मुद्दों का जिन्न : जनता दरबार में लगेगी नेताओं की क्लास

" बस्ती में तुम ख़ूब सियासत करते हो, बस्ती की आवाज़ उठाओ तो जानें " फ़ैज़ जौनपूरी का ये शेर व्यापक तौर पर सियासत की असल तस्वीर है। पहले वादे करना और फिर उन वादों को तोड़ देना, ये पुरानी सियासी रवायत है। ऐसे कई नेता है जिन्हें कुर्सी मिलने के बाद अपने क्षेत्र की समस्याओं से कोई सरोकार नहीं होता। वो कहते है न हमारे देश में चुनाव दो चरणों में होते है, पहले नेता जनता के चरणों में होते है और फिर पांच साल जनता नेताओं के चरणों में। पर लोकतंत्र की खूबसूरती ये ही है कि पांच साल में ही सही नेताओं को जनता दरबार में हाजिरी भी भरनी पड़ती है और पांच साल का हिसाब भी देना पड़ता है। 2022 की शुरुआत हो चुकी है और इस वर्ष के अंत में हिमाचल प्रदेश में विधानसभा चुनाव होने है। नेताओं का रिपोर्ट कार्ड बनेगा भी और जनता दरबार में पेश भी होगा। कोई आरोप लगाएगा तो कोई सफाई पेश करेगा। कोई उपलब्धियां गिनायेगा तो कोई कमियां उजागर करेगा। पुराने मुद्दे भी कब्र से बाहर निकलेंगे और नेताओं को नए सियासी वचन भी देने होंगे। बहरहाल, हिमाचल प्रदेश में कई ऐसे बड़े मुद्दे है जो आगामी विधानसभा चुनाव में जनमानस के जहन में होंगे। इनमें कई प्रदेश स्तरीय मुद्दे है, कई संसदीय क्षेत्रों के तो कई ज़िलों और विधानसभा क्षेत्रों के लिहाज से महत्वपूर्ण है। ऐसे ही कुछ मुद्दों को फर्स्ट वर्डिक्ट ने टटोला जो अगली सरकार चुनते वक्त प्रदेश के मतदाता के लिए महत्वपूर्ण हो सकते है। यहाँ न सिर्फ ये महत्वपूर्ण होगा कि वर्तमान सरकार ने इस संदर्भ में क्या किया बल्कि विपक्ष का रवैया भी अहम होने वाला है। इनमें से कई मुद्दे दशकों पुराने है, सो मतदाता के जहन में ये भी रहेगा कि जो विपक्ष आज हल्ला मचा रहा है, सत्ता में रहते वक्त उसका क्या रुख था। पेश है ऐसे ही कुछ चुनिंदा मुद्दों पर फर्स्ट वर्डिक्ट का विशेष संस्करण
सियासी अतीत
1985 में हुआ था रिपीट
हिमाचल प्रदेश में हर पांच साल में सत्ता परिवर्तन का सियासी रिवाज है। अंतिम बार वर्ष 1985 में वीरभद्र सिंह मिशन रिपीट में कामयाब हुए थे, उसके बाद कोई सरकार रिपीट नहीं कर पाई। इसी सत्ता परिवर्तन थ्योरी से कांग्रेस उत्साहित है, तो वहीं जयराम ठाकुर इतिहास रचने में कोई कसर नहीं छोड़ना चाहते।
1990 में सीटिंग सीएम हारे
वीरभद्र सिंह हिमाचल प्रदेश की सियासत के सबसे कद्दावर नेता माने जाते है। वीरभद्र सिंह 6 बार मुख्यमंत्री रहे पर एक मौका ऐसा भी आया जब सीएम रहते हुए भी वे चुनाव हार गए। 1990 के विधानसभा चुनाव में वीरभद्र सिंह जुब्बल कोटखाई से चुनाव हार गए और उन्हें हराने वाले थे पूर्व मुख्यमंत्री ठाकुर रामलाल। हालांकि वीरभद्र सिंह रोहड़ू से भी चुनाव लड़े थे जहां से उन्हें जीत मिली।
1993 में चली कर्मचारी लहर
