चुनौती : कंधों पर कर्ज का बोझ और हाथ में खाली खज़ाने की चाबी

एक कंधे पर प्रदेश की जनता की बेतहाशा उम्मीदें और दूसरी तरफ खाली सरकारी खजाने की चाबी लिए प्रदेश सरकार दिन प्रति दिन कर्ज के दलदल में धंसती जा रही है। प्रदेश में भाजपा सरकार के चार साल पूरे होने को है। सरकार से हर वर्ग की अपनी मांगे है, अपनी उम्मीदें है। कोई सवर्ण आयोग चाहता है, कोई वेतन, कोई पुरानी पेंशन की टेंशन को दूर करने की उम्मीद लगाए बैठा है, तो कुछ ऐसे भी है जिन्हें नौकरी ही नहीं मिली। बर्फबारी के बाद किसान-बागवान मुआवजा मांग रहे है और व्यापारी टैक्स में कटौती। खून चूसती महंगाई तो हर घर का मसला है। सबकी उम्मीद भरी निगाहें सरकार पर टिकी है और हो भी क्यों ना, ये वो ही है जिन्होंने सत्ता में आने से पहले प्रदेश की जनता पर वादों की बौछार की थी। अब जो वादा किया वो निभाना तो पड़ेगा। बात सिर्फ सत्ता में आने से पहले की नहीं है, हाल फिलहाल भी सरकार ने कई बड़ी घोषणाएं की है, कई आश्वासन दिए, जो कैग की रिपोर्ट के सामने आने के बाद तो पूरे होते नहीं दिखाई दे रहे। कैग की रिपोर्ट में पेश किये गए आंकड़ों पर गौर किया जाए तो प्रदेश की खराब स्थिति समझने के लिए किसी को अर्थ शास्त्री होने की जरूरत नहीं है। कोई आम आदमी भी साफ समझ सकता है कि प्रदेश की आर्थिकी किस ओर अग्रसर है। नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक यानि कैग की रिपोर्ट में ये स्पष्ट हुआ है कि पिछले वर्ष (₹53,147 करोड़) की तुलना में 14.57% की वृद्धि के साथ वित्तीय वर्ष 2019-20 में हिमाचल प्रदेश का कर्ज का बोझ बढ़कर 62,212 करोड़ हो गया है। प्रदेश का राजकोषीय घाटा 5597 करोड़ दर्ज किया गया है। रिपोर्ट के मुताबिक 2019-20 में प्रदेश की राजस्व प्राप्तियों में 204.92 करोड़ की कमी आई है। 2018-19 के 30,950.28 करोड़ के मुकाबले 2019-20 में राजस्व प्राप्तियां घटकर 30,745.32 करोड़ रहीं। राजस्व प्राप्तियों में भी 67 फीसदी हिस्सा केंद्रीय करों में हिस्सेदारी व केंद्र सरकार से मिलने वाली सहायता अनुदान राशि का है। प्रदेश के अपने संसाधनों से खजाने में सिर्फ 33 फीसदी राजस्व आया है। इसके अलावा, पूंजीगत व्यय पिछले वर्ष के ₹4,583 करोड़ की तुलना में 13% (₹591 करोड़) बढ़कर ₹5,174 करोड़ हो गया और कुल व्यय में 14% का गठन किया। सिर्फ यही नहीं वित्त वर्ष 2019-20 की इस रिपोर्ट के मुताबिक हिमाचल सरकार ने पेयजल, सड़क, पर्यटन, ऊर्जा आदि से संबंधित 96 विकास योजनाओं पर फूटी कौड़ी तक खर्च नहीं की। इन योजनाओं पर बजट को खर्च न करने का कारण भी नहीं बताया गया है। इनमें से कोई भी योजना एक करोड़ से कम बजट की नहीं है।
आमदनी अट्ठनी, खर्चा रुपया
निसंदेह ये कर्ज का पहाड़ प्रदेश की अर्थव्यवस्था की खिल्ली उड़ाता जा रहा है। 62 हजार करोड़ को पार कर चुके इस कर्ज के आंकड़े से स्पष्ट होता है कि बजटीय प्रावधानों और आर्थिक प्रबंधन को संयोजने में लगे सरकारी अधिकारी वक्त बर्बाद करते रहे और सरकार सोती रही। या सरकार फिजूल खर्चे करती गई और अफसर खामोश बैठे देखते रहे। ऐसी स्थिति तो तब ही पैदा हो सकती है जब महत्वकांक्षाएं व्यक्ति की आमदनी से ज्यादा बढ़ जाए। प्रदेश की आमदनी घटने का एक बड़ा कारण कोरोना काल भी रहा है। इस दौरान केवल प्रदेश ही नहीं बल्कि पूरे देश की वित्तीय व्यवस्था डगमगाई है जो अब तक पूरी तरह पटरी पर नहीं लौट पाई है। इसी के साथ प्रदेश में राजस्व प्राप्तियां घटी है जबकि खर्च बढ़ा है। कैग के मुताबिक 2019-20 में प्रदेश की राजस्व प्राप्तियों में गिरावट दर्ज हुई और ये सिर्फ 33 फीसद प्राप्त हुआ। दूसरी ओर खर्चों में करीब साढ़े पांच फीसद की वृद्धि दर्ज हुई। ये भी स्पष्ट हुआ है कि 2019-20 में 53708 करोड़ रुपये के बजट व अनुदान प्रविधानों के मुकाबले 45528 करोड़ रुपये की रकम खर्च की गई है । इसमें 8229.36 करोड़ की बचतें भी शामिल हैं और इसके साथ ही 49.91 करोड़ का अधिक खर्च किया गया है ।
