-पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी को जयंती पर दी श्रद्धांजलि -कहा, सबसे पहले वाजपेयी ने देश को भ्रष्टाचार मुक्त बनाने का उठाया था बीड़ा राज्यसभा सांसद इंदू गोस्वामी ने आज लंबागांव खंड की चंबी पंचायत में पांच लाख रुपये की लागत से निर्मित इनडोर जिम का लोकार्पण किया। वहीं, देश के पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की जयंती पर उन्हें श्रद्धांजलि देते हुए गोस्वामी ने कहा कि इस देश में फैले भ्रष्टाचार को खत्म करने का अगर किसी प्रधानमंत्री ने सबसे पहले बीड़ा उठाया था तो वे अटल बिहारी वाजपेयी थे। उन्होंने ही देश को बेहतर सुशासन दिया था। वहीं, देश के अंतिम छोर पर बसे गांव को प्रथम गांव का दर्जा देना व सेना में लड़कियों की भर्ती करने के साथ महिलाओं को हर क्षेत्र में अव्वल स्थान देना, यह वर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की दूरदर्शी सोच है। उन्होंने कहा कि आज सबसे ज्यादा समस्याएं देश की सीमाओं पर हैं। देश की सीमाओं पर बसे गांव जब विकसित होंगे तो सीमाओं पर जो समस्याएं हैं, वे स्वयं खत्म हो जाएंगी। इस मौके पर उन्होंने चंबी युवक मंडल द्वारा बास्केटबॉल कोर्ट की मांग को स्वीकार करते हुए कहा कि वे उन्हें इसकी प्रोपोजल बनाकर भेजें, जो भी धनराशि जरूरी होगी, वो दे दी जाएगी।
उस दौर में जब भारत में महिलाओं का कुश्ती लड़ना की स्वप्न से काम नहीं था तब हमीदा बानो ने मर्द पहलवानों के सामने एक चुनौती रखी। मई 1954 में 32 वर्षीय इस महिला पहलवान ने मर्द पहलवानों के सामने एक चुनौती रखते हुए कहा, "जो मुझे दंगल में हरा देगा, वह मुझसे शादी कर सकता है।" इससे पहले वह फ़रवरी 1954 से दो मर्द पहलवान चैंपियनों को हरा चुकी थीं जिनमें से एक पटियाला से था और दूसरा कोलकाता से। इस बार बाबा पहलवान ने चुनौती स्वीकार की। समाचार एजेंसी 'एपी' की उस समय की रिपोर्ट के अनुसार यह मुक़ाबला महज़ एक मिनट और 34 सेकंड तक चला जिसमें हमीदा बानो ने बाबा पहलवान को चित कर दिया। हार के बाद बाबा पहलवान ने तुरंत घोषणा कर दी कि यह उनका आख़िरी मैच था। भारत की पहली महिला पेशेवर पहलवान हमीदा बानो उस दौर में रौशनी की एक किरण थी जब महिलाओं को कमज़ोर और अबला समझा जाता था। उस समय की रिपोर्टों के मुताबिक़ उनका वज़न 107 किलो था और क़द 5 फ़ुट 3 इंच था। रोज़ाना की ख़ुराक में साढ़े पांच किलो दूध, पौने तीन किलो सूप, लगभग सवा दो लीटर फलों का जूस, एक मुर्ग़ा, लगभग एक किलो मटन, 450 ग्राम मक्खन, 6 अंडे, लगभग एक किलो बादाम, 2 बड़ी रोटियां और 2 बिरयानी की प्लेटें शामिल थीं। कहते हैं वह एक दिन में नौ घंटे सोती थीं और छह घंटे व्यायाम करती थीं। उन्हें 'अलीगढ़ की एमेज़ॉन' कहा जाने लगा। दरअसल अमेजॉन अमेरिका की एक मशहूर पहलवान हुआ करती थी और हमीदा बानो की उनसे तुलना की जा रही थी। 1954 में ही हमीदा ने दावा किया कि वह अब तक अपने सभी 320 दंगल जीत चुकी हैं। फिर उन्होंने पुरुष पहलवानो को चुनौती दे दी। जगह थी बड़ोदा। भारत में पहली बार कोई महिला मर्द पहलवान से कुश्ती लड़ रही थी। शहर में इस मुकाबले की घोषणा तांगे और लॉरियों पर बैनर और पोस्टर लगाकर की गई थी, जैसा कि फ़िल्मों के प्रचार के लिए किया जाता था। उस समय के अख़बारों के अनुसार यह साफ़ है कि बड़ौदा में उन्होंने बाबा पहलवान को पटकनी दी थी। ये भी कहते हैं तब छोटे गामा पहलवान ने अंतिम समय में हमीदा बानो से कुश्ती लड़ने से इंकार कर दिया। उन्होंने कहा कि महिला के साथ वह कुश्ती नहीं लड़ेंगे। कहते हैं उस दौर में जब हमीदा ने कई पुरुष पहलवानो को पराजित किया तो समाज के ठेकेदारों ने उन्हें बुरा-भला कहा और उन पर पत्थर तक फेंके गए। इसी बीच 1954 में हमीदा बानो ने मुंबई में रूस की 'मादा रीछ' कहलाने वाली वीरा चस्तेलिन को भी एक मिनट से कम समय में शिकस्त दी थी और उन्होंने यूरोपीय पहलवानों से कुश्ती लड़ने के लिए यूरोप जाने का ऐलान कर दिया। पर इस ऐलान के बाद अचानक हमीदा कुश्ती के अखाड़े से ग़ायब हो गईं। कहते हैं हमीदा के ट्रेनर सलाम पहलवान को यह बात मंज़ूर नहीं थी। उन्हें रोकने के लिए सलाम पहलवान ने उसे लाठियों से मारा और उनके हाथ तोड़ दिए। बताया जाता हैं कि सलाम पहलवान प्रभावशाली थे। हालाँकि इसकी सत्यता की कोई पुष्टि नहीं हैं। पर हमीदा ने अखाडा क्यों छोड़ा, ये सवाल अब भी हैं।
मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू ने आज धर्मशाला में जिला कांगड़ा को राज्य की पर्यटन राजधानी के रूप में विकसित करने के लिए कार्यान्वित की जा रही पर्यटन और अन्य प्रमुख परियोजनाओं की समीक्षा की। मुख्यमंत्री ने कहा कि राज्य सरकार कांगड़ा जिला में जल, साहसिक, धार्मिक और स्वास्थ्य पर्यटन को बढ़ावा दे रही है और इससे संबंधित आधारभूत ढांचा विकसित करने के लिए लगभग 3000 करोड़ व्यय किये जायेंगे। उन्होंने कहा कि कांगड़ा जिले को पर्यटन राजधानी के रूप में विकसित करने के लिए हवाई संपर्क आवश्यक है और इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए कांगड़ा हवाई अड्डे का विस्तार और रक्कड़ तथा पालमपुर में हेलीपोर्ट का निर्माण कार्य चल रहा है। उन्होंने कहा कि सरकार पारंपरिक पर्यटन स्थलों के जीर्णोंद्धार पर दृढ़ता से कार्य कर रही है और साहसिक पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए ट्रैकिंग रूट्स की पहचान करने के भी निर्देश दिए गए हैं। मुख्यमंत्री ने परियोजना को समय सीमा के भीतर पूरा करने और एफसीए (वन संरक्षण अधिनियम) और एफआरए (वन अधिकार अधिनियम) की मंजूरियों में तेजी लाने के निर्देश दिए। मुख्यमंत्री ने कहा कि कांगड़ा हवाई अड्डे के रनवे की लंबाई पहले चरण में कुल 1900 मीटर और दूसरे चरण में 3010 मीटर तक बढ़ाने की योजना है, जोकि ए-320 प्रकार के विमानों के संचालन के लिए उपयुक्त होगा। उन्होंने कहा कि पहले चरण के लिए अधिग्रहण की कुल लागत 572.07 करोड़ रुपये है और एसआईए रिपोर्ट 9 मई, 2023 को प्राप्त की गई है। उन्होंने कहा कि रक्कड़ और पालमपुर में हेलीपोर्ट के विकास के लिए साइटों की पहचान कर ली गई है। रक्कड़ हेलीपोर्ट की अनुमानित लागत 6.66 करोड़ रुपये और पालमपुर हेलीपोर्ट की 9 करोड़ रुपये है। मुख्यमंत्री ने धार्मिक पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए ज्वालाजी में हेलीपोर्ट के लिए भूमि चिन्हित करने के निर्देश दिए। उन्होंने कहा कि सभी विकास कार्यों के लिए पर्याप्त धनराशि उपलब्ध कराई जाएगी। उन्होंने कहा कि मटौर-शिमला और पठानकोट-मंडी राजमार्गों को सुविधाजनक बनाने के लिए 5 मीटर की मध्यम चौड़ाई के साथ चार लेन तक विस्तारित किया जाएगा। ठाकुर सुखविंदर सिंह सुक्खू ने कहा कि धर्मशाला में 130 करोड़ रुपये की अनुमानित लागत से एक अंतर्राष्ट्रीय कन्वेंशन सेंटर प्रस्तावित है और यह जिला कांगड़ा में सम्मेलन पर्यटन को प्रोत्साहित करेगा। उन्होंने कहा कि इस परियोजना के लिए 2.19 हेक्टेयर भूमि चिन्हित की गई है। मुख्यमंत्री ने कहा कि नगरोटा में प्रस्तावित वेलनेस रिजॉर्ट और हाई एंड इंटरनेशनल फाउंटेन के लिए 5.75 हेक्टेयर भूमि चिन्हित की गई है और यहां एक कृत्रिम झील का निर्माण भी किया जाएगा। उन्होंने कहा कि विरासत गांव गरली में एक गोल्फ कोर्स का निर्माण भी प्रस्तावित है, जो लगभग 318 कनाल भूमि में विकसित किया जाएगा। मुख्यमंत्री ने कहा कि सकोह में आइस स्केटिंग रिंक और रोलर स्केटिंग रिंक के लिए दो हेक्टेयर भूमि चिन्हित की गई है। परियोजना को व्यवहार्य बनाने के लिए 12 कनाल अतिरिक्त भूमि की पहचान की गई है और एशियाई विकास बैंक द्वारा विस्तृत परियोजना रिपोर्ट तैयार की जा रही है। उन्होंने कहा कि नरघोटा में पर्यटन गांव बनाने का प्रस्ताव है और इसके लिए भूमि चिन्हित कर ली गई है। जिस स्थान पर पर्यटक गांव का निर्माण प्रस्तावित है, वहां हिमुडा के पास 25 हेक्टेयर भूमि है। हिमुडा की भूमि के समीप निजी भूमि का भी अधिग्रहण प्रस्तावित है, जिसकी पहचान भी कर ली गई है। मुख्यमंत्री ने कहा कि पालमपुर के समीप डेस्टिनेशन रिजॉर्ट का निर्माण करने के लिए मैंझा में भूमि चिन्हित कर पर्यटन विभाग को हस्तांतरित कर दी गई है। पालमपुर और नगरोटा बगवां नगरों में विकास के दृष्टिगत सौंदर्यीकरण की परियोजनाएं कार्यान्वित की जा रही हैं। पालमपुर शहर के सौंदर्यीकरण के तहत 58 करोड़ रुपये की कुल लागत से एचआरटीसी बस स्टैंड के पास एक बहुस्तरीय पार्किंग का निर्माण, पुरानी सब्जी मंडी के पास एक पार्किंग, भंडारण एवं वर्षा जल संचयन सुविधाएं, एक पर्यटक स्वागत केंद्र, सड़कों और गलियों का सौंदर्यीकरण व उन्नयन, न्यूगल कैफे का जीर्णोद्धार, तथा लैंडस्केप संवर्धन कार्य शामिल हैं। उन्होंने कहा कि नगरोटा बगवां सौंदर्यीकरण परियोजना के तहत पुराने बस स्टैंड, गांधी मैदान, नारदा शारदा मंदिर, मटौर गार्डन और बरोह का सौंदर्यीकरण कार्य शामिल हैं। मुख्यमंत्री ने कहा कि पौंग बांध में साहसिक पर्यटन को बढ़ावा देने की योजना पर भी कार्य चल रहा है। अपेक्षाकृत उथले पानी के लिए जाना जाने वाला नंगल चौक क्षेत्र को पर्यटन केंद्र के विकास के दृष्टिगत वन्यजीव अभयारण्य से बाहर रखा जाएगा। इस हब में गर्म हवा के गुब्बारे, जेटी, एंगलिंग केन्द्र, एंगलर हट्स, पैडल बोट और पेंटबॉल और रॉक क्लाइंबिंग जैसी गतिविधियों के साथ एक मनोरंजन पार्क जैसी विभिन्न सुविधाएं उपलब्ध होंगी। डाडासीबा में नंगल चौक क्षेत्र पंजाब की ओर से सुलभ है। यह पर्यटकों के आकर्षण का मुख्य क्षेत्र है। धमेटा क्षेत्र से सटे मथियाल और कठरा खास, जल साहसिक खेलों और प्रशिक्षण सुविधाओं के लिए उपयुक्त स्थान हैं। इन क्षेत्रों को मोटरबोट की सवारी, क्रूज़, नौका अनुभव और रोमांचकारी राइड के लिए विकसित किया जा सकता हैै। उन्होंने एक बारहमासी नाले के साथ-साथ 1.2 किलोमीटर तक फैली एक कृत्रिम झील बनाने के लिए एक उपयुक्त स्थान की पहचान करने की आवश्यकता पर बल दिया। मुख्यमंत्री ने देहरा विधानसभा क्षेत्र के बनखंडी क्षेत्र में प्राणी उद्यान की योजना पर भी चर्चा की। 195 हेक्टेयर भूमि पर बनने वाले इस पार्क का उद्देश्य आगंतुकों को बेहतरीन अनुभव प्रदान करना है। यह उम्मीद है कि मोनोरेल से जंगली प्राणी दिखाई देंगे और उन्हें खुले बाड़ों में रखा जाएगा। पार्क के लिए केंद्रीय चिड़ियाघर प्राधिकरण (सीजेडए) से जून माह तक अनुमति प्राप्त होने की उम्मीद है। इसके प्रथम चरण के विकास में लगभग 260 करोड़ रुपये व्यय होंगे। मुख्यमंत्री ने कहा कि मुख्यमंत्री सुख आश्रय योजना के तहत संस्थागत देखभाल की आवश्यकता वाले लोगों के लिए एकीकृत केंद्र का निर्माण भी प्रस्तावित है। यह ज्वालामुखी विधानसभा क्षेत्र की लूथन पंचायत में लगभग 120 कनाल भूमि पर बनाया जाएगा। इसको स्थापित करने की प्रक्रिया में तेजी लाने के लिए मुख्यमंत्री ने सलाहकार नियुक्त करने के निर्देश दिए। मुख्यमंत्री ने प्रत्येक विधानसभा क्षेत्र में राजीव गांधी डे-बोर्डिंग स्कूलों के निर्माण की भी समीक्षा की। मंत्रिमण्डल ने कांगड़ा जिले के जयसिंहपुर, पालमपुर, शाहपुर, नगरोटा बगवां, जवाली और जसवां परागपुर विधानसभा क्षेत्र में इन स्कूलों के निर्माण को मंजूरी दी है। बैठक में उपस्थित विधायकों ने कांगड़ा जिला को राज्य की पर्यटन राजधानी के रूप में विकसित के लिए बहुमूल्य सुझाव भी दिए। कृषि मंत्री चंद्र कुमार, शिक्षा मंत्री रोहित ठाकुर, हिमाचल प्रदेश पर्यटन विकास निगम के अध्यक्ष रघुवीर सिंह बाली, मुख्य संसदीय सचिव आशीष बुटेल और किशोरी लाल, विधायक सुधीर शर्मा, भवानी सिंह पठानिया, केवल सिंह पठानिया, संजय रत्न, यादवेंद्र गोमा और मलेंद्र राजन, प्रधान सलाहकार (सूचना प्रौद्योगिकी एवं नवाचार) गोकुल बुटेल, जिला कांग्रेस अध्यक्ष अजय महाजन, उपायुक्त डॉ. निपुण जिंदल, जिला के वरिष्ठ अधिकारी और अन्य गणमान्य व्यक्ति भी इस अवसर पर उपस्थित थे।
