मुलाकातों में माहिर देख रहे संभावित सियासी मुक्का-लात

सत्ता विरह झेल रही कांग्रेस में पद और कद की जंग शुरू हो चुकी है। अलबत्ता, अभी विधानसभा चुनाव में एक वर्ष का वक्त शेष है लेकिन किसके हाथ में क्या है और कितना है, इसका गुणा-भाग पार्टी की अंदरूनी राजनीति के लिहाज से बेहद जरूरी है। सो चाहवान हिसाब-किताब भी बराबर रख रहे है और जरूरत के लिहाज से शक्ति की नुमाईश भी हो रही है। इस बीच भाजपा सरकार की टांग खिंचाई भी बदस्तूर जारी है। बुजुर्ग पार्टी में नया अपडेट ये है कि नेताओं को आजकल दिल्ली खूब भा रही है। दिल्ली में लगातार मुलाकातों का सिलसिला चला हुआ है, और माहिर इन मुलाकातों में संभावित सियासी मुक्का-लातों को अभी से देखने लगे है। दरअसल पार्टी का एक तबका प्रदेश में नेतृत्व परिवर्तन चाह रहा है। इसलिए आलाकमान के दरबार में हाज़री भर दरख्वास्त के साथ-साथ सियासी बल भी दिखाया जा रहा है, ताकि आलाकमान संतुलन सुनिश्चित करें।
पार्टी के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष सुखविंद्र सिंह सुक्खू के समर्थक अभी से उन्हें बतौर भावी मुख्यमंत्री प्रोजेक्ट कर आगे बढ़ रहे है। पार्टी के 22 विधायकों में से अगर सुक्खू समर्थकों की तादाद देखी जाए तो भी सुक्खू को दरकिनार करना पार्टी के लिए आसान नहीं है। उपचुनाव में जीत कर आए तीन विधायकों में से भी दो सुक्खू गुट के है। इसमें भी कोई संदेह नहीं है कि सुक्खू की जमीनी संगठन पर अच्छी पकड़ है और वो उन गिने चुने नेताओं में से है जिनके समर्थक अमूमन प्रदेश के हर निर्वाचन क्षेत्र में है। ऐसे में जाहिर है सुक्खू को न तो नज़रअंदाज किया जा सकता है और न ही चुनावी बेला में उन्हें किसी महत्वपूर्ण पद से वंचित रखा जाना आसान है। समर्थक प्रदेश अध्यक्ष पद या नेता प्रतिपक्ष के पद पर उनकी तैनाती चाहते है, लेकिन मौजूदा प्रदेश अध्यक्ष कुलदीप सिंह राठौर की अगुवाई में पार्टी के अच्छे प्रदर्शन के बाद राठौर को हटाना न तो आसान है और न ही जायज। दूसरा होली लॉज से दूरी सुखविंदर सिंह सुक्खू के लिए हमेशा चुनौती रही है। पूर्व मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह उन्हें ख़ास पसंद नहीं करते थे और माना जाता है ये ही सुक्खू के अपदस्थ होने का मुख्य कारण भी रहा। अब वीरभद्र सिंह के निधन के बाद समीकरण कुछ बदले जरूर है, लेकिन ये जहन में रखना होगा कि होली लॉज का जलवा भी बरकरार है।
राठौर के अलावा नेता प्रतिपक्ष मुकेश अग्निहोत्री को भी पद से हटाना तर्कसंगत नहीं लगता। अग्निहोत्री भी उन नेताओं में से है जिन्हें सत्ता वापसी की स्थिति में मुख्यमंत्री पद का दावेदार माना जा रहा है। बतौर नेता प्रतिपक्ष अग्निहोत्री खुद को साबित करने में सफल रहे है। सरकार को कब, कहाँ और कितना घेरना है, ये भी अग्निहोत्री बखूबी जानते है। अग्निहोत्री की राह इसलिए भी आसान रही है क्यूंकि उन्हें होलीलॉज का आशीर्वाद मिलता रहा है। संभवतः आगे भी होली लॉज का समर्थन उनके साथ ही रहे। ऐसी स्थिति में उन्हें उनके पद से हटाने का फैसला कांग्रेस लेगी, ऐसा नहीं लगता।