1990 में शांता कुमार प्रचंड बहुमत के साथ सत्ता में आये थे पर इन दो साल में शांता सरकार के खिलाफ कर्मचारी वर्ग सड़कों पर था। शांता सरकार की "नो वर्क नो पे" की नीति ने उनकी सरकार की विदाई का सारा बंदोबस्त कर दिया था। ताबूत में आखिरी कील साबित हुई 1992 में बाबरी विध्वंस के बाद बीजेपी शासित राज्य सरकारों की बर्खास्ती। 1993 में राज्य में चुनाव हुए, और भाजपा को शिकस्त मिली। इस चुनाव में शांता अपनी सीट भी नहीं बचा पाए।
1998 में किंगमेकर बने पंडित सुखराम
1998 के विधानसभा चुनाव में पंडित सुखराम की हिमाचल विकास कांग्रेस ने वीरभद्र सिंह के मिशन रिपीट के अरमान पर पानी फेर दिया था। पंडित सुखराम के पांच विधायक जीतकर आये थे जिनके समर्थन से प्रो. प्रेम कुमार धूमल मुख्यमंत्री बने और पांच साल सरकार चलाई। ये इकलौता मौका था जब इस तरह कोई तीसरा दल हिमाचल में किंगमेकर बना हो।
2003 में सीएम नहीं बन पाई मैडम स्टोक्स
2003 में कांग्रेस की सत्ता वापसी हुई और मुख्यमंत्री पद के लिए कांग्रेस की तत्कालीन प्रदेश अध्यक्ष विद्या स्टोक्स ने वीरभद्र सिंह को चुनौती दे दी। वीरभद्र सिंह के विरोधियों का साथ भी तब मैडम स्टोक्स को मिलता दिखा। बताया जाता है कि तब मैडम स्टोक्स दिल्ली पहुँच चुकी थी पर वीरभद्र सिंह ने शिमला में अपना तिलिस्म साबित कर दिया। वीरभद्र सिंह ने मीडिया के सामने अपने 22 विधायकों की परेड करा कर अपनी ताकत का अहसास आलाकमान को करवा दिया।
2007 में प्रदेश की सत्ता में फिर भाजपा
2007 में प्रदेश की सत्ता में फिर भाजपा की वापसी हुई और प्रो प्रेम कुमार धूमल दूसरी बार मुख्यमंत्री बने। तब प्रदेश भाजपा में शांता गुट भी मजबूत हुआ करता था और भाजपा की अंदरूनी खींचतान चरम पर थी। किन्तु प्रो. धूमल ही पार्टी आलाकमान का विश्वास जीतने में कामयाब हुए। इस चुनाव में भी सत्तारूढ़ कांग्रेस के कई मंत्रियों की हार हुई थी।
वीरभद्र बोले, 'मैं ढोलक बजाऊंगा और सेना नृत्य करेगी'
साल 2012 के विधानसभा चुनाव से पहले वीरभद्र सिंह केंद्र की सियासत छोड़ वापस हिमाचल लौट आए थे। आलाकमान वीरभद्र के हाथ कांग्रेस की कमान सौंपने के लिए राज़ी नहीं था। पिछले कई साल से प्रदेश में कांग्रेस की जड़ें मज़बूत कर रहे कौल सिंह ठाकुर और आलाकमान के करीबी सुखविंदर सिंह सुक्खू मुख्यमंत्री पद के प्रबल दावेदार थे। मगर प्रेस कॉन्फ्रेंस कर वीरभद्र ने आलाकमान को दो टूक चेतावनी दी, 'मैं ढोलक बजाऊंगा और सेना नृत्य करेगी। 'आलाकमान झुका और वीरभद्र सिंह के नेतृत्व में चुनाव लड़ा गया और वे छठी बार सीएम बने।
भाजपा को तो जीता दिया पर धूमल हार गये
18 दिसंबर 2017 को हिमाचल प्रदेश विधानसभा चुनाव के नतीजे आये और भाजपा की सरकार बनी। पर पूर्व मुख्यमंत्री और भाजपा के सीएम उम्मीदवार प्रो. प्रेम कुमार धूमल 1911 वोटों से परास्त हो गए। कहते है इस चुनाव में भाजपा की स्थिति अच्छी नहीं थी, इसी के चलते 30 अक्टूबर को राजागढ़ की रैली में अमित शाह ने धूमल को सीएम फेस घोषित किया। धूमल ने भाजपा को तो जीता दिया लेकिन जनता ने धूमल को ही हरा दिया। इस चुनाव में वीरभद्र कैबिनेट के पांच मंत्री हारे थे।