2024 पर नजर, मिशन कांगड़ा पर सीएम
( words)

*कांगड़ा को मिल सकता है विलम्ब का मीठा फल
सुक्खू कैबिनेट में अब तक जिला कांगड़ा को मनमाफिक अधिमान नहीं मिला है। कांगड़ा संसदीय क्षेत्र के लिहाज से भी देखे तो अब तक हिस्से में सिर्फ एक मंत्री पद आया है। हालांकि विधानसभा अध्यक्ष की कुर्सी, दो सीपीएस और कई कैबिनेट रैंक जरूर मिले है, लेकिन जो वजन मंत्री पद में है वो भला और कहाँ ? बहरहाल सवाल ये है कि जिस संसदीय क्षेत्र ने कांग्रेस की झोली में 17 में से 12 सीटें डाली, क्या सत्ता में आने के बाद कांग्रेस उसे हल्के में ले रही है, या इस इन्तजार का मीठा फल मिलने वाला है। माहिर तो ये ही मान रहे है कि जल्द कांगड़ा के इस विलम्ब की पूरी भरपाई होगी। ऐसा होना लाजमी भी है क्यों कि लोकसभा चुनाव में ज्यादा से ज्यादा एक साल का वक्त है और यहाँ हार की हैट्रिक लगा चुकी कांग्रेस कोई चूक नहीं करना चाहेगी।
अलबत्ता कांगड़ा को मंत्री पद मिलने में कुछ देर जरूर हो रही है लेकिन खुद मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू का ये कहना कि वे भी कांगड़ा के ही है, उम्मीद की बड़ी वजह है। कांगड़ा को टूरिज्म कैपिटल बनाने का सीएम का विज़न हो या आईटी पार्क जैसे अधर में लटके प्रोजेक्ट्स में तेजी लाना, ये दर्शाता है कि सीएम सुक्खू कांगड़ा को लेकर किसी तरह की चूक करना नहीं चाहते। सीएम का नौ दिन का कांगड़ा दौरा भी इसकी तस्दीक करता है। सरकार के पिटारे में कांगड़ा के लिए न योजनाओं की कोई कमी नहीं दिखती। ये ही कारण है कि 2024 से पहले कांगड़ा में कांग्रेस जोश में है।
इस बीच मंत्री पद भरने को लेकर फिर सुगबुगाहट तेज हुई है। माना जा रहा है कि कुल तीन रिक्त मंत्री पदों में से दो कांगड़ा के हिस्से आएंगे। इनमें एक ब्राह्मण हो सकता है और एक एससी। ऐसे में एक युवा राजपूत चेहरा भी डार्क हॉर्स है। बहरहाल अंदर की बात ये बताई जा रही है कि सब लगभग तय है और जल्द कांगड़ा को दो मंत्री पद मिलेंगे।
प्रदेश की सियासत अपनी जगह पर 2024 में कांग्रेस के लिए कांगड़ा फ़तेह करना आसान नहीं होने वाला है। कई चुनौतियों के बीच कांग्रेस के सामने सबसे बड़ी चुनौती है एक दमदार चेहरा। तीन चुनाव हार चुकी कांग्रेस को ऐसा चेहरा चाहिए जो जातीय, क्षेत्रीय और पार्टी की भीतरी राजनीति के लिहाज से संतुलन लेकर आएं। पिछले तीन चुनावों में पार्टी ने यहाँ से ओबीसी कार्ड खेला है, पर नतीजे प्रतिकूल रहे है। ऐसे में पार्टी को फिर सोचने की जरुरत जरूर है। बताया जा रहा ही कि पार्टी अभी से इस पर चिंतन -मंथन में जुटी है। खुद सीएम सुक्खू चाहते है कि जो भी चेहरा हो, उसे पर्याप्त समय मिले। चर्चा में कई वरिष्ठ नाम है जिनमें पूर्व सांसद और मंत्री चौधरी चंद्र कुमार, पूर्व मंत्री और विधायक सुधीर शर्मा, आशा कुमारी जैसे नाम शामिल है। पर संभव है कि इस बार पारम्परिक कास्ट डायनामिक्स को ताक पर रख पार्टी किसी युवा चेहरे को मैदान में उतारे। सुक्खू सरकार के आईटी सलाहकार गोकुल बुटेल भी ऐसा ही एक विकल्प हो सकते है।
भाजपा से कौन होगा चेहरा !
