पहले टिकट आवंटन की माथापच्ची, फिर होगी असंतोष साधने की कवायद

हिमाचल प्रदेश में एक लोकसभा सीट और दो विधानसभा सीटों के लिए उप चुनाव होने है। मंडी संसदीय क्षेत्र के सांसद रामस्वरूप शर्मा के निधन के बाद वहां लोकसभा का उपचुनाव होना है। वहीँ फतेहपुर विधायक सुजान सिंह पठानिया और जुब्बल कोटखाई के विधायक नरेंद्र बरागटा के निधन के बाद दोनों सीटें रिक्त हुई है। मंडी लोकसभा सीट और जुब्बल कोटखाई विधानसभा सीट पर जहाँ भाजपा का कब्ज़ा था वहीँ सुजानपुर विधानसभा सीट पर कांग्रेस काबिज थी। निर्वाचन आयोग द्वारा फिलहाल उप चुनाव के लिए तिथि घोषित नहीं की गई है लेकिन माना जा रहा है यदि कोरोना संक्रमण की दर में गिरावट जारी रही तो जल्द इसकी घोषणा हो सकती है। 2022 से पहले ये दोनों प्रमुख राजैनतिक दलों के लिए बड़ा इम्तिहान होगा, विशेषकर मिशन रिपीट के दावे कर रही सत्तारूढ़ भाजपा के लिए यहाँ बेहतर करने का दबाव रहेगा।
मंडी में राजनीति कभी ठंडी नहीं होती। अभी उप चुनाव का शेड्यूल भी तैयार नहीं हुआ है, लेकिन मंडी संसदीय उप चुनाव के लिए भाजपा ने भीतर खाते प्रत्याशी पर मंथन शुरू कर दिया है। जाहिर है लोकसभा का चुनाव है तो साख प्रदेश ही नहीं केंद्र सरकार की भी दांव पर है। मंडी सीट से पूर्व सांसद स्व. रामस्वरूप शर्मा लगातार दो चुनाव जीते थे, अब जीत के सिलसिले को कायम रखने के लिए राजधानी शिमला से लेकर दिल्ली तक तक भाजपा पूरी तरह से सक्रिय हाे चुकी है। यह सीट विशेषकर दो नेताओं के लिए प्रतिष्ठता का सवाल बन चुकी है। पहले है जगत प्रकाश नड्डा पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं और उनके प्रदेश में लोकसभा उपचुनाव में मनमाफिक नतीजे नहीं आये तो सवाल उठना लाज़मी है। दूसरे है मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर, मंडी जिनका अपना गृह जिला है। जाहिर है ऐसे में उप चुनाव की ये सियासी परीक्षा किसी अग्नि परीक्षा से कम नहीं है। बीते दिनों सीएम जयराम ठाकुर के दिल्ली दौरे के दौरान भी भाजपा राष्ट्रीय अध्यक्ष जगत प्रकाश नड्डा के दिल्ली स्थित सरकारी आवास में उपचुनाव पर रणनीति बनी है। बताया जा रहा है कि इस बैठक में टिकट के मसले पर भी गहन मंथन हुआ है। मंडी संसदीय सीट से पूर्व सांसद एवं पूर्व विधायक महेश्वर सिंह और सैनिक कल्याण बाेर्ड के चेयरमैन ब्रिगेडियर खुशाल ठाकुर के नाम चर्चा मेँ है। साथ ही उड़ती -उड़ती खबर यह भी हैं कि सरकार के दाे मंत्रियाें में से किसी एक काे मंडी संसदीय सीट से उपचुनाव लड़वाने के लिए मनाया जा सकता है, विशेषकर महेंद्र सिंह ठाकुर को। मगर इसके आसार कम ही लगते है। दरअसल ऐसा करने पर जीत की स्थिति में सरकार काे एक और विधानसभा उपचुनाव से गुजरना पड़ सकता है। फिलहाल 2022 के चुनाव के लिए अब मात्र डेढ़ साल का समय रह गया है, ऐसे में सरकार किसी मंत्री काे संसद पहुंचा कर उपचुनाव का रिस्क शायद ही ले। ऐसा निर्णय लेना भाजपा के लिए बेहद मुश्किल होगा, बाकी सियासत में सब संभव है। इनके अलावा कर्मचारी नेता एन आर ठाकुर व राजेश शर्मा, प्रवीण शर्मा तथा त्रिलोक जम्वाल के नाम भी चर्चा में है।
मंडी संसदीय सीट में 17 विधानसभा क्षेत्र
मंडी संसदीय क्षेत्र के 17 विधानसभा क्षेत्रों पर गाैर करें ताे वर्तमान में 13 विधानसभा सीटों पर भाजपा, 3 पर कांग्रेस और एक सीट पर निर्दलीय विधाय हैं। किन्नौर, कुल्लू और रामपुर सीट पर कांग्रेस, जबकि जोगिंदर नगर सीट पर निर्दलीय विराजमान हैं। शेष अन्य 13 सीटों पर भाजपा काबिज है। इस संसदीय क्षेत्र के पांच हलके बल्ह, नाचन, करसोग, आनी व रामपुर अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित हैं। जबकि किन्नौर, लाहौल-स्पीति और भरमौर सीट एसटी के लिए आरक्षित हैं।
क्या नरेंद्र बरागटा की विरासत के सहारे होगा होगा जीत का बंदोबस्त
जिला शिमला की जुब्बल-कोटखाई विधानसभा सीट काे बरकरार रखने के लिए प्रदेश भाजपा हर संभव प्रयास करेगी। जुब्बल-कोटखाई विधानसभा क्षेत्र से भाजपा विधायक एवं मुख्य सचेतक नरेंद्र बरागटा का निधन बीते 5 जून काे हुआ। ऐसे में अब यहां उपचुनाव तय है। जुब्बल-कोटखाई विधानसभा सीट की बात करें ताे नरेंद्र सिंह बरागटा के निधन के बाद कई नेताओं की निगाहें उपचुनाव टिकट पर टिकी हुई है, मगर संभावित है भाजपा स्व. बरागटा के बेटे चेतन बरागटा काे मैदान में उतारें। चेतन वर्तमान में भाजपा आईटी सेल के प्रमुख भी हैं। पूर्व मुख्यमंत्री ठाकुर रामलाल के रहते इस सीट पर कभी भाजपा को सफलता नहीं मिली थी लेकिन उनके निधन के बाद नरेंद्र बरागटा ने यहाँ पहली बार 2007 में कमल खिलाया था। ऐसे में चेतन को टिकट देकर भाजपा नरेंद्र बरागटा की राजनैतिक विरासत के सहारे उप चुनाव फ़तेह करना चाहेगी। चेतन को टिकट मिलने की स्तिथि में भाजपा को वोटर्स की सहानुभूति की आस भी रहेगी। हालांकि दौड़ में नीलम सरकईक का नाम भी है जिनका क्षेत्र में अच्छा जनाधार है। नीलम सरकईक आलाकमान की गुड बुक्स में है और जयराम गुट की मानी जाती है। ऐसे में ये देखना रोचक होगा कि सहानुभूति फैक्टर को तवज्जो देकर भाजपा चेतन बरागटा पर भरोसा जताती है या नीलम को मौका मिलेगा। वहीं कांग्रेस की ओर से पूर्व मुख्य संसदीय सचिव रोहित ठाकुर ही उपचुनाव में उतर सकते हैं। जाहिर है रोहित के मैदान में होने से ये मुकाबला भाजपा के लिए आसान नहीं होने वाला।
2003 से सत्ता के साथ जुब्बल-कोटखाई
जुब्बल-कोटखाई विधानसभा क्षेत्र की जनता 2003 से ही सत्ता के साथ चलती आ रही है। वर्तमान में भाजपा की सरकार है ताे भाजपा के नरेंद्र बरागटा जीते, 2012 में कांग्रेस की सरकार में कांग्रेस के रोहित ठाकुर और उससे पहले 2007 में भाजपा की सरकार थी ताे भाजपा के नरेंद्र बरागटा जीते थे। इसी तरह 2003 के चुनाव में रोहित ठाकुर को जनता का आशीर्वाद मिला था।
फतेहपुर जीता तो बड़े-बड़ों को मानना पड़ेगा दमखम
फतेहपुर विधानसभा उप चुनाव का नतीजा 15 सीट वाले जिला कांगड़ा की सियासी आबोहवा को रुख दे सकता है। कांगड़ा जीते बिना मिशन रिपीट संभव नहीं है, ऐसे में सत्ता पक्ष पर फतेहपुर उप चुनाव में बेहतर करने का दबाव है। कोरोना की दूसरी लहर के तीव्र होने से पहले ही सरकार और संगठन दोनों फतेहपुर में प्रो एक्टिव थे। खुद मुख्यमंत्री सहित बड़े नेता फतेहपुर के दौरे कर रहे थे। जाहिर है ये उप चुनाव बेहद ख़ास है। दरअसल, यहाँ जीत मिल गई तो सरकार का दमखम बड़े -बड़ों को मानना पड़ेगा। ऐसा इसलिए है क्योंकि 2009 के उपचुनाव सहित भाजपा फतेहपुर में तीन चुनाव हार चुकी है। फतेहपुर उपचुनाव में भाजपा के फेस को लेकर भी संशय की स्थिति है। 2017 में पूर्व राज्यसभा सांसद कृपाल परमार भाजपा के प्रत्याशी थे तो 2012 में भाजपा ने बलदेव ठाकुर को टिकट दिया था। 2017 के चुनाव में बलदेव ने बतौर बागी चुनाव लड़ा और 13 हज़ार से अधिक वोट लेकर भाजपा का खेल बिगाड़ दिया। अब उपचुनाव में टिकट का फैसला फिर भाजपा के लिए कठिन होने वाला है। टिकट की दौड़ में एक अधिकारी भी बताएं जा रहे है।
शायद भाजपा के तरकश में न रहे वंशवाद का तीर
फतेहपुर उपचुनाव में कांग्रेस दोराहे पर थी। स्व. सुजान सिंह पठानिया के पुत्र भवानी को टिकट देने की स्थिति में वंशवाद के नाम पर हल्ला मचना लाज़मी था और टिकट परिवार से बाहर जाता तो सहानुभूति कम होती। निसंदेह भवानी को टिकट देने की स्तिथि में भाजपा वंशवाद पर कांग्रेस को घेरती। पर अब सम्भवतः भाजपा के तरकश में ये तीर न रहे क्यों कि खुद भाजपा जुब्बल कोटखाई में स्व नरेंद्र बरागटा के पुत्र चेतन बरागटा को टिकट दे सकती है।