कैग रिपोर्ट में इस बात का भी खुलासा हुआ है कि सरकार ने प्रदेश के शहरी व ग्रामीण निकायों, शैक्षणिक संस्थाओं और विकास प्राधिकरण के लिए वित्तीय सहायता देना कम किया है। पांच साल की आकलन रिपोर्ट के मुताबिक कोरोना काल से एक साल पहले 2019-20 में ग्रामीण व शहरी निकायों को 1509.61 करोड़ रुपये की वित्तीय सहायता दी है, जबकि वर्ष 2018-19 के दौरान इन निकायों को 1514.06 करोड़ की सहायता की थी। दूसरी ओर शिक्षण संस्थानों, अस्पतालों एवं अन्य धर्मार्थ संस्थान व विकास प्राधिकरण को 2019-20 में 1996.87 करोड़ रुपये की वित्तीय सहायता दी है। इसके विपरीत वर्ष 2018-19 के दौरान इन क्षेत्रों को 2119.89 करोड़ की सहायता दी है।
प्रदेश को आर्थिक सुधारों, सुशासन तथा सरकारी कार्यसंस्कृति में बदलाव की आवश्यकता है और विपक्ष के लिए भी जरुरी है कि बतौर ज़िम्मेदार विपक्ष पथ से भटकती सरकार को वापस ट्रैक पर लाया जाए। परन्तु सत्ता का वनवास झेलता विपक्ष उन्हीं मुद्दों को चुनता नज़र आ रहा है जिससे सरकार की स्थिति और खराब होती जाए। प्रदेश के आर्थिक हालात, स्वरोजगार और निजी निवेश के जरिए रोजगार पर चर्चा के बजाय कर्मचारी सियासत को साधने में विपक्ष मसरूफ है। इस खाली जेब के साथ मसले महज घोषणाओं से सुलझ जाएंगे ऐसा नहीं लगता। प्रदेश सरकार ने हाल ही में जेसीसी की बैठक की थी, जिसमें कई बड़ी घोषणाएं की गई। उन वादों को पूरा करने के लिए 18 से 20 हजार करोड़ रुपये की रकम जुटाना 62 हजार करोड़ रुपये के कर्ज में डूबी सरकार के लिए चुनौती होगा, वहीं अब असंतुष्ट कर्मचारियों और अन्य वर्गों को न्यायोचित वित्तीय लाभ देना कैसे संभव हो पाता है ये बड़ा सवाल है। इस पर अगले वित्तीय वर्ष में केंद्र से लगभग 12 हजार करोड़ रुपये कम ग्रांट मिलने वाली है।
पर्यटन को बढ़ावा देने से बदल सकती है स्थिति
हिमाचल की आर्थिकी को सुदृढ़ करने में पर्यटन एक अहम भूमिका निभा सकता है। कोरोना काल के दौरान पर्यटन को एक बड़ा झटका लगा है। प्राकृतिक सौंदर्य से लबरेज हिमाचल प्रदेश में धार्मिक व साहसिक पर्यटन की भरपूर संभावना है। पर्यटन को प्रदेश की आर्थिकी का अहम हिस्सा माना जाता है और इसे बढ़ावा देने से स्थिति बेहतर हो सकती है। अपार संभावनाओं के बावजूद पहाड़ी प्रदेश हिमाचल में पर्यटन क्षेत्र में विकास की रूपरेखा नहीं बन सकी है। यदि सरकार एक बेहतर सोच के साथ पर्यटन को बढ़ावा दे तो स्थिति बेहतर होगी। सरकार भीड़-भाड़ वाले पर्यटन स्थलों पर बोझ कम कर के कम आकर्षण वाले स्थानों का विकास सुनिश्चित करके पर्यावरण पर्यटन (ईको-टूरिज्म) के विकास की भी परिकल्पना की जा सकती है। न सिर्फ संगठित क्षेत्र में बल्कि मोटे तौर पर असंगठित क्षेत्र में पर्यटन की महत्वपूर्ण भूमिका है। सरकार को एक दूरगामी सोच के साथ कार्य करने की आवश्यकता है। आधारभूत ढांचे और और मजबूत किए जाने की आवश्यकता है।
अब तक धरातल पर नहीं दिखी इन्वेस्टर मीट
हिमाचल प्रदेश में 2019 में हुई इन्वेस्टर्स मीट के बाद अब तक सिर्फ 13,488 करोड़ का निवेश ही धरातल पर उतरा है। बता दें कि इन्वेस्टर मीट में कुल 703 एमओयू किए गए थे, जिनमें 96720.88 करोड़ रुपए का निवेश प्रस्तावित है। अब तक 236 में से 96 परियोजनाओं में 2710 करोड़ का निवेश हुआ है। 104 परियोजनाओं में निर्माण कार्य प्रगति पर है तथा शेष 36 परियोजनाएं कोरोना महामारी व अन्य कारणों से शुरू नहीं हो सकी हैं। दूसरी ग्राउंड ब्रेकिंग जल्द ही प्रस्तावित है। इन्वेस्टर मीट के बाद समझौतों में कुल 1 लाख 96 हजार से ज्यादा लोगों को रोजगार संभावित है। प्रदेश में इन्वेस्टर मीट करवा आर्थिकी को सुधारने की सरकार की सोच अच्छी ज़रूर थी मगर अब तक इसका खास प्रभाव नहीं दिख पाया है। प्रदेश में नए उद्योगों के आने से आर्थिक व्यवस्था सुधर सकती है। अगर इस प्रस्तावित निवेश को सरकार हिमाचल ला पाई तो निसंदेह प्रदेश में रोज़गार भी बढ़ेगा और आर्थिक स्थिति भी बेहतर होगी।