सत्ता का गुणा-भाग बदल सकती है कर्मचारियों की ये पांच लंबित मांगे

"तुझ को देखा तेरे वादे देखे, ऊँची दीवार के लम्बे साए"..ये कहना है प्रदेश के उन कर्मचारियों का जिनकी मांगें सचिवालय की फाइलों में दबी रह गई, या जिनकी मांगें मंत्री और मुख्यमंत्री के आश्वासनों में उलझी रह गई। अपने अंतिम साल में ये सरकार यूँ तो कई कर्मचारियों पर मेहरबान हुई मगर कुछ कर्मचारी और उनकी मांगें ऐसी रह गई जिन पर मुख्यमंत्री की या तो दृष्टि ही नहीं पड़ी या उन्हें सुलझा पाना अब तक सरकार के लिए सम्भव नहीं रहा। कर्मचारियों को शिकवा विपक्ष से भी है क्योंकि विपक्ष ने भी इनकी आवाज को पुरजोर तरीके से बुलंद नहीं किया। कहते है कि लंबित मांगें अक्सर मुद्दा बन जाया करती है। प्रदेश में भी ऐसी कई लंबित मांगें है जिनके पूरा होने का इंतजार कर्मचारियों को है और यदि ये मांगे पूरी नहीं हुई तो 2022 के विधानसभा चुनाव में ये बड़ा मुद्दा हो सकती है। हिमाचल में कर्मचारियों को भी एक बड़ा वोट बैंक माना जाता है, यहां कर्मचारी और राजनीति का पुराना नाता रहा है। कर्मचारी वोट बैंक सत्ता के लिए कितना महत्वपूर्ण है ये 1993 के विधानसभा चुनाव को याद कर भी समझा जा सकता है। इतिहास गवाह है कि कर्मचारियों को नाराज कर सरकार कभी सत्ता बरकरार नहीं रख पाई। प्रदेश के विभिन्न सरकारी विभागों में 2,00,000 से अधिक कर्मचारी कार्यरत्त हैं, 2 लाख कर्मचारी यानी 2 लाख परिवार। यह आंकड़ा हिमाचल प्रदेश में सत्ता का गुणा-भाग बदलने के लिए काफी है। जाहिर है कि ये बात सरकार बखूबी जानती है और इसीलिए इस अंतिम साल में कर्मचारियों की मांगें पूरी हो रही है। मगर कुछ मुद्दे अब भी ज्यूं के त्यूं पड़े हुए है। विपक्ष भी इन्हें भुनाने का प्रयास तो कर रहा है लेकिन कई मसलों पर खुलकर बोलने से बचता रहा है। ऐसे ही पांच लंबित मसलो पर पेश है फर्स्ट वर्डिक्ट की विशेष रिपोर्ट....