मनोज कुमार। कांगड़ा पूर्व विधायक चौधरी सुरेंद्र काकू अपनी जन आशीर्वाद यात्रा लेकर व नारी नमन करने के लिए गांव कुल्थी पहुंचे व महिला मंडलों के विकास के लिए महिला मंडल को एक लाख रुपए महिला मंडल के आंगन में फर्श व टाइल डालने के लिए महिला मंडल को दे दिए गए हैं। जलाड़ी के हार जलाड़ी से गांव खर्ट तक बनेर खड्ड पर पुल लाकर दिया। काम युद्ध स्तर पर है। दौलतपुर, जलाड़ी व दुगियाल गांव में 2 करोड़ रुपए से व ढूंढणी माता से घट्टा में 1 करोड़ 75 लाख से व घट्टा, चोंदा, धमेड़ व चेलियां गांव में 2.50 करोड़ रुपए से नई सड़क बना कर दी। 11 करोड़ रुपए से अटल बिहारी वाजपेई तकीपुर कॉलेज का निर्माण करवा कर दिया। अब कुल्थी-सपड़ी से चोंदा गांव तक नई सड़क का निर्माण किया जा रहा है, जिसका एक करोड़ रुपए खर्चा आएगा, कुल्थी से कोई गांव तक सड़क व ओल्ड डिस्पेंसरी सड़क व जटेहड़ से जन्यानकड़ व जन्यानकड़ से संगम सड़क व कुल्थी से जटेहड़ सड़क मेरे समय काल में निकली गई थी, लेकिन राजनीतिक कारणों से दबा दी गई थी। अब मैं फॉरेस्ट विभाग से मंजूरी लेकर आया हूं, अब इन सड़को का निर्माण करवाया जाएगा। कांगड़ा विधानसभा के हर क्षेत्र में विकास करवाया जा रहा है। जनता के घर दरवार विकास पहुंचाया जा रहा है। सड़कें चकाचक की जा रही हैं। अब कांगड़ा विधानसभा क्षेत्र में विकास रंगत नजर आ रहा है। आगे भी विकास जारी रहेगा।
हिमाचल देवभूमि ही नहीं वीर भूमि भी है। हिमाचल के वीर सपूतों ने जब-जब भी जरूरत पड़ी देश की रक्षा के लिए अपने प्राणों की आहूति दी। बात चाहे सीमाओं की सुरक्षा की हो या फिर आतंकवादियों को ढेर करने की, देवभूमि के रणबांकुरे अग्रिम पंक्ति में रहे। सेना के पहले परमवीर चक्र विजेता हिमाचल से ही सम्बन्ध रखते है। कांगड़ा जिला के मेजर सोमनाथ शर्मा ने पहला परमवीर चक्र मेडल हासिल कर हिमाचली साहस से दुनिया का परिचय करवाया था। मेजर सोमनाथ ही नहीं, पालमपुर के कैप्टन विक्रम बत्रा, धर्मशाला के लेफ्टिनेंट कर्नल डीएस थापा और बिलासपुर के राइफलमैन संजय कुमार समेत प्रदेश के चार वीरों ने परमवीर चक्र हासिल कर हिमाचलियों के अदम्य साहस का परिचय दिया है। देश में अब तक दिए गए कुल 21 परमवीर चक्रों में से सबसे अधिक, चार परमवीर चक्र हिमाचल प्रदेश के नाम हैं। 1. मेजर सोमनाथ शर्मा भारतीय सेना की कुमाऊं रेजिमेंट की चौथी बटालियन की डेल्टा कंपनी के कंपनी-कमांडर मेजर सोमनाथ शर्मा ने 1947 में पाकिस्तान के छक्के छुड़ा दिए थे। मेजर सोमनाथ शर्मा को मरणोपरांत उनकी वीरता के लिए परमवीर चक्र से नवाजा गया। परमवीर चक्र विजेता मेजर सोमनाथ शर्मा का जन्म 31 जनवरी 1923 को कांगड़ा जिले में हुआ था। मेजर शर्मा मात्र 24 साल की उम्र में तीन नवंबर 1947 को पाकिस्तानी घुसपैठियों को बेदखल करते समय शहीद हो गए थे। युद्ध के दौरान जब वह एक साथी जवान की बंदूक में गोली भरने में मदद कर रहे थे तभी एक मोर्टार का गोला आकर गिरा। विस्फोट में उनका शरीर क्षत-विक्षत हो गया। मेजर शर्मा सदैव अपनी पैंट की जेब में गीता रखते थे। जेब में रखी गीता और उनकी बंदूक के खोल से उनके पार्थिव शरीर की पहचान की गई थी। 2. कैप्टेन विक्रम बत्रा विक्रम बत्रा भारतीय सेना के वो ऑफिसर थे, जिन्होंने कारगिल युद्ध में अभूतपूर्व वीरता का परिचय देते हुए वीरगति प्राप्त की। इसके बाद उन्हें भारत के वीरता सम्मान परमवीर चक्र से भी सम्मानित किया गया। ये वो जाबाज़ जवान है जिसने शहीद होने से पहले अपने बहुत से साथियों को बचाया और जिसके बारे में खुद इंडियन आर्मी चीफ ने कहा था कि अगर वो जिंदा वापस आता, तो इंडियन आर्मी का हेड बन गया होता। परमवीर चक्र पाने वाले विक्रम बत्रा आखिरी हैं। 7 जुलाई 1999 को उनकी मौत एक जख्मी ऑफिसर को बचाते हुए हुई थी। इस ऑफिसर को बचाते हुए कैप्टन ने कहा था, ‘तुम हट जाओ. तुम्हारे बीवी-बच्चे हैं’। 3. मेजर धनसिंह थापा मेजर धनसिंह थापा परमवीर चक्र से सम्मानित नेपाली मूल के भारतीय सैनिक थे। इन्हें यह सम्मान वर्ष 1962 मे मिला। वे अगस्त 1949में भारतीय सेना की आठवीं गोरखा राइफल्स में अधिकारी के रूप में शामिल हुए थे। भारत द्वारा अधिकृत विवादित क्षेत्र में बढ़ते चीनी घुसपैठ के जवाब में भारत सरकार ने "फॉरवर्ड पॉलिसी" को लागू किया। योजना यह थी कि चीन के सामने कई छोटी-छोटी पोस्टों की स्थापना की जाए। पांगॉन्ग झील के उत्तरी किनारे पर 8 गोरखा राइफल्स की प्रथम बटालियन द्वारा स्थापित एक पोस्ट थी जो मेजर धन सिंह थापा की कमान में थी। जल्द ही यह पोस्ट चीनी सेनाओं द्वारा घेर ली गई। मेजर थापा और उनके सैनिकों ने इस पोस्ट पर होने वाले तीन आक्रमणों को असफल कर दिया। थापा सहित बचे लोगों को युद्ध के कैदियों के रूप में कैद कर लिया गया था। अपने महान कृत्यों और अपने सैनिकों को युद्ध के दौरान प्रेरित करने के उनके प्रयासों के कारण उन्हें परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया। 4. राइफल मैन संजय कुमार परमवीर राइफलमैन संजय कुमार, वो जांबाज सिपाही है जिन्होंने कारगिल वॉर के दौरान अदम्य शौर्य का प्रदर्शन करते हुए दुश्मन को उसी के हथियार से धूल चटाई थी। लहूलुहान होने के बावजूद संजय कुमार तब तक दुश्मन से जूझते रहे थे, जब तक प्वाइंट फ्लैट टॉप दुश्मन से पूरी तरह खाली नहीं हो गया। हिमाचल प्रदेश के बिलासपुर जिले से भारतीय सेना में भर्ती हुए सूबेदार संजय कुमार की शौर्यगाथा प्रेरणादायक है। 4 जुलाई 1999 को राइफल मैन संजय कुमार जब चौकी नंबर 4875 पर हमले के लिए आगे बढ़े तो एक जगह से दुश्मन ऑटोमेटिक गन ने जबरदस्त गोलीबारी शुरू कर दी और टुकड़ी का आगे बढ़ना कठिन हो गया। ऐसी स्थिति में गंभीरता को देखते हुए राइफल मैन संजय कुमार ने तय किया कि उस ठिकाने को अचानक हमले से खामोश करा दिया जाए। इस इरादे से संजय ने यकायक उस जगह हमला करके आमने-सामने की मुठभेड़ में तीन पाकिस्तानियों को मार गिराया। अचानक हुए हमले से दुश्मन बौखला कर भाग खड़ा हुआ और इस भगदड़ में दुश्मन अपनी यूनिवर्सल मशीनगन भी छोड़ गए। संजय कुमार ने वो गन भी हथियाई और उससे दुश्मन का ही सफाया शुरू कर दिया।
हुनर और ज्ञान उम्र के मोहताज नहीं होते । यह बात दिल्ली में रहने वाली एक 11 साल की बच्ची ने साबित कर दी। ओविया नाम की इस बच्ची ने कम उम्र में ही जो उपलब्धि हासिल की है, वह हर उस लड़की या महिला के लिए प्रेरणा है, जो हुनरमंद हैं और किसी मंच की तलाश में हैं। जो मेहनत करना जानती हैं और उस मेहनत से बल पर सफलता की आस में हैं। जो अपना, परिवार का और देश का नाम रोशन करना चाहती हैं। दिल्ली की ओविया सिंह ने अपनी उम्र से बड़ा काम किया है। सबसे पहले तो ये जान लीजिए कि ओविया सिंह हैं कौन, उनकी उपलब्धि क्या है और कैसे वह हर महिला के लिए मिसाल बन गई हैं। दिल्ली में रहने वाली महज 11 साल की ओविया सिंह TEDx Talk में बात करने वाले लोगों की लिस्ट में शुमार हो चुकी हैं। उन्होंने हाल ही में जामिया मिलिया इस्लामिया में एक TEDx Talk दी। इस TEDx Talk में ओविया ने मृदा संरक्षण के बारे में बात की और कृषि मिट्टी की गुणवत्ता में वैश्विक गिरावट के बारे में चिंताजनक आंकड़ों के बारे में बताया है। टेड टॉक्स के दौरान ओविया ने कहा “हमारे पास भोजन की कमी हो रही है क्योंकि हमारे पास मिट्टी के स्रोत कम हो चुके हैं। हमें इस समस्या को कोई समाधान निकालना चाहिए। ओविया ने आगे कहा कि कृषि योग्य मिट्टी के लिए मिट्टी में कम से कम 3 से 6 प्रतिशत जैविक सामग्री की आवश्यकता होती है। साथ ही यह भी बताया कि वर्षावनों की मिट्टी में 70 प्रतिशत जैविक सामग्री है। क्या है TEDx Talks TED का फुल फाॅर्म टेक्नोलॉजी एंटरटेनमेंट डिज़ाइन है। यह एक संस्था है जो टेड टाॅक्स का आयोजन करती है। जिसका उद्देश्य मानव जाति के कल्याण के लिए अच्छे आइडिया को फैलाना है। टेड टाॅक्स में दुनियाभर में साहित्य, विज्ञान, कला, व्यवसाय, संगीत, वाणिज्य, राजनीति जैसे क्षेत्रों में महारत हासिल एक्सपर्ट्स को मंच मिलता है, जहां वह अपनी बात लोगों तक पहुंचाते हैं। TEDx Talk स्थानीय भौगोलिक क्षेत्र तक सीमित होता है, जिसे TED आयोजित करता है। ओविया सिंह की उपलब्धि 11 साल की ओविया प्लेनेट स्पार्क नाम की एक कम्युनिकेशन स्किल प्लेटफार्म की छात्रा हैं। वह कई पब्लिक स्पीकिंग प्रोग्राम में शामिल हो चुकी हैं और अवार्ड भी जीते हैं। ओविया सिंह के नाम 'यूथ स्पोकन फेस्ट', नेशनल स्पीच एंड डिबेट टूर्नामेंट, पॉडकास्ट चैलेंज और प्लैनेट स्पार्क ग्लोबल पब्लिक स्पीकिंग चैंपियन का खिताब है। ओविया सिंह की किताबें इतनी कम उम्र में ओविया सिंह की दो किताबें भी पब्लिश हो चुकी हैं। ओविया सिंह की पहली किताब 'लिविंग लाइफ ऑफ इंस्पिरेशन' है। उनकी दूसरी किताब का नाम 'राइज पोयम्स ऑफ हीट, रेसिलिएंस एंड लाइट' है। ओविया का अपना पोस्टकास्ट भी है, जिसका नाम 'गो आउट एंड कंटूर द वर्ल्ड' है।
कहते है मेहनत और योग्यता आपको आसमान की बुलंदियों तक पहुंचा सकती है। इस कहावत को सच कर दिखाया हैदराबाद की एक महिला ने, जो पढ़ी लिखी होने के बावजूद अपने बद्दतर हालातों की वजह से एक स्वीपर के तौर पर काम करने को मजबूर हो गई थी। हम बात कर रहे हैं हैदराबाद की पोस्ट ग्रेजुएट स्वीपर अंबी रजनी की। आज अंबी रजनी सिर्फ एक स्वीपर नहीं बल्कि सहायक कीटविज्ञानी बन चुकी हैं। दरअसल, अंबी रजनी तेलंगना के वारंगल जिले की रहने वाली हैं। उनका जन्म खेतिहर मजदूरों के परिवार में हुआ था। गरीब परिवार में जन्मी अम्बी रजनी ने बचपन से ही आर्थिक समस्याओं का सामना किया, बावजूद इसके उन्होंने माता पिता के सहयोग से अपनी पढ़ाई पूरी की। अम्बी रजनी ने साल 2013 में ऑर्गेनिक केमिस्ट्री में एमएससी किया और फर्स्ट ग्रेड के साथ पास हुईं। इज़के बाद रजनी ने हैदराबाद सेंट्रल यूनिवर्सिटी से पीएचडी के लिए क्वालीफाई भी किया। हालांकि इस दौरान उनकी शादी हो गयी और वह पढ़ाई को जारी न रख सकीं। अंबी की शादी एक वकील के साथ हुई और वह बाद में अपने पति के साथ हैदराबाद में शिफ्ट हो गईं। अंबी के दो बच्चे हैं। शादी के बाद भी अंबी ने अपने सपनों को नहीं छोड़ा और सरकारी नौकरी पाने के लिए प्रतियोगी परीक्षाओं में शामिल होती रहीं। अंबी रजनी पर दुखों का पहाड़ तब टूटा जब उनके पति बीमार हो गए। कार्डियक समस्या की वजह से उनके पति बिस्तर पर चले गए। इसके बाद अंबी के परिवार की आर्थिक स्थिति बिगड़ गयी। दो बच्चे, एक सास और एक बीमार पति इन सबकी जिम्मेदारी अंबी रजनी के कंधों पर आ गई। घर चलाने के लिए रजनी ने सब्जी बेचना शुरू कर दिया पर इतनी कमाई नहीं हो पाती थी कि परिवार का खर्च चल सके। फिर अंबी रजनी ने जीएचएमसी में कॉन्ट्रैक्ट के आधार पर स्वीपर की नौकरी शुरू की। इसके लिए उन्हें 10,000 रुपये वेतन में मिलने लगे। बतौर स्वीपर काम कर रही रजनी की काबिलियत छुपने वाली नहीं थी। एक तेलुगु दैनिक में रजनी के बारे में रिपोर्ट आई जिस पर तेलंगाना के नगर प्रशासन मंत्री के.टी. रामा राव की नजर पड़ी। उन्होंने रजनी के बारें में जानकारी पता करने के निर्देश दिए। जिसके बाद रजनी की क्रेडेंशियल को वेरीफाई कराया गया। सभी कुछ सही पाए जाने के बाद मंत्री ने रजनी को अपने कार्यालय बुलाया जहां मंत्री ने रजनी को उनकी योग्यता के मुताबिक कीट विज्ञान विभाग में सहायक कीटविज्ञानी के रूप में नौकरी ऑफर की।
