क्या इस बार लगेगी आम आदमी पार्टी की नैया पार

प्रदेश की सियासत में तीसरे मोर्चे की सुगबुगाहट कई दशकों से है पर हर बार इन दावों की हवा निकलती रही है। सिर्फ 1998 के विधानसभा चुनाव को छोड़ दे तो कभी भी सत्ता गठन में किसी तीसरी पार्टी की भूमिका नहीं रही। अब फिर प्रदेश में आम आदमी पार्टी ने हुंकार भरी है, ठीक वैसे ही जैसा 2017 से पहले हुआ था। हालांकि तब चुनाव आते आते पार्टी ने यू टर्न ले लिया था। फिर इस वर्ष हुए नगर निगम चुनाव में भी पार्टी ने ऐलान किया कि वो चुनाव लड़ेगी, पर जनता ने सारे जोश की हवा निकाल दी। अब विधानसभा चुनाव को एक वर्ष से भी कम वक्त बचा है और पार्टी फिर चुनाव लड़ने का ऐलान कर चुकी है। बैठकें हो रही है, प्रदर्शन हो रहें है। पर हकीकत ये है कि न जमीनी स्तर पर संगठन है और न दमदार चेहरा, पर कोशिश पूरी की जा रही है। आम आदमी पार्टी द्वारा दिल्ली में किये गए विकास से लोग प्रभावित है इसमें भी कोई संशय नहीं। फिलवक्त आम आदमी पार्टी के राष्ट्रीय नेताओं का फोकस दिल्ली और पंजाब के साथ साथ गोवा, उत्त्तराखंड और उत्तर प्रदेश में नज़र आ रहा है। हर जगह पार्टी के परफॉरमेंस को देख कर ये कयास लगाए जा रहे है कि पार्टी हिमाचल में भी कुछ बेहतर कर सकती है। हिमाचल प्रदेश में राजनीति की बागडोर मुख्य तौर पर दो ही राजनीतिक दल संभालते आए है। यही कारण है कि प्रदेश की जनता के पास नोटा ही तीसरा और अंतिम विकल्प शेष रह जाता है। प्रदेश में लगातार बढ़ती नोटा की संख्या को देख ये स्पष्ट है कि प्रदेश की जनता को किसी तीसरे विकल्प की दरकार है। अब ये तीसरा विकल्प आम आदमी पार्टी होती है या कोई और ये तो वक्त ही बताएगा।
बता दें कि आम आदमी पार्टी पहले ही 2022 हिमाचल प्रदेश विधानसभा चुनाव में सभी 68 सीटों पर अपने प्रत्याशी उतारने का ऐलान कर चुकी है। ये घोषणा हिमाचल प्रदेश आम आदमी पार्टी के प्रभारी रत्नेश गुप्ता ने की थी। बहरहाल आम आदमी पार्टी ने हिमाचल में सदस्यता अभियान चलाया है। 68 विधानसभाओं में कार्यकारिणी बनाई जा रही है। अब पार्टी के कार्यकर्ता बूथ स्तर पर जाकर लोगों से सम्पर्क साध रहे है। जनता की समस्याएं सुनी भी जा रही है और उन्हें उजागर भी किया जा रहा है। हाल ही में आम पार्टी के कार्यकर्ताओं ने पुरानी पेंशन बहाली, बढ़ती महंगाई और बेरोजगारी के विरोध में तपोवन विधानसभा का घेराव भी किया। इस दौरान पार्टी के कार्यकर्ताओं और पुलिस के बीच झड़प भी हुई। पार्टी की सक्रियता निरंतर बढ़ती जा रही है। जनता की मांगों को उजागर करने के साथ साथ पार्टी विधायकों को घेरने में भी कोई कसर नहीं छोड़ रही।
हिमाचल में नहीं टिका तीसरा मोर्चा
कांग्रेस और भाजपा से इतर तीसरा विकल्प देने के अब तक किए गए सभी प्रयोग असफल रहे हैं। हिमाचल विकास कांग्रेस और हिमाचल लोकहित पार्टी ने तीसरा मोर्चा खड़ा करने का प्रयास किया था, लेकिन बाद में दोनों दलों का कांग्रेस और भाजपा में विलय हो गया। मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी प्रदेश के कुछ विधानसभा क्षेत्रों में चुनाव लड़ने तक सीमित है। तीसरे विकल्प का प्रभावशाली दखल केवल साल 1998 में पंडित सुखराम की हिविकां के सहयोग से बनी भाजपा सरकार में ही देखा गया। 1998 में हिमाचल विकास कांग्रेस के रूप में पंडित सुखराम के नेतृत्व में तीसरा मोर्चा बना और हिमाचल विकास कांग्रेस के पांच विधायक बने। हिविकां के सहयोग से तब मुख्यमंत्री प्रेमकुमार धूमल के नेतृत्व में भाजपा की सरकार बनी। हिविकां समर्थित भाजपा सरकार ने अपना कार्यकाल तो पूरा किया, मगर बाद में हिविकां का भी कांग्रेस में विलय हो गया। पंडित सुखराम अपनी पुरानी पार्टी में लौट आए।
साल 2007 के चुनाव में उत्तरप्रदेश में बसपा की लहर हिमाचल तक पहुंची तो मेजर विजय सिंह मनकोटिया ने बसपा को तीसरे मोर्चे के रूप में खड़ा करने का प्रयास किया, लेकिन बाद में मनकोटिया खुद ही चुनाव हार गए। बसपा के खाते में केवल कांगड़ा की एक ही सीट आई। बसपा विधायक संजय चौधरी बाद में भाजपा में शामिल हो गए।
हिलोपा के रूप में भाजपा के असंतुष्ट महेश्वर सिंह का थर्ड फ्रंट बनाने का प्रयास भी असफल रहा। महेश्वर सिंह ने साल 2012 के चुनाव में नई पार्टी बनाकर 36 विधानसभा सीटों में चुनाव लड़ा था। कई सीटों पर हिलोपा के समर्थन से माकपा के प्रत्याशी चुनावों में थे, लेकिन हिलोपा को जीत सिर्फ एक ही सीट पर मिली। साल 2016 में पार्टी बनाने के चार साल बाद महेश्वर सिंह भी अपनी पुरानी पार्टी भाजपा में जा मिले। और हाल ही में हुए मंडी लोकसभा उपचुनाव के लिए महेश्वर सिंह भाजपा की टिकट के प्रबल दावेदा माने जा रहे थे।
पहले भाजपा और फिर आम आदमी पार्टी को छोड़ चुके पूर्व सांसद डॉ राजन सुशांत ने भी अपनी नई पार्टी हमारी पार्टी हिमाचल पार्टी बनाई है। राजन सुशांत ने 2022 में हर विधानसभा क्षेत्र से अपनी पार्टी के उम्मीदवार उतारने की घोषणा भी की थी। मगर हाल ही में हुए उपचुनाव में डॉ राजन सुशांत अपने गृह क्षेत्र फतेहपुर में जीत हासिल नहीं कर पाए। अब उनकी पार्टी ऐसी स्थिति में पूरे प्रदेश पर फतेह कर पाएगी ऐसा नहीं लगता।