2009 से लेकर अब तक कांगड़ा लोकसभा सीट पर भाजपा लगातार जीत दर्ज करने में कामयाब रही है। पिछले लोकसभा चुनाव में न केवल हिमाचल में बल्कि पूरे देश में भी सबसे ज्यादा मत प्रतिशत हासिल करने का रिकॉर्ड कांगड़ा संसदीय क्षेत्र के सांसद किशन कपूर के नाम रहा था। 7,25,218 मत प्राप्त कर किशन कपूर लोकसभा पहुंचे, लेकिन इस बार सियासी समीकरण कुछ बदलते नज़र आ रहे है। दरअसल 2022 के विधानसभा चुनाव में भी कांगड़ा संसदीय क्षेत्र में भाजपा की परफॉरमेंस बेहद खराब रही है। इस संसदीय क्षेत्र की 17 में से सिर्फ पांच सीटें ही भाजपा जीत पाई है। ऐसे में क्या पार्टी चेहरा बदलेगी इसे लेकर कयासों का दौर जारी है।
संभावित उम्मीदवारों की फेहरिस्त में मौजूदा सांसद किशन कपूर के अलावा कई और नाम चर्चा में है। इस लिस्ट में गद्दी समुदाय से धर्मशाला के पूर्व विधायक विशाल नेहरिया का नाम भी चर्चा में है। इसके अलावा कांग्रेस से भाजपा में शामिल हुए पवन काजल का नाम भी लिस्ट में है। अब देखना ये होगा कि भाजपा इस दफा कांगड़ा के दुर्ग को फ़तेह करने के लिए किस पर दांव खेलती है।
कब कौन बना सांसद
1977 दुर्गा चंद भारतीय लोक दल
1980 विक्रम चंद महाजन कांग्रेस
1984 चंद्रेश कुमारी कांग्रेस
1989 शांता कुमार भाजपा
1991 डीडी खनौरिया भाजपा
1996 सत महाजन कांग्रेस
1998 शांता कुुमार भाजपा
1999 शांता कुमार भाजपा
2004 चंद्र कुमार कांग्रेस
2009 डॉ. राजन सुशांत भाजपा
2014 शांता कुमार भाजपा
2019 किशन कपूर भाजपा
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* कांगड़ा को मिल सकता है विलम्ब का मीठा फल
सुनैना कश्यप। फर्स्ट वर्डिक्ट
सुक्खू कैबिनेट में अब तक जिला कांगड़ा को मनमाफिक अधिमान नहीं मिला है। कांगड़ा संसदीय क्षेत्र के लिहाज से भी देखे तो अब तक हिस्से में सिर्फ एक मंत्री पद आया है। हालांकि विधानसभा अध्यक्ष की कुर्सी, दो सीपीएस और कई कैबिनेट रैंक जरूर मिले है, लेकिन जो वजन मंत्री पद में है वो भला और कहाँ ? बहरहाल सवाल ये है कि जिस संसदीय क्षेत्र ने कांग्रेस की झोली में 17 में से 12 सीटें डाली, क्या सत्ता में आने के बाद कांग्रेस उसे हल्के में ले रही है, या इस इन्तजार का मीठा फल मिलने वाला है। माहिर तो ये ही मान रहे है कि जल्द कांगड़ा के इस विलम्ब की पूरी भरपाई होगी। ऐसा होना लाजमी भी है क्यों कि लोकसभा चुनाव में ज्यादा से ज्यादा एक साल का वक्त है और यहाँ हार की हैट्रिक लगा चुकी कांग्रेस कोई चूक नहीं करना चाहेगी।
अलबत्ता कांगड़ा को मंत्री पद मिलने में कुछ देर जरूर हो रही है लेकिन खुद मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू का ये कहना कि वे भी कांगड़ा के ही है, उम्मीद की बड़ी वजह है। कांगड़ा को टूरिज्म कैपिटल बनाने का सीएम का विज़न हो या आईटी पार्क जैसे अधर में लटके प्रोजेक्ट्स में तेजी लाना, ये दर्शाता है कि सीएम सुक्खू कांगड़ा को लेकर किसी तरह की चूक करना नहीं चाहते। सीएम का नौ दिन का कांगड़ा दौरा भी इसकी तस्दीक करता है। सरकार के पिटारे में कांगड़ा के लिए न योजनाओं की कोई कमी नहीं दिखती। ये ही कारण है कि 2024 से पहले कांगड़ा में कांग्रेस जोश में है।