अपने अंतिम वर्ष में यदि जयराम सरकार कर्मचारियों की इन पांच मुख्य लंबित मांगो पर सकारात्मक निर्णय लेती है तो निसंदेह सत्तारूढ़ भाजपा को इसका लाभ मिल सकता है। वहीं बतौर विपक्ष कांग्रेस अब तक इन मुद्दों को भुनाने में पूरी तरह असरदार नहीं दिखी है। कांग्रेस को इन मुद्दों पर खुलकर अपना पक्ष रखने की जरूरत है।
धूमल ने कहा था, आती हुई सरकार की बात मानो
जाती हुई सरकार की बात मत सुनो आती हुई सरकार की मानो, ये शब्द थे पूर्व मुख्यमंत्री प्रो. प्रेम कुमार धूमल के l 2017 विधानसभा चुनाव के दौरान पूर्व मुख्यमंत्री ने सुजानपुर में ये चुनावी वादा किया था l वादा था कि भाजपा के सत्ता में आते ही मुख्य सचिव की अध्यक्षता में एक कमेटी का गठन किया जाएगा और अनुबंध कर्मचारियों को नियुक्ति की तिथि से वरिष्ठता प्रदान करने हेतु कार्य किया जाएगा l वादा चुनावी था इसलिए वादा ही रहा, हकीकत नहीं बन पाया। अलबत्ता प्रेम कुमार धूमल सत्ता के शीर्ष पर न हो, पर भाजपा को सत्ता में आए चार साल से अधिक हो गए है l जयराम राज में कई अनसुनी फरियादों में एक अनसुनी फ़रियाद है नियुक्ति की तिथि से वरिष्ठता की मांग। इसे लेकर वर्षों से चला आ रहा संघर्ष अब भी जारी है। जेसीसी की बैठक में नियुक्ति की तिथि से वरिष्ठता मांगने वाले कर्मचारियों को वरिष्ठता तो नहीं मिल पाई थी, पर इसके लिए कमेटी के गठन का आश्वासन जरूर मिला था। अब कर्मचारियों को कमेटी के गठन का इंतजार है। हिमाचल अनुबंध नियमित कर्मचारी संगठन जो पिछले कई सालों से ये मांग कर रहा है कि विभिन्न विभागों में भर्ती एवं पदोन्नति नियमों के अंतर्गत अनुबंध पर नियुक्त होने के बाद नियमित हुए कर्मचारियों को नियुक्ति की तिथि से वरिष्ठता प्रदान की जाए। इनका कहना है कि सरकार की दहलीज पर हम लगातार दस्तक दे रहे है, जूते घिस गए मगर मांग अब भी पूरी नहीं हुई। बस आश्वासन पर आश्वासन ही दिया जा रहा है।
दरअसल ये मसला शुरू हुआ 2008 में, जब बैचवाइज और कमीशन आधार पर लोकसभा आयोग और अधीनस्थ कर्मचारी चयन आयोग द्वारा कर्मचारियों की नियुक्तियां अनुबंध के तौर पर की जाने लगी l पहले अनुबन्ध काल 8 साल का हुआ करता था जो बाद में कम होकर 6 फिर 5 और फिर 3 साल हो गया। ये अनुबन्ध काल पूरा करने के बाद यह कर्मचारी नियमित होते है। अनुबंध से नियमित होने के बाद इन कर्मचारियों की अनुबंध काल की सेवा को उनके कुल सेवा काल में नही जोड़ा जाता, जो संगठन के अनुसार सरासर गलत है। इनका कहना है कि अनुबंध काल अधिक होने से पुराने कर्मचारियों को वित्तीय नुकसान के साथ प्रमोशन भी समय पर नहीं मिल पाती अब मांग है कि उनको नियुक्ति की तिथि से वरिष्ठता प्रदान की जाए ताकि उन्हें समय रहते प्रमोशन का लाभ मिल सके। अनुबंध काल की सेवा का वरिष्ठता लाभ ना मिलने के कारण उनके जूनियर साथी सीनियर होते जा रहे हैं। अनुबंध नियमित कर्मचारी संगठन का कहना है कि कुछ अनुबंध कर्मचारी 8 वर्ष के बाद नियमित हुए, कुछ 6 वर्ष के बाद, कुछ 5 वर्ष के बाद और वर्तमान में 3 वर्ष के बाद नियमित हो रहे हैं और अब आने वाले समय में 2 वर्ष में कर्मचारी नियमित होंगे। ऐसे में ये नीति कर्मचारियों के मौलिक और समानता के अधिकार का हनन है।