ऐसा कोई काम नहीं जो महिलाएं नहीं कर सकतीं। बस मन में दृढ़ इच्छाशक्ति की जरूरत। कुछ ऐसी ही कहानी है तेलंगाना की येडालपल्ली आदिलक्ष्मी की जो पुरुषों के वर्चस्व वाले काम में हाथ आजमाकर आज जाना पहचाना नाम बन चुकी हैं। दरअसल, आदिलक्ष्मी पेशे से मैकेनिक है। जो कि पूरी तरह से पुरुषों का ही काम माना जाता है। इस काम में अपनी पहचान बनाने में उन्हें काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ा। तेलंगाना के भद्रादी कोठागुडेम गांव की रहने वाली 31 वर्षीय आदिलक्ष्मी टायर मरम्मत का काम करती हैं। शुरूआत में लोग इस महिला के पास टायर मरम्मत करवाने से हिचकते थे लेकिन अब वो अपने काम की वजह से पूरे तेलंगाना में मशहूर मैकेनिक बन चुकी हैं। कोठागुडेम कस्बे के पास सुजाता नगर में एक छोटा सा गैरेज चलाने वाली आदिलक्ष्मी मोटरसाइकिल के साथ ही कार और ट्रैक्टर, ट्रक के टायर ठीक करने का काम करती हैं। दो बच्चों की मां आदिलक्ष्मी ने टायर ठीक करने का काम अपने पति भद्रम के ऑटोमोबाइल की दुकान से शुरू किया। पिछले पांच सालों में वह इस काम में पूरी तरह से निपुण हो चुकी हैं। वहीं आदिलक्ष्मी जब ट्रकों के भारी-भरकम टायरों को बदलती हैं तो लोग हैरान रह जाते हैं। महिला मैकेनिक बताती हैं कि शुरूआत में जब वो दुकान पर बैठती थीं तो लोग उन्हें देखते ही लौट जाते थे। जिससे वो काफी निराश महसूस करती थीं। दरअसल, जब भी उनके पति काम के सिलसिले में टायर ठीक करने कहीं बाहर जाते तो वो दुकान पर बैठती थीं। लेकिन दुकान पर महिला को देखकर कई सारे ग्राहक लौट जाते थे। इस तरह काम को लौटते देख आदिलक्ष्मी के मन में बहुत निराशा होती थी। ऐसे में उसने टायरों हवा भरने जैसे छोटी चीजों से शुरूआत की। दिलचस्पी बढ़ने के साथ उनमे आत्मविश्वास भी आने लगा और वो पति के साथ पंचर बनवाने में मदद करने लगीं। वह बताती हैं कि शुरूआत में वो चार पंक्चर ठीक कर थक जाती थीं लेकिन अब वो दिनभर में कई सारे पंक्चर ठीक कर सकती हैं।
Gur Ikbal Singh, a 24-year-old boy living in Shimla and working as a director is trying to preserve the cultural heritage of Himachal Pradesh. He has represented Himachal Pradesh in many cultural events at various places in the country. Gur is basically from Mohali Chandigarh and thus preserving Punjabi as well as Pahadi culture. He has also won the hearts of a lot of people with his work throughout the state. You might have seen his infamous Himachali songs- “Bhawta”, “Gori tera gaon” and his dance makes him stand out from all the other people here in Himachal Pradesh. He has been a part of many fairs in Himachal Pradesh as a special guest some of them are - Winter Carnival Manali, Faag Fair Rampur. For the work he has done till now he has been awarded by the CM of Himachal Pradesh and by the education minister as the best culture promoter. He has worked with not only Himachali artists but also with Punjabi and artists from Uttrakhand. His vision and mission both happen to be promoting Himachali culture to another level and making serials, series, or even movies showing our cultural heritage.
स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण विभाग सोलन के सौजन्य से टीबी दिवस उन्मूलन दिवस मनाया गया। यह कार्यक्रम मुरारी लाल मेमोरीयल नर्सिंग कॉलेज कॉलेज ओच्छघाट सोलन में करवाया गया। कार्यक्रम की अध्यक्षता उपायुक्त सोलन कृतिका कुलहारी ने की। उन्होंने इस अवसर पर राष्ट्रीय क्षय रोग उन्मूलन कायक्रम एनटीईपीसी में बेहतरीन कार्य की प्रशंसा की। उन्होंने कहा कि सभी के सहयोग से सोलन जिला क्षय रोग उन्मूलन की दिशा में बेहतर प्रदर्शन कर पाया है। उन्होंने इस अवसर पर आईएमए के अध्यक्षए दवा विक्रेता संघ के अध्यक्ष, दवा निरीक्षक तथा जिला आयुर्वेदिक अधिकारी को राष्ट्रीय क्षय रोग उन्मूलन कार्यक्रम में सराहनीय कार्य के लिए सम्मानित किया। इस अवसर पर मुरारी लाल नर्सिंग कॉलेज ओच्छघाट द्वारा भाषण, पोस्टर प्रतियोगिता और टीबी उन्मूलन पर 2 नाटक भी करवाए गए। मुख्य चिकित्सा अधिकारी डॉ. राजन उप्पल ने तपेदिक उन्मूलन के विषय में बताया। वहीं जिला चिकित्सा अधिकारी डॉ. मुक्ता रस्तोगी ने सभी का धन्यवाद किया।
सावित्री जिंदल, एक कामयाब बिजनेसवुमन ही नहीं एक पॉलिटिशियन भी हैं। उम्र के उस पड़ाव में आकर जब लोग काम से रिटायरमेंट लेने और घर के कामों से आराम चाहते हैं, उस उम्र सावित्री जिंदल ने अपनी ज़िन्दगी को सही मायनों में जीना शुरू किया । यहां तक कि भारत की सबसे अमीर महिलाओं की लिस्ट में भी शामिल हुईं। सावित्री जिंदल की सफलता की कहानी किसी फिल्म से कम नही है। घर की गृहिणी से लेकर बिजनेसवुमन बनने तक का उनका सफर शानदार है। 71 वर्ष की सावित्री जिंदल वर्तमान में जिंदल ग्रुप ऑफ कंपनी की चेयरपर्सन हैं। सावित्री जिंदल का जन्म 20 मार्च 1950 को हुआ था। तिनसुकिया असम की रहने वाली सावित्री की शादी ओमप्रकाश जिंदल से 1970 में हुई थी। ओपी जिंदल ने जिंदल ग्रुप की स्थापना की। जो स्टील और पॉवर का काम करती थी। राजनीति में भी काफी सक्रिय: जिंदल परिवार हरियाणा की राजनीति में भी काफी सक्रिय रहा है। सावित्री जिंदल के पति ओम प्रकाश जिंदल हिसार विधानसभा से कांग्रेस के टिकट पर लगातार तीन बार चुनाव जीते। ओम प्रकाश जिंदल के निधन के बाद सावित्री जिंदल ने हिसार से विधानसभा उपचुनाव लड़ा और हरियाणा सरकार में मंत्री बन गईं। नौ बच्चों की मां सावित्री जिंदल 55 वर्ष की थीं। जब पति के अचानक देहांत के बाद उन्होंने नई दुनिया में कदम रखा। घर के कामकाज से निकलकर उन्होंने बिजनेस को संभाला। इसी के साथ ही वो नेता और सामाजिक कार्यकर्ता के रूप में भी जिम्मेदारियों को बखूबी संभालती दिखीं। अपने अथक प्रयास के बल पर और कंपनी को नए मुकाम पर पहुंचाने के बाद सावित्री जिंदल भारत की सबसे अमीर महिलाओं की लिस्ट में शामिल हुईं। सावित्री जिंदल ने जिंदल ग्रुप को नई ऊंचाईयों पर पहुंचाया। ओपी जिंदल ने बिजनेस की दुनिया मे कदम एक छोटी फैक्टरी के साथ रखा था। जिसमे बाल्टी बनने का काम होता है। हिसार में शुरू इस यूनिट के साथ ही उन्होने जिंदल इंडिया लिमिटेड की स्थापना की। कारोबार को आगे बढ़ाने के साथ जिंदल ग्रुप की कंपनियों में जिंदल सा लिमिटेड, जेएसडब्ल्यू स्टील, जिंदल स्टेनलेस स्टील लिमिटेड और जिंदल स्टील एंड पॉवर लिमिटेड शामिल है। अपने नैतिक मूल्यों और काम के प्रति प्रतिबद्धता के साथ पति के मूल्यों को साथ रखते हुए सावित्री जिंदल ने कंपनी के टर्नओवर को बढ़ाया। सावित्री जिंदल ने अपने कार्यकाल में जिंदल ग्रुप के टर्नओवर को चार गुना बढ़ाने में मदद की। बिजनेस में सफलता हासिल करने के बाद सावित्री जिंदल ने राजनीति में कदम रखा और पति के कदमों पर चलते हुए हिसार असेंबली से चुनाव लड़ा। जहां से वो 2005 और 2009 में जीत हासिल की। इसी के साथ ही वो आपदा एवं राजस्व प्रबंधन और शहरी स्थानीय निकाय और आवास के राज्य मंत्री पद पर भी थीं। सावित्री जिंदल जिंदल ग्रुप को आगे बढ़ाने के साथ ही समाज सेवा के काम में भी लगी रहती हैं। वहीं वो हर संभव तरीके से आम आदमी की मदद करने की कोशिश करती हैं।
पालमपुर के रहने वाले नवीन शर्मा ने आत्मनिर्भर बनने के लिए आधुनिक तरीके से खेती की शुरुआत की है। राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान (एनआइटी) हमीरपुर से इंजीनियरिंग की शिक्षा प्राप्त करने के बाद 42 वर्षीय नवीन शर्मा ने कारपोरेट सेक्टर में देश के बड़े शहरों में काम किया। लेकिन मन में अपना काम करने की इच्छा हुई तो ऐसे में ऐहजू में अपनी जमीन पर उन्होंने हाइड्रोपोनिक्स तरीके से खेती की शुरुआत की। 500 वर्ग मीटर में फैले उनके पालीहाउस में आज वह लैट्यूस चैरी, टमाटर, शिमला मिर्च, स्ट्राबेरी, धनिया, मिर्च इत्यादि फसलें नियमित अंतराल के बाद तैयार कर रहे हैं। नवीन शर्मा की फसलें पालमपुर, कांगड़ा, धर्मशाला, मैक्लोडगंज में अच्छे दाम पर बिक रही हैं। लैट्यूस 400 से 450 रुपये प्रति किलोग्राम, चैरी टोमेटो 300 से 350, बेसिल तुलसी 400 रुपये प्रति किलोग्राम की दर से दाम प्राप्त हो रहे हैं। इसके अलावा स्ट्राबेरी तथा शिमला मिर्च व धनिया इत्यादि के भी अच्छे दाम प्राप्त हो रहे हैं। क्या है हाइड्रोपोनिक्स : हाइड्रोपोनिक एक आधुनिक खेती की तकनीक है। इसमें बिना मिट्टी के सिर्फ पानी का इस्तेमाल करते हुए जलवायु को नियंत्रित करके खेती की जाती है। पानी के साथ थोड़े बालू या कंकड़ की जरूरत पड़ सकती है। इसमें तापमान 15-30 डिग्री के बीच रखा जाता है, साथ ही पारंपरिक खेती के मुकाबले हाइड्रोपोनिक्स से पानी की लगभग 90 फीसद तक बचत भी होती है। पौधों की नर्सरी तैयार होने के बाद जब पौधे तैयार होते है तो उन्हें स्थापित पाइपों में रोप दिया जाता है। इसके बाद पाइपों के माध्यम से पानी की सप्लाई द्वारा सभी तरह के पोषक तत्व पौधों को दिए जाते हैं। इस तरह की जाती है आधुनिक खेती : हाइड्रोपोनिक तकनीक में खेती पाइपों के जरिए की जाती है। इनमें पाइपों के ऊपर की तरफ से छेद किए जाते हैं और उन्हीं छेदों में पौधे लगाए जाते हैं। पाइप में पानी होता है और पौधों की जड़ें उसी पानी में डूबी रहती हैं। इस पानी में वो हर पोषक तत्व घोला जाता है, जिसकी पौधे को जरूरत होती है। यह तकनीक छोटे पौधों वाली फसलों के लिए बहुत अच्छी है। इसमें गाजर, शलजम, मूली, शिमला मिर्च, मटर, स्ट्रॉबेरी, ब्लैकबेरी, ब्लूबेरी, तरबूज, खरबूजा,, अजवाइन, तुलसी, टमाटर, भिंडी जैसी सब्जियां और फल उगाए जा सकते हैं। हाइड्रोपोनिक्स खेती के फायदे : इस खेती का सबसे बड़ा फायदा ये है कि इसमें करीब 90 फीसदी पानी की बचत की जा सकती है। ऐसे इलाके जहां पानी की कमी होती है, वहां पर हाइड्रोपोनिक खेती की जा सकती है। इसका दूसरा बड़ा फायदा ये है कि छोटी नस्ल वाले फलों या सब्जियों की खेती करने में बेहद कम जगह में बहुत अधिक फसल पाई जा सकती हैं। इस खेती में सिर्फ 100 वर्ग फुट में ही 200 पौधे लगाए जा सकते हैं। वहीं बाहरी वातावरण से आने वाले कीटों से भी फसल को सुरक्षा मिलती है। हाइड्रोपोनिक सिस्टम के जरिए इंडोर यानी घर के अंदर खेती करना काफी आसान हो गया है। इसमें घर के अंदर कमरे के हिसाब से एक हाइड्रोपोनिक सिस्टम तैयार किया जा सकता है। पिछले तीन वर्षों से कर रहे है आधुनिक खेती: नवीन का कहना है कि बेशक कंपनी में उन्हें अच्छा पैकेज मिल रहा था लेकिन उन्होंने स्वरोजगार से आगे बढ़ने का निर्णय लिया। साथ ही उनका कहना है कि जो शांति हमें यहां मिलती है, वह बाहर नहीं मिल सकती। इसलिए वह पिछले तीन वर्षों से इस दिशा में आगे बढ़ रहे हैं। हाइड्रोपोनिक सेटअप के लिए कुल 10 लाख रुपये की लागत आई है। इसके अलावा पॉलीहाउस की सोलर युक्त बाड़बंदी को भी सरकार ने 80 प्रतिशत की दर से 1.35 लाख रुपये का अनुदान प्रदान किया है। आने वाले समय में अपने इस कार्य में और विस्तार करेंगे। युवाओं के लिए बने प्रेरणा एसडीएम जोगेंद्रनगर डाक्टर मेजर विशाल शर्मा का कहना है कि नवीन शर्मा ने हाइड्रोपोनिक्स तकनीक से खेती का कार्य शुरू किया है, जो इस उपमंडल के हजारों युवाओं के लिए प्रेरणा का काम करेगा। इससे जुडक़र न केवल युवा घर बैठे अच्छी कमाई कर सकते हैं, बल्कि रोजगार की तलाश में उन्हें प्रदेश के बाहर भी नहीं जाना पड़ेगा।