किसी गुट में नहीं, इसीलिए राठौर मजबूत
कांग्रेस हाल ही में प्रदेश अध्यक्ष कुलदीप राठौर के नेतृत्व में चार उपचुनाव जीती है। इससे पूर्व भले ही राठौर के नेतृत्व पर सवाल खड़े होते रहे हो, मगर उपचुनाव के बाद उनके निष्पक्ष स्वभाव और काम करने के तरीके की खूब तारीफ हुई है। राठौर एक ऐसे नेता है जो किसी गुट विशेष के करीबी नहीं माने जाते और ये ही उनकी सबसे बड़ी ताकत है। राठौर को हटाकर यदि किसी गुट विशेष के हाथ में संगठन की कमान जाती है तो जाहिर है असंतोष बढ़ सकता है। पर ये भी जहन में रखना होगा कि उपचुनाव में वीरभद्र सिंह के लिए उमड़ी सहानुभूति लहर और बढ़ती महंगाई कांग्रेस को मिली जीत के बड़े कारण थे। रही-सही कसर भाजपा की अंतर्कलह और भीतरघात ने पूरी कर दी। सो इस बात को भी नहीं नकारा जा सकता कि जमीनी स्तर पर पार्टी के संगठन को धार देने की सख्त जरूरत है।
होलीलॉज का भी दावा
कयास थे की पूर्व मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह के निधन के बाद होली लॉज का तिलिस्म ध्वस्त हो जाएगा। वीरभद्र परिवार के वर्चस्व पर एक बड़ा और गहरा संकट खड़ा हो जाएगा, मगर हुआ उलट। मंडी संसदीय उपचुनाव में जीत दर्ज कर प्रतिभा सिंह ने साबित कर दिया कि प्रदेश की सियासत में होल्ली लॉज का जलवा बरकरार है। साथ ही जिस तरह का जनसमर्थन अब तक विक्रमादित्य सिंह को मिला है, वो साबित करता है कि वीरभद्र कैंप का सियासी रसूख बरकरार रहने वाला है। सम्भवतः इस वक्त विक्रमादित्य सिंह कांग्रेस के सबसे बड़े क्राउड कैचर है। ऐसे में होली लॉज समर्थक मंडी सांसद प्रतिभा सिंह का नाम न सिर्फ प्रदेश अध्यक्ष के लिए बल्कि मुख्यमंत्री पद के लिए आगे बढ़ा रहे है।
युवा कांग्रेस का फार्मूला बनेगा समाधान
बीते वर्ष युवा कांग्रेस अध्यक्ष पद के लिए चुनाव हुए और इस चुनाव में वीरभद्र गुट और सुक्खू गुट, दोनों के उम्मीदवार मैदान में थे। बाजी सुक्खू के समर्थक निगम भंडारी मार ले गए लेकिन संतुलन बनाये रखने के लिए कार्यकारी अध्यक्ष का पद वीरभद्र गुट के यदुपति ठाकुर को दिया गया। ऐसे में सवाल ये है कि क्या प्रदेश के मुख्य संगठन में भी कार्यकारी अध्यक्ष का पद सृजित किया जा सकता है ताकि संतुलन बना रहे। कुलदीप राठौर को हटाए बगैर पार्टी सुक्खू गुट से किसी नेता को कार्यकारी अध्यक्ष पद का कार्यभार देने पर विचार कर सकती है। एक से अधिक कार्यकारी अध्यक्ष भी बनाये जा सकते है और ऐसे में क्षेत्रीय समीकरण साधने, विशेषकर कांगड़ा को प्रतिनिधित्व भी दिया जा सकता है।