रोचक है 'आया राम गया राम' जुमले की कहानी
देश की राजनीति में जब कोई नेता एक पार्टी छोड़कर दूसरी पार्टी में शामिल होता है तो उसके लिए 'आया राम गया राम' वाले जुमले का इस्तेमाल होता है। राजनीति में इस कहावत की शुरुआत कैसे और कहां से हुई, इसका किस्सा भी बेहद रोचक है। कैसे दलबदलू नेताओं के लिए इस जुमले का इस्तेमाल होने लगा? इसका जवाब हरियाणा की राजनीति में छुपा है।
साल था 1967 का और इस कहानी के मुख्य किरदार थे, उस समय के विधायक गया लाल। गया लाल हरियाणा के हसनपुर विधानसभा क्षेत्र से विधायक थे। गया लाल निर्दलीय विधायक चुनकर आए थे। 1967 में हरियाणा विधानसभा के लिए पहली बार चुनाव हुआ था और कुल 16 निर्दलीय विधायक जीतकर आए थे जिनमें गया लाल भी एक थे। उस समय हरियाणा विधानसभा में 81 सीटें थी।चुनाव नतीजे आने के बाद हरियाणा में तेजी से राजनीतिक घटनाक्रम बदले और गया लाल कांग्रेस में शामिल हो गए, लेकिन बाद में वे संय़ुक्त मोर्चा में वापस आ गए। नौ घंटे बाद उनका मन फिर बदला और गया लाल फिर से कांग्रेस में शामिल हो गए। यानी गया लाल ने एक ही दिन में 3 बार अपनी पार्टी बदली थी। बाद में कांग्रेस नेता राव बीरेंद्र सिंह जब विधायक गया लाल को लेकर प्रेस वार्ता करने के लिए चंडीगढ़ पहुंचे तो उन्होंने पत्रकारों के सामने कहा कि ‘गया राम अब आया राम हैं।’
राव बीरेंद्र सिंह के इस बयान ने बाद में ‘आया राम गया राम’ कहावत का रूप ले लिया और देशभर में जब भी नेताओं के दल बदल की खबरें आई तो इसी कहावत का इस्तेमाल होने लगा। हरियाणा की पहली विधानसभा में ‘आया राम गया राम’ की रवायत ऐसी रही कि बाद में विधानसभा भंग कर राष्ट्रपति शासन लगाना पड़ा और 1968 में फिर से विधानसभा चुनाव हुए।
इसके बाद 28 जून 1979 को भजन लाल हरियाणा नें जनता पार्टी की सरकार के मुख्यमंत्री बने थे। 1980 में जब इंदिरा गांधी लोकसभा चुनाव जीत कर फिर से सत्ता में आई तो भजन लाल ने फिर पाला बदला और जनवरी 1980 में भजन लाल जनता पार्टी के सारे विधायकों को लेकर पूरे दल बल के साथ कांग्रेस में शामिल हो गए। भजन लाल को इसलिए 'आया राम, गया राम' की रवायत का पुरोधा माना जाता है।