70 हजार कर्मचारियों के सम्मान से जुड़ा मुद्दा
हिमाचल अनुबंध नियमित कर्मचारी संगठन के प्रदेशाध्यक्ष मुनीष गर्ग और जिलाध्यक्ष सुनील पराशर का कहना है कि नियुक्ति की तिथि से वरिष्ठता ना मिलने से जूनियर कर्मचारी सीनियर होते जा रहे हैं। कर्मचारियों ने कहा कि उनका चयन भर्ती एवं पदोन्नति नियमों के अनुसार हुआ है इसलिए उनके अनुबंध की सेवा को उनके कुल सेवाकाल में जोड़ा जाना तर्कसंगत है। यह प्रदेश के 70 हजार कर्मचारियों के मान सम्मान से जुड़ा विषय है। सरकार जल्द इस मांग को पूरा करे।
कंप्यूटर शिक्षकों के हिस्से आया सिर्फ आश्वासन
चार उपचुनाव में सूपड़ा साफ होने के बाद प्रदेश की जयराम सरकार एक्शन मोड में कर्मचारियों की कई लंबित मांगो को पूरा करती दिखी है। एक के बाद एक कई एलानों ने निसंदेह कर्मचारी वर्ग की नाराजगी कम जरूर की है। पर एक वर्ग ऐसा है जिसे लगता है कि सरकार उन्हें अपना समझती ही नहीं है। ये शिकवा है प्रदेश के सरकारी स्कूलों में सेवाएं दे रहे 1421 कंप्यूटर शिक्षकों का। इनका प्रतिनिधित्व कर रहे कंप्यूटर शिक्षक संघ का कहना है कि सरकारी स्कूलों में तैनात कंप्यूटर शिक्षक खुद को ठगा सा महसूस कर रहे है। 20 सालों तक लगातार संघर्ष करने के बावजूद भी कंप्यूटर शिक्षकों की मांगें पूरी नहीं हो पाई है। पिछले करीब दो दशक से कम्प्यूटर अध्यापक राजकीय वरिष्ठ माध्यमिक स्कूलों में शिक्षा देने का कार्य कर रहे हैं, लेकिन किसी भी सरकार ने कम्प्यूटर अध्यापकों के लिए नीति नहीं बनाई है। इस बीच कांग्रेस की सरकार भी आई लेकिन उन्होंने भी कुछ नहीं किया। इनके हिस्से में अब तक सिर्फ आश्वासन ही आया है। दरअसल 1998 में पूर्व भाजपा सरकार के सीएम प्रेम कुमार धूमल द्वारा शुरुआती दौर में सेल्फ फाइनेंसिंग प्रोजेक्ट के तहत 250 स्कूलों में कंप्यूटर टीचरों को तैनात किया गया था। उसके बाद 2001 में सरकार द्वारा 900 स्कूलों में आईटी शिक्षा आरंभ की गई और कंप्यूटर टीचरों को नाइलेट कंपनी के अधीन कर दिया गया था। वर्ष 2010 में कंप्यूटर टीचरों को आउटसोर्स नाम दिया गया। कंप्यूटर शिक्षक संघ का कहना है कि जो पैट, पीटीए व विद्या उपासक टीचर 2006 के बाद नियुक्त किए गए थे उन्हें सरकार ने नीति बनाकर रेगुलर कर दिया, परंतु कंप्यूटर टीचरों के बारे आजतक किसी भी सरकार ने नहीं सोचा। एक ओर सरकार आईटी शिक्षा को बढ़ावा देने पर जोर दे रही है वहीं कंप्यूटर टीचरों का बीते दो दशकों