विजय हजारे ट्रॉफी के फाइनल में तमिलनाडु को 6 विकेट से हराकर हिमाचल प्रदेश ने इतिहास रच दिया है। हिमाचल की टीम पहली बार विजय हजारे ट्रॉफी का खिताब अपने नाम किया है। तमिलनाडु ने हिमाचल प्रदेश के सामने 315 रन का लक्ष्य रखा जिसके जवाब में हिमाचल ने 47 ओवर और तीन गेंदों में 299 बनाकर मैच अपने नाम किया। खराब रोशनी के कारण मैच 15 गेंदों पहले की खत्म किया गया और उस वक्त हिमाचल को जीत के लिए 288 रन की जरुरत थी, जबकि टीम का स्कोर 299 रन था जिसके चलते हिमाचल को विजेता घोषित किया गया। ओपनर शुभम अरोरा ने शानदार बल्लेबाजी करते हुए नाबाद 136 रन की पारी खेली। जबकि अमित कुमार ने शानदार 74 और कप्तान ऋषि धवन ने धुआंधार नाबाद 42 रन बनाकर टीम की जीत में अहम भूमिका निभाई। शुभम अरोरा को उनकी पारी के लिए मैन ऑफ़ दी मैच चुना गया। मैच में तमिलनाडु ने पहले बल्लेबाजी करते हुए खराब शुरुआत की। हिमाचल ने 40 रन पर तमिलनाडु के चार विकेट गिरा दिए थे, लेकिन दिनेश कार्तिक और इंद्रजीत ने 202 रनों की साझेदारी कर अपनी टीम को अच्छी स्थिति में पहुंचाया। दिनेश कार्तिक ने 116 और बाबा इंद्रजीत ने 80 रन की पारी खेली। इसके बाद शाहरुख खान ने ताबड़तोड़ बल्लेबाजी कर टीम का स्कोर 300 के पार पहुंचाया और तमिलनाडु ने हिमाचल के सामने 315 रनों का लक्ष्य रखा। हिमाचल प्रदेश के लिए पंकज जयसवाल ने चार विकेट झटके। जबकि कप्तान ऋषि धवन ने तीन, विनय गलेतिया, सिद्धार्थ शर्मा और दिग्विजय रंगी ने एक-एक विकेट लिया।
देश में आज भी महिलाओं को अपनी जगह बनाने के लिए काफी मुश्किलों से गुजरना पड़ता है। खेल, बिजनेस जैसे कई क्षेत्र हैं जहां बहुत कम ही महिलाएं आगे बढ़ पाती हैं। ऐसे में गुजरात की अक्षदा दलवी ने अपनी मेहनत से समाज और दकियानूसी सोच दोनों पर तमाचा मारते हुए एक मिसाल कायम किया है। दरअसल गुजरात के वडोदरा में अख़बार बेचने वाले व्यक्ति की बेटी अक्षदा दलवी ने अंतरराष्ट्रीय किक बॉक्सिंग के लिए क्वालीफाई किया है। अक्षदा ने बताया कि उसे बचपन से ही किक बॉक्सिंग का शौक था और उसने पांचवीं कक्षा से कराटे सीखना शुरू कर दिया था। अक्षदा अपने पहले नेशनल में गोल्ड मेडल जीत पूरे देश को गौरवांवित भी कर चुकी हैं। बता दें कि किकबॉक्सिंग एरोबिक व्यायामों को एक रूप है, इसमें मिक्सड मार्शल आर्ट टेक्नीक का इस्तेमाल किया जाता है। यह एक मार्शल आर्ट खेल है जिससे आपके शरीर को मजबूत बनाने का काम करता है. मार्शल आर्ट करने से इंसान कई तरह की बीमारी से भी बच सकता है साथ ही इससे शरीर में रक्त फ्लो भी बेहतर होता है। किक बॉक्सिंग की शुरूआत सबसे पहले साल 1930 में जापान में हुई थी। यह अमेरिका में 70 के दशक में पेश किया गया था। बता दें कि जापानी किकबॉक्सिंग के साथ किकबॉक्सिंग के कई अलग-अलग प्रारूप हैं, अमेरिकन किकबॉक्सिंग, मय थाई या थाई किकबॉक्सिंग।
चम्बा की रहने वाली तृषा महाजन ने बाहरवीं के आर्ट्स संकाय में प्रदेश भर में पहला स्थान हासिल किया है। हिमाचल स्कूल शिक्षा बोर्ड की ओर से बीते दिनों मेरिट सूची जारी की गयी है। इसमें तृषा महाजन ने आर्ट्स संकाय में 99 फीसदी अंक हासिल कर जिला का नाम प्रदेश भर में रोशन किया है। बेटी की इस कामयाबी से परिजन काफी खुश है। तृषा के पिता विकास महाजन इंस्पेक्शन विंग में प्रधानाचार्य के पद पर कार्यरत है। जबकि माता अमिल गुप्ता बतौर इतिहास प्रवक्ता सेवाएं दे रही है। वहीं तृषा ने दसवीं कक्षा जिला के डीएवी स्कूल से उत्तीर्ण की थी और 98 प्रतिशत अंक हासिल कर छठा स्थान प्राप्त किया था। तृषा का चयन आगामी पढ़ाई के लिए दिल्ली विश्वविद्यालय के हिंदू कॉलेज में इकोनॉमिक्स ऑनर्स में हो गया है और पढ़ाई जारी है।
हिमाचल प्रदेश के नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी हमीरपुर की छात्रा साभ्या सूद को यूके की कंपनी ने 1.09 करोड़ के सालाना पैकेज पर नौकरी ऑफर की है। बीटेक अंतिम वर्ष की छात्रा साभ्या सूद यूके में अमेजन कंपनी में सेवाएं देंगी। साभ्या सूद हिमाचल प्रदेश के सिरमौर जिले के राजगढ़ की रहने वाली हैं। साभ्या के पिता प्रदीप सूद एक व्यवसायी हैं, जबकि माता डोली सूद बीएसएनएल से सेवानिवृत्त हुई हैं। जेईई की परीक्षा देने के बाद साभ्य सूद का चयन एनआईटी हमीरपुर में कंप्यूटर साइंस एंड इंजीनियरिंग विभाग में हुआ था। एनआईटी हमीरपुर ने लगातार दूसरे माह अपने छात्र की एक करोड़ से अधिक के सालाना पैकेज पर प्लेसमेंट करवाई है। साभ्या सूद ने बताया कि यूके की इस कंपनी में चयन के लिए करीब 10 सप्ताह तक चलने वाली ऑनलाइन इंटरव्यू प्रक्रिया से उसे गुजरना पड़ा है। एनआईटी हमीरपुर के निदेशक डॉ. ललित कुमार अवस्थी और संस्थान के ट्रेनिंग एंड प्लेसमेंट अफसर डॉ. भारत भूषण शर्मा ने साभ्या को बधाई दी है।
हिमाचल प्रदेश के जनजातीय जिले लाहौल-स्पीति के छालिंग गांव की सोनम अंगमो ने जेईई एडवांस्ड की परीक्षा के एसटी वर्ग में पूरे देश मे 70वां रैंक प्राप्त किया है। सोनम को अब देश के टॉप आईआईटी में प्रवेश मिलना तय है। सोनम अंगमो और उनका परिवार मयाड़ घाटी के जिस छालिंग गांव में रहता है, वहां आजादी के दशकों बाद भी न तो मोबाइल नेटवर्क है और न ही इंटरनेट सुविधा। परिवार का पालन-पोषण खेतीबाड़ी से होता है। इसके बावजूद माता पदमा देचिन और पिता नोरबू का हौसला नहीं डगमगाया। अंगमो भी मजबूत हौसले और कुछ कर गुजरने के जज्बे को लेकर आगे बढ़ती रहीं। सोनम अंगमो ने पांचवीं तक की पढ़ाई राजकीय प्राथमिक स्कूल छालिंग से की है। इसके बाद अंगमो ने स्पीति के लरी नवोदय स्कूल में दाखिला पाया। 10वीं की पढ़ाई के बाद जेएनवी कुल्लू से 12वीं की परीक्षा पास की। उसके बाद जेईई मेन की परीक्षा दी। एडवांस परीक्षा की रैंकिंग के आधार पर दावा किया जा रहा है कि सोनम अंगमो को टॉप-5 आईआईटी में प्रवेश मिलेगा। वहीं, माता-पिता को अपनी बेटी की सफलता पर गर्व है। सोनम की इस कामयाबी से छालिंग गांव में खुशी का माहौल है। इससे पहले उन्होंने जेईई मेन्स की परीक्षा में 98.2 परसेंटाइल हासिल किए थे।
हिमाचल प्रदेश की एक और बेटी भारतीय महिला क्रिकेट टीम में दमखम दिखाने जा रही है। शिमला की ही सुषमा ठाकुर के बाद अब रेणुका सिंह ठाकुर टीम इंडिया का हिस्सा होंगी। उन्हें आस्ट्रेलिया के खिलाफ होने जा रही टी-20 शृंखला के लिए भारतीय महिला क्रिकेट टीम में चुना गया है। वह पहली बार किसी अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट टूर्नामेंट के लिए चुनी गई हैं। रेणुका का जन्म हिमाचल के शिमला जिले के रोहुडूं के पारसा गांव में हुआ है। रेणुका जब तीन साल की थी, तब उनके पिता का निधन हो गया था। अब वह अपने पिता का सपना पूरा करन जा रही हैं। उनके पिता केहर सिंह चाहते थे कि उनकी बेटी क्रिकेटर बने। मीडिया से बातचीत में रेणुका ने बताया कि यह उनके लिए यह काफी भावुक क्षण है। उनके पिता को क्रिकेट से काफी प्यार था।
कल्पना चावला अंतरिक्ष में जाने वाली भारतीय मूल की पहली महिला थी और अब सिरीशा बांदला अंतरिक्ष में जाने वाली भारतीय मूल की दूसरी महिला बनने जा रही है। कल्पना चावला के बाद सिरीशा ने भी इतिहास दर्ज कर लिया है। सिरीशा भारत के आंध्र प्रदेश से संबंध रखती है। सिरीशा बांदला का जन्म तेनाली, गुंटूर, आंध्र प्रदेश में हुआ था। मिली जानकारी के अनुसार सिरीशा ह्यूस्टन, टेक्सस में पली-बढ़ी है। अंतरिक्ष के बारे में और ज़्यादा जानने के लिए सिरीशा ने Purdue University से Aeronautical-Astronautical Engineering में बैचलर्स की पढ़ाई की। इसके बाद उन्होंने George Washington University से MBA किया। सिरीशा बांदला अंतरिक्ष यात्रा करने वाली भारतीय मूल की दूसरी महिला बनने वालीं है। 11 जुलाई को भारतीय मूल की ये बेटी अंतरिक्ष में जाएगी। अंतरिक्ष में जाने वाली पहली महिला कल्पना चावला के बाद सिरीशा बांदला ये उपलब्धि हासिल करने वाली दूसरी महिला हैं। सिरीशा VSS Unity के 6 अंतरिक्षयात्रियों में से एक है जो बतौर रिसर्चर इस मिशन से जुड़ी हैं. सिरीशा ने अपने ट्विटर हैंडल पर ये ख़ुशख़बरी सभी के साथ साँझा की। ये मिशन Branson's Company द्वारा किया जा रहा है जिसकी सुचना बीते गुरुवार को कंपनी ने साँझा की। इस मिशन में कंपनी के फ़ाउंडर, रिचर्ड ब्रैन्सन भी हिस्सा लेंगे। इस मिशन का रॉकेट न्यू मेक्सिको से लॉन्च किया जाएगा और ये इस कंपनी की पहली फ़्लाइट होग। सिरीशा के दादा, Bandla Ragaiah कृषि वैज्ञानिक हैं। The New Indian Express से बातचीत में उन्होंने बताया कि सिरीशा को बचपन से ही कुछ बड़ा करने की इच्छा थी। कड़ी मेहनत के बाद उसका सपना सच होने वाला है। पोती पर गर्व महसूस करने वाले दादा ने बताया कि सिरीशा बचपन से ही निडर थी और हमेशा एक्टिव रहती थी। 5 साल की उम्र में वो अपने माता-पिता के साथ अमेरिका चली गयी थी. सिरीशा के पिता Dr. Bandla Muralidhar भी एक वैज्ञानकि हैं. सिरीशा बांदला, कमरशियल स्पेसफ़्लाइट फ़ेडरेशन और एल-3 कम्युनिकेशन्स में बतौर एरोस्पेस इंजीनियर काम कर चुकी हैं। अमेरिकन एस्ट्रोनॉटिकल सोसाइटी और सिरीशा फ़्यूचर स्पेस लीडर्स फ़ाउंडेशन के बोर्ड ऑफ़ डायरेक्टर्स की सदस्य भी हैं।
Mount Everest Climber Amit Kumar Negi called on Chief Minister Jai Ram Thakur here today and shared his experiences with the Chief Minister that he has faced during Everest expedition. Chief Minister appreciated his feat and said that this was an inspiration to the young generations. He said that it was a matter of pride for all of us that youth were coming forward to face the uphill challenges boldly thereby bringing laurels to the State. Amit Kumar Negi, hails from Kinnaur district of the State, has climbed the IMF Mount Everest in May, 2021. Earlier he had also undertaken Pre-Everest Expedition through NCC to Deo-Tibba with effect from 30th May, 2012 to 6th July, 2012. He had also climbed Mount Trishul and attended the Alpine Climbing Camp from 7th to 26th January this year. Secretary Youth Services and Sports S.S. Guleria was also present on the occasion.
