अब वो होगा जो मंज़ूर-ए-आलाकमान होगा | Himachal News

कौन डटा रहेगा और किसे कुर्सी का मोह त्याग आगे बढ़ना होगा कुछ कह नहीं सकते। पर बदलाव होगा ये निश्चित है। स्वयं मुख्यमंत्री भी ये कह चुके है कि उपचुनाव की उस करारी शिकस्त के बाद अब वो होगा जो मंज़ूर-ए-आलाकमान होगा। कयासों की सुई अब संगठन और मंत्रिमंडल पर आकर टिक गई है। हालांकि कौन रहेगा और किसकी विदाई होगी अभी कुछ कह नहीं सकते। नगर निगम चुनाव और उपचुनाव में मिली हार के बाद, प्रेशर पॉलिटिक्स का दंश झेल रही भाजपा और भी कई मुसीबतों से गुज़र रही है। पार्टी विद डिसिप्लिन में व्यापक बदलाव की दरकार भी है और सुगबुगाहट भी। पहले तो मुख्यमंत्री तक बदलने के कयास लग रहे थे मगर अब माहौल थोड़ा ठंडा है तो ऐसा कुछ होता नहीं दिखाई दे रहा। पर मंत्रिमंडल के नॉन परफार्मिंग मंत्रियो पर अब भी बदलाव की तलवार लटक रही है। इस पर मुख्यमंत्री का दिल्ली दौरा भी खूब चर्चा में है।
प्रदेश मंत्रिमंडल के कई मंत्री ऐसे है जो खुद को साबित करने में विफल रहे है। कई मौकों के बावजूद भी जो न तो अपना दमखम दिखा पाए और न ही अपनी साख बचा पाए। कई अपने शब्दों को लेकर विवादों में रहते है और कई अपने बर्ताव को लेकर। उपचुनाव में पार्टी ने जल शक्ति मंत्री महेंद्र सिंह ठाकुर को मंडी संसदीय सीट के लिए, बिक्रम ठाकुर को फतेहपुर के लिए, और मंत्री सुरेश भारद्वाज को जुब्बल कोटखाई उपचुनाव के लिए प्रभारी नियुक्त किया था। इनके आलावा मंत्री गोविन्द सिंह ठाकुर और मंत्री राम लाल मारकंडा पर भी अपने -अपने क्षेत्रों से लीड दिलवाने का जिम्मा था। पर ये सभी असफल रहे। हार मिली या जीत कम से कम उपचुनाव में ये मंत्री फील्ड पर दिख रहे थे। इनके अलावा कुछ ऐसे मंत्री भी है जिनका उपचुनाव के दौरान कोई ख़ास प्रभाव देखने को नहीं मिला। जैसे की मंत्री राजेंदर गर्ग, सरवीण चौधरी, और मंत्री सुखराम चौधरी।
भाजपा की तीन दिवसीय कार्यसमिति की बैठक के बाद ये तर्क दिया गया भाजपा के कार्यकर्ता व नेताओं में अतिआत्मविश्वास था और इसीलिए भाजपा उपचुनाव हारी। हालाँकि असल में आत्मविश्वास वाली स्थिति भी सिर्फ मंडी में देखने को मिल रही थी। लग रहा था मानों कार्यकर्ताओं को केवल मुख्यमंत्री पर भरोसा है। परिणाम भी कुछ ऐसे ही बाहर आए। शिक्षा मंत्री गोविंद ठाकुर के जिला कुल्लू की चारों सीटों पर भाजपा पिछड़ी। मंत्री के अपने निर्वाचन क्षेत्र में भी पार्टी को लीड नहीं मिली। यानि मंडी संसदीय उपचुनाव के इम्तिहान में गोविन्द सिंह ठाकुर पूरी तरह फेल हो गए। इसमें कोई संदेह नहीं है कि यदि मंत्री के जिला में पार्टी अच्छा करती तो जीत हार का अंतर खत्म किया जा सकता था। तकनीकी शिक्षा मंत्री डा. रामलाल मारकंडा के क्षेत्र में भी स्थिति कुछ ऐसी ही थी। मंत्री अपने हलके व गृह जिले में भाजपा की साख नहीं बचा पाए। लाहौल स्पीति में कांग्रेस प्रत्याशी को बढ़त मिली। लाहुल स्पीति के विधायक एवं तकनीकी शिक्षा मंत्री डा. रामलाल मारकंडा जिला परिषद के चुनाव में भी कुछ अच्छा नहीं कर पाए थे। जिला परिषद् के चुनाव में भी भाजपा को हार मिली थी। इस पर मंत्री का लड़ाई वाला वायरल वीडियो भी एक ऐड ऑन फैक्टर है।
बात विवादों की हो तो ज़िक्र मंत्री महेंद्र सिंह ठाकुर और मंत्री सुरेश भारद्वाज का भी ज़रूरी है। अपने बयानों को लेकर दोनों ही खूब चर्चा में रहते है। मंत्री महेंद्र ठाकुर को मंडी संसदीय उपचुनाव का प्रभारी बनाया गया था। पर वे भी चुनाव प्रचार प्रसार में अधिक प्रभावशाली नहीं दिखे। वहीं मंत्री सुरेश भारद्वाज के हलके में जो हुआ उसे तो भूलना भी असंभव है। जुब्बल कोटखाई की हार को भाजपा के इतिहास का काला अध्याय कहा गया। यहां देश की सबसे बड़ी पार्टी के प्रत्याशी की जमानत जब्त हो गई। यहां संगठन भी टूटा और कार्यकर्त्ता भी पार्टी से रूठ गया। स्थिति सुधरने के बजाए दिन प्रति दिन बिगड़ती चली गई। चुनाव प्रभारी सुरेश भारद्वाज अपने कार्यकर्ताओं को मनाने में पूरी तरह विफल रहे और नतीजा अब सभी के सामने है। फतेहपुर के चुनाव प्रभारी, उद्योग मंत्री बिक्रम सिंह ठाकुर व सेह प्रभारी वन मंत्री राकेश पठानिया ने भी फेल हुए है। विशेषकर बिक्रम ठाकुर के लिए ये बड़ी हार है। इससे पहले पालमपुर नगर निगम चुनाव में भी मंत्री प्रभारी थे और भाजपा को करारी शिकस्त मिली थी। अब इन मंत्रियों के रिपोर्ट कार्ड पर क्या रिपोर्ट आती है इसपर सबकी निगाहें टिकी हुई है।
बिंदल की वापसी के पक्ष में एक तबका
कई मंत्रियों के एग्ज़िट के साथ साथ कुछ की मंत्रिमण्डल में एंट्री होने की सुगबुगाहट भी है। एक बड़ा तबका चाहता है कि भाजपा के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष व नाहन से विधायक डॉ राजीव बिंदल ककी संगठन या मंत्रिमंडल में वापसी हो। इसको लेकर प्रेशर पॉलिटिक्स की शुरुआत भी हो चुकी है। बिंदल के समर्थकों के इस्तीफे आना भी शुरू हुए है। ये सच है कि बिंदल भी बतौर प्रभारी अर्की उपचुनाव और सोलन नगरनिगम चुनाव में अच्छा नहीं कर पाए पर उनकी ज़मीनी पकड़ पर कोई संशय नहीं है और उनके समर्थकों का दबाव तो है ही। अब बिंदल की एंट्री होती है तो किसके स्थान पर होगी ये बड़ा सवाल है और अगर नहीं होती तो उन्हें मैनेज कैसे किया जाए ये भी बड़ा सवाल है।
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