सोलन की अधिष्ठात्री देवी हैं माता शूलिनी
देवभूमि हिमाचल प्रदेश में देवी-देवताओं के बहुत से मंदिर हैं और हर मंदिर का अपना विशेष महत्त्व है। ऐसा ही एक अलौकिक स्थान है सोलन स्थित माता शूलिनी का मंदिर। दरअसल सोलन का नाम मां शूलिनी देवी के नाम पर पड़ा। माता शूलिनी सोलन की अधिष्ठात्री देवी हैं। माता का मंदिर सोलन बाजार में स्थित है और हर वर्ष यहाँ जून माह में मेले का आयोजन होता है। इस मेले को राज्य स्तरीय मेले का दर्जा प्राप्त है। तीन दिवसीय इस मेले के पहले दिन मां शूलिनी की शोभायात्रा निकाली जाती है और माता शूलिनी अपने मंदिर स्थान से निकलकर अपनी गंज बाजार स्थित अपनी बहन के घर ( मंदिर )पहुँचती है। दो रात्रि तक माता यहाँ ही प्रवास करती है। इसीलिये इस मेले को दो बहनो के मिलन का मेला भी कहा जाता है। इस शोभायात्रा का आयोजन बेहद धूमधाम से होता है और विभिन्न झांकियां भी निकाली जाती है। नगर यात्रा के बाद माता अपनी बहन के घर पहुँचती है। इस दौरान श्रद्धा का जनसैलाब उमड़ता है और लाखों लोग माता के दर्शनों को सोलन नगरी पहुंचते है।
तीन दिवसीय इस मेले के दौरान पूरा सोलन शहर दुल्हन की तरह सजाया जाता है और सैकड़ों भंडारों का आयोजन होता है। आसपास के राज्यों से भी व्यापारी दुकाने लगाने सोलन पहुंचते है। इस दौरान तीन दिन सांस्कृतिक संध्या का आयोजन भी होता है। देश -प्रदेश के कई नामी कलाकार इसमें भाग लेते है। मेले के तीसरे दिन माता अपनी बहन के घर से डोले में बैठकर फिर मंदिर को प्रस्थान करती है।
बघाट रियासत की कुलदेवी है मां शूलिनी
सोलन नगर बघाट रियासत की राजधानी हुआ करता था। इस रियासत की नींव राजा बिजली देव ने रखी थी। बारह घाटों से मिलकर बनने वाली बघाट रियासत का क्षेत्रफल 36 वर्ग मील में फैला हुआ था। इस रियासत की प्रारंभ में राजधानी जौणाजी तदोपरांत कोटी और बाद में सोलन बनी। राजा दुर्गा सिंह इस रियासत के अंतिम शासक थे। रियासत के विभिन्न शासकों के काल से ही माता शूलिनी देवी का मेला लगता आ रहा है। जनश्रुति के अनुसार बघाट रियासत के शासक अपनी कुलश्रेष्ठा की प्रसन्नता के लिए मेले का आयोजन करते थे। बदलते समय के दौरान यह मेला आज भी अपनी पुरानी परंपरा के अनुसार चल रहा है। माता शूलिनी के इस मंदिर का पुराना इतिहास बघाट रियासत से जुड़ा हुआ है। बघाट रियासत के लोग माता शूलिनी को अपनी कुलदेवी के रूप में मानते थे, तभी से माता शूलिनी बघाट रियासत के शासकों के लिए उनकी कुलदेवी के रूप में पूजी जाती है।