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राजस्व मंत्री जगत सिंह नेगी ने धर्मपुर के स्याठी गांव का किया दौरा, राहत एवं पुनर्निर्माण कार्यों की ली समीक्षा
राजस्व, बागवानी, जनजातीय विकास और जन शिकायत निवारण मंत्री जगत सिंह नेगी ने शनिवार को धर्मपुर उपमंडल के स्याठी गांव का दौरा कर प्राकृतिक आपदा से प्रभावित क्षेत्रों में जारी राहत एवं पुनर्निर्माण कार्यों का बारीकी से निरीक्षण किया। प्रभावित लोगों से मिलकर हालचाल जाना और उनकी समस्याओं को सीधे समझने के साथ उन्होंने अधिकारियों को कार्यों में तेजी लाने के निर्देश दिए। उन्होंने कहा कि प्रदेश सरकार की सर्वोच्च प्राथमिकता है कि हर प्रभावित व्यक्ति तक राहत सामग्री और आर्थिक मदद पहुंचे। मुख्यमंत्री ठाकुर सुखविंद्र सिंह सुक्खू ने आपदा के 24 घंटे के भीतर प्रभावित इलाकों का दौरा कर प्रशासन को राहत एवं पुनर्वास कार्यों के कड़े निर्देश दिए हैं। मंत्री ने स्पष्ट किया कि जिन परिवारों के घर पूरी तरह क्षतिग्रस्त हुए हैं, उन्हें अधिकतम 7 लाख रुपये तक की आर्थिक सहायता दी जाएगी, जो देश में अब तक किसी राज्य सरकार द्वारा दी गई सबसे बड़ी राहत राशि है। हालांकि, भूमि की उपलब्धता एक बड़ी चुनौती बनी हुई है क्योंकि अधिकतर खाली जमीन वन क्षेत्र में आती है। इस समस्या के समाधान के लिए राज्य सरकार ने वन संरक्षण अधिनियम में संशोधन हेतु केंद्र को प्रस्ताव भेजा है। वहीं, वन अधिकार अधिनियम के तहत भी आजीविका पर निर्भर परिवारों को जमीन उपलब्ध कराई जाएगी। इसके अतिरिक्त, प्रभावित खेतों और बागीचों के नुकसान का आकलन राजस्व, कृषि और बागवानी विभाग संयुक्त रूप से करेंगे और मुआवज़ा राशि बढ़ाई गई है। राजस्व मंत्री ने लोक निर्माण विभाग, जल शक्ति विभाग और विद्युत बोर्ड के पुनर्निर्माण कार्यों की प्रगति की जानकारी ली और उन्हें कार्यों में तेजी लाने के निर्देश दिए। उन्होंने अटल आदर्श विद्यालय मढ़ी का भी निरीक्षण किया। इस दौरान विधायक चन्द्रशेखर ने क्षेत्र के प्रभावित परिवारों की संख्या बताई और मुख्यमंत्री व सरकार के त्वरित राहत कार्यों के लिए आभार जताया। एसडीएम धर्मपुर जोगिंद्र पटियाल ने बताया कि अब तक प्रभावितों को लगभग 3.85 लाख रुपये की सहायता राशि विभिन्न मदों में दी जा चुकी है। 26 पूरी तरह से क्षतिग्रस्त पक्के घरों व 3 कच्चे घरों को 2.50 लाख रुपये, आंशिक रूप से क्षतिग्रस्त 10 पक्के व 18 कच्चे घरों को 70 हजार रुपये की अग्रिम राहत दी गई है। साथ ही गौशालाओं को 65 हजार रुपये की सहायता प्रदान की गई। राहत सामग्री के तहत 29 राशन किट, 16 कंबल, 612 तिरपाल और गैस सिलेंडर आदि वितरण किए गए हैं। पेयजल योजनाओं में अधिकांश कार्य आंशिक रूप से बहाल हो चुके हैं और कुछ सड़कों की मरम्मत प्रगति पर है।