से शोषण हो रहा है। महंगाई के दौर में कम्प्यूटर टीचर मात्र 12870 रुपए मासिक वेतन पर कार्य कर रहे है। चालू वित्त वर्ष के बजट में केवल 500 रुपए बढ़ाए गए हैं। राज्य के सरकारी स्कूलों में 1354 कम्प्यूटर शिक्षक शिक्षा दे रहे हैं तथा समस्त शिक्षक आर एंड पी नियमों का अनुसरण करते हैं। इनमें से 90 प्रतिशत कम्प्यूटर शिक्षक 45 वर्ष की आयु पार कर चुके हैं। कंप्यूटर शिक्षक संघ के पदाधिकारियों का कहना है कि जब उक्त कम्प्यूटर शिक्षक नौकरी पर लगे थे तो उनका वेतन मात्र 2400 रुपए था और 20 सालों के बाद 13000 तक पहुंचा है। कम्प्यूटर शिक्षक इतने कम वेतन पर बच्चों की पढ़ाई के साथ परिवार का भरण पोषण भी नहीं कर पा रहे हैं तथा अपने भविष्य को लेकर चिंतित हैं। उन्होंने मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर से मांग की कि कंप्यूटर शिक्षकों को शिक्षा विभाग में समायोजित किया जाए ताकि प्रदेश के कंप्यूटर शिक्षकों का भविष्य सुरक्षित हो सके।
निजी कंपनी को बार -बार एक्सटेंशन
साल 2001 में सरकारी स्कूलों में कंप्यूटर शिक्षा शुरू की गई थी और इसका जिम्मा कंपनी को सौंपा गया था। कंपनी की एक्सटेंशन को बार-बार बढ़ा दिया जाता है। कंप्यूटर शिक्षक संघ का कहना है कि आज दो दशक बीत जाने के बाद भी कंपनी की ओर से उनका शोषण ही किया जा रहा है। कंप्यूटर शिक्षक लगातार सरकार से नियमितीकरण की मांग करते आ रहे हैं लेकिन अभी तक मांग पूरी नहीं हो पाई है।
जो हक की बात करेगा, 2022 में उसे ही समर्थन
ये सिर्फ डेढ़ हजार शिक्षकों का नहीं अपितु डेढ़ हजार परिवारों से जुड़ा मुद्दा है। यदि वर्तमान सरकार इनकी मांगों को पूरा नहीं करती है तो 2022 के विधानसभा चुनाव में निसंदेह इनका साथ उसकी राजैनतिक दल को मिलेगा जो घोषणा पत्र में भी इनकी मांग को स्थान दे, साथ ही इनकी आवाज को उठाये भी। पर विडम्बना का विषय ये है कि फिलवक्त कोई राजनैतिक दल या नेता दमदार तरीके से इनके मसले को नहीं उठा रहा, बस खानापूर्ति की जा रही है।
आउटसोर्स कर्मचारी: समीकरण बदलने के लिए काफी है इनकी तादाद
बड़े कर्मचारी मुद्दों की फेहरिस्त में एक बड़ा मसला प्रदेश के आउटसोर्स कर्मचारियों से जुड़ा है। हिमाचल के आउटसोर्स कर्मचारियों की समस्याएं पिछले 18 सालों से बढ़ रही है। पिछले 18 सालों से आउटसोर्स कर्मचारी हिमाचल के विभिन्न विभागों में अपनी सेवाएं दे रहे है मगर उनकी स्थिति में कोई खास परिवर्तन नहीं आया। आउटसोर्स कर्मचारी निरंतर अपनी मांगों को लेकर आवाज उठा रहे है मगर सरकार सिर्फ आश्वासन दे रही है। आउटसोर्स कर्मचारियों के मसले हल करने के लिए प्रदेश सरकार द्वारा एक कमेटी का गठन किया है जिसकी अध्यक्षता जल शक्ति मंत्री महेन्दर सिंह ठाकुर कर रहे है। मंत्री के दरबार में आउटसोर्स कर्मचारियों की पेशियाँ लगातार लग रही