सोलन भाजपा : 2022 दूर, पर जड़ खुदाई अभी से शुरू

- अनुशासन है नहीं, पर सपना है 2022 में शासन पाने का
2022 में सोलन निर्वाचन क्षेत्र से भाजपा का चेहरा कौन होगा ये तो समय के गर्भ में छीपा है, किन्तु सोलन भाजपा में अभी से जड़ खुदाई शुरू हो गई है। नगर निगम में हार का ठीकरा दोनों गुट एक दूसरे पर फोड़ रहे है, बड़े नेता बेशक चुप है, लेकिन कार्यकर्ता सोशल मीडिया पर भड़ास निकाल रहे है। अनुशासन है नहीं, पर सपना है 2022 में शासन पाने का। बदलते समीकरणों के बीच चेहरे की जंग अभी से प्रखर होती दिख रही है। किस ओर जा रही है सोलन भाजपा की सियासत, क्या बन सकते है समीकरण ये जानने - समझने के लिए बात 2017 के चुनाव से शुरू करनी होगी। 2017 के विधानसभा चुनाव से पहले सोलन निर्वाचन क्षेत्र से भाजपा टिकट के लिए सिर्फ दो नाम चर्चा में थे, एक कुमारी शीला और दूसरा तरसेम भारती। थोड़ी बहुत कोशिश हीरानंद कश्यप भी करते रहे पर वो कभी रेस में दिखे नहीं। पर चुनाव से ठीक पहले डॉ राजेश कश्यप पैराशूट से आए और टिकट ले गए। कहते है टिकट दिलाने वाले थे डॉ राजीव बिंदल। इस टिकट ने तरसेम भारती और कुमारी शीला के अरमान कुचल दिए थे। रोचक बात ये है कि बिंदल के चहेते भी तब शीला के साथ खड़े दिखे थे, मंशा दिलासा देना था या बहलाना, इसे लेकर सबका अपना -अपना विश्लेषण है। खैर डॉ राजेश कश्यप चुनाव हार गए, पर कहते है चुनाव में बिंदल के कुछ ख़ास लोगों ने उनके पक्ष में काम नहीं किया। सो तभी से बिंदल गुट और उनके बीच एक खाई बन गई। आहिस्ता-आहिस्ता कश्यप सोफत गुट के नजदीकी हो गए। वहीं महेंद्र नाथ सोफत जिनका डॉ राजीव बिंदल के साथ मनभेद जगजाहिर है। 2017 से अब तक 40 माह में डॉ राजीव बिंदल का सियासी सफर किसी रोलर कोस्टर के सफर जैसा रहा है। सो जब - जब बिंदल अर्श पर सोलन में उनकी टीम भी फ्रंट फुट पर और जैसे ही बिंदल फर्श पर उनकी टीम भी हाशिए पर। इस सब के बीच डॉ राजेश कश्यप जमे रहे और भाजपा के प्राइम फेस बने भी रहे। नगर निगम चुनाव में भी बेशक प्रभारी डॉ राजीव बिंदल थे लेकिन जो भाजपाई जीते है उनमे से अधिकांश डॉ राजेश कश्यप के करीबी माने जाते है। अब जो बात निकल कर आ रही है वो आने वाले समय में सोलन भाजपा की सियासत को नई दिशा दे सकती है। दरअसल कुछ लोगों को अब तरसेम भारती के चेहरे में भाजपा का ग्लो दिख रहा है और इनमें वो लोग भी शामिल है जिन्हें 2017 तक तरसेम भारती फूटी आंख नहीं सुहाते थे। यानी वक्त, परिस्थिति और मौके के हिसाब से अब एक नया गठबंधन आकार ले सकता है ताकि डॉ राजेश कश्यप को साधा जा सके। अब ये गठबंधन जन्म लेता है या इसकी भ्रूण हत्या हो जाती है ये देखना रोचक होगा।
शीला जीत जाती तो और बात होती
जिला परिषद् चुनाव में सलोगड़ा वार्ड से कुमारी शीला भाजपा उम्मीदवार थी। लगातार तीन चुनाव जीत चुकी कुमारी शीला जीत का चौका लगाने का दावा कर रही थी, लेकिन जनता का आशीर्वाद उन्हें नहीं मिला। ये हार कुमारी शीला के लिए बड़ा झटका है। शायद यही कारण है कि डॉ राजेश के विरोधी अब कुमारी शीला की जगह तरसेम भारती में संभावना तलाश रहे है। निसंदेह, शीला अगर जीत जाती तो शायद 2022 में कुछ और बात होती। बहरहाल शीला अब भी डटी है और 2022 में ऊंट किस करवट बैठता है ये देखना रोचक होगा।
नगर निगम में नहीं चला तरसेम का जादू
नगर निगम चुनाव में तरसेम भारती ने वार्ड 7 में जमकर प्रचार किया। तरसेम भारती के करीबी बादल नाहर की पत्नी सोना नाहर वहां से चुनाव लड़ रही थी। पर इस पुरे चुनाव में भाजपा कभी भी मजबूत नहीं दिखी। तरसेम भारती का प्रचार यहां पूरी तरह बेअसर दिखा। कांग्रेस ने बागी के मैदान में होने के बावजूद यहां शानदार जीत दर्ज की। यानी तरसेम की पोलिटिकल मैनेजमेंट का जनाजा हालही में हुए सोलन नगर निगम चुनाव में निकल चूका है। पर हर दिन की तरह हर चुनाव भी नया होता है।
बिंदल के खासमखास भी हारे चुनाव
जानकार मानते है कि भाजपा बेशक नगर निगम हार गई लेकिन डॉ राजेश कश्यप ने इस हार के बावजूद ज्यादा नहीं खोया। दरअसल भाजपा ने डॉ राजीव बिंदल को प्रभारी बनाया था और यदि बिंदल का जादू चल जाता तो जाहिर है 2022 के टिकट वितरण में भी उनकी दखल ज्यादा होती। पर नगर निगम जीतना तो दूर बिंदल के कई खासमखास चुनाव में बुरी तरह हारे। इस हार का ठीकरा भी विरोधी बिंदल के सर ही फोड़ रहे है।
2022 में फिर पैराशूट लैंड हुआ तो
2012 से 2017 तक कई नेता टिकट के लिए जमीनी काम करते रहे। पर भाजपा आलाकमान ने इन सबके अरमान कुचल दिए और पैराशूट कैंडिडेट उतार दिया। 2022 में टिकट को लेकर भी तमाम दावेदारों में मन में ये भय जरूर होगा। न जाने ऐन मौके पर किसकी एंट्री हो जाए।