हिमाचल प्रदेश में बीजेपी विधायक और पूर्व प्रदेश अध्यक्ष सतपाल सत्ती ने मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू पर तीखा तंज कसते हुए कहा, “ऊपर इंद्र और नीचे सुखविंदर, दोनों ने जनता की परेशानी बढ़ा दी है।” उन्होंने कहा कि आज हालात ऐसे हैं कि या तो जनता के ग्रह भारी हैं या फिर राजा के, लेकिन असर सीधा आम आदमी पर हो रहा है। सत्ती बोले, “अब जनता तय कर चुकी है कि इस राजा को बदलना ही होगा।” सराज से भेदभाव, हॉर्टिकल्चर कॉलेज का मुद्दा गरमाया सत्ती ने सराज विधानसभा क्षेत्र में थुनाग स्थित हॉर्टिकल्चर कॉलेज को शिफ्ट करने के फैसले को भेदभावपूर्ण बताया। उन्होंने कहा कि कांग्रेस सरकार बनने के बाद बीजेपी विधायकों के क्षेत्रों के साथ जानबूझकर भेदभाव किया जा रहा है। उन्होंने आरोप लगाया कि सरकार ने विधानसभा में कॉलेज न शिफ्ट करने का आश्वासन दिया था, लेकिन इसके बावजूद उसे हटा दिया गया। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि कॉलेज भवन को कोई नुकसान नहीं हुआ है, फिर भी वहां से कॉलेज को शिफ्ट करना जनता के हितों के खिलाफ है। इसी कारण, राजस्व मंत्री को जनता के विरोध का सामना करना पड़ा, और उल्टे 60 लोगों पर FIR दर्ज कर दी गई। ऊना पेखुबेला पावर प्रोजेक्ट में भारी फिजूलखर्ची का आरोप ऊना के पेखुबेला में 240 करोड़ रुपये की लागत से बने पावर प्रोजेक्ट को लेकर सत्ती ने गंभीर सवाल उठाए। उन्होंने बताया कि यह प्रोजेक्ट पानी में डूब गया है, कर्मचारी सैलरी न मिलने के चलते हड़ताल पर हैं और प्रोजेक्ट कभी भी ठप हो सकता है। उन्होंने आरोप लगाया कि जलभराव वाले क्षेत्र में बिना सोच-विचार के इतनी बड़ी परियोजना शुरू कर दी गई। कानून-व्यवस्था और गौ-तस्करी पर भी उठाए सवाल सत्ती ने कहा कि हिमाचल में लॉ एंड ऑर्डर की हालत खराब हो गई है। दिनदहाड़े फायरिंग हो रही है और गौ-तस्करी के मामले लगातार बढ़ रहे हैं। उन्होंने हाल ही में स्वारघाट में पकड़े गए टैंकर का ज़िक्र किया जिसमें गाय-बैल भरकर जम्मू-कश्मीर ले जाए जा रहे थे। देसराज की पोस्टिंग और SP शिमला पर सवाल सत्ती ने बिजली बोर्ड में देसराज की नियुक्ति को दुर्भाग्यपूर्ण बताया और कहा कि यह वही अधिकारी हैं जिन पर आत्महत्या के लिए उकसाने का आरोप लगा था। हाईकोर्ट से फटकार खाने के बावजूद SP शिमला को भी उसी जगह दोबारा पोस्टिंग देना सरकार की मंशा पर सवाल खड़े करता है।
हिमाचल प्रदेश में सेब सीजन ने रफ्तार पकड़ ली है, और इसी के साथ सरकार ने बागवानों और किसानों को राहत देने की दिशा में एक अहम फैसला लिया है। प्रदेश में अब 1 अगस्त से 31 अक्तूबर तक बाहरी राज्यों से आने वाले ट्रकों को विशेष पथकर (Special Road Tax) से छूट दी जाएगी। खास बात यह है कि यह छूट उन ट्रकों को भी दी जाएगी जो नेशनल परमिट के दायरे में नहीं आते हैं, लेकिन हिमाचल में आलू और सेब जैसे कृषि उत्पादों का परिवहन कर रहे हैं। इस संबंध में प्रदेश के परिवहन विभाग ने अधिसूचना भी जारी कर दी है। विभाग का उद्देश्य है कि मौजूदा सेब और आलू सीजन के दौरान किसानों और बागवानों को परिवहन में कोई अतिरिक्त वित्तीय बोझ न उठाना पड़े और उनके उत्पाद समय पर मंडियों तक पहुंच सकें। उपमुख्यमंत्री मुकेश अग्निहोत्री ने कहा कि यह कदम किसानों और बागवानों के हितों की रक्षा के लिए उठाया गया है। उन्होंने कहा कि सेब और आलू के परिवहन को आसान और किफायती बनाने के लिए प्रदेश सरकार लगातार प्रयासरत है। उन्होंने जानकारी दी कि सेब सीजन और बरसात के चलते परिवहन विभाग ने सभी जरूरी तैयारियां पूरी कर ली हैं और सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए आवश्यक एहतियात भी सुनिश्चित किए गए हैं। इसके साथ ही उपमुख्यमंत्री ने सभी हितधारकों से अनुरोध किया है कि वे सड़क सुरक्षा नियमों का पूरी तरह पालन करें ताकि सेब सीजन के दौरान सुचारु और सुरक्षित परिवहन व्यवस्था बनी रहे।
