चेतन की पार्टी में वापसी के हक़ में एक तबका

2017 में फतेहपुर विधानसभा क्षेत्र से भाजपा नेता बलदेव ठाकुर ने बगावत का बिगुल फूंका और चुनाव लड़ा। जैसा स्वाभाविक तौर पर होता है पार्टी ने उन्हें निष्कासित कर दिया। उस चुनाव में न तो बलदेव खुद जीते और न भाजपा को जीतने दिया। इसके बाद फिर वैसा ही हुआ जैसा सियासत में आम तौर पर होता है, यानी बलदेव की घर वापसी हो गई। हालहीं में उपचुनाव हुए और 2017 में जिन बलदेव ने पार्टी के समीकऱण बिगाड़े थे उन्हें ही पार्टी ने टिकट दे दिया। जाहिर है पार्टी को बलदेव जिताऊ दिख रहे थे। यानी सियासत में कुछ भी मुमकिन है। यहाँ निष्कासन के क्या मायने होते है ये फतेहपुर के इस प्रकरण से पता चलता है। अब बात करते है भाजपा के ताजा निष्कासन की, मतलब चेतन बरागटा की। हाल ही में हुए जुब्बल कोटखाई उपचुनाव में भाजपा ने चेतन का टिकट काटा, फिर चेतन ने बगावत की, पार्टी ने निष्कासित किया और दोनों हार गए। सबकुछ ठीक वैसा ही हुआ जैसा 2017 में फतेहपुर में हुआ था, बस अंतर ये है कि तब फतहेपुर में भाजपा लड़ कर हारी थी और जुब्बल कोटखाई में तो मानो भाजपा थी ही नहीं। अब इसके आगे भी शायद वो ही हो जो फतेहपुर में हुआ, यानी घर वापसी। जानकार चेतन बरागटा की जल्द घर वापसी तय मानकर चल रहे है, बस देखना ये है कि ये घर वापसी कब होती है या नहीं होती।
हाल ही में हुए उपचुनाव में यूँ तो भाजपा सभी जगह परास्त हुई लेकिन सबसे बुरी स्थिति पार्टी के लिए जुब्बल - कोटखाई में रही। यहां पार्टी की जमानत जब्त हुई। पार्टी के हर मंथन में यहाँ टिकट आवंटन को लेकर सवाल उठे है। कहने को तो पार्टी ने करीब डेढ़ दशक से पार्टी से जुड़े नेता चेतन बरागटा के टिकट काटने का कारण परिवारवाद को बताया था, लेकिन ये तर्क किसी के गले से नहीं उतरा। ऐसा इसलिए क्यों कि चेतन ऐसे पहले नेता पुत्र नहीं है जो भाजपा में टिकट मांगने वालों में शामिल हो। भाजपा में ऐसे कई उदहारण है। चेतन तो पैराशूट से टिकट लेने भी नहीं आये थे, फिर उन्हें टिकट देने में क्या आपत्ति थी ? ये सवाल भाजपा के कार्यकर्ताओं के मन में भी था और अब भी है। इसी के चलते भाजपा का एक बड़ा तबका चेतन के समर्थन में था, जिसका खामियाजा भाजपा को भुगतना पड़ा। इस दौरान पार्टी ने चेतन और उनके समर्थकों को 6 वर्ष के लिए निष्कासित कर दिया था। पार्टी के आला नेताओं के बयान भी आये जिनमें कहा गया कि ये निष्कासन वापस नहीं होगा। पर जानकार मान कर चल रहे है कि 2022 से पहले पार्टी में चेतन की वापसी तय सी है।
वापसी होनी है तो देर नहीं करनी चाहिए !
बताया जा रहा है कि हार के बाद पार्टी के ज़ारी चिंतन - मंथन में जुब्बल कोटखाई में टिकट वितरण को हार का बड़ा कारण माना गया है, यानी पार्टी ने चेतन का टिकट काटकर चूक की है। अब जब 2022 का काउंटडाउन शुरू हो चूका है, ऐसे में पार्टी का एक वर्ग चेतन की जल्द वापसी का हिमायती बताया जा रहा है। 68 विधानसभा सीटों वाले हिमाचल प्रदेश में एक -एक सीट बेहद महत्वपूर्ण ही और ऐसे में पार्टी को जल्द तय करना होगा की चेतन की वापसी होगी या नहीं। यदि 'पार्टी विथ डिफ्रेंस' भाजपा 6 साल के लिए अपने दरवाजे चेतन के लिए बंद कर चुकी है तो भाजपा को अभी से 2022 के लिए जुब्बल कोटखाई में अपनी जमीन तैयार करनी होगी, ताकि उपचुनाव जैसी स्थिति टाली जा सके। पार्टी को जहन में रखना होगा कि उक्त क्षेत्र में कांग्रेस जमीनी तौर पर काफी मजबूत है, ऐसे में देरी उचित नहीं।