हिमाचल प्रदेश के सोलन की बेटी बलजीत कौर ने माउंट एवरेस्ट समूह की पुमोरी चोटी पर फतह हासिल की है। अपने इस पर्वतारोहण अभियान के बाद बलजीत कौर रविवार को सोलन पहुंचेंगी। बलजीत और उनकी साथी पर्वतारोही राजस्थान की गुणबाला शर्मा 7161 मीटर ऊंची चोटी पुमोरी पर विजय हासिल करने वाली पहली भारतीय महिलाएं बन गई हैं। 12 मई की सुबह 8.40 पर पहले बलजीत कौर पुमोरी चोटी पर पंहुची और उसके कुछ ही देर बाद गुणबाला शर्मा भी शिखर पर पहुंचीं। बलजीत के साथ नूरी शेरपा और गुणबाला के साथ गेलू शेरपा ने इस अभियान को पूरा किया। पुमोरी चोटी एवरेस्ट पर्वत श्रृंखला की कठिन चोटी है और सोलन की बलजीत ने इस पर विजय हासिल करने वाली पहली भारतीय महिला होने का गौरव हासिल किया है। इससे पहले 10 मई को दो भारतीय पुरुषों कुल्लू के हेमराज और स्तेंजिन नोरबो ने भी पहले भारतीय युगल के रूप में पुमोरी को फतह किया था।
भारत के अनुभवी निशानेबाज संजीव राजपूत और तेजस्विनी सावंत ने आईएसएसएफ विश्व कप में 50 मीटर राइफल थ्री पोजिशंस मिश्रित टीम स्पर्धा में स्वर्ण पदक जीता। भारतीय जोड़ी ने उक्रेन के सेरही कुलीश और अन्ना इलिना को 31-29 से हराया। यह भारत का 11वां स्वर्ण पदक था। ऐश्वर्य प्रताप सिंह तोमर और सुनिधि चौहान ने कांस्य पदक जीता। उन्होंने अमेरिका के तिमोथी शेरी और वर्जिनिया थ्रेशर को 31-15 से मात दी। राजपूत और सावंत एक समय 1-3 से पीछे थे, लेकिन फिर 5-3 से बढत बना ली। इसके बाद भी विरोधी टीम ने वापसी का प्रयास किया, लेकिन भारतीय जोड़ी ने उन्हें कामयाब नहीं होने दिया। क्वालिफिकेशन में राजपूत और सावंत 588 अंक लेकर शीर्ष पर रहे थे। दोनों ने 294 अंक बनाए। तोमर और चौहान 580 अंक लेकर चौथे स्थान पर रहे थे और कांस्य पदक का मुकाबला खेला।
हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा जिले के गांव घरोह निवासी प्रभात ठाकुर ने बेहतरीन आविष्कार किया है। उन्होंने बिना रिमोट के उड़ने वाला पहला स्वदेशी ड्रोन बनाया है। यह ड्रोन गूगल मैप की मदद से जगह को तलाश कर वहां दवाइयां और जरूरी सामान पहुंचाएगा। प्रभात ठाकुर ने 100 फीसदी आटोमेटिक फीचर वाला स्वदेशी ड्रोन तैयार किया है। यह ड्रोन पूरी तरह से ऑटोमेटिक है। यह पहाड़ी राज्यों के दुर्गम क्षेत्रों में भी दवाइयां और सामान पहुंचाने में काफी मददगार होगा। इसकी खास बात यह है कि अगर बीच रास्ते में ड्रोन की बैटरी खत्म हो जाए या सिग्नल टूट जाए तो जहां से उड़ान भरी थी, वहां यह खुद सुरक्षित पहुंच जाएगा। कोर इलेक्ट्रॉनिक्स क्षेत्र के विशेषज्ञ प्रभात ठाकुर का यह स्वदेशी ड्रोन केंद्र सरकार के इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय की स्वदेशी माइक्रो प्रोसेसर चैलेंज प्रतियोगिता में शामिल हुआ था। प्रभात ठाकुर ने बताया कि प्रतियोगिता के पहले चरण में देश की करीब 6000 कंपनियों ने हिस्सा लिया था। अगली प्रतियोगिता टॉप 25 के लिए है। टॉप 100 में पहुंचने पर केंद्र सरकार के इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय ने उन्हें एक लाख रुपये की राशि बतौर इनाम दी। इस राशि का इस्तेमाल प्रभात टॉप 25 के लिए प्रोजेक्ट पर काम करने में खर्च करेंगे। प्रभात 3 वर्षों से इस ड्रोन पर मेहनत कर रहे हैं।
स्टार स्प्रिंटर हेमा दास को शुक्रवार को मुख्यमंत्री सर्वानंद सोनोवाल की मौजूदगी में असम पुलिस के उप-अधीक्षक के रूप में शामिल किया गया। डीएसपी के रूप में अपने प्रेरण के बाद सभा को संबोधित करते हुए, 21 वर्षीय हेमा ने कहा कि जब वह छोटी थी, तब उसने पुलिस अधिकारी बनने का सपना देखा था। हिमा ने इसे बचपन का सपना सच होने जैसा बताया। उसने कहा कि 'यहां लोगों को पता है। मैं कुछ अलग नहीं कहने जा रही। स्कूली दिनों से ही मैं पुलिस अधिकारी बनना चाहती थी और यह मेरी मां का भी सपना था।' उन्होंने कहा उनकी माँ उन्हें दुर्गापूजा के दौरान खिलौने में बंदूक दिलाती थी। मां कहती थी कि मैं असम पुलिस की सेवा करूं और अच्छी इंसान बनूं।' हेमा को राज्य सरकार के शीर्ष अधिकारियों के साथ-साथ पुलिस विभाग के महानिदेशक सहित एक समारोह में एक पूर्व केंद्रीय खेल मंत्री सोनोवाल ने नियुक्ति पत्र सौंपा था।
हिमाचल प्रदेश के हमीरपुर जिला की सातवीं कक्षा में पढ़ने वाली दीक्षा ठाकुर ने स्मार्ट वॉशरूम तैयार किया है। 13 साल की स्कूली छात्रा ने अपने मॉडल के जरिए 16 वर्ग फुट के छोटे बाथरूम क्षेत्र में स्क्वॉट टॉयलेट शीट को यूरोपीय टॉयलेट शीट की तर्ज पर प्रयोग करने मिनी वॉशिंग मशीन और गर्म पानी की सुविधाएं प्रदान की हैं। स्मार्ट बाथरूम की स्क्वॉट टॉयलेट शीट के साथ दीवार पर एक फ्रेम स्थापित की गई है जिसे अपनी सुविधा के अनुसार यूरोपियन शीट के तौर पर प्रयोग में लाया जा सकता है। यही नहीं स्क्वॉट टॉयलेट शीट पर ढक्कन लगाकर वॉशरूम के पूरे क्षेत्र को नहाने और कपड़े धोने के लिए भी प्रयोग में लाया जा सकता है। बता दें कि दीक्षा ने इस स्मार्ट वॉशरूम की टॉयलेट फ्लश को भी बहुपयोगी बना दिया है। फ्लश में मिनी वॉशिंग मशीन और मिनी गीजर की तर्ज पर गर्म पानी की व्यवस्था भी की गई है। छात्रा ने मिनी वॉशिंग मशीन में कपड़े धोने के लिए घूमने वाला पहिया और गर्म पानी के लिए फ्लश में फिलामेंट भी स्थापित किया है। छोटे साइज के बाथरूम में लोग रोजमर्रा के नहाने और कपड़े धोने के कार्य कर सकते हैं। दीक्षा ठाकुर का स्मार्ट वॉशरूम मॉडल जिला के बाद प्रदेश स्तर पर इंस्पायर मानक अवार्ड में भी अव्वल आया है। अब दीक्षा का यह मॉडल राष्ट्रीय स्तर की प्रतियोगिता के लिए चयनित हुआ है। दीक्षा के पिता संजीव ठाकुर सरकारी स्कूल में अध्यापक हैं।
झारखंड के सरायकेला-खरसावां जिले के बीरबांस गांव की रहने वाली छुटनी देवी को समाज सेवा के लिए आज पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित किया गया है। एक समय ऐसा भी था कि घर वालों ने डायन के नाम पर न सिर्फ उन्हें प्रताड़ित किया, बल्कि घर-गांव से बेदखल कर दिया गया था। तब पति ने भी साथ छोड़ दिया था। वह आठ महीने तक अपने 4 बच्चों को लेकर दर-दर भटकती रही, सोने को चार दीवारी न मिली तो पेड़ के नीचे ही रात काटी। आज वह अपने ही जैसी असंख्य महिलाओं की ताकत बन गई है। छुटनी महतो सरायकेला खरसावां जिले के गम्हरिया प्रखंड की बिरबांस पंचायत के भोलाडीह गांव में रहती हैं। गांव में ही एसोसिएशन फॉर सोशल एंड ह्यूमन अवेयरनेस (आशा) के सौजन्य से संचालित पुनर्वास केंद्र चलाती है। वह बतौर आशा की निदेशक (सरायकेला इकाई) यहां कार्यरत है। छुटनी कहती हैं कि शादी के 16 साल बाद 1995 में एक तांत्रिक के कहने पर उसे गांव ने डायन मान लिया था। इसके बाद उसे मल खिलाने की कोशिश की थी। पेड़ से बांधकर पिटाई की गई। जब लोग उसकी हत्या की योजना बना रहे थे, पति को छोड़कर चारों बच्चों के साथ गांव छोड़कर चली गई। इसके बाद आठ महीने तक जंगल में रहीं। गांव वालों के खिलाफ केस करने गईं, पर पुलिस ने भी मदद नहीं की, लेकिन अब कोई किसी महिला को डायन बताकर प्रताडि़त नहीं कर सकता। उन्होंने अपनी जैसी पीड़ित 70 महिलाओं का एक संगठन बनाया है, जो इस कलंक के खिलाफ लड़ रहा है। छुटनी देवी न सिर्फ इस कुप्रथा के खिलाफ अभियान चला रही हैं, बल्कि अपने सामर्थ्य और निजी खर्च से प्रतिदिन 15-20 गरीब और डायन प्रथा से पीड़ित महिलाओं को अपने घर पर भोजन भी कराती हैं। इस अंधविश्वास के खिलाफ आंदोलन चला रहे संगठनों के लिए वह आदर्श हैं।
हिमचाल प्रदेश के हमीरपुर के रहने वाले करतार सिंह को पद्मश्री अवार्ड से सम्मानित किया गया है। उन्हें ये अवार्ड बांस की कलाकृतियां बनाने के लिए मिला है। प्रधानमंत्री कार्यालय से उनके नाम का चयन होने की सूचना करतार को सोमवार दोपहर बाद मिली है। अवार्ड की सूचना मिलने के बाद करतार सिंह के परिवार में खुशी का माहौल है। बता दें, करतार सिंह हमीरपुर के नादौन की ग्राम पंचायत नौहंगी के रहने वाले हैं। वह मार्च 2019 में ही एनआईटी हमीरपुर से सेवानिवृत्त हुए हैं। करतार सिंह बांस पर कलाकृतियां बनाकर विलुप्त हो रही कला को संजोए रखने के प्रयास में जुटे हैं। करतार को बांस से भगवान की मूर्तियां, एफिल टावर, ताज महल जैसी कलाकृतियां बनाने के लिए जाना जाता है। हाल ही में लॉकडाउन में उन्होंने पीएम मोदी सहित कई हस्तियों की बांस से कलाकृति बनाकर उसे बोतल में बंद कर दिया था। करतार को बचपन से ऐसे मॉडल बनाने का शौक है। अपने शौक को पूरा करने के लिए वह बांस की कलाकृतियां बनाकर प्रदर्शनियां भी लगाते हैं। हाल ही में प्रदेश सरकार ने पद्मश्री अवार्ड के लिए केंद्र सरकार को उनका नाम भेजा था। करतार सिंह को इससे पूर्व एशिया बुक ऑफ रिकॉर्ड्स की ओर से ग्रैंडमास्टर का खिताब मिल चुका है। उनके नाम बांस के टुकड़ों से बोतल के भीतर मंदिर बनाने का रिकॉर्ड दर्ज है।
गणतंत्र दिवस के मौके पर हिमाचल प्रदेश पुलिस के एडीजी सीआईडी एन वेणुगोपाल समेत पांच पुलिस अधिकारियों को पुरस्कृत किया गया है। एडीजी सीआईडी को विशिष्ट सेवाओं के लिए राष्ट्रपति का पुलिस पदक मिला है। सराहनीय सेवाओं के लिए एसपी विजिलेंस ओमापति जम्वाल, एसपी वेलफेयर पीएचक्यू भगत सिंह ठाकुर, पीटीसी डरोह में तैनात सब इंस्पेक्टर सतपाल और एक एचपीएपी जुन्गा में तैनात एचएचसी राजेंद्र कुमार को पुलिस पदक से नवाजा गया है। वेणुगोपाल ने 25 साल के सेवाकाल के दौरान कई बड़े मामलों में अहम भूमिका अदा की। सहायक पुलिस अधीक्षक कांगड़ा रहते हुए उन्होंने फर्जी शस्त्र लाइसेंस स्कैंडल, अवैध विदेशी नकदी रैकेट जैसे मामलों की बेहतरीन जांच की, जिसकी वजह से बाद में आरोपियों को ट्रायल कोर्ट से सजा भी हुई। 1999 में किन्नौर में भीषण बाढ़ के दौरान बतौर एसपी किन्नौर वेणुगोपाल ने बचाव कार्य की कमान खुद अपने हाथों में रखी और लोगों को बचाने के लिए मुश्किल हालात में भी टीम के साथ तीन महीने तक डटे रहे।