हिमाचल के शहरी क्षेत्रों में भवन निर्माण के लिए अब अनिवार्य होगी ज्योलॉजिकल और स्ट्रक्चरल डिजाइन रिपोर्ट
हिमाचल प्रदेश के शहरी इलाकों में भवन निर्माण के लिए अब ज्योलॉजिकल (भूगर्भीय) और संरचना डिजाइन (स्ट्रक्चर डिजाइन) की रिपोर्ट देना अनिवार्य कर दिया गया है। यह नियम शिमला, कुल्लू, धर्मशाला, ऊना, किन्नौर, मंडी, सोलन, नाहन और चंबा जैसे शहरों में लागू होगा। टीसीपी विभाग द्वारा तैयार किए जा रहे नए डेवलपमेंट प्लान में इंजीनियर और स्ट्रक्चर डिजाइन की रिपोर्ट रखना जरूरी होगा। इस योजना का मकसद हिमाचल में प्राकृतिक आपदाओं से होने वाले भवन नुकसान को रोकना है। राजेश धर्माणी, टीसीपी मंत्री ने बताया कि सरकारी भवनों में यह नियम पहले से लागू है और अब इसे शहरी निजी भवनों पर भी लागू किया जा रहा है। इसके तहत नालों से कम से कम 5 मीटर और खड्डों या नदियों से 7 मीटर की दूरी पर ही भवन निर्माण की अनुमति दी जाएगी। इससे पहले नालों से 3 मीटर तथा खड्डों और नदियों से 5 मीटर की दूरी तय होती थी। हिमाचल में 2018 से लगातार प्राकृतिक आपदाओं का कहर जारी है, जिसके कारण कई भवन ढहे और जनहानि भी हुई है। अधिकारियों के मुताबिक ज्योलॉजिकल और स्ट्रक्चरल रिपोर्ट न होने के कारण कई भवन प्राकृतिक आपदा में असुरक्षित साबित हुए हैं। शिमला प्लानिंग एरिया में 5 मीटर चौड़ी सड़क वाले इलाकों में पांच मंजिला भवन निर्माण की अनुमति दी गई है, जबकि सड़क सुविधा न होने पर दो मंजिला भवन एवं एटिक का निर्माण ही संभव होगा। टीसीपी विभाग का मानना है कि इन नियमों के कड़ाई से पालन से भवन निर्माण अधिक सुरक्षित और मजबूती से होगा, जिससे भविष्य में आपदाओं का असर कम होगा।
'देवताओं को रोपवे मंज़ूर नहीं'.... बिजली महादेव रोपवे के खिलाफ सड़कों पर उतरी कुल्लू की जनता
बिजली महादेव रोपवे... यह रोपवे अब महज रोपवे नहीं रहा बल्कि कुल्लू की जनता के लिए उनकी आस्था, जंगल और पहचान की लड़ाई बन गया है। इस रोपवे निर्माण ने मानो प्रदेश में देवताओं की सत्ता और खुद को सत्ता के देवता मानने वालों के बीच एक जंग छेड़ दी है। हालांकि कुल्लू की जनता अब और सहने के मूड में बिल्कुल नहीं। इस रोपवे के विरोध में आज लोग एक साथ बाहर निकल आए। कुल्लू की सड़कों पर आज जो नज़ारा दिखा, वह सिर्फ एक प्रदर्शन नहीं, बल्कि लोगों की भावनाओं का विस्फोट था। सैकड़ों लोग अपने देवता के आदेश, जंगल की शांति और घाटी की अस्मिता बचाने के लिए सड़क पर उतर आए। विरोध की आवाज़ पूरी घाटी में गूंज गई। प्रदर्शनकारी एक ही मांग कर रहे थे... किसी भी हालत में यह प्रोजेक्ट नहीं लगना चाहिए। ढोल नगाड़ों के बिना, नारों के साथ निकली, कुल्लू के