जयराम ने साढ़े तीन साल बाद दी थी मान्यता, सुक्खू सरकार भी उसी राह पर !
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दो समानांतर महासंघ, न मान्यता मिली न जेसीसी का गठन
यूपीएस पर सरकार के रुख पर भी नज़र
हिमाचल प्रदेश की सुक्खू सरकार अपना करीब सवा दो साल का कार्यकाल पूरा करने वाली है लेकिन इस दौरान हिमाचल प्रदेश में न तो अराजपत्रित कर्मचारी महासंघ को मान्यता मिली है और न ही जेसीसी का गठन हुआ है। ऐसे अंदरखाते कर्मचारियों में रोष पनपता दिख रहा है। कर्मचारियों के कई मसले लंबित है और कर्मचारी संगठन मानते है कि इनके निबटारे के लिए जेसीसी जरूरी है।
हिमाचल में कमर्चारियों के दोनों समानांतर महासंघ मान्यता की बाबत सरकार के समक्ष अपना -अपना दावा रख चुके है, लेकिन सरकार ने अब तक कोई निर्णय नहीं लिया है। इन दो गुटों में से एक के अध्यक्ष प्रदीप ठाकुर है जो ओपीएस आंदोलन का नेतृत्व करते रहे है, जबकि दूसरे गुट के अध्यक्ष त्रिलोक ठाकुर है। इससे पहले में भी प्रदेश में कर्मचारियों के समांनातर गुट रहे है, लेकिन सरकारें अपने करीबियों पर भरोसा जताती रही है।
हालांकि कर्मचारी संगठनों को देर से मान्यता देने की रवायत हिमाचल में पुरानी है। पूर्व की जयराम सरकार ने भी अश्वनी ठाकुर वाले महासंघ को मान्यता देने में साढ़े तीन साल से भी ज्यादा का वक्त लिया था। हालांकि इस बार माना जा रहा था की सरकार जल्द अपने चेहते महासंघ को मान्यता दे सकती है, किन्तु ऐसा नहीं हुआ। वर्तमान सरकार भी पूर्व सरकार की परिपाटी पर ही आगे बढ़ रही है और जानकार मान रहे है कि संभवतः अपने चौथे साल में ही सरकार इस पर निर्णय ले।
वैसे देरी की वजह भी स्वाभाविक है। जेसीसी में सरकार पर कर्मचारियों की लंबित मांगो को जल्द पूरा करने का दबाव बढ़ेगा। ऐसे में लाजमी है खराब आर्थिक स्थिति के बीच सरकार फिलहाल इसे टालना चाहे।
'यूपीएस' बदल न दे समीकरण !
प्रदीप ठाकुर ओपीएस आंदोलन से निकले है और उनकी पूरी राजनीति अब तक इसी के इर्द गिर्द रही है। कांग्रेस सरकार का गठन के बाद ओपीएस बहाली का श्रेय भी प्रदीप गुट को दिया जाता है और इसी के चलते काफी संख्या में कर्मचारी इनके साथ है। किन्तु बीते दिनों यूपीएस का जिक्र कर मंत्री विक्रमादित्य सिंह ने नई बहस को जन्म दे दिया है। केंद्र सरकार भी आर्थिकी मदद की पेशकश कर प्रदेश सरकार से यूपीएस लागू करने का आग्रह कर रही है। दिलचस्प बात ये है कि मंत्री विक्रमादित्य सिंह के ब्यान का खंडन कांग्रेस के किसी नेता ने नहीं किया। इशारा साफ़ है कि यूपीएस लागू हो या न हो, लेकिन मंथन तो चला है। माहिर मानते है कि सरकार बीच का रास्ता पकड़ सकती है। इस बीच प्रदीप गुट खुलकर यूपीएस के विरोध में बोल रहा है, जबकि त्रिलोक गुट का कहना है कि यदि कर्मचारी यूपीएस लेना चाहे तो सरकार को विकल्प देना चाहिए। यानी यूपीएस फैक्टर कर्मचारी राजनीति के समीकरण भी बदल सकता है।