है। कभी विभिन्न विभागों में कार्यरत आउटसोर्स कर्मचारियों के आंकड़े तलब किये जाते है तो कभी कर्मचारियों को विभागों में ही मर्ज करने का दिलासा दिया जाता है। ये बदस्तूर जारी है मगर ज़मीनी स्तर पर कमेटी के गठन के अलावा और कुछ भी बड़ा नहीं हुआ है। आउटसोर्स कर्मचारी हिमाचल महासंघ प्रदेश सरकार से लगातार स्थायी नीति बनाने, समयावधि पूर्ण होने पर नियमित करने व समान वेतनमान की मांग कर रहा है। संघ के अध्यक्ष शैलेन्द्र शर्मा का कहना है कि आउटसोर्स कर्मचारी कई वर्षों से लगातार अपनी सेवाएं दे रहे हैं परंतु सरकार अभी तक आउटसोर्स कर्मचारियों के लिए कोई स्थाई नीति नहीं बना पाई है, जबकि इनका मासिक वेतन भी बहुत कम हैं। अध्यक्ष शैलेन्द्र शर्मा का कहना है कि आउटसोर्स कर्मचारियों को मलाल तो इस बात का है कि जब भाजपा विपक्ष में थी तो बतौर विधायक खुद मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने इस मुद्दे को जोर - शोर से उठाया मगर आज सत्ता के शीर्ष पर पहुंचने के बाद इसकी सुध नहीं ली गई। वहीं विपक्ष में रहकर इनकी बात करने वाली कांग्रेस ने भी सत्ता में रहते इनके लिए कुछ नहीं किया। हिमाचल प्रदेश के विभिन्न विभागों, बोर्डो और निगमों में आउटसोर्स आधार पर नियुक्त करीब 25 हजार कर्मचारियों के लिए नीति निर्धारण का काम शुरू जरूर है। जल शक्ति मंत्री महेंद्र सिंह ठाकुर को आउटसोर्स कर्मचारियों के लिए नीति बनाने की कमेटी का अध्यक्ष नियुक्त किया गया है। कमेटी में शहरी विकास मंत्री सुरेश भारद्वाज और ऊर्जा मंत्री सुखराम चौधरी भी बतौर सदस्य शामिल किए गए हैं। कमेटी का गठन करके सरकार ने इन कर्मचारियों को उम्मीद दी जरूर है ,मगर मांग पूरी होती है या नहीं इसपर सबकी निगाहें है। बता दें कि आउटसोर्स कर्मचारी हिमाचल महासंघ ही वो संगठन है जिसने उपचुनाव के दौरान नो वोट फॉर बीजेपी अभियान छेड़ा था। हालाँकि बाद में इन्हें आश्वासन देकर मना लिया गया था। ऐसे में 2022 विधानसभा चुनाव से पूर्व यदि भाजपा शासित सरकार इनके लिए कुछ नहीं करती तो इनकी नाराजगी सरकार को भारी पड़ सकती है।
कमीशन काटकर वेतन देते हैं ठेकेदार
आउटसोर्स कर्मचारी वो कर्मचारी हैं जिनको सरकारी विभागों में कॉन्ट्रैक्ट बेसिस पर रखा जाता है। मतलब ये सरकारी विभाग में तो हैं पर सरकारी नौकरी में नहीं हैं। इनकी नियुक्तियां या तो ठेकेदारों के माध्यम से की जाती है या किसी निजी कंपनी के माध्यम से। रूट जो भी है इन कर्मचारियों का शोषण होना तो तय है। ये कर्मचारी काम तो सरकार का करते है मगर इन्हें वेतन ठेकेदार या कंपनी द्वारा मिलता है। न तो इन्हें सरकारी कर्मचारी होने का कोई लाभ प्राप्त होता है न ही एक स्थिर नौकरी। इन्हें जब चाहे नौकरी से निकाला जा सकता है। सरकार द्वारा वेतन तो दिया जाता है मगर ठेकेदार की कमिशन के बाद इन तक तक पहुंच पाता है।
