बांका हिमाचल : वीर रण बांकुरों की भूमि है हिमाचल
हिमाचल देवभूमि ही नहीं वीर भूमि भी है। हिमाचल के वीर सपूतों ने जब-जब भी जरूरत पड़ी देश की रक्षा के लिए अपने प्राणों की आहूति दी। बात चाहे सीमाओं की सुरक्षा की हो या फिर आतंकवादियों को ढेर करने की, देवभूमि के रणबांकुरे अग्रिम पंक्ति में रहे। सेना के पहले परमवीर चक्र विजेता हिमाचल से ही सम्बन्ध रखते है। कांगड़ा जिला के मेजर सोमनाथ शर्मा ने पहला परमवीर चक्र मेडल हासिल कर हिमाचली साहस से दुनिया का परिचय करवाया था। मेजर सोमनाथ ही नहीं, पालमपुर के कैप्टन विक्रम बत्रा, धर्मशाला के लेफ्टिनेंट कर्नल डीएस थापा और बिलासपुर के राइफलमैन संजय कुमार समेत प्रदेश के चार वीरों ने परमवीर चक्र हासिल कर हिमाचलियों के अदम्य साहस का परिचय दिया है। देश में अब तक दिए गए कुल 21 परमवीर चक्रों में से सबसे अधिक, चार परमवीर चक्र हिमाचल प्रदेश के नाम हैं।
1. मेजर सोमनाथ शर्मा
भारतीय सेना की कुमाऊं रेजिमेंट की चौथी बटालियन की डेल्टा कंपनी के कंपनी-कमांडर मेजर सोमनाथ शर्मा ने 1947 में पाकिस्तान के छक्के छुड़ा दिए थे। मेजर सोमनाथ शर्मा को मरणोपरांत उनकी वीरता के लिए परमवीर चक्र से नवाजा गया। परमवीर चक्र विजेता मेजर सोमनाथ शर्मा का जन्म 31 जनवरी 1923 को कांगड़ा जिले में हुआ था। मेजर शर्मा मात्र 24 साल की उम्र में तीन नवंबर 1947 को पाकिस्तानी घुसपैठियों को बेदखल करते समय शहीद हो गए थे। युद्ध के दौरान जब वह एक साथी जवान की बंदूक में गोली भरने में मदद कर रहे थे तभी एक मोर्टार का गोला आकर गिरा। विस्फोट में उनका शरीर क्षत-विक्षत हो गया। मेजर शर्मा सदैव अपनी पैंट की जेब में गीता रखते थे। जेब में रखी गीता और उनकी बंदूक के खोल से उनके पार्थिव शरीर की पहचान की गई थी।
2. कैप्टेन विक्रम बत्रा
विक्रम बत्रा भारतीय सेना के वो ऑफिसर थे, जिन्होंने कारगिल युद्ध में अभूतपूर्व वीरता का परिचय देते हुए वीरगति प्राप्त की। इसके बाद उन्हें भारत के वीरता सम्मान परमवीर चक्र से भी सम्मानित किया गया। ये वो जाबाज़ जवान है जिसने शहीद होने से पहले अपने बहुत से साथियों को बचाया और जिसके बारे में खुद इंडियन आर्मी चीफ ने कहा था कि अगर वो जिंदा वापस आता, तो इंडियन आर्मी का हेड बन गया होता। परमवीर चक्र पाने वाले विक्रम बत्रा आखिरी हैं। 7 जुलाई 1999 को उनकी मौत एक जख्मी ऑफिसर को बचाते हुए हुई थी। इस ऑफिसर को बचाते हुए कैप्टन ने कहा था, ‘तुम हट जाओ. तुम्हारे बीवी-बच्चे हैं’।
3. मेजर धनसिंह थापा
मेजर धनसिंह थापा परमवीर चक्र से सम्मानित नेपाली मूल के भारतीय सैनिक थे। इन्हें यह सम्मान वर्ष 1962 मे मिला। वे अगस्त 1949में भारतीय सेना की आठवीं गोरखा राइफल्स में अधिकारी के रूप में शामिल हुए थे। भारत द्वारा अधिकृत विवादित क्षेत्र में बढ़ते चीनी घुसपैठ के जवाब में भारत सरकार ने "फॉरवर्ड पॉलिसी" को लागू किया। योजना यह थी कि चीन के सामने कई छोटी-छोटी पोस्टों की स्थापना की जाए। पांगॉन्ग झील के उत्तरी किनारे पर 8 गोरखा राइफल्स की प्रथम बटालियन द्वारा स्थापित एक पोस्ट थी जो मेजर धन सिंह थापा की कमान में थी। जल्द ही यह पोस्ट चीनी सेनाओं द्वारा घेर ली गई। मेजर थापा और उनके सैनिकों ने इस पोस्ट पर होने वाले तीन आक्रमणों को असफल कर दिया। थापा सहित बचे लोगों को युद्ध के कैदियों के रूप में कैद कर लिया गया था। अपने महान कृत्यों और अपने सैनिकों को युद्ध के दौरान प्रेरित करने के उनके प्रयासों के कारण उन्हें परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया।
4. राइफल मैन संजय कुमार
परमवीर राइफलमैन संजय कुमार, वो जांबाज सिपाही है जिन्होंने कारगिल वॉर के दौरान अदम्य शौर्य का प्रदर्शन करते हुए दुश्मन को उसी के हथियार से धूल चटाई थी। लहूलुहान होने के बावजूद संजय कुमार तब तक दुश्मन से जूझते रहे थे, जब तक प्वाइंट फ्लैट टॉप दुश्मन से पूरी तरह खाली नहीं हो गया। हिमाचल प्रदेश के बिलासपुर जिले से भारतीय सेना में भर्ती हुए सूबेदार संजय कुमार की शौर्यगाथा प्रेरणादायक है। 4 जुलाई 1999 को राइफल मैन संजय कुमार जब चौकी नंबर 4875 पर हमले के लिए आगे बढ़े तो एक जगह से दुश्मन ऑटोमेटिक गन ने जबरदस्त गोलीबारी शुरू कर दी और टुकड़ी का आगे बढ़ना कठिन हो गया। ऐसी स्थिति में गंभीरता को देखते हुए राइफल मैन संजय कुमार ने तय किया कि उस ठिकाने को अचानक हमले से खामोश करा दिया जाए। इस इरादे से संजय ने यकायक उस जगह हमला करके आमने-सामने की मुठभेड़ में तीन पाकिस्तानियों को मार गिराया। अचानक हुए हमले से दुश्मन बौखला कर भाग खड़ा हुआ और इस भगदड़ में दुश्मन अपनी यूनिवर्सल मशीनगन भी छोड़ गए। संजय कुमार ने वो गन भी हथियाई और उससे दुश्मन का ही सफाया शुरू कर दिया।