वीरभद्र सिंह ने किन्नौर को अपना समझा , जयराम ने किया सौतेला व्यवहार : जगत सिंह नेगी

"कोरोना संकट के डेढ़ साल में जय राम सरकार ने कुछ भी नहीं सीखा, मुख्यमंत्री का किन्नौर दौरा किसलिए था अब तक स्पष्ट नहीं, मुख्यमंत्री जी घंटो तक अफसरों के साथ मीटिंग करते रहते है मगर धरातल पर कुछ नहीं होता, डीपीआर बनने के बाद ही जंगी थोपन परियोजना पर राय देना उचित, किन्नौर के विकास में वीरभद्र सिंह का बड़ा हाथ। "
किन्नौर ही नहीं हिमाचल प्रदेश की सियासत में भी किन्नौर विधायक जगत सिंह नेगी किसी परिचय के मोहताज नहीं है। नेगी चार बार विधायक रहे है और पिछली सरकार में विधानसभा के डिप्टी स्पीकर भी रह चुके है। अक्सर अपने बेबाक बयानों को लेकर चर्चा में रहने वाले जगत सिंह नेगी से फोर्ट्स वर्डिक्ट ने विशेष बातचीत की और कोरोना संकट, नौतोड़, प्रस्तावित जंगी थोपन परियोजना सहित कई अहम मसलों पर उनकी राय जानी। पक्ष है बातचीत के मुख्य अंश ...
सवाल : कोरोना की दूसरी लहर से किन्नौर जिला किस तरह निपट रहा है और फिलवक्त किन्नौर जिले में स्वास्थ्य सुविधाओं के क्या हालात है ?
जगत सिंह : मुझे उम्मीद थी की शायद कोरोना की दूसरी लहर में प्रदेश सरकार पहले से बेहतर परफॉर्म करेगी पर मुझे बड़े दुख के साथ ये कहना पड़ रहा है कि कोरोना संकट के इस डेढ़ साल में जय राम सरकार ने कुछ भी नहीं सीखा। आज भी स्थिति वैसी ही है जैसी पहले थी। आज भी किन्नौर से कोरोना मरीज़ों को शिमला स्थित आईजीएमसी हस्पताल में शिफ्ट करना पड़ रहा है। किन्नौर में सुविधाएं होने के बावजूद भी सरकार उनका उपयोग कर पाने में असक्षम है। जैसे कि करछम वांगतू प्रोजेक्ट के प्रभावित लोगों के लिए यहां एक संजीवनी हॉस्पिटल है जिसमें सेंट्रलाइज़्ड ऑक्सीजन, हाई फ्लो ऑक्सीजन, वेन्टीलेटर, स्पेशलिस्ट डॉक्टर्स जैसी सभी सुविधाएं उपलब्ध है लेकिन इसे कोविड डेडिकेटेड हॉस्पिटल नहीं बनाया गया। यहां मरीज़ों को सुविधाएं न मिल पाने के चलते उन्हें आईजीएमसी शिफ्ट करना पड़ता है। आईजीएमसी में पुरे प्रदेश के मरीज़ आते है इसलिए न तो उन्हें आईसीयू बेड मिल पाते है और न ही बेहतर चिकित्सा सुविधाएं। किन्नौर के लोग इस वजह से परेशान है लेकिन सरकार सुध नहीं ले रही।
सवाल : क्या आप कहना चाहते है कि किन्नौर में कोई भी कोविड केयर अस्पताल नहीं है ?
जगत सिंह : कोविड केयर अस्पताल तो यहां है पर सुविधा का अभाव है। न तो इन अस्पतालों में वेंटीलेटर है और न ही पर्याप्त मात्रा में ऑक्सीजन उपलब्ध है। कमियों के कारण मरीज़ों को किन्नौर से उपचार के लिए शिमला ले जाना पड़ता है।
सवाल : कोरोना की इस दूसरी लहर के दौरान बतौर विधायक आप जनता की सेवा किस तरह कर रहे है ?