'नायक' फिल्म तो सभी ने देखि होगी। आज उत्तराखंड में भी नायक फिल्म की कहानी को दोहराया जा रहा है। अनिल कपूर के रील लाइफ किरदार को रियल लाइफ में एक लड़की ने उतरा है। नैशनल गर्ल्स चाइल्ड डे पर हरिद्वार की सृष्टि गोस्वामी उत्तराखंड की एक दिन की सीएम बनाया गया है। खुद मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने देहरादून में बाल विधानसभा सत्र के आयोजन के दौरान सृष्टि को सीएम पद की जिम्मेदारी सौंपी। इसके बाद, सृष्टि ने राज्य सरकार द्वारा संचालित विभिन्न योजनाओं की समीक्षा के लिए एक आधिकारिक बैठक में भाग लिया। इन योजनाओं में अटल आयुष्मान योजना, स्मार्ट सिटी परियोजना, पर्यटन विभाग की होमस्टे योजना और अन्य विकास परियोजनाएं शामिल हैं। बैठक के दौरान मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत भी मौजूद थे। इसके अलावा विधानसभा में बैठक भी की जाएगी। आपको बता दें कि इस दौरान सृष्टि सूबे के सभी विकास कार्यों की भी समीक्षा करेंगी। इसके लिए नामित विभाग के अधिकारी विधानसभा में पांच-पांच मिनट अपनी प्रजेंटेशन देंगे। सृष्टि भी बाल विभाग पर प्रेजेंटेशन देंगी। कौन है सृष्टि गोस्वामी? 19 साल की सृष्टि दौलतपुर की रहने वाली है और वह बीएसएम पीजी कॉलेज से बीएससी एग्रीकल्चर की पढ़ाई कर रही है। सृष्टि के पिता एक छोटी सी दुकान से घर परिवार का पेट पालते हैं और वहीं उनकी माता आंगनवाड़ी में काम करती हैं। सृष्टि हमेशा से समाज को बदलने की सोच रखती है और इसके लिए वह लड़कियों को शिक्षा देने का काम भी करती हैं और बाकी लड़कियों को इसके लिए प्रेरित भी करती है। इतना ही नहीं इससे पहले 2018 में भी सृष्टि को उत्तराखंड में बाल सभा के कानून निर्माता के रूप में चुना गया था और साल 2019 में, वह लड़कियों के अंतर्राष्ट्रीय नेतृत्व में भाग लेने के लिए थाईलैंड भी गई थीं। वह दो साल से 'आरंभ' नामक योजना चला रही हैं। इसमें इलाके के गरीब बच्चों खासकर लड़कियों को पढ़ाई के लिए प्रेरित कर रही हैं।
देश की चार बेटियाँ इतिहास रचने को तैयार है। यह पुरे देश के लिए गर्व की बात है। पहली बार चार महिला चालकों का दल 16 हजार किलोमीटर लंबी उड़ान पूरा करेगा। शनिवार को उत्तरी ध्रुव के ऊपर से दुनिया का सबसे लंबा हवाई सफर पूरा कर इतिहास रचेंगी। एयर इंडिया के दिल्ली बेस पर तैनात कैप्टन ज़ोया अग्रवाल सैन फ्रांसिस्को से बंगलूरू आने वाले इस विमान के महिला चालक दल का नेतृत्व करेंगी। इस दाल में उनके साथ कैप्टन तनमई पपागिरी, कैप्टन आकांक्षा सोनावने और कैप्टन शिवानी मन्हास शमिल है। एयर इंडिया के अधिकारी ने बताया कि उत्तरी ध्रुव के ऊपर से होकर गुजरने वाला पोलर रूट चुनौतियों से भरा है। विमानन कंपनियां इस पर अपने सबसे कुशल और अनुभवी पायलट को ही भेजती हैं। एयर इंडिया ने इस बार यह जिम्मेदारी बेटियों को सौंपी है। बता दें कि कैप्टन ज़ोया 2013 में बोइंग 777 उड़ाने वाली दुनिया की सबसे युवा महिला पायलट बनीं थीं। अब यह नया कीर्तिमान उनकी दूसरी बड़ी उपलब्धि होगी।
हिमाचल प्रदेश की शिमला जिला की एक युवा ऑलराउंडर भारतीय महिला क्रिकेट टीम में चुनी गई है। शिमला के ठियोग की रहने वाली तनुजा कंवर का चयन जनवरी 2021 में ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ होने वाली वनडे श्रृंखला के लिए हुआ है। बता दें 2021 में जनवरी में या वनडे सीरीज खेली जाएंगी। आस्ट्रेलिया में जनवरी के अंतिम सप्ताह में तीन एकदिवसीय मुकाबले खेले जाएंगे। कौन है तनुजा? तनुजा जन्म 28 जनवरी 1998 में हुआ था और वह 22 साल की हैं। वह शिमला के ठियोग के बलग के साथ कुठार गांव की रहने वाली हैं। तनुजा के सपनों की शुरुआत एचपीसीए से हुई। उन्होंने क्रिकेट की बारीकियां यहां सीखी और इसके बाद उनका चयन धर्मशाला स्थित एचपीसीए की क्रिकेट एकेडमी के लिए हुआ। तनुजा ने अपनी दसवीं की पढ़ाई कुठार से की और 2011 में क्रिकेट अकादमी में आने के बाद जमा दो की पढ़ाई गर्ल्स स्कूल धर्मशाला से की। उन्होंने अपनी स्नातक की पढ़ाई अमृतसर कॉलेज से की है। इससे पहले तनुजा, हिमाचल किक्रेट टीम, भारतीय महिला टीम-ए, इंडिया-बी जैसी टीमों का हिस्सा रह चुकी हैं। तुनजा दाहिने हाथ से बल्लेबाजी और मध्यम गति की गेंदबाद भी हैं।
MDH सिर्फ एक नाम नहीं हैं ये भारत के स्वाद की पहचान है। सालों से MDH का चेहरा महाशय धर्मपाल गुलाटी आज इस दुनिया को छोड़ कर चले गए हैं। उनके निधन से पूरा देश शोकाकुल है। आजादी के बाद भारत में वह शरणार्थी के रूप में आए थे और पिछले साल वह आईआईएफएल हुरुन इंडिया रिच 2020 की सूची में शामिल भारत के सबसे बुजुर्ग अमीर शख्स थे। उनका सफलता की ऊंचाइयों का सफर बहुत ही दिलचस्प है। MDH की शुअरुआत पाकिस्तान के सियालकोट में साल 1922 में एक छोटी सी दुकान से हुई। उनके पिता एमडीएच के संस्थापक महाशय चुन्नी लाल गुलाटी थे। महाशय धर्मपाल का जन्म 27 मार्च, 1923 को सियालकोट में हुआ था। साल 1933 में, उन्होंने 5वीं कक्षा की पढ़ाई पूरी करने से पहले ही स्कूल छोड़ दी और दुकान में अपने पिता का हाथ बटाना शुरू कर दिया। फिर जब 1947 में देश का विभाजन हुआ, धर्मपाल गुलाटी परिवार सहित पाकिस्तान से भारत चले आए। परिवार ने कुछ समय अमृतसर में एक शरणार्थी शिविर में बिताया था, फिर काम की तलाश में वह दिल्ली आ गए थे। दिल्ली में परिवार का पेट पालना आसान नहीं था। कहा जाता है, जब वह भारत आए थे उस समय उनके पास केवल 1500 रुपए ही बचे थे। उन पैसों से उन्होंने 650 रूपए में घोड़ा और तांगा खरीदकर रेलवे स्टेशन पर चलाना शुरू किया। जब उन्होंने दुकान खोलने के लिए पर्याप्त पैसे बचा लिए तो उन्होंने तांगा अपने भाई को दे दिया और खुद करोलबाग की अजमल खां रोड पर मसाले बेचना शुरू कर दिया। धर्मपाल के मसाले की दुकान के बारे में जब लोगों को यह पता चला कि सियालकोट के देगी मिर्च वाले अब दिल्ली में हैं, उनका कारोबार फैलता चला गया। बता दें सियालकोट में महाशियन दी हट्टी नाम से उनका पारिवारिक कारोबार, देगी मिर्च वाले के नाम से भी मशहूर था। फिर 1953 में उन्होंने तांगा बेचकर चांदनी चौक में एक दुकान किराए पर ले ली। इस दुकान का नाम उन्होंने महाशिया दी हट्टी (एमडीएच) रखा था। 1959, गुलाटी परिवार ने राजधानी दिल्ली के कीर्ति नगर में मसालों की सबसे पहली फैक्ट्री खोली। इसके बाद उन्होंने करोल बाग में अजमल खां रोड पर ऐसी ही एक और फैक्ट्री डाली। 60 के दशक में एमडीएच करोल बाग में मसालों की मशहूर दुकान बन चुकी थी। यहां से इनका बिजनेस बढ़ने लगा था। धीरे-धीरे धर्मपाल गुलाटी के मसाले लोगों को इतने पसंद आने लगे कि इनका निर्यात दुनियाभर में होने लगा। आज यह 100 से भी अधिक देशों में इस्तेमाल किया जाता है। 5400 करोड़ की संपत्ति के साथ धर्मपाल गुलाटी आईआईएफएल हुरुन इंडिया रिच 2020 की सूची में शामिल भारत के सबसे बुजुर्ग अमीर शख्स थे। इस सूची में उन्हें 216 वें स्थान पर रखा गया था। 25 करोड़ का वेतन पाने वाले धर्मपाल गुलाटी यूरोमॉनिटर के मुताबिक एफएमसीजी सेक्टर में सबसे अधिक वेतन पाने वाले सीईओ बन चुके थे। उम्र के इस पड़ाव पर भी वह बहुत सक्रिय थे और हर दिन एमडीएच के कारखाने, बाजार और डीलर के पास हर रोज जाते थे।
भारत की वो पहली महिला जो समाज की बंदिशों को पीछे छोड़ अपने सपनों को छूने में कामयाब हुई, वो महिला जो आने वाली कई पीढ़ियों के लिए मिसाल बनी, वो महिला जिन्हे भारत की पहली महिला वकील बनने का गौरव प्राप्त है l आज हम आपको बताएंगे एक ऐसी महिला की कहानी जिन्हे आज भी महिलाओं के लिए एक आदर्श के तौर पर याद किया जाता है l भारत की पहली महिला वकील,(वास्तव में, किसी भी ब्रिटिश विश्वविद्यालय में अध्ययन करने वाली पहली भारतीय राष्ट्रीय) कॉर्नेलिया सोराबजी l कॉर्नेलिया सोराबजी ने बॉम्बे यूनिवर्सिटी से ग्रेजुएशन करने के बाद ऑक्सपोर्ड से वकालत की पढ़ाई की थी l खास बात तो ये है कि आजादी के पहले जब कॉर्नेलिया ने वकालत की उस समय भारत में किसी भी महिला का उच्च शिक्षा में पढ़ना इतना आसान नहीं था। लेकिन कॉर्लेनिया ने वकालत की पढ़ाई कर सारे बंधनों को तोड़ा। जनम व शुरूआती जीवन कार्नेलिया सोराबजी का जन्म 15 नवम्बर 1866 को नासिक के एक पारसी परिवार में हुआ था। सोराबजी समाज सुधारक होने के साथ-साथ एक लेखिका भी थीं। कार्नेलिया के लिए कहा जाता है कि इनकी वजह से देश में महिलाओं को वकालत का अधिकार मिला था। 1892 में नागरिक कानून की पढ़ाई के लिए विदेश गयीं और 1894 में भारत लौटीं. उस समय समाज में महिलाएं मुखर नहीं थीं और न ही महिलाओं को वकालत का अधिकार था, मगर कॉर्नेलिया में वकील बनने के जूनून को कोई नहीं दबा पाया l सोराबजी के पिता एक मिशनरी थे, कहते है कि बंबई विविद्यालय को एक महिला को डिग्री कार्यक्रम में दाखिला देने के लिए मनाने में उनके पिता की अहम भूमिका थी l सोराबजी की मां एक प्रभावशाली महिला थीं और उन्होंने कई सामाजिक कार्यों में हिस्सा लिया था l उन्होंने पुणे में कई गर्ल्स स्कूल भी खोले l सोराबजी के कई शैक्षिक और करियर संबंधी फैसलों पर उनकी मां का प्रभाव रहा l सोराबजी का छह जुलाई 1954 को देहांत हो गया. अपने अधिकार के लिए किया संघर्ष परीक्षा में सबसे ज्यादा अंक पाने के बावजूद उन्हें महिला होने के नाते स्कॉलरशिप से दूर रखा गया। ग्रेजुएशन की पढ़ाई पूरी करने के बाद उनके लिए ऑक्सफोर्ड जाकर पढ़ना मुश्किलों भरा था। तब कुछ अंग्रेज महिलाओं की मदद से उनके लिए फंड का इंतजाम किया गया और कॉर्नेलिया वकालत की पढाई के ऑक्सफोर्ड पहुंची। 1892 में कॉर्नेलिया ने बैचलर ऑफ सिविल लॉ की परीक्षा पास करने वाली पहली महिला बनीं। लेकिन कॉलेज ने उन्हें डिग्री देने से मना कर दिया। क्योंकि उस काल में महिलाओं को वकालत के लिए रजिस्टर करने और प्रेक्टिस की इजाजत नहीं थी। लेकिन कॉर्नेलिया ने हार नही मानी। भारत लौटकर वापस आने के बाद वो महिलाओं को न्याय दिलाने के लिए मदद करने लगीं। काफी अथक परिश्रम के बाद कार्नेलिया को सफलता हाथ लगीं। वकालत के दौरान कार्नेलिया ने 600 से ज्यादा महिलाओं को कानूनी सलाह दी। 