कर्मचारियों को चाहिए 15 फीसदी वेतन वृद्धि वाला विकल्प
हिमाचल प्रदेश सरकार द्वारा हाल ही में छठे वेतनमान की अधिसूचना जारी की गई है। कर्मचारियों का कहना है की 6 वर्ष से देय वेतनमान की रिपोर्ट के सरकार द्वारा जारी पे रूल्स और पे मैट्रिक्स उनके लिए राहत नहीं बल्कि परेशानियां लेकर आए है। हिमाचल प्रदेश सरकार ने करीब दो लाख नियमित कर्मचारियों के लिए नए संशोधित वेतनमान की अधिसूचना जारी की है, पर कर्मचारियों को इसमें कई विसंगतिया नजर आ रही है। अपने-अपने स्तर पर कई कर्मचारी संगठन इस मसले को उजागर कर रहे है। कुछ संगठन एकजुट हो गए है तो कुछ अकेले ही ये लड़ाई लड़ रहे है। इस वेतनमान में कर्मचारियों को अपना संशोधित वेतनमान लेने के लिए दो विकल्प दिए गए हैं। अगर वे वर्ष 2009 के नियमों को चुनते हैं तो उन्हें 31 दिसंबर, 2015 की बेसिक पे को 2.59 के फैक्टर से गुणा करना होगा। अगर वर्ष 2012 को चुनते हैं तो 2.25 फैक्टर को अपनाना होगा। अगर कोई अधिकारी/कर्मचारी 2009 के नियमों को आधार बनाकर लाभ लेना चाहता है और उसने 2012 के वेतन संशोधन का लाभ नहीं लिया है तो 31 दिसंबर 2015 को उसकी बेसिक पे पर फैक्टर 2.59 लगेगा। इसमें भत्ते और अन्य लाभ अलग से शामिल होंगे। वहीं अगर कोई कर्मचारी वर्ष 2012 के पुनः संशोधन को आधार बनाकर नए वेतनमान का लाभ लेना चाह रहा है तो उसके लिए दो विधियां लगाई जाएगी। पहली विधि के अनुसार 31 दिसंबर 2015 को लिए वेतन को आधार बनाएंगे तो बेसिक वेतन में फैक्टर 2.25 लगाया जाएगा। या फिर दूसरी विधि के अनुसार 31 दिसंबर 2015 की नोशनल पे को आधार बनाया जाएगा। ये विकल्प कर्मचारियों को दिए जरूर गए है लेकिन प्रदेश के कर्मचारियों को पंजाब की तर्ज पर सीधे 15 फीसदी वेतन वृद्धि वाला तीसरा विकल्प नहीं दिया गया है। प्रदेश के कर्मचारी लगातार ये मांग कर रहे थे कि उन्हें वेतन वृद्धि का ये तीसरा विकल्प भी दिया जाए परन्तु ऐसा नहीं हुआ। राज्य के सरकारी कर्मचारियों की नाराजगी का एक बड़ा कारण 4-9-14 जैसी एश्योर्ड कैरियर प्रोग्रेशन स्कीम का लाभ खत्म होना भी है। तीन जनवरी, 2022 से 4-9-14 के लाभ कर्मचारियों को मिलना बंद हो गए है। 6 सालों के इंतजार के बाद मिले इस नए वेतनमान में कर्मचारियों को कई विसंगतियां नजर आ रही है। सरकारी कर्मचारी जिस तरह से छठे वेतनमान से वित्तीय लाभ प्राप्त होने की गणना कर रहे थे, शायद उस तरह के वित्तीय लाभ उन्हें मिलते नहीं दिख रहे। ये ही कारण है कि हिमाचल का कर्मचारी इस छठे वेतन आयोग की सिफारिशों से पूर्ण संतुष्ट नजर नहीं आ रहा। कर्मचारियों का कहना है कि 6 वर्ष तक कर्मचारियों की बकाया राशी का जो ब्याज सरकार ने कमाया, ये लाभ उसके भी बराबर नही लग रहा।
विपक्ष भी भुना रहा ये मुद्दा