इस बीच मंत्री पद भरने को लेकर फिर सुगबुगाहट तेज हुई है। माना जा रहा है कि कुल तीन रिक्त मंत्री पदों में से दो कांगड़ा के हिस्से आएंगे। इनमें एक ब्राह्मण हो सकता है और एक एससी। ऐसे में एक युवा राजपूत चेहरा भी डार्क हॉर्स है। बहरहाल अंदर की बात ये बताई जा रही है कि सब लगभग तय है और जल्द कांगड़ा को दो मंत्री पद मिलेंगे।
प्रदेश की सियासत अपनी जगह पर 2024 में कांग्रेस के लिए कांगड़ा फ़तेह करना आसान नहीं होने वाला है। कई चुनौतियों के बीच कांग्रेस के सामने सबसे बड़ी चुनौती है एक दमदार चेहरा। तीन चुनाव हार चुकी कांग्रेस को ऐसा चेहरा चाहिए जो जातीय, क्षेत्रीय और पार्टी की भीतरी राजनीति के लिहाज से संतुलन लेकर आएं। पिछले तीन चुनावों में पार्टी ने यहाँ से ओबीसी कार्ड खेला है, पर नतीजे प्रतिकूल रहे है। ऐसे में पार्टी को फिर सोचने की जरुरत जरूर है। बताया जा रहा ही कि पार्टी अभी से इस पर चिंतन -मंथन में जुटी है। खुद सीएम सुक्खू चाहते है कि जो भी चेहरा हो, उसे पर्याप्त समय मिले। चर्चा में कई वरिष्ठ नाम है जिनमें पूर्व सांसद और मंत्री चौधरी चंद्र कुमार, पूर्व मंत्री और विधायक सुधीर शर्मा, आशा कुमारी जैसे नाम शामिल है। पर संभव है कि इस बार पारम्परिक कास्ट डायनामिक्स को ताक पर रख पार्टी किसी युवा चेहरे को मैदान में उतारे। सुक्खू सरकार के आईटी सलाहकार गोकुल बुटेल भी ऐसा ही एक विकल्प हो सकते है।
भाजपा से कौन होगा चेहरा !
2009 से लेकर अब तक कांगड़ा लोकसभा सीट पर भाजपा लगातार जीत दर्ज करने में कामयाब रही है। पिछले लोकसभा चुनाव में न केवल हिमाचल में बल्कि पूरे देश में भी सबसे ज्यादा मत प्रतिशत हासिल करने का रिकॉर्ड कांगड़ा संसदीय क्षेत्र के सांसद किशन कपूर के नाम रहा था। 7,25,218 मत प्राप्त कर किशन कपूर लोकसभा पहुंचे, लेकिन इस बार सियासी समीकरण कुछ बदलते नज़र आ रहे है। दरअसल 2022 के विधानसभा चुनाव में भी कांगड़ा संसदीय क्षेत्र में भाजपा की परफॉरमेंस बेहद खराब रही है। इस संसदीय क्षेत्र की 17 में से सिर्फ पांच सीटें ही भाजपा जीत पाई है। ऐसे में क्या पार्टी चेहरा बदलेगी इसे लेकर कयासों का दौर जारी है।
संभावित उम्मीदवारों की फेहरिस्त में मौजूदा सांसद किशन कपूर के अलावा कई और नाम चर्चा में है। इस लिस्ट में गद्दी समुदाय से धर्मशाला के पूर्व विधायक विशाल नेहरिया का नाम भी चर्चा में है। इसके अलावा कांग्रेस से भाजपा में शामिल हुए पवन काजल का नाम भी लिस्ट में है। अब देखना ये होगा कि भाजपा इस दफा कांगड़ा के दुर्ग को फ़तेह करने के लिए किस पर दांव खेलती है।
कब कौन बना सांसद
1977 दुर्गा चंद भारतीय लोक दल
1980 विक्रम चंद महाजन कांग्रेस
1984 चंद्रेश कुमारी कांग्रेस
1989 शांता कुमार भाजपा
1991 डीडी खनौरिया भाजपा
1996 सत महाजन कांग्रेस
1998 शांता कुुमार भाजपा
1999 शांता कुमार भाजपा
2004 चंद्र कुमार कांग्रेस
2009 डॉ. राजन सुशांत भाजपा
2014 शांता कुमार भाजपा
2019 किशन कपूर भाजपा
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