1922 में लंदन बार ने महिलाओं को कानून की प्रैक्टिस करने की आज्ञा दी। तब कार्नेलिया को कानून की डिग्री हासिल हुई। कार्नेलिया कलकत्ता हाईकोर्ट में बैरिस्टर बन कानून की प्रैक्टिस करने वाली पहली महिला बनीं। कानूनी करियर 1894 में भारत लौटने पर, सोराबजी ने पर्दानाशीन महिलाओं की ओर से सामाजिक और सलाहकार कार्य में शामिल हो गयीं, जिन्हें बाहर पुरुष दुनिया के साथ संवाद करने से मना किया गया था, कई मामलों में इन महिलाओं की काफी संपत्ति होती थी, लेकिन उनकी रक्षा के लिए आवश्यक कानूनी विशेषज्ञता तक पहुंच नहीं थी। सोराबजी को काठियावाड़ और इंदौर के शासकों के ब्रिटिश एजेंटों से पर्दानशीन की ओर से अनुरोध करने के लिए विशेष अनुमति दी गई थी, लेकिन वह एक महिला के तौर पर अदालत में उनकी रक्षा करने में असमर्थ थीं, उन्हें भारतीय कानूनी व्यवस्था में पेशेवर ओहदा प्राप्त नहीं था। इस स्थिति का समाधान करने की उम्मीद में, सोराबजी ने 1897 में बॉम्बे यूनिवर्सिटी की एलएलबी परीक्षा के लिए खुद को प्रस्तुत किया और 1899 में इलाहाबाद उच्च न्यायालय के वकील की परीक्षा में भाग लिया। फिर भी, उनकी सफलताओं के बावजूद, सोरबजी को वकील के तौर पर मान्यता नहीं मिली l एक लम्बी जद्दोजहद के बाद 1924 में महिलाओं को वकालत से रोकने वाले कानून को शिथिल कर उनके लिए भी यह पेशा खोल दिया गया। 1929 में कार्नेलिया हाईकोर्ट की वरिष्ठ वकील के तौर पर सेवानिवृत्त हुयीं पर उसके बाद महिलाओं में इतनी जागृति आ चुकी थी कि वे वकालत को एक पेशे के तौर पर अपनाकर अपनी आवाज मुखर करने लगी थीं। यद्यपि 1954 में कार्नेलिया का देहावसान हो गया, पर आज भी उनका नाम वकालत जैसे जटिल और प्रतिष्ठित पेशे में महिलाओं की बुनियाद है। लंदन में है प्रतिमा 2012 में, लंदन के लिंकन इन में उनकी प्रतिमा का अनावरण किया गया था l
लाहौल स्पीति। लाहौल के रलिंग गाँव के किसान सुनील कुमार पेशे से किसान और शिक्षा ग्रेजुएट है। जैविक खेती के जरिए कुछ नए प्रयोगों की बदौलत सुनील कुमार ने 17.2 किलो की एक गोभी तैयार किया। उनके प्रयोगों से 17 किलो की एक गोभी की खबर ने देश के कृषि विश्वविद्यालय और कृषि अनुसंधान केंद्र के वैज्ञानिकों को भी हैरान परेशान कर दिया है। किसान कहते हैं की उनके परिवार ने शुरुआत से ही जैविक खेती पर ध्यान दिया। अमूमन गोभी का फूल दो किलो का होता है, लेकिन उन्होंने इस साल 17.2 किलो का उगाया है।
पहले यह 6 साल में बनने वाली थी ये टनल, पर वक्त 4 साल और बढ़ गया अटल टनल की नीव पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने 23 मई, 2002 को रखी थी और बाद में पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी द्वारा जून 2010 को पुनर्निर्मित किया गया। मनाली में अटल रोहतांग का निर्माण कार्य 28 जून 2010 को शुरू हुआ था। उस समय मनाली के उत्तर में 30 किमी दक्षिण पोर्टल पर हिमालय पर्वतमाला के माध्यम से रोहतांग सुरंग की ड्रिलिंग शुरू हुई। जून 2012 तक, सुरंग की खुदाई 0.56 किमी तक हो चुकी थी पर अगले एक साल में पानी की भारी कमी के कारण अटल सुरंग की खुदाई में थोड़ी ही प्रगति हो पाई। सितम्बर 2014 तक पहुंचते-पहुंचते अटल टनल की आधी खुदाई हो चुकी थी। 2014 में रोहतांग टनल को 5 किलोमीटर तक खोद लिया गया। फिर 13 अक्टूबर 2017 को सुरंग के दोनों छोर मिल गए। वह सर्दियों का समय था व रोहतांग दर्रा भारी बर्फबारी और बर्फानी तूफान के कारन बंद था। 22 नवंबर 2017 को फैसला लिया गया की अटल टनल को केवल गंभी स्थितियों में एम्बुलेंस की आवाजाही के लिए इस्तेमाल किया जाएगा। फिर 2019 में अटल टनल में बस सेवा का ट्रायल शुरू हुआ। 44 यात्रियों को लेकर हिमाचल रोड ट्रांसपोर्ट कॉरपोरेशन की बस ने दक्षिण पोर्टल से सुरंग में प्रवेश किया और उत्तरी पोर्टल से निकली। लाहौल और स्पीति घाटियों के निवासियों के लिए अगले पांच सर्दियों के महीनों में यह बस सेवा दिन में एक बार चली। प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने 25 दिसंबर 2019 को वाजपेयी के जन्मदिन पर उनके सम्मान में इस सुरंग का नाम रोहतांग टनल से बदलकर अटल सुरंग रखा। 3 अक्टूबर 2020, आखिरकार यह टनल बन कर तैयार हो गई और प्रधानमंत्री ने इसे देश को समर्पित कर दिया। 2010 में शुरू हुए इस अटल टनल प्रोजेक्ट की लागत 1,700 रुपये थी जो 2020 तक पहुंचते-पहुंचते 3,200 करोड़ रुपये हो गई। 10,000 फीट से ज्यादा लंबी है अटल सुरंग यह टनल 10,000 फीट से ज्यादा लंबी है। मनाली से लेह को जोड़ने वाली यह अटल टनल दुनिया की सबसे लंबी हाइवे टनल है। 9.02 किमी की लंबाई पर, सुरंग भारत की सबसे लंबी सड़क सुरंगों में से एक है और मनाली और लेह के बीच की दूरी 46 किमी तक कम कर देगी जिससे आवाजाही 4 घंटे के समय की बचत होगी। क्या है सुरक्षा के उपाय इसमें हर 60 मीटर की दूरी पर CCTV कैमरे लगाए गए हैं और दोनों छोरों पर निगरानी कक्ष भी हैं। इतना ही नहीं सुरंग के भीतर हर 500 मीटर की दूरी पर इमर्जेंसी एग्जिट भी बनाए गए हैं। एक और सुरक्षा विशेषता यह है कि सुरंग के अंदर आग को 200 मीटर के क्षेत्र में नियंत्रित किया जाएगा। किसी भी प्रकार की अनहोनी से बचने के लिए इसमें फायर हाइड्रेंट लगाए गए हैं। इसमें दोनों ओर 1-1 मीटर के फुटपाथ भी बनाए गए हैं। सुरंग में आपातकालीन स्थितियों में एक महत्वपूर्ण घोषणा करने के लिए एक सार्वजनिक घोषणा प्रणाली भी है, जिसके लिए नियमित दूरी पर लाउडस्पीकर लगाए गए है।
जिला मण्डी की लेखिका नर्बदा ठाकुर को हाल ही में "काव्य सरिता" में इनके उत्कृष्ट योगदान के लिए उन्हें "काव्य रथी साहित्य सम्मान" से नवाजा गया। इस काव्य संग्रह में पूरे भारत के 48 चयनित रचनाकारों की रचनाएँ लखनऊ उत्तर प्रदेश से प्रकाशित की गई है जिसमें इनकी रचनाएँ भी संकलित है। इससे पहले इनको कोरोना 'साँझा काव्य संग्रह' में योगदान के लिए "कोरोना वरियर" से सम्मानित किया गया है जो आगरा से छप कर आया है। इस काव्य संग्रह में पूरे भारतवर्ष के साथ अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया सहित 108 रचनकारों की काव्य कृतियाँ संकलित है। साथ ही "रेडियो मेरी आवाज" हर हाथ कलम अभियान के ऑनलाइन कवि सम्मेलन में अपनी रचनाएँ प्रस्तुत करने के लिए "अभिनंदन" पत्र से सम्मानित किया गया। अभी जल्द ही इनका तीसरा काव्य संग्रह "एकाक्ष" भी आने वाला है। वर्तमान में रावमावि कोट-तुँगल मे भाषा अध्यापिका के पद पर कार्यरत है और हरघर पाठशाला के माध्यम से कक्षा छठी, सातवीं और कक्षा आठवीं के पूरे हिमाचल से सरकारी विद्यालय में पढ़ रहे बच्चों को ऑनलाइन हिन्दी पढ़ा रही है। इस उपलब्धि के लिए उन्हें इलाके के पूर्व विधायक डी.डी.ठाकुर, ग्राम पंचायत प्रधान कोट काहन सिंह, उप-प्रधान हरि सिंह, इनकी पैतृक ग्राम पंचायत तरनोह के प्रधान चन्द्रमणि, उप-प्रधान रोहित ठाकुर, विद्यालय प्रधानाचार्य पवन कुमार, प्रतिमा कपूर प्रवक्ता रासायन विज्ञान, सूरज भाटिया प्रवक्ता जीव विज्ञान, स्वप्न कुमार प्रवक्ता भौतिक विज्ञान, यशोदा प्रवक्ता हिन्दी, सत्य अध्यापिका कला स्नात्तक, रवि सिंह प्रवक्ता राजनीति विज्ञान, वरिष्ठ सहायक मान सिंह व विद्यालय के समस्त स्टाफ ने बधाई दी है। इन उपलब्धियों के लिए लेखिका नर्बदा ठाकुर ने अपने पिता तुल्य ससुर सेवानिवृत्त रेंज ऑफिसर दलीप सिंह, सासु माँ राजकुमारी, पति दिनेश चौहान का जिन्होने इन कार्य के लिए इन्हे समय दिया, का विशेष धन्यवाद व आभार व्यक्त किया है। साथ ही उन्होंने "काव्य सरिता" की सम्पादकीय टीम, "कोरोना काव्य" की सम्पादकीय, लेखकीय और पाठकीय टीम का, अपने समस्त गुरुजनों, साथियों और भाई-बहनों का विशेष आभार व धन्यवाद किया।
Vandana Yadav, the engineer-turned journalist and writer from Paonta Sahib, Sirmaur, bagged the Her Rising Award 2020. One of the 27 awardees at the mega event organised and hosted online by the Jobs For Her platform, Vandana was acknowledged and celebrated for being a rising leader in the field of education. While accepting her award at the virtual event, Vandana spoke about how women can support each other unconditionally in their professional and personal journeys. She shared how making unconventional choices comes easily to oneself if he/she has identified their passion and are willing to pursue it relentlessly. She added, “Learning must never cease in life because if that happens, life loses all its purpose. Jobs for Her is a profound initiative which has taken a lead in this area and is bringing together wonderful women and helping them rise in their careers.” Currently based in Chandigarh, Vandana comes with a rich journalistic experience with respect to an academic setting. She has been working with top-tier institutes like IIT Gandhinagar, IIM Ahmedabad, EDII, ISB Mohali and more over the past eight years. This is not the first time that she has made the state proud. This year in March, she was also bestowed with the prestigious WEF Exceptional Woman of Excellence Award, 2020 at the annual WEF event held in Cairo, Egypt. The event was held under the auspices of H.E. Abdelfattah El Sisi, President of Egypt, and had brought together over 1,000 women from more than 75 countries who exchanged their experiences and knowledge with each other. Previously, she has been awarded with The Lioness Inspiring Young Woman title by a Hyderabad-based NGO.
