फोटो पॉलिटिक्स : एक्शन में वीरभद्र सिंह के सिपहसालार, क्या होगा रिएक्शन ?

घटता जनाधार, सिमित संसाधन और लचर नेतृत्व, इस पर भरपूर अंतर्कलह। 2017 के विधानसभा चुनाव के बाद से हिमाचल कांग्रेस की ये ही तस्वीर दिखती आ रही है। ऐसा इसलिए भी है क्यों कि अर्से से कांग्रेस के प्राइम फेस रहे वीरभद्र सिंह को उम्र और सेहत ने सक्रिय राजनीति कुछ दूर रखा हुआ है, और पार्टी में उनका विकल्प कोई दिखता नहीं। इस पर कभी लंच डिप्लोमेसी तो कभी पोस्टर पॉलिटिक्स जैसे सियासी प्रकरण कांग्रेस को और विभाजित करते दिख रहे है। 2022 का विधानसभा चुनाव अब नजदीक है और डगर फिलवक्त कठिन है। वर्तमान में प्रदेश कांग्रेस के तीन खेमे माने जाते है, वीरभद्र गुट, पूर्व अध्यक्ष सुखविंदर सिंह सुक्खू का गुट और पूर्व मंत्री जीएस बाली का गुट। वीरभद्र की असक्रियता में निसंदेह बाकी नेता संभावनाएं तलाशते दिखे है। इस बात का इल्म वीरभद्र सिंह के ख़ास सिपहसालारों को भी है, सो वक्त रहते न सिर्फ कुनबे को सँभालने की कवायद शुरू हो गई, बल्कि पुराने निष्ठावानों को भी साथ लिया जा रहा है। वीरभद्र खेमे ने गियर बदल लिया है, तस्वीरों में नेताओं के गीले-शिकवे मिटते दिख रहे है और फोटो पॉलिटिक्स से शक्ति प्रदर्शन हो रहा है। संदेश स्पष्ट है कि बेशक वीरभद्र सिंह असक्रिय हो पर सर्वेसर्वा वे ही है। चाहे मुख्यमंत्री कोई भी बने पर उन्हीं के फेस पर चुनाव लड़ा जायेगा। दावा है कि कुल 68 में से 50 से अधिक निर्वाचन क्षेत्रों में वीरभद्र खेमे को समर्थन है। पर यक्ष प्रश्न ये है कि क्या जितनी नजदीकी और एकजुटता तस्वीरों में दिखी है उतनी दिलों में भी है ? या फिर वीरभद्र सिंह के सियासी रसूख के सहारे नेता अपना कारज सिद्ध करना चाहते है। न्यूटन का गति का तीसरा नियम है, हर क्रिया की बराबर और विपरीत प्रतिक्रिया होती। एक्शन में दिख रहे कांग्रेस के एक धड़े के जवाब में बाकी दिग्गज क्या रिएक्शन देते है ये देखना रोचक होगा। दावा, वैसे ये है कि मिशन 2022 के लिए पूरी पार्टी एकजुट होकर एक मंच पर आएगी, पर इन दावों में कितनी हकीकत है ये जल्द पता चलेगा। जानकार मानते है कि इस एक्शन का रिएक्शन निश्चित तौर पर होगा।
प्रत्यक्ष निशाना भाजपा, अप्रत्यक्ष कई
31 मई को पूर्व मंत्री सुधीर शर्मा ने एक फोटो पोस्ट किया था। फोटो में तीन लोग थे, खुद सुधीर शर्मा, नेता प्रतिपक्ष मुकेश अग्निहोत्री और वरिष्ठ नेता आशा कुमारी। कैप्शन डाला गया 'एक मुलाक़ात, नई शुरुआत।' वीरभद्र सिंह के इन तीन करीबियों की बैठक ऊना में हुई थी, जिसके बाद से ही कांग्रेस में नए समीकरण बनने के कयास लगने लगे थे। जैसा कैप्शन में सुधीर