जगत सिंह: हमारी तरफ से जो भी बन पा रहा है हम कर रहे है। कांग्रेस पार्टी की तरफ से कोविड अस्पताल रिकांगपिओ के मरीज़ो को रोज़ाना ब्रेकफास्ट और लंच दिया जाता है। कांग्रेस के कार्यकर्त्ता स्वयं ये पौष्टिक भोजन बना कर मरीज़ों तक पहुंचा रहे है। इसके आलावा एक बस और दो गाड़िया भी कोरोना के मरीज़ों को उनके घर से कोविड अस्पताल पहुँचाने का कार्य कर रही है।
सवाल : पिछले कुछ दिनों में अपने प्रदेश के मुख्यमंत्री पर किन्नौर को नज़र अंदाज़ करने के आरोप लगाए है, आपसे जानना चाहेंगे की ये आरोप किस तथ्य के आधार पर लगाए गए है ?
जगत सिंह : देखिये, मुख्यमंत्री ने कुछ समय पहले समदो बॉर्डर का एक दौरा किया, ये दौरा किसलिए था अब तक स्पष्ट नहीं है। मुख्यमंत्री हेलीकाप्टर द्वारा समदो पहुंचे, पत्रकारवार्ता के दौरान मुख्यमंत्री ने कहा की चीन के लोग बॉर्डर के उस पार पक्के मकान बना रहे है, निर्माण कार्य कर रहे है। अब चीन तो अपनी ज़मीन पर निर्माण कार्य करेगा ही, इसमें मुख्यमंत्री को निरिक्षण करने की क्या ज़रूरत। दूसरा उन्होंने कहा की इस दौरे की रिपोर्ट केंद्र सरकार को सौंपी जाएगी। अब ये बात सोचने वाली है की ऐसी क्या महत्वपूर्ण जानकारी है जो बॉर्डर पर मौजूद आईटीबीपी और इंटेलिजेंस केंद्र सरकार को नहीं दे पा रही और मुख्यमंत्री को वो जानकारी भेजनी पड़ी। खैर ये एक अलग विषय है, समस्या तो ये है की मुख्यमंत्री इस दौरे के दौरान किन्नौर के मुख्यालय रिकांगपिओ में इर्धन भरने के लिए रुके मगर उन्होंने किन्नौर की सुध नहीं ली। हमें भी सूचित नहीं किया गया कि मुख्यमंत्री आये है, हमें पता होता तो हम भी क्षेत्र की समस्याओं को मुख्यमंत्री के समक्ष रखते। मुख्यमंत्री किन्नौर आये , भाजपा के कार्यकर्ताओं से मिले और कोरोना के नियमों का उल्लंघन किया। न तो मुख्यमंत्री ने अधिकारियों के साथ कोई बैठक की और न ही कोविड केयर सेंटर में मरीज़ों को देखने गए। साफ़ तौर पर मुख्यमंत्री के इस दौरे का किन्नौर की जनता को कोई फायदा नहीं हुआ, मगर दुष्प्रचार किया गया की मुख्यमंत्री किन्नौर की सुध लेने आए है। यूँ झूठ बोलना सही बात नहीं है। भाजपा सरकार का तो काम ही जनता को गुमराह करना है और उन्होंने किन्नौर की जनता को भी गुमराह करना चाहा। वो सिर्फ इर्धन भरने आए थे, किन्नौर की जनता की सुध लेने के लिए नहीं।
सवाल : किन्नौर के राशन डिपुओं में पूरा राशन उपलब्ध न होने की खबरें सामने आई है, क्या सच में ऐसा है ? अगर है तो इस समस्या तो दूर करने के लिए आप क्या कर रहे है?
जगत सिंह : ये तो प्रदेश सरकार का दायित्व है कि प्रदेश के सभी परिवारों तक सस्ती राशन की दुकानों के माध्यम से राशन पहुँच पाए ,मगर सरकार ये कर पाने में विफल है। किन्नौर के राशन डिपुओं में जनता को आधा अधूरा राशन मिल रहा है। जहां चावल है वहां आटा नहीं है, जहां चीनी है वहां तेल नहीं है। तेल महंगा भी बहुत हो गया है। बड़ी- बड़ी बातें की जाती है मगर असल में होता कुछ भी नहीं। सरकार द्वारा जनता को मुफ्त राशन पहुँचाने की बात भी कही गई थी मगर वो राशन किसको दिया गया मालूम नहीं। मुख्यमंत्री जी घंटो तक अफसरों के साथ मीटिंग करते रहते है मगर धरातल पर कुछ नहीं होता।
सवाल : एसजेवीएनएल के जंगी थोपन प्रोजेक्ट का स्थानीय लोग विरोध कर रहे है , इस पर आपका पक्ष क्या है ?
