पांचवा साल और पांच चुनौतियां

जयराम सरकार अपने चार वर्ष का कार्यकाल पूरा कर चुकी है। यूँ तो सत्ता में आने के बाद से ही इस सरकार का सफर कठिन रहा है, मगर इस पांचवे और इस कार्यकाल के आखरी वर्ष में सरकार को कई चुनौतियों का सामना करना होगा। ख़ास बात ये है की इस वर्ष चूक की कोई गुंजाइश नहीं है। ये आखिरी साल तय करेगा कि प्रदेश में मिशन रिपीट सफल होगा या मिशन डिलीट। इस पांचवे साल में जयराम सरकार के सामने पांच बड़ी चुनौतियां है, जिनसे पार पाकर ही मिशन रिपीट का स्वप्न साकार हो सकता है...
1. बढ़ता कर्ज, बिगड़ती अर्थव्यवस्था
सत्ता में आने से पहले भाजपा ने अपने स्वर्णिम दृष्टि पत्र में कई वादें किये थे जिसमें से काफी अधूरे है। कुछ पूरे हुए ज़रूर मगर उन्हें पूरा करने के लिए सरकार एक के बाद एक लगातार क़र्ज़ ले रही है। आकड़ों के अनुसार साल 2020 तक सरकार 62 हज़ार करोड़ का क़र्ज़ ले चुकी है और ये सिलसिला अब भी जारी है। प्रदेश के विकास के लिए कर्ज़ लेना गलत नहीं है मगर असल बात ये है की अब तक प्रदेश की आय के साधन बढ़ाने में सरकार मोटे तौर पर नाकाम रही है। प्रदेश की अर्थव्यवस्था को बढ़ाने के लिए जयराम सरकार ने इन्वेस्टर मीट की पहल जरूर की, लेकिन धरातल पर इसके व्यापक परिणाम अब तक नहीं दिखे है। ऐसे में अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाना और बढ़ते कर्ज को थामना सरकार के सामने सबसे बड़ी चुनौती है। यहाँ ये देखना भी रोचक होगा कि क्या चुनावी वर्ष में जयराम सरकार केंद्र से कोई बड़ा राहत पैकेज लाने में कामयाब होगी।
2. कर्मचारी वर्ग साधने की चुनौती
कर्मचारी वोट ही हिमाचल प्रदेश में सत्ता की राह प्रशस्त करता है। ऐसे में कर्मचारियों को खुश रखना भी जयराम सरकार के लिए बड़ी चुनौती है। एक के बाद एक कर्मचारियों को कई सौगातें दी जा रही है मगर इन राहतों के लिए धन राशि एकत्र करना पहले से क़र्ज़ में डूबी सरकार के लिए कठिन होने वाला है। इस पर जिन कर्मचारी वर्गों की मांगे पूरी नहीं हो रही वो खुलकर मुखालफत करते दिख रहे है। स्थिति का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि भाजपा विचारधारा से इत्तेफ़ाक़ रखने वाला भारतीय मजदूर संघ भी सरकार के खिलाफ मुखर होता दिखा है।
3. एंटी इंकम्बैंसी से निबटना बड़ा टास्क
एंटी इंकम्बैंसी से निपटना अंतिम वर्ष में जयराम सरकार के लिए बड़ी चुनौती होगी। अक्सर कहा जाता है कि जयराम सरकार की नौकरशाही पर पकड़ नहीं है। सरकार को अंतिम वर्ष में इस टैग से छुटकारा पाना होगा और ये सुनिश्चित करना होगा कि आम वोटर के बीच में जयराम सरकार की छवि एक मजबूत सरकार की हो। अक्सर निर्णय लेने की क्षमता को लेकर भी जयराम सरकार पर सवाल उठते रहे है, सो अंतिम वर्ष में मुख्यमंत्री के नेतृत्व में सरकार को कुछ तेवर जरूर दिखाने होंगे। यहाँ महंगाई जैसे मसलों पर भी सरकार को कुछ लचीला रुख रखना होगा और आमजन को राहत भी देनी होगी। प्रदेश सरकार को किसानों बागवानों के मुआवजे को लेकर भी बड़ा दिल दिखाना होगा।
4. मंत्रियों को करना होगा परफॉर्म
जयराम सरकार के सामने एक और बड़ी चुनौती है, अपने मंत्रियों और नेताओं को संभालना और उनसे अच्छा करवाना। कई मंत्री अपने बयानों से सरकार की परेशानी बढ़ाते रहे है, तो कुछ अपनी कार्यशैली को लेकर विवादों में रहते है। अंतिम वर्ष में सरकार को मंत्रियों का रिपोर्ट कार्ड भी बनाना होगा और जरुरत पड़ने पर आवश्यक बदलाव भी करना होगा। सरकार को सुनिश्चित करना होगा कि जिन्हें पद और कद से नवाजा गया है वे आमजन के बीच सरकार की लोकप्रियता बढ़ाए, न कि सत्ता विरोधी लहर के सूत्रधार बने। सत्ता और संगठन के बीच का तालमेल भी सरकार को सुनिश्चित करना होगा, ताकि कम से कम पार्टी काडर में असंतोष की स्थिति न उत्पन्न हो। अक्सर जयराम ठाकुर को मंडी का मुख्यमंत्री कहा जाता है। निसंदेह मुख्यमंत्री ने मंडी को दिल खोल कर दिया है, लेकिन अन्य क्षेत्रों में भी काम हुए है। बावजूद इसके मंडी के मुख्यमंत्री का टैग पार्टी के लिए परेशानी का सबब बन सकता है। सरकार को सुनिश्चित करना होगा कि प्रदेश के हर क्षेत्र, हर वर्ग को भरोसा दिलाया जाए कि सरकार ने बिना भेदभाव के काम किया है।
5. अधूरी विकासात्मक योजनाओं को देनी होगी गति
चुनावी घोषणा पत्र में किये गए भाजपा के कई वादे जयराम सरकार ने पुरे किये है तो काफी अधूरे है। करीब दस माह के वक्त में अब जयराम सरकार के सामने अधिकांश वादे पुरे करने की चुनौती है। सरकार के पास कोरोना का बहाना जरूर है, लेकिन जनता के दरबार में अक्सर बहाने नहीं चलते। सरकार को हर निर्वाचन क्षेत्र में किये गए वादों को पूरा करने का प्रयास करना होगा। इसके साथ ही कई ऐसी घोषणाएं है जो जयराम सरकार ने सत्ता में आने के बाद कि है लेकिन जमीनी स्तर पर काम न के बराबर हुआ है। ऐसी विकासात्मक योजनाओं को गति देना भी सरकार के सामने चुनौती है।