रामशीला से ढालपुर मैदान तक फैली यह आक्रोश रैली केवल एक परियोजना का विरोध नहीं थी... यह एक चेतावनी थी कि अगर देवभूमि की चेतना को अनसुना किया गया, तो विरोध अब आवाज नहीं, लहर बन जाएगा। कुल्लू ही नहीं, मंडी के सेरी मंच पर भी लोगों ने रोष रैली निकालकर इस प्रोजेक्ट का विरोध जताया। लेकिन एक रोपवे का इतना विरोध क्यों हो रहा है? क्या कुल्लू के लोगों को विकास से परहेज है? आइए इस विरोध के पीछे की वजहों को ठहरकर समझने की कोशिश करते हैं। बिजली महादेव संघर्ष समिति के अध्यक्ष सुरेश नेगी के मुताबिक, देववाणी में आदेश हुआ कि भगवान बिजली महादेव को रोपवे मंजूर नहीं। यह बात सुनते ही घाटी की जनता सड़कों पर उतर आई। ग्रामीणों का दावा है कि रोपवे के निर्माण से पहले देवताओं की सहमति नहीं ली गई और जबरन हजारों की संख्या में पेड़ काट दिए गए। सरकारी फाइलों में सिर्फ 72 पेड़ काटने की इजाजत थी, लेकिन स्थानीय लोगों का कहना है कि असल संख्या 100 के पार है। देवदार जैसे सदियों पुराने पेड़ों का यूं कट जाना न सिर्फ पर्यावरण के लिए खतरा है, बल्कि यह देवस्थल की आत्मा को ठेस पहुंचाने जैसा है। सिर्फ आस्था नहीं, आजीविका भी दांव पर बिजली महादेव पहुंचने के लिए अभी तीन घंटे की ट्रैकिंग करनी पड़ती है। यह सिर्फ एक रास्ता नहीं, बल्कि एक पूरा लोकल इकॉनमी है। घोड़े खच्चर वाले, ट्रैकिंग गाइड, ढाबे और छोटे व्यापारी, सभी की रोजी-रोटी इसी पर टिकी है। रोपवे बनते ही यह सिस्टम चरमरा जाएगा। स्थानीय बुजुर्ग शिवनाथ ने चेतावनी दी है कि यदि यह प्रोजेक्ट जबरन थोपा गया तो वे आत्मदाह तक कर सकते हैं। उनका कहना है, “देवताओं की इच्छा के विरुद्ध कुछ भी हुआ तो इसका असर पूरे क्षेत्र पर पड़ेगा।” विरोध के बीच सरकार की दलीलें सरकार कह रही है कि रोपवे से ट्रैफिक कम होगा, यात्रा आसान होगी और पर्यटन को बढ़ावा मिलेगा। बिजली महादेव की तीन घंटे की चढ़ाई अब सिर्फ 7 मिनट की सवारी में बदलेगी। रोजाना 36 हजार लोग मंदिर तक पहुंच सकेंगे और ऑल वेदर कनेक्टिविटी भी सुनिश्चित होगी। बता दें कि मार्च 2024 में केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने इस प्रोजेक्ट का वर्चुअल शिलान्यास किया था और 272 करोड़ रुपये मंजूर किए थे। यह प्रोजेक्ट नेशनल हाईवे लॉजिस्टिक्स मैनेजमेंट लिमिटेड (NHLML) द्वारा 2026 तक पूरा किया जाना है। यह 2.3 किलोमीटर लंबा रोपवे 'पर्वतमाला' प्रोजेक्ट के तहत बन रहा है। लेकिन सियासत यहां भी है... एक दौर में इस प्रोजेक्ट के समर्थक रहे भाजपा के वरिष्ठ नेता राम सिंह, अरविंद चंदेल और नरोत्तम ठाकुर अब इसके खिलाफ हैं। यहां तक कि पूर्व सांसद महेश्वर सिंह ने भूमि पूजन में शामिल होने के बाद मीडिया के सामने सफाई दी कि वे इस प्रोजेक्ट के समर्थक नहीं हैं। वहीं कांग्रेस विधायक सुंदर सिंह ठाकुर इस प्रोजेक्ट को विकास का प्रतीक बता रहे हैं। कुल्लू की राजनीति भी तीन हिस्सों में बंटी हुई दिख रही है, एक धड़ा आस्था और पर्यावरण के साथ खड़ा है, दूसरा पर्यटन और विकास के साथ, और तीसरा राजनीतिक मजबूरियों के बीच उलझा हुआ। बिना जनसुनवाई, बिना सहमति? स्थानीय संगठनों का आरोप है कि इस प्रोजेक्ट को बिना पर्यावरण प्रभाव मूल्यांकन (EIA) और बिना जनसुनवाई के मंजूरी दी गई। कई ग्रामीणों को तब तक इसकी भनक तक नहीं लगी जब तक पेड़ कटने शुरू नहीं हुए।