शर्मा ने लिखा था, होता भी ऐसा ही दिखा। तीन जून को शिमला में एक और बैठक हुई। इस बैठक में पांच लोग शामिल हुए, इन तीनों के साथ वीरभद्र सिंह के पुत्र व शिमला ग्रामीण विधायक विक्रमादित्य सिंह तो उपस्थित थे ही, पर ख़ास बात रही वरिष्ठ कांग्रेस नेता कौल सिंह ठाकुर की मौजूदगी। माना जा रहा है समय काल परिस्थिति के अनुसार कौल सिंह ठाकुर भी वीरभद्र खेमे के साथ हो लिए है। अगले ही दिन यानी चार जून को इन पाँचों नेताओं ने संयुक्त पत्रकार वार्ता भी कर दी। प्रत्यक्ष तौर पर तो निशाना भाजपा पर था लेकिन अप्रत्यक्ष तौर पर ये संयुक्त पत्रकार वार्ता कई निशाने साध गई।
समानांतर गुटों की राजनीति से हमेशा ग्रसित रही कांग्रेस
नए किरदार आते जा रहे हैं, मगर नाटक पुराना चल रहा है। अतीत में झांके तो हिमाचल कांग्रेस बीते कई दशकों से हमेशा समानांतर गुटों की राजनीति से ग्रसित रही है। डॉ यशवंत सिंह परमार के दौर में ठाकुर रामलाल का गुट हावी हुआ और नतीजन डॉ परमार को हटा कर उन्हें मुख्यमंत्री बना दिया गया। वहीं वीरभद्र सिंह के दौर में कभी पंडित सुखराम, तो कभी विद्या स्टोक्स के गुट के साथ उनकी खींचतान रही।1998 से पहले यदि पंडित सुखराम ने अलग पार्टी नहीं बनाई होती और भाजपा का साथ नहीं दिया होता तो तब भी कांग्रेस रिपीट करती। इसी तरह पिछली सरकार के वक्त से ही सुखविंदर सिंह सुक्खू और जी एस बाली के साथ भी वीरभद्र सिंह की तल्खियां चर्चा में रही है। वहीँ, कौल सिंह ठाकुर 2012 में मुख्यमंत्री बनना चाहते थे, लेकिन वीरभद्र केंद्र की राजनीति से प्रदेश में लौट आये और कौल सिंह के अरमान पूरे नहीं हुए। हालांकि लंबे वक्त तक कौल सिंह वीरभद्र सिंह के करीबी रहे। वर्चस्व की ये जंग दशकों से पार्टी में चली आ रही है। हालांकि वीरभद्र सिंह के तिलिस्म के आगे कभी बाकी गुटों की ज्यादा चली नहीं।
लचर संगठन: क्या फेरबदल पार्टी की जरुरत
प्रदेश कांग्रेस का संगठन लचर है। संगठन की कमान कुलदीप राठौर के हाथ में है लेकिन अब तक राठौर बेअसर रहे है। लचर कार्यशैली का अंदाजा इसी बात से लगा लीजिए कि उनके कमान संभालने के बाद कई ज़िलों में जिला व ब्लॉक स्तर पर संगठनात्मक बदलाव हो चुके है और अभी भी अधिकांश स्थानों पर स्तिथि बदतर है। राठौर निरंतर पत्रकार वार्ता कर सरकार पर हमला बोलते जरूर है पर कांग्रेस को ऐसे नेतृत्व की दरकार हैं जो सड़क पर उतर कर मुद्दों की सियासत करें, बंद कमरों की सियासत से तो पार्टी का भला होना मुश्किल है। माना जा रहा है कि पार्टी का एक बड़ा गुट भी 2022 से पहले संगठन में व्यापक फेरबदल का पक्षधर है और मुमकिन है की चुनाव से पहले राठौर की विदाई हो जाए।