शिवभक्तों की अटूट आस्था का केंद्र है बैजनाथ मंदिर
पांडवों ने माता कुंती के साथ यहां पर की थी महाकाल की आराधना
पालमपुर से 16 किमी की दूरी पर स्थित बैजनाथ मंदिर लाखों शिवभक्तों की आस्था का केंद्र है। द्वापर युग में पांडवों के अज्ञातवास ने दौरान इस मंदिर का निर्माण करवाया गया था। कहते हैं कि मंदिर बनवाने के बाद पांडवों ने माता कुंती के साथ यहां पर महाकाल की आराधना की थी। स्थानीय लोगों के अनुसार इस मंदिर का शेष निर्माण कार्य आहुक एवं मनुक नाम के दो व्यापारियों ने 1204 ई में पूर्ण किया था और तब से लेकर अब तक यह स्थान शिवधाम के नाम से उत्तरी भारत में प्रसिद्ध है।
भगवान शिव ने रावण को दिए थे दो शिवलिंग
बैजनाथ मंदिर में स्थापित शिवलिंग के स्थापना की कथा रावण से जुड़ी हुई है। पौराणिक कथाओं के अनुसार त्रेता युग में लंका के राजा रावण ने कैलाश पर्वत पर शिव की तपस्या की थी। कोई फल न मिलने पर उसने घोर तपस्या प्रारंभ की। अंत में उसने अपना एक-एक सिर काटकर हवन कुंड में आहुति देकर शिव को अर्पित करना शुरू किया। दसवां और अंतिम सिर कट जाने से पहले शिवजी ने प्रसन्न हो प्रकट होकर रावण का हाथ पकड़ लिया। उसके सभी सिरों को पुर्नस्थापित कर शिव ने रावण को वर मांगने को कहा। रावण ने कहा मैं आपके शिवलिंग स्वरूप को लंका में स्थापित करना चाहता हूँ। आप दो भागों में अपना स्वरूप दें और मुझे अत्यंत बलशाली बना दें। शिवजी ने तथास्तु कहा और लुप्त हो गए। लुप्त होने से पहले शिव ने अपने शिवलिंग स्वरूप दो चिह्न रावण को देने से पहले कहा कि इन्हें ज़मीन पर न रखना। रावण दोनों शिवलिंग लेकर लंका को चला। रास्ते में गौकर्ण क्षेत्र (बैजनाथ) में पहुँचने पर रावण को लघुशंका का अनुभव हुआ। उसने 'बैजु' नाम के एक ग्वाले को सब बात समझाकर शिवलिंग पकड़ा दिए और शंका निवारण के लिए चला गया। शिवजी की माया के कारण बैजु उन शिवलिंगों के भार को अधिक देर तक न सह सका और उन्हें धरती पर रखकर अपने पशु चराने चला गया। इस तरह दोनों शिवलिंग वहीं स्थापित हो गए। जिस मंजूषा में रावण ने दोनों शिवलिंग रखे थे, उस मंजूषा के सामने जो शिवलिंग था, वह चन्द्रभाल के नाम से प्रसिद्ध हुआ और जो पीठ की ओर था, वह बैजनाथ के नाम से जाना गया।
सप्तऋषियों ने स्थापित किए थे सात कुंड
मान्यता यह भी है कि सप्तऋषि जब इस क्षेत्र के प्रवास पर थे, तब सात कुंडों की स्थापना की गई थी। इनमें से चार कुंड- ब्रह्म कुंड, विष्णु कुंड, शिव कुंड और सती कुंड आज भी मंदिर में मौजूद हैं। तीन कुंड- लक्ष्मी कुंड, कुंती कुंड और सूर्य कुंड मंदिर परिसर के बाहर हैं।
जाने बैजनाथ मंदिर के बारे में
- यह प्रसिद्ध शिव मंदिर पालमपुर के चामुंडा देवी मंदिर से 22 किमी की दूरी पर स्थित है।
- यहां शिवलिंग पर चढ़ने वाला पानी या दूध कहीं भी बाहर निकलता नजर नहीं आता।
- इस मंदिर को अघोरी साधकों और तंत्र विद्या का केंद्र माना जाता है।
- इसका पुराना नाम कीरग्राम था, परन्तु समय के साथ यह मंदिर के नाम से प्रसिद्ध होता गया और ग्राम का नाम बैजनाथ पड़ गया।
- मंदिर के प्रांगण में कुछ छोटे मंदिर हैं और नंदी बैल की मूर्ति है। नंदी के कान में भक्तगण अपनी मन्नत मांगते है।
- पूरा मंदिर एक ऊंची दीवार से घिरा है और दक्षिण और उत्तर में प्रवेश द्वार हैं। मंदिर की बाहरी दीवारों में मूर्तियों, झरोखों में कई देवी-देवताओं की मूर्तियाँ हैं।
- मकर संक्रांति, महाशिवरात्रि, वैशाख संक्रांति, श्रावण सोमवार आदि पर्व भारी उत्साह और भव्यता के साथ मनाऐ जाते हैं।
- श्रद्धालु रेलमार्ग,हवाई सेवा, बस या निजी वाहन व टैक्सी से मंदिर तक पहुंच सकते हैं।