राजधानी शिमला में वीरवार सुबह मौसम साफ रहा। दोपहर बाद अचानक मौसम बदला और शिमला व सोलन में बादल झमाझम बरसे। मैदानी जिलों में मौसम साफ रहने के साथ धूप खिली। वीरवार शाम तक मनाली-कोटली एनएच समेत 274 सड़कें, 56 बिजली ट्रांसफार्मर और 173 पेयजल योजनाएं ठप रहीं। चंबा के चुराह में बिजली गिरने से दो मवेशियों की मौत हो गई। शुक्रवार को भी प्रदेश के कुछ क्षेत्रों में बारिश के आसार हैं। 26 से 30 जुलाई कई क्षेत्रों में बारिश का येलो अलर्ट जारी हुआ है। प्रदेश के कई क्षेत्रों में मौसम भले ही खुल गया है, लेकिन दुश्वारियां अभी बरकरार हैं। तेज बारिश और भूस्खलन की वजह से पेयजल योजनाएं ठप होने से कई जगह पीने के पानी का संकट गहरा गया है। बिजली ट्रांसफार्मर बंद होने से कई गांवों में अंधेरा छाया हुआ है। हालांकि, वीरवार को धूप खिलने के बाद विभागों ने बिजली-पानी और सड़कों को बहाल करने का काम तेज कर दिया है। जिला कुल्लू में बंजार से गुशैणी सड़क को लोक निर्माण विभाग ने तीन दिन बाद छोटे वाहनों के लिए बहाल कर दिया है। हाईवे-305 चार दिन से अवरुद्ध है। हमीरपुर जिले में सुबह से ही धूप खिली रही। धूप खिलने से फिर गर्मी बढ़ने लगी है। ऊना जिले में वीरवार सुबह से ही मौसम साफ रहा। मौसम खुलने के बाद किसान खेतों में कीटनाशक का छिड़काव करने में जुट गए हैं। कांगड़ा जिले में वीरवार को पूरा दिन मौसम साफ रहा। हालांकि, शाम को थोड़े बादल दिखे, लेकिन बारिश नहीं हुई।
राजनीति की गाड़ी में कोई ब्रेक नहीं होता। कल तक जो कुर्सी पर था, आज इस्तीफा दे चुका है। और अब सबकी नजर इसी पर है कि इस कुर्सी पर अगला कौन होगा? हम बात कर रहे हैं देश के दूसरे सबसे बड़े संवैधानिक पद की। उपराष्ट्रपति के पद की। जगदीप धनखड़ ने सेहत का हवाला देकर इस्तीफा दे दिया। अब कुर्सी खाली है और जल्द चुनाव होंगे। जाहिर है कि इस चुनाव में सत्ता पक्ष और विपक्ष दोनों ही अपने अपने उम्मीदवार मैदान में उतारेंगे, लेकिन चूंकि इस वक्त संसद में एनडीए का संख्याबल अधिक है, इसलिए स्वाभाविक रूप से सभी की निगाहें एनडीए के संभावित उम्मीदवारों पर टिकी हैं। सवाल यह है कि एनडीए किसे अपना प्रत्याशी बनाएगा? कोई कह रहा है कि इस पद पर नीतीश कुमार को सेटल कर दिया जाएगा, तो कोई कहता है कि यह पद तो शशि थरूर को मिलना चाहिए। नाम हरिवंश नारायण सिंह का भी आ रहा है और रामनाथ ठाकुर का भी। चर्चा तो जगत प्रकाश नड्डा के नाम की भी खूब है। संभावित नामों की सूची लंबी है और हर नाम के पीछे अपनी राजनीतिक रणनीति और समीकरण छिपे हैं। क्या हैं ये रणनीतियां, क्या हैं ये समीकरण और इस संभावित सूची में किस किस का नाम शामिल है आइए विस्तार से आपको बताते हैं। एनडीए खेमे में सबसे चर्चित नाम है जनता दल (यूनाइटेड) के राज्यसभा सांसद हरिवंश नारायण सिंह का। वे 2020 से राज्यसभा के उपसभापति हैं और फिलहाल नए उपराष्ट्रपति के चुनाव तक राज्यसभा के कार्यवाहक सभापति की भूमिका निभा रहे हैं। 