2022 : राष्ट्रीय राजनीतिक परिदृश्य को बदल सकता है ये साल

नया साल है और नई चुनौतियां। राष्ट्रीय राजनीति के लिहाज से वर्ष 2022 बेहद महत्वपूर्ण है, सत्ता पक्ष के लिए भी और विपक्ष के लिए भी। साल 2022 देश के राजनीतिक परिदृश्य को बदल सकता है। दरअसल,ये साल अपने साथ सात राज्यों के चुनाव लेकर आया है। इन 7 राज्यों में लोकसभा की 132 सीट हैं। एक हजार से अधिक नए विधायक चुने जाएंगे जो 2022 में होने वाले राष्ट्रपति के चुनाव और राज्यसभा का शक्ति संतुलन तय करेंगे। नए साल के पहले 3 महीनों में उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, पंजाब, गोवा और मणिपुर विधानसभा के चुनाव होंगे, वहीं साल के अंत में हिमाचल प्रदेश और गुजरात में चुनाव होने है। इनके अलावा आठवें केंद्र शासित राज्य जम्मू-कश्मीर के चुनाव भी 2022 में हो सकते है। हालांकि परिसीमन की रिपोर्ट लंबित होने के चलते अभी स्थिति स्पष्ट नहीं है। राज्य विधानसभाओं के लिए सदस्यों के चुनाव और स्थानीय सरकारों के गठन के अलावा इन चुनावों का राष्ट्रीय राजनीति पर महत्वपूर्ण असर पड़ेगा। वर्तमान में इन 7 राज्यों में से 6 राज्यों मे भाजपा की सरकारें हैं। इन राज्यों में सत्ता पर काबिज़ रहने के लिए भाजपा को निसंदेह कड़ी मेहनत करनी होगी, साथ ही केंद्र की सियासत में अपने पैर जमाए रखने के लिए भी इन चुनावों में जीतना भाजपा के लिए बेहद महत्वपूर्ण है। बाकि विपक्षी दलों के लिए भी ये साल सियासी ज़मीन गहरी करने का अवसर है। स्पष्ट है कि साल 2022 में पक्ष और विपक्ष को न सिर्फ बड़े मौके मिलने हैं, बल्कि बड़ी चुनौतियां भी मिलने जा रही हैं, बस देखना है कि कौन इसमें क्या कमाल करता है।
सत्तारूढ़ भाजपा की बात करें तो 2014 के बाद कुछ सालों तक गवर्नेंस के स्तर पर भले ही चुनौतियां आती रही हैं, लेकिन राजनीतिक जमीन पर पार्टी धुंआधार बैटिंग करती रही। हालाँकि पिछले कुछ समय से राज्यों में पार्टी का प्रदर्शन उम्मीद के मुताबिक नहीं रहा है। 2019 आम चुनाव में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अगुवाई में बीजेपी को चुनावी अभियान में तमाम राज्यों में उनकी सरकार होने का लाभ मिला था। मगर 2019 के बाद से बीजेपी महाराष्ट्र, झारखंड जैसे राज्यों में सत्ता गंवा चुकी है। हरियाणा में भले पार्टी ने सरकार बनाई, लेकिन बहुमत से दूर रही। पश्चिम बंगाल चुनाव में पार्टी का प्रदर्शन अपेक्षा अनुसार नहीं रहा। ऐसे में सात राज्यों के चुनाव पार्टी के मिशन 2024 के लिहाज से भी जरूरी है।
दूसरी तरफ अगर देश की सबसे बुज़ुर्ग पार्टी कांग्रेस की बात करें तो सत्ता में वापसी तो दूर बतौर विपक्ष भी पार्टी अपना वजूद लगातार खो रही है। सात राज्यों में कांग्रेस का प्रदर्शन ये तय करेगा कि वो देश में विपक्ष का नेतृत्व करने योग्य भी रही है या नहीं। ममता बनर्जी जहाँ देशभर में एक नए गठबंधन की रूपरेखा बनाने में जुटी है तो निरंतर बेहतर होती आम आदमी पार्टी भी कांग्रेस के लिए बड़ी चुनौती है। ममता की पार्टी जहाँ गोवा में दमदार तरीके से चुनाव लड़ रही है, वहीं आम आदमी पार्टी पंजाब, उत्तराखंड और गोवा में पूरी ताकत झोंके हुए है। इसके अलावा उत्तर प्रदेश में भी आम आदमी पार्टी मैदान में है। आप का प्रदर्शन बेहतर रहा तो जाहिर है पार्टी इस साल के अंत में होने वाले हिमाचल और गुजरात विधानसभा चुनाव में भी मैदान में होंगी। ऐसे में कांग्रेस के सामने अपने पुराने और पारंपरिक वोट को दोबारा हासिल करने की बड़ी चुनौती है। अंदरूनी उथल-पुथल के दौर से गुजर रही बुजुर्ग पार्टी अगर बेहतर न कर पाई तो सत्ता सुख तो दूर, शायद विपक्ष का मुख्य चेहरा होने की प्रतिष्ठता भी खो देगी।
नड्डा को भी करना होगा खुद को साबित
2022 में चुनाव वाले राज्यों में अगर बीजेपी की पकड़ कमजोर हुई तो पार्टी और केंद्र सरकार के लिए आगे की राह बेहद कठिन हो सकती है। पार्टी के साथ- साथ आगामी वर्ष पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा के लिए भी चुनौतियों से भरपूर होने वाला। जनवरी 2020 में नड्डा निर्विरोध पार्टी के अध्यक्ष बने थे। तब से लेकर अब तक भाजपा के सितारे उभरते नज़र नहीं आए है। यहां तक कि पार्टी नड्डा के गृहक्षेत्र हिमाचल में भी चार उपचुनाव हार गई। ये साल बतौर अध्यक्ष नड्डा के कार्यकाल का अंतिम वर्ष है और उनके लिए खुद को साबित करने का अंतिम मौका भी है। आगामी तीन माह में पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव होने है और यदि यहाँ पार्टी बेहतर नहीं कर पाती है तो सवाल उठना तो लाजमी है।
उत्तर प्रदेश
केंद्र की सियासत का रस्ता उत्तर प्रदेश से होकर निकलता है, इसीलिए ये सियासी लिहाज़ से बेहद महत्वपूर्ण चुनाव है। यहां सत्ता की रेस में मुख्य रूप से बीजेपी और समाजवादी पार्टी दिख रहे है। कांग्रेस के साथ मायावती की बहुजन समाज पार्टी सहित अन्य कई दल भी मैदान में हैं। योगी आदित्यनाथ बीजेपी के पहले नेता है, जिन्होंने उत्तर प्रदेश में पांच साल का कार्यकाल पूरा किया और पार्टी ने उन्हीं के चेहरे को आगे कर चुनाव लड़ रही है। ऐसे में यह उनके लिए भी ये चुनाव अग्नि परीक्षा है।पंजाब
कांग्रेस के लिए पंजाब में सरकार बचाने की चुनौती है, तो आम आदमी पार्टी उसकी जमीन हड़पने के भरपूर प्रयास कर रही है। आम आदमी पार्टी के लिए भी यह साल तय करेगा कि वह राष्ट्रीय स्तर पर पांव पसारने के लिए किस हद तक तैयार है। हाल ही में हुए चंडीगढ़ नगर निगम चुनाव में भी आप ने कांग्रेस को पटकनी दी है। वहीं, अकाली दल ने बसपा के साथ हाथ मिला रखा है तो बीजेपी ने कैप्टन अमरिंदर सिंह की नवगठित पंजाब लोक कांग्रेस और सुखदेव सिंह ढींडसा के शिरोमणि अकाली दल (संयुक्त) पार्टी के साथ गठबंधन किया है।उत्तराखंड