जगत सिंह : जंगी थोपन प्रोजेक्ट का डीपीआर अब तक तैयार नहीं हुई है। ये एक ऐसा हाइड्रो प्रोजेक्ट है जिसका कुछ पंचायतें विरोध कर रही है और कुछ पंचायतें इसके पक्ष में भी है। जब तक इस प्रोजेक्ट का डीपीआर नहीं बन जाती तब तक ये नहीं कहा जा सकता की ये प्रोजेक्ट जनता के लिए अच्छा है या बुरा। डीपीआर बनने के बाद ही इस प्रोजेक्ट की अच्छाई और बुराई के बारे में पता लग पाएगा और तब ही इस पर अपना पक्ष देना उचित रहेगा।
सवाल : किन्नौर भाजपा लगातार ये आरोप लगा रही है की जब से जगत सिंह किन्नौर के विधायक बने है तब से किन्नौर में विकास की गति थम गई है, इस पर आपका क्या कहना है ?
जगत सिंह : देखिये भारतीय जनता पार्टी एक ऐसी पार्टी है जो जुमलेबाज़ी, बयानबाज़ी के अलावा और कुछ करना नहीं जानती। इनका काम बस लोगों को गुमराह करना और झूठ का प्रचार करना है। किन्नौर की जनता ने मुझे 4 बार चुना है। मुझे जब भी मौका मिला मैंने किन्नौर के हर क्षेत्र में विकास करवाया। इस विकास में पूर्व मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह का भी बड़ा हाथ रहा है। उन्हीं के सहयोग से किन्नौर आज देश के सबसे विकासशील जिलों में से एक है। किन्नौर में 90 प्रतिशत से ज्यादा गांव सड़क सुविधा से जुड़े है, हर घर में बिजली है, पानी हर घर में है। शिक्षा और स्वास्थ्य का जो इंफ्रास्ट्रक्चर किन्नौर में है वो किसी भी अन्य जिला से कम नहीं है।
सवाल : आप अपना बता रहे है , ये भी बताइये भाजपा सरकार के पिछले तीन साल के कार्यकाल में क्या - क्या विकास कार्य किन्नौर हुए है ?
जगत सिंह : जब से जयराम सरकार आई हिमाचल 30 साल पीछे चला गया। किन्नौर की स्थिति भी कुछ ऐसी ही है। कांग्रेस सरकार के कार्यकाल के दौरान जो कार्य शुरू किये गए थे हम उन्हीं को पूरा कर रहे है, मगर ये हिमाचल सरकार उन्हीं परियोजनाओं का रिबन काट कर वाह वाही लूट रही है। भाजपा ने कोई विकास कार्य किन्नौर में नहीं किया, बल्कि जो भाजपा के छुटभैय्ये नेता है वे विकास के कार्यों में अड़चनें डालते है। इनके पास ट्रांसफर करवाने के अलावा और कोई काम नहीं है। किन्नौर में तैनात अच्छे अधिकारी, कर्मचारी, डॉक्टर अध्यापकों का ये ट्रांसफर करवा देते है, ट्रांसफर को इन्होंने अपना धंधा बना लिया है। ठेको में कमीशन खाना भी इनका एक धंधा है। भ्रष्टाचार को बढ़ावा देने के अलावा भाजपा के तीन साल के कार्यकाल में और कुछ भी नहीं हुआ है।
सवाल : उरनी में जो पॉलीटेक्निकल कॉलेज बनना था वो अब तक क्यों नहीं बन पाया है? किन्नौर के छात्रों को रोहड़ू के पॉलीटेक्निकल कॉलेज में क्यों पढाई करनी पड़ रही है ?
जगत सिंह : जिस समय किन्नौर को ये पॉलीटेक्निकल कॉलेज सैंक्शन हुआ उस