For the first time, two women officers have been selected to join as ‘Observers’ (Airborne Tacticians) in the Indian Navy’s helicopter warships stream. This will ultimately pave the way for women in frontline warships. Sub Lieutenant (SLt) Kumudini Tyagi and SLt Riti Singh will be the first women in India to operate from the deck of warships. The two are a part of a group of 17 officers of the Navy, including four women officers and three officers of the Indian Coast Guard, who were awarded ‘Wings’ on graduating as ‘Observers’ at a ceremony held today at INS Garuda. Meanwhile, the Indian Air Force, the first branch of the armed forces to put women in combat roles, is set to deploy a woman pilot to the Ambala-based 17 Squadron that has recently been equipped with the new Rafale aircraft, reports said. The Navy said in a statement that they will, in effect, be the first set of woman airborne combatants to operate from warships. So far, woman officers in the Navy have been restricted to fixed wing aircraft that took off and landed ashore.
The animal trials of Indian Covid19 vaccine ‘COVAXIN’ are successful. The Hyderabad based firm Bharat Biotech announced promising results of tests seen in monkeys given COVAXIN vaccine. The vaccine promises to have a good response to the immune system. The vaccine has now reached the phase 1/2 trials and is now ready for clinical trials. The volunteers have been selected for the clinical trials and the trial will begin AIIMS (Patna). Eighteen volunteers at AIIMS Patna will undergo these checkups before being trialed with the vaccine dosage. Worldwide, a total of 155 vaccines are in different stages of development, of which 22 have reached human trial stage, with Bharat Biotech’s COVAXIN being one among them.
सोलन। हिमाचल की बेटी वंशिता ने प्रदेश में अपना और बद्दी क्षेत्र का नाम रौशन किया है। वंशिता ने ज्वाइंट एंट्रेंस एग्जामिनेशन (JEE) मेन 2020 में हिमाचल प्रदेश में टॉप किया है। वंशिता ने 99.83 प्रतिशत अंक प्राप्त किए हैं। वंशिता ने 12वीं तक की पढ़ाई नवज्योति सेंचुरी स्कूल बद्दी से की है और चंडीगढ़ से कोचिंग ले रही थी। वंशिता के पिता राकेश ठाकुर HPSEBL सोलन में बतौर SE कार्यरत है जबकि उनकी माँ आरती ठाकुर शिक्षिका है। वंशिता ने बताया कि उनको बचपन से ही अध्यापकों व माता पिता ने सही दिशा दिखा कर हर क्षेत्र में आगे आने के लिए प्रोत्साहित किया। जिसके बुते ज़िंदगी का पहला सपना सच हुआ और मेहनत रंग लाई। वंशिता ने अपनी इस सफलता का श्रेय माता-पिता और टीचर्स को दिया है। टॉपर लिस्ट में शामिल होने पर वंशिता ठाकुर ने कहा कि उन्होंने इसके लिए कड़ी मेहनती की थी। वह अपनी तैयारी को लेकर काफी आश्वस्त थी और परीक्षा में सफलता को लेकर उनके मन में संदेह नहीं था। वंशिता ने खुशी जाहिर करते हुए कहा कि यह बिल्कुल सच है कि बेटियां किसी भी क्षेत्र में किसी से कम नहीं है, और शिक्षा व संस्कारों की मजबूत नींव हो तो हर सपने को साकार किया जा सकता है।
भारतीय क्रिकेट में हमेशा से ही बल्लेबाज़ों का दबदबा रहा है, पर कुछ ऐसे भी गेंदबाज़ हैं जिन्होंने क्रिकेट के इतिहास में अपनी छाप छोड़ दी। एक ऐसा ही नाम है जवागल श्रीनाथ (Javagal Srinath)। श्रीनाथ भारतीय क्रिकेट प्रेमियों के चहेते हैं। उनके नाम, एक ऐसा रिकॉर्ड दर्ज है जो किसी भी खिलाड़ी के लिए मुश्किल है। वह भारत के ऐसे पहले तेज गेंदबाज रहे हैं जो लगभग 150 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से गेंद फेंकने की क्षमता रखते थे। उन्होंने किसी भी अन्य गेंदबाज़ से ज़्यादा 4 वर्ल्ड कप में हिस्सा लिया। क्रिकेट की दुनिया के रजनीकांत के नाम से जाने जाने वाले श्रीनाथ चाहने वालों के बीच 'मैसूर एक्सप्रेस' के नाम से भी मशहूर थे। श्रीनाथ का जन्म श्रीनाथ का जन्म 31 अगस्त 1969 का कर्णाटक के मैसूर जिला में हुआ था। उनकी शुरुआती पढ़ाई मैसूर के मारीमल्लप्पा हाई स्कूल से हुई। क्रिकेट में रूची रखने वाले श्रीनाथ ने छोटी उम्र से ही खेलना शुरू कर दिया था। उन्होंने मैसूर के श्री जयचामाराजेंद्र कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग से बैचलर ऑफ इंजीनियरिंग की। श्रीनाथ ने दो बार प्रेम विवाह किया। उनकी पहली शादी 1999 में ज्योत्सना नाम की लड़की के साथ हुई। बाद में दोनों ने सहमति से तलाक ले लिया। फिर उन्होंने ने 2008 में माधवी पत्रावली नाम के एक पत्रकार से शादी की। श्रीनाथ का करियर श्रीनाथ ने भारत की ओर से खेलते हुए 67 मैचों में 236 विकेट लिए। इसके अलावा उन्होंने टेस्ट क्रिकेट में 1,009 रन भी बनाए। श्रीनाथ ने 229 वनडे मैचों में 315 विकेट लिए। भारत की ओर से वनडे में सर्वाधिक विकेट लेने वाले गेंदबाजों में श्रीनाथ की नाम पूर्व लेग स्पिनर अनिल कुंबले (337) के बाद दूसरे नंबर पर आता है। इसके अलावा वनडे क्रिकेट में उन्होंने 883 रन भी बनाए। जवागल श्रीनाथ ने फर्स्ट क्लास क्रिकेट में 533 जबकि लिस्ट ए क्रिकेट में 407 विकेट लिए। श्रीनाथ ने साल 1999 में पाकिस्तान के खिलाफ ईडन गार्डन्स के मैदान पर मैच में 132 रन देते हुए कुल 13 विकेट हासिल किए थे पर दुर्भाग्यपूर्ण भारतीय टीम वो मैच हार गई। टेस्ट मैचों में श्रीनाथ ने 8 बार चार, 10 बार 5 और एक बार 10 विकेट अपने नाम किए हैं।
शख्सियत: कुल भूषण गुप्ता ... वर्ष 1962 में एक युवक रोजगार की तलाश में सोलन पहुँचता है। सामान्य कद काठी पर आसमान सा हौसला। शुरूआती वर्षों में तो दो वक्त की रोटी जुटाना भी उसके लिए अपने आप में संघर्ष था। इस पर वर्ष 1967 में एक दुर्घटना के कारण उस युवक को चोटें आती है, पर हौंसला नहीं डगमगाता। वर्ष 1967 में वो युवक स्वरोजगार को चुनता है और एक आटा चक्की स्थापित करता है। और आज शायद ही सोलन में ऐसा कोई घर होगा जहां उस चक्की के आटा का स्वाद न पहुंचा हो। ये कहानी है भूषण परिवार के मुखिया कुलभूषण गुप्ता की। कुलभूषण गुप्ता सादे व्यक्तित्व व आदर्श जीवन के कारण जनमानस के हृदय में विशेष जगह बनाए हुए हैं। अपने मेहनत के बुते उन्होंने आगामी पीढ़ियों को इस योग्य बनाया कि आज भूषण परिवार किसी पहचान का मोहताज नहीं है। गुप्ता सयुंक्त परिवार को अपनी सफलता का आधार मानते है और यही संस्कार उनके पुत्रों में भी है जो वर्तमान में पिता के शुरू किये व्यवसाय को क्षितिज पर ले जाने का कार्य कर रहे है। राजनीति को बनाया जनसेवा का माध्यम: कुलभूषण गुप्ता राजनीति में भी सक्रिय एवं लोकप्रिय रहे हैं। कुल भूषण गुप्ता वर्ष 2000 से 2010 तक नगर परिषद सोलन में पार्षद रहें। इसके उपरांत इनकी छोटी पुत्रवधु रुचि गुप्ता भी वर्ष 2010 से 2014 तक नगर परिषद की पार्षद चुनी गई, जो भूषण परिवार की जन मानस में लोकप्रियता का परिचायक है । आभूषण जगत के क्षितिज पर विराजमान भूषण ज्वेलर्स: भूषण परिवार की तीन महिलाएं वर्ष 2007 में घर की चारदीवारी से आभूषण का व्यवसाय आरम्भ किया था। परिवार की तीन महिलाओं मीना गुप्ता, रीमा गुप्ता और रुचि गुप्ता ने राह बनाई तो परिवार के बाकी सदस्य भी धीरे- धीरे उनके स्वप्न को साकार करने में जुट गए। नतीजन, तब मेहनत और भरोसे की नीव पर, महज एक लाख की लागत से शुरू किया गया वो व्यवसाय आज भूषण ज्वेलर्स का प्रारूप ले चूका है। परिवार की मेहनत और भूषण नाम की प्रतिष्ठा के बुते भूषण के आभूषणों की चमक न सिर्फ सोलन अपितु समस्त प्रदेश में बिखरने लगी है। घर से शुरू किये गए व्यवसाय के उपरांत वर्ष 2014 में राम बाजार में भूषण ज्वेलर्स की नींव रखी गई थी और अब तक के अपने पांच वर्ष के अल्प सफर में ही भूषण ज्वेलर्स विश्वसनीयता और भरोसे का पर्याय बन चुका है। आलम ये है कि प्रदेश में जब भी स्वर्ण आभूषणों की बात होती है तो भूषण ज्वेलर्स का नाम खुद ही जुबां पर आ जाता है।
महज 12 वर्ष की उम्र में ब्रह्मांड के रहस्यों पर किताब लिख सबको अचंभित करने वाले ओजस की किताब 'क्लीयरिंग दी कौस्मिक मैसेज' का विमोचन हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने किया हैं। जो जानकारियां इंटरनेट पर भी आसानी से उपलब्ध नहीं हैं, उन्हें ओजस ने इस किताब में शामिल किया है।10 हजार शब्दों और 19 चैप्टर वाली क्लीयरिंग दी कौस्मिक मैसेज किताब को ओजस ने कंप्यूटर पर टाइप किया हैं, जिसे व्हाइट फॉल्कन पब्लिशर्स ने प्रकाशित किया है। इस किताब के लिए देश-विदेश से ऑनलाइन ऑर्डर भी आ रहे हैं। ओजस ने बताया कि उसने पहले थियोरी लिखने का सोचा। इसके लिए उसने खगोल शास्त्र से जुड़े रहस्यों को इकट्ठा करना शुरू कर दिया, जिसे बाद में किताब का रूप दे दिया। ओजस ने बताया कि इस किताब में बच्चों को खगोल से संबंधित लॉजिक मिलेंगे। ओजस के अनुसार उसकी किताब को सोलन ही नहीं बल्कि पंजाब, आयरलैंड व अन्य राज्यों से भी ऑर्डर आए हैं। ओजस अपनी थियोरी और स्मार्ट फोन के डिजाइन को पैटेंट करवाना चाहता है, जिसके लिए वह विवो कंपनी से संपर्क में हैं। ओजस फिलहाल सैनिक स्कूल सुजानपुर में शिक्षा ले रहा है। माता-पिता को हैं गर्व ओजस की माता सरिता शर्मा और पिता रामानंद शर्मा ने कहा कि उन्हें अपने बेटे पर गर्व हैं। आज जब ज्यादातर छात्र मोबाइल से घिरे रहते हैं, ऐसे दौर में उनके बेटे ने ऐसे विषय पर किताब लिखी है, जो काफी मुश्किल है। उन्होंने कहा कि वह पहले तो अपने बेटे के इस हुनर पर विश्वास नहीं हुआ, लेकिन जब बेटे के जोर देने पर वह पब्लिशर के पास गए, तब उन्हें विश्वास हुआ।
Her name is the synonym for courage, her name is the synonym for determination, her name is the synonym for fearlessness and her name is the synonym for nerve. She actually need no introduction, she is Malala. The youngest ever Nobel Peace Prize receiver and Girl’s Education Activist. In words of Malala “I tell my story not because it is unique, but because it is the story of many girls.” Today is her birthday and today is the day of hope for ton many girls like Malala, today is Malala Day. First Verdict salutes Malala for her contribution in attracting the attention of world on situation of girl’s education, particularly in Pakistan and Taliban dominant areas. The Journey of Malala 1997 - Malala Yousafzai was born in Mingora, Pakistan on July 12, 1997. 2008 - Taliban took over Swat Valley and Malala had to left her school after Taliban threat. 2008 -Malala Yousafzai was only 11 years old when she blogged for the BBC about living in Pakistan and girl eduction n Pakistan. 2012 - Malala publicly spoke out about girl’s right to Education. As a result she was shot in head by Taliban Gunman, but fortunately survived. 2013- Malala was nominated for the Nobel Prize in 2013 but did not win; she was renominated in March 2014. 2013 - On 12 July 2013, Yousafzai's 16th birthday, she spoke at the UN to call for worldwide access to education. The UN dubbed the event "Malala Day." 2013 -On October 10, 2013, in acknowledgement of her work, the European Parliament awarded Yousafzai the Sakharov Prize for Freedom of Thought 2014 -In October 2014,Malala Yousafzai became the youngest recipient of the Nobel Peace Prize. She was awarded the Nobel along with Indian children's rights activist Kailash Satyarthi. 2017- In April 2017, United Nations Secretary-General Antonio Guterres appointed Yousafzai as a U.N. Messenger of Peace to promote girls education. 2017- Yousafzai was also given honorary Canadian citizenship in April 2017. She is the sixth person and the youngest in the country’s history to receive the honor.