2020 में हुए राज्यसभा उपसभापति चुनाव में हरिवंश ने विपक्षी उम्मीदवार और राजद नेता मनोज झा को हराया था। संसदीय कार्यवाही के संचालन में उनकी दक्षता और साफ छवि उन्हें एक मजबूत उम्मीदवार बनाती है। जेडीयू के ही एक और बड़े नेता, रामनाथ ठाकुर, जो पूर्व मुख्यमंत्री कर्पूरी ठाकुर के बेटे हैं, भी उपराष्ट्रपति पद के लिए संभावित नामों में शामिल हैं। ये जेडीयू कोटे से राज्यसभा सांसद हैं और केंद्र सरकार में कृषि एवं किसान कल्याण राज्यमंत्री के रूप में कार्यरत हैं। इनकी छवि ईमानदार नेता की है और ये अति पिछड़ा वर्ग से आते हैं। इस सामाजिक पृष्ठभूमि के कारण ये भी एक सर्वमान्य और राजनीतिक दृष्टिकोण से रणनीतिक उम्मीदवार हो सकते हैं। हाल ही में जेपी नड्डा के साथ इनकी मुलाकात ने अटकलों को और बल दिया है। यह मुलाकात भले ही बिहार में वोटर लिस्ट रिवीजन को लेकर हुई हो, लेकिन राजनीतिक गलियारों में इसे उपराष्ट्रपति चुनाव से जोड़कर देखा जा रहा है। सबसे चौंकाने वाला नाम जो इस रेस में चर्चा में आया है, वह है खुद बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का। हालांकि उनका इस पद के लिए उम्मीदवार बनना व्यावहारिक रूप से कठिन माना जा रहा है, क्योंकि उन्हें चुनाव से पहले मुख्यमंत्री पद छोड़ना होगा। फिर भी, एनडीए के सहयोगी उपेंद्र कुशवाहा ने यह सुझाव जरूर दिया है कि नीतीश कुमार को अगली पीढ़ी के लिए रास्ता बनाना चाहिए और इस्तीफा देकर उपराष्ट्रपति बनने का मार्ग प्रशस्त करना चाहिए। एक अन्य संभावित नाम है जम्मू कश्मीर के उपराज्यपाल मनोज सिन्हा का। वे इस अगस्त में अपने पांच साल का कार्यकाल पूरा कर लेंगे, जिससे उनकी उम्मीदवारी की संभावना प्रबल हो जाती है। सिन्हा पूर्व सांसद, केंद्रीय मंत्री और उत्तर प्रदेश के पूर्वांचल क्षेत्र से भाजपा के पुराने वफादार नेता रहे हैं। जम्मू कश्मीर में उनके प्रशासनिक अनुभव और राजनीतिक संतुलन को देखते हुए, वे एक सशक्त नाम के रूप में देखे जा सकते हैं। भाजपा के भीतर भी दो वरिष्ठ केंद्रीय मंत्रियों के नाम चर्चा में हैं, स्वास्थ्य मंत्री जेपी नड्डा और रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह। दोनों ही नेता राष्ट्रीय राजनीति में महत्वपूर्ण चेहरा हैं और उनके अनुभव, समर्पण और नेतृत्व क्षमताएं उन्हें इस पद के लिए उपयुक्त बनाती हैं। हालांकि अभी तक भाजपा की ओर से इस पर कोई आधिकारिक संकेत नहीं आया है। विपक्ष खेमे से भी एक चौंकाने वाला नाम सामने आ रहा है, कांग्रेस नेता शशि थरूर। कुछ वर्गों में उन्हें उपराष्ट्रपति पद के लिए एक संभावित उम्मीदवार के रूप में देखा जा रहा है। हालांकि थरूर को यह पद स्वीकार करने के लिए अपनी लोकसभा की सदस्यता छोड़नी होगी। इसके अलावा, कांग्रेस के साथ उनके संबंधों में आई तल्खी इस संभावना को जटिल बना देती है। एक अन्य नाम है बिहार के राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान का। वे पूर्व सांसद रह चुके हैं और अतीत में कांग्रेस और जनता दल दोनों से जुड़े रहे हैं। 1986 में शाह बानो मामले को लेकर उन्होंने कांग्रेस से इस्तीफा दे दिया था। राजनीतिक दृष्टिकोण से उनका अनुभव, वैचारिक स्पष्टता और अल्पसंख्यक समुदाय से संबंध उन्हें एक रणनीतिक दावेदार बना सकते हैं। राष्ट्रपति के मामले में संविधान कहता है कि कुर्सी खाली होने पर छह महीने के भीतर चुनाव करा दो, लेकिन उपराष्ट्रपति के लिए कोई तय समयसीमा नहीं है। बस इतना लिखा है कि पद खाली होते ही चुनाव जल्द से जल्द कराया जाए। इसकी पूरी जिम्मेदारी होती है चुनाव आयोग की। जब चुनाव कराने की बारी आती है तो परंपरा के अनुसार संसद के किसी एक सदन, लोकसभा या राज्यसभा, के महासचिव को चुनाव अधिकारी बना दिया जाता है। चुनाव होता है ‘राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति चुनाव अधिनियम, 1952’ के तहत। अब चूंकि जगदीप धनखड़ का इस्तीफा उनके कार्यकाल के बीच में आया है, तो जो नया उपराष्ट्रपति चुना जाएगा, वह पूरे पांच साल के लिए होगा, ना कि सिर्फ बचे हुए समय के लिए। अब आते हैं सबसे अहम हिस्से पर, वोट कौन देता है? तो बता दें कि उपराष्ट्रपति को सिर्फ संसद के सदस्य चुनते हैं। इसमें लोकसभा और राज्यसभा के सभी चुने हुए सांसद शामिल होते हैं। इतना ही नहीं, राज्यसभा और लोकसभा के नामित सदस्य भी वोट करते हैं। लेकिन ध्यान दीजिए, इसमें राज्य विधानसभाओं के विधायक शामिल नहीं होते। जबकि राष्ट्रपति चुनाव में विधायक भी वोट डालते हैं। अब जानते हैं कि वोटिंग होती कैसे है। इसमें 'गुप्त मतदान' होता है यानी किसने किसे वोट दिया, यह बाहर नहीं आता। और तरीका होता है, सिंगल ट्रांसफरेबल वोट सिस्टम। मतलब सांसदों को मतपत्र पर उम्मीदवारों की पसंद का क्रम लिखना होता है, पहला नंबर किसे देना है, दूसरा किसे, और आगे किसे। अगर किसी को कुल वैध मतों के आधे से एक ज्यादा वोट मिल जाते हैं, तो वही उपराष्ट्रपति बन जाता है। अगर पहले राउंड में कोई भी उम्मीदवार जरूरी कोटा पार नहीं कर पाता, तो सबसे कम वोट वाले उम्मीदवार को बाहर कर दिया जाता है। फिर उसके वोट दूसरी पसंद के हिसाब से बाकी बचे उम्मीदवारों में बांटे जाते हैं। यह प्रक्रिया तब तक चलती है, जब तक कोई उम्मीदवार तय सीमा पार नहीं कर लेता। अब अगर आप सोच रहे हैं कि उपराष्ट्रपति बनने के लिए योग्यता क्या चाहिए, तो सुनिए। सबसे पहले, वह भारत का नागरिक होना चाहिए। उसकी उम्र कम से कम 35 साल होनी चाहिए। वह राज्यसभा के लिए चुनाव लड़ने के काबिल होना चाहिए। उसका नाम किसी भी संसदीय क्षेत्र की वोटर लिस्ट में होना चाहिए। और हां, वह केंद्र या राज्य सरकार के किसी लाभ के पद पर नहीं होना चाहिए, सिवाय राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, राज्यपाल या मंत्री के पद को छोड़कर। तो बात सीधी है, रेस लंबी है, नाम कई हैं, समीकरण पेचीदा हैं। बीजेपी अतीत में ऐसे नाम सामने ला चुकी है जो ऐन वक्त पर सबको चौंका देते हैं। इस बार भी हो सकता है वैसा ही कोई सरप्राइज। लेकिन जब तक चुनाव नहीं हो जाता, चर्चाएं गर्म रहेंगी, नए नाम तैरते रहेंगे और सियासी गलियारे में हलचल बनी रहेगी।
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