इस मुद्दे को कर्मचारी ही नहीं बल्कि विपक्ष भी खूब भुना रहा है। छठे वेतनमान को लेकर माकपा विधायक राकेश सिंघा ने सरकार पर कर्मचारियों को बांटने के आरोप लगाए हैं। सिंघा ने कहा है कि सरकार ने वेतनमान को एक समान लागू नहीं किया है। सरकार ने दो कैटेगिरी बनाकर निचले तबके के कर्मचारियों के साथ अन्याय किया है। जबकि निचले तबके के कर्मचारी ही हिमाचल प्रदेश की रीढ़ है। सरकार ने पहले ही पंजाब के समान वेतनमान लागू नहीं किया है। उनका कहना है कि सरकार ने 4-9-14 का फॉर्मूला खत्म करके कर्मचारियों से अन्याय किया है। वहीं कांग्रेस ने भी इसे छलावा करार दिया है। बहरहाल 2022 के विधानसभा चुनाव में ये फैक्टर क्या रंग लाता है, ये देखना रोचक होगा।
हिमाचल पुलिस कांस्टेबल का प्रोबेशन पीरियड अब भी 8 वर्ष
प्रदेश पुलिस जवानों के पे बैंड का मसला अब तक नहीं सुलझ पाया है। जवानों का मानना है कि सरकार उनके साथ पराया व्यवहार कर रही है। जहां सभी विभागों का अनुबंध कार्यकाल 3 वर्ष से घटाकर 2 वर्ष किया गया, वहीं पुलिस कांस्टेबल का प्रोबेशन पीरियड अब भी 8 वर्ष ही रखा गया है। पुलिस कर्मचारियों ने सरकार से सवाल किये है कि आखिर प्रदेश के इन रक्षकों के साथ सौतेला व्यवहार क्यों ? प्रदेश सरकार की इस अनदेखी से पुलिस जवान व उनके परिवार काफी खफा है। एक तरफ सभी विभागों को सौगातें दी गयी वहीं दूसरी तरफ पुलिस को अनदेखा किया गया। पुलिस कर्मियों का कहना है कि कोविड के समय यही जवान सड़कों पर खड़े थे और अब भी दिन -रात ड्यूटी पर तैनात है। किसी भी प्रकार की इमरजेंसी में पुलिस को ही सबसे पहले याद किया जाता है फिर सरकार क्यों इनको भूल जाती है ? रोष के चलते बीते दिनों पुलिस कॉन्स्टेबल्स ने अपनी मेस बंद रखने का ऐलान भी किया। हिमाचल प्रदेश में पुलिस कर्मी शायद ही इससे पहले कभी इस तरह मुखर हुए हो। दरअसल साल 2015 में सरकार द्वारा पुलिस कांस्टेबल का प्रोबेशन पीरियड 2 साल से बढ़ा कर 8 साल कर दिया गया था। इन कर्मचारियों ने अपनी मांगें कई बार सरकार के सामने रखने की कोशिश की मगर अब तक इनकी मांग को अमलीजामा नहीं पहनाया गया। अब पे बैंड के अलावा राशन भत्ते का भी मामला उठाया गया है। इसे राशन मनी कहा जाता है। यह प्रतिमाह केवल 210 रुपये ही प्रदान किया जा रहा है। हजारों पुलिस कॉन्स्टेबल्स और उनके परिवारों की नाराजगी सरकार को भारी पड़ सकती है।
मान लंबित रही तो बनेगा चुनावी मुद्दा
पुलिस कॉन्स्टेबल्स के प्रोबेशन पीरियड कम करने की मांग को विपक्ष का भी साथ मिला है। हालांकि सत्ता में रहते कांग्रेस ने भी कभी इनकी सुध नहीं ली, पर अब सियासत जमकर हो रही है। बहरहाल वर्तमान सरकार यदि इस मांग को पूरा नहीं करती है तो इस मुद्दे को चुनावी रंग दिए जाना तय है। हजारों पुलिस कर्मी और उनके परिवार किसी भी राजनैतिक दल के समीकरण बना-बिगाड़ सकते है।