता क्या चाहिए, तो सुनिए। सबसे पहले, वह भारत का नागरिक होना चाहिए। उसकी उम्र कम से कम 35 साल होनी चाहिए। वह राज्यसभा के लिए चुनाव लड़ने के काबिल होना चाहिए। उसका नाम किसी भी संसदीय क्षेत्र की वोटर लिस्ट में होना चाहिए। और हां, वह केंद्र या राज्य सरकार के किसी लाभ के पद पर नहीं होना चाहिए, सिवाय राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, राज्यपाल या मंत्री के पद को छोड़कर। तो बात सीधी है, रेस लंबी है, नाम कई हैं, समीकरण पेचीदा हैं। बीजेपी अतीत में ऐसे नाम सामने ला चुकी है जो ऐन वक्त पर सबको चौंका देते हैं। इस बार भी हो सकता है वैसा ही कोई सरप्राइज। लेकिन जब तक चुनाव नहीं हो जाता, चर्चाएं गर्म रहेंगी, नए नाम तैरते रहेंगे और सियासी गलियारे में हलचल बनी रहेगी।

पांगी - हिमाचल की सबसे खतरनाक सड़क से जुड़ा गांव

In International News

पांगी - हिमाचल की सबसे खतरनाक सड़क से जुड़ा गांव **सड़क, बिजली, स्वास्थ्य, शिक्षा - यहाँ हर व्यवस्था बेहाल **आरोप : HRTC बस ड्राइवर करते है मनमर्ज़ी, डिपू से नहीं मिलता पूरा राशन **सड़क बंद हो तो कंधे पर उठा कर ले जाते है मरीज़ **मुख्यमंत्री के दौरे के बाद जगी उम्मीद

शायरी के बादशाह कहलाते है वसीम बरेलवी, पढ़े उनके कुछ चुनिंदा शेर

In Kavya Rath
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  वसीम बरेलवी उर्दू के बेहद लोकप्रिय शायर हैं। उनकी ग़ज़लें बेहद मक़बूल हैं जिन्हें जगजीत सिंह से लेकर कई अजीज़ गायकों ने अपनी आवाज़ दी है। वसीम बरेलवी अपनी शायरी और गजल के जरिए लाखों दिलों पर राज करते हैं। कोई भी मुशायरा उनके बगैर पूरा नहीं माना जाता।     18 फरवरी 1940 को वसीम बरेलवी का जन्म बरेली में हुआ था।  पिता जनाब शाहिद हसन  के रईस अमरोहवी और जिगर मुरादाबादी से बहुत अच्छे संबंध थे। दोनों का आना-जाना अक्सर उनके घर पर होता रहता था। इसी के चलते वसीम बरेलवी का झुकाव बचपन से शेर-ओ-शायरी की ओर हो गया। वसीम बरेलवी ने अपनी पढ़ाई बरेली के ही बरेली कॉलेज से की। उन्होंने एमए उर्दू में गोल्ड मेडल हासिल किया। बाद में इसी कॉलेज में वो उर्दू विभाग के अध्यक्ष भी बने।  60 के दशक में वसीम बरेलवी मुशायरों में जाने लगे। आहिस्ता आहिस्ता ये शौक उनका जुनून बन गया। पेश हैं उनके कुछ चुनिंदा शेर   अपने चेहरे से जो ज़ाहिर है छुपाएँ कैसे तेरी मर्ज़ी के मुताबिक़ नज़र आएँ कैसे   जहाँ रहेगा वहीं रौशनी लुटाएगा किसी चराग़ का अपना मकाँ नहीं होता     आसमाँ इतनी बुलंदी पे जो इतराता है भूल जाता है ज़मीं से ही नज़र आता है   ऐसे रिश्ते का भरम रखना कोई खेल नहीं तेरा होना भी नहीं और तेरा कहलाना भी   ग़म और होता सुन के गर आते न वो 'वसीम' अच्छा है मेरे हाल की उन को ख़बर नहीं   जहाँ रहेगा वहीं रौशनी लुटाएगा किसी चराग़ का अपना मकाँ नहीं होता     जो मुझ में तुझ में चला आ रहा है बरसों से कहीं हयात इसी फ़ासले का नाम न हो     कुछ है कि जो घर दे नहीं पाता है किसी को वर्ना कोई ऐसे तो सफ़र में नहीं रहता                         उसी को जीने का हक़ है जो इस ज़माने में इधर का लगता रहे और उधर का हो जाए       दुख अपना अगर हम को बताना नहीं आता तुम को भी तो अंदाज़ा लगाना नहीं आता     वो मेरे सामने ही गया और मैं रास्ते की तरह देखता रह गया   अपने अंदाज़ का अकेला था इसलिए मैं बड़ा अकेला था  

जयसिंहपुर: लोअर लंबागांव की बेटी अलीशा बनी ऑडिट इंस्पेक्टर

In Job
Jaisinghpur: Lower Lambagaon's daughter Alisha becomes audit inspector

जयसिंहपुर विधानसभा के अंतर्गत आने वाले लोअर लंबागांव की अलीशा ने हिमाचल प्रदेश एलाइड सर्विसेज की परीक्षा पास कर प्रदेश का नाम रोशन किया है । अलीशा का चयन ऑडिट इंस्पेक्टर के पद हुआ है। अलीशा ने बाहरवीं ऐम अकादमी सीनियर सेकेंडरी स्कूल जयसिंहपुर से की है। उसके बाद अलीशा ने गवर्नमेंट डिग्री कालेज धर्मशाला से ग्रेजुएशन की । अलीशा के पिता सुमन कुमार हिमाचल पुलिस में कार्यरत हैं और माता स्नेहलता गृहिणी हैं। अलीशा के पिता सुमन कुमार ने बेटी की उपलब्धि पर खुशी जताते हुए कहा कि यह परिवार के लिए गौरव का क्षण है। वही अलीशा ने अपनी सफलता का श्रेय अपने माता पिता व गुरुजनों को दिया है।

इस गांव में घर से भागे प्रेमी जोड़े को महादेव देते हैं शरण

In Banka Himachal
In This Village, Lord Mahadev Offers Shelter to Eloping Lovers

अगर कोई प्रेमी जोड़ा देव शंगचूल महादेव की शरण में आ जाए तो कोई उनका बाल भी बांका नहीं कर सकता। देवता के आशीर्वाद से कई प्रेमी जोड़े सकुशल अपने घरों को लौटे हैं। हिमाचल प्रदेश के जिला कुल्लू की सैंज घाटी के शांघड़ गांव में विराजे हैं शंगचूल महादेव, और ये मंदिर घर से भागे प्रेमी जोड़ों के लिए शरणस्थली है। पांडवकालीन शांघड़ गांव में स्थित इस महादेव मंदिर के बारे में कहा जाता है कि किसी भी जाति-समुदाय के प्रेमी युगल अगर शंगचूल महादेव की सीमा में पहुंच जाते हैं, तो इनका कोई कुछ भी नहीं बिगाड़ सकता। यहां के लोग प्रेमी जोड़े को मेहमान समझ कर उसका स्वागत करते हैं और उनकी रक्षा करते हैं। शंगचूल महादेव मंदिर की सीमा लगभग 128 बीघा का मैदान है और मान्यता है कि इस सीमा में पहुंचे प्रेमी युगल को देवता की शरण में आया हुआ मान लिया जाता है। इस सीमा में समाज और बिरादरी की रिवाजों को तोड़कर शादी करने वाले प्रेमी जोड़ों के लिए यहां के देवता रक्षक हैं। दिलचस्प बात ये है कि यहां सिर्फ देवता का कानून चलता है। प्रेमी जोड़े, जो मंदिर में आश्रय लेने आते हैं, वह यहां शादी कर सकते हैं और तब तक रह सकते हैं, जब तक प्रेमियों के दोनों तरफ के परिवारों के बीच सुलह नहीं हो जाती। तब तक जोड़े के लिए यहां रहने और खाने-पीने की पूरी व्यवस्था की जाती है। इस मंदिर में आने वाले प्रेमी जोड़ों के लिए पुलिस भी दखलंदाजी नहीं कर सकती। इस मंदिर के पीछे रोचक कहानी है। जनश्रुति के अनुसार, अज्ञातवास के दौरान पांडव यहां रुके थे और उसी दौरान कौरव उनका पीछा करते हुए यहां तक पहुंच गए। पांडवों ने शंगचूल महादेव की शरण ली और रक्षा के लिए प्रार्थना की। इसके बाद महादेव ने कौरवों को रोका और कहा कि यह मेरा क्षेत्र है और जो भी मेरी शरण में आएगा उसका कोई कुछ नहीं बिगाड़ सकता। महादेव के डर से कौरव वापस लौट गए और इसके बाद से यहां परंपरा शुरू हो गई और यहां आने वाले भक्तों को पूरी सुरक्षा मिलने लगी। शांघड़ पंचायत विश्व धरोहर ग्रेट हिमालयन नेशनल पार्क क्षेत्र में होने के कारण भी प्रसिद्ध है। कहा जाता है कि जंगल की रखवाली करने वाले वन विभाग के कर्मचारियों व पुलिस महकमे के कर्मचारियों को यहाँ अपनी टोपी व पेटी उतारकर मैदान से होकर जाना पड़ता है। देवता का ही फैसला सर्वमान्य शांघड़ गांव में हर नियम और कानून का बेहद सख्ती से पालन किया जाता है। कोई भी व्यक्ति इस गांव में ऊंची आवाज में बात नहीं कर सकता है। इसके साथ ही यहां शराब, सिगरेट और चमड़े का सामान लेकर आना भी मना है। यहां देवता का ही फैसला सर्वमान्य होता है। कहते हैं कि जब तक मामले का निपटारा न हो जाए ब्राह्मण समुदाय के लोग यहां आने वालों की पूरी आवभगत करते हैं और उनके रहने से खाने तक की पूरी जिम्मेदारी यहां के लोग ही उठाते हैं। 128 बीघा में एक भी कंकड़-पत्थर नहीं कहते हैं अज्ञातवास के दौरान पांडवों ने कुछ समय शांघड़ में भी बिताया और उन्होंने यहां धान की खेती के लिए मिट्टी छानकर खेत तैयार किए थे। वे खेत आज भी विशाल शांघड़ मैदान के रूप में यथावत हैं और इस 128 बीघा में एक भी कंकड़-पत्थर नहीं है और न ही किसी प्रकार की झाड़ियां। वहीं, आधा हिस्सा गौ-चारे के रूप में खाली रखा गया है। यह मैदान अपने चारों ओर देवदार के घने पेड़ों से घिरा है, मानो इसकी सुरक्षा के लिए देवदार के वृक्ष पहरेदार बन खड़े हों। वहीं, मैदान के तीन किनारों पर काष्ठकुणी शैली में बनाए गगनचुंबी मंदिर बेहद दर्शनीय हैं। इस मैदान में शांघड़वासी अपनी गायों को रोज चराते हैं, लेकिन हैरानी की बात है कि इस मैदान में गाय का गोबर कहीं भी नहीं मिलता। भूमि की खुदाई, देवता की अनुमति के बगैर नाचना और शराब ले जाने पर भी पाबंदी है। घोड़े के प्रवेश पर भी मनाही शांघड़ गांव में घोड़े के प्रवेश पर भी मनाही है। यदि किसी का घोड़ा शंगचूल देवता के निजी क्षेत्र में प्रवेश करता है तो उसके मालिक को जुर्माना देना पड़ता है या फिर देवता कमेटी की ओर से उस पर कानूनी कार्रवाई अमल में लाई जाती है।

कांग्रेस संगठन : कार्यकर्त्ता हताश, बड़े नेताओं का एक ही जवाब - 'जल्द होगा'

In Siyasatnama
NO SANGTHAN FOR HIMACHAL CONGRESS SINCE EIGHT MONTHS

 6 नवंबर से बेसंगठन हैं कांग्रेस, जल्द होने हैं पंचायत चुनाव     करीब एक साल पहले हिमाचल प्रदेश में उपचुनाव हुए और कांग्रेस ने शानदार जीत दर्ज की थी। पुरे प्रदेश में कांग्रेस के पक्ष में माहौल दिखा। तब कई माहिरों ने कहा कि जो 1985  के बाद नहीं हुआ, मुमकिन है 2027 में हो। मुमकिन है सुखविंद्र सिंह सुक्खू , वीरभद्र सिंह के बाद रिपीट करने वाले पहले सीएम बन जाएं। पर अब उक्त तमाम माहिर चुप्पी ओढ़े है और इसका सबसे बड़ा कारण है कांग्रेस का संगठन, जो आठ महीने से है ही नहीं।     चुनाव के नतीजे संगठन की मेहनत और सरकारों के कामकाज से तय होते है। अब सत्ता का करीब आधा रास्ता ही तय हुआ है और चुनावी  चश्मे से मौजूदा सरकार के कामकाज का विशलेषण करना जल्दबाजी होगा। पर संगठन का क्या ? पार्टी के भीतर पनप रहे असंतोष का क्या ?  झंडे उठाने वाले आम कार्यकर्ताओं से लेकर पीसीसी चीफ, कैबिनेट मंत्री और अब तो खुद मुख्यमंत्री भी संगठन में देरी को नुकसानदायक मान रहे है। फिर ये देरी क्यों , ये समझ से परे है।  मान लेते है मसला पीसीसी चीफ पद अटका हैं, और खींचतान के चलते आलाकमान निर्णय नहीं ले पा रहा , लेकिन क्या ज़िलों अध्यक्षों और प्रदेश के महत्वपूर्ण पदों पर भी नियुक्तियां नहीं की जा सकती थी। इसी साल के अंत में पंचायत चुनाव होने हैं, नई गठित नगर निगमों के चुनाव भी अपेक्षित हैं। ऐसे में आठ महीने से पार्टी का बगैर संगठन होना समझ से परे हैं।   इस बीच संगठन के गठन को लेकर अब भी कोई पुख्ता जानकारी नहीं हैं। कार्यकर्ताओं की हताशा लाजमी हैं और धैर्य धरे बड़े नेताओं के पास सिर्फ एक ही जवाब हैं, 'जल्द होगा'।  

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