उत्तराखंड में कांग्रेस और बीजेपी के साथ आम आदमी पार्टी, बसपा और कई अन्य दल मैदान में है। उत्तराखंड में 2017 में हुए विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने 57 सीट जीतकर प्रचंड बहुमत के साथ सरकार बनाई जबकि विपक्षी दल कांग्रेस को 11 सीटें मिली थी। त्रिवेंद्र सिंह रावत मुख्यमंत्री बने थे, लेकिन चार साल के बाद उन्हें हटाकर बीजेपी ने तीरथ सिंह रावत को सत्ता की कमान सौंपी और महज कुछ ही महीने में रावत की जगह पुष्कर सिंह धामी को उत्तराखंड का मुख्यमंत्री बनाया गया। उत्तराखंड में भी हिमाचल की ही तरह हर 5 वर्ष बाद सत्ता परिवर्तन का रिवाज़ है।गोवा
गोवा का आगामी विधानसभा चुनाव क्षेत्रीय दलों की राष्ट्रीय महत्वाकांक्षा के लिए टेस्टिंग लैब बनता जा रहा है। यूं तो इस राज्य में क्षेत्रीय और स्थानीय राजनीतिक दलों की बहुलता रही है, लेकिन इस बार चुनाव मैदान में अखिल भारतीय तृणमूल कांग्रेस और आम आदमी पार्टी के भी आ जाने से चुनावी माहौल में नया रंग आ गया है। ये दोनों ही पार्टियां गोवा की जमीन से अपनी राष्ट्रीय छवि सुधारने की कोशिश में नज़र आ रहीं है। उधर, बरसों सत्ता में रही कांग्रेस अपने ‘गौरवशाली अतीत’ के भरोसे है तो सत्तारूढ़ भाजपा भी कोई कसर नहीं छोड़ रही।मणिपुर
पूर्वोत्तर मणिपुर में विधानसभा की 60 सीटों पर चुनाव होंगे। 2017 में मणिपुर विधानसभा चुनाव में बीजेपी 24 सीटें जीतकर सबसे बड़े दल के रूप उभरी थी और कांग्रेस 17 विधायकों के साथ विपक्षी दल बनी थी। बीजेपी ने एनपीपी, एलजेपी और निर्दलीय विधायकों के समर्थन से सरकार बनाई और एन बीरेंद्र सिंह मुख्यमंत्री बने थे। अब बीजेपी ने एक बार फिर से मणिपुर की सत्ता बचाए रखने के लिए अपनी पूरी ताकत झोंक दी है, तो वहीं कांग्रेस भी सत्ता में वापसी के लिए बेताब है।गुजरात
गुजरात को बीजेपी की सियासी प्रयोगशाला कहा जाता है। पिछले ढाई दशक से बीजेपी यहां सत्ता पर काबिज है। पीएम नरेंद्र मोदी और अमित शाह दोनों ही गुजरात से हैं, जिसके चलते बीजेपी के लिए गुजरात सियासी तौर पर काफी अहम माना जाता है। गुजरात में कांग्रेस ने पिछली बार कांटे की टक्कर दी थी और इस बार फिर से ओबीसी-दलित-पटेल-मुस्लिम समीकरण बनाकर अपने सत्ता के वनवास को तोड़ने की जुगत में है। इस बार आम आदमी पार्टी भी गुजरात में किस्मत आजमाने की तैयारी में है। 2017 की जीत के बाद बीजेपी ने विजय रूपाणी के नेतृत्व में सरकार बनाई थी। सितंबर में बीजेपी ने पूरी रुपाणी सरकार को हटाकर भूपेंद्र भाई पटेल की अगुवाई में कैबिनेट गठित की थी। अपने सियासी प्रयोग से पार्टी ने सत्ता विरोधी लहर से निपटने का फॉर्मूला निकाला है। पार्टी कामयाब होती है या नहीं ये तो आने वाला चुनाव ही बताएगा।हिमाचल प्रदेश
हिमाचल में भाजपा हाल ही में 4 उपचुनाव हारी है। इस हार से पार्टी की छवि तो खराब हुई ही है साथ ही चार सालों से सुस्त पड़ी कांग्रेस के मनोबल में भी वृद्धि हुई है। यहां भाजपा के लिए गुटबाज़ी साधना कठिन होगा वहीं दूसरी तरफ कांग्रेस में भी अभी से अंतर्कलह के संकेत उभरते दिखाई दे रहे है। पार्टी का एक तबका मौजूदा प्रदेश अध्यक्ष के कार्य से संतुष्ट नहीं है और पूर्व अध्यक्ष को दोबारा पार्टी की कमान सौंपने की इच्छा जता रहा है। यहां जो भी पार्टी अंतर्कलह को साधने में कामयाब रहती है, उसके लिए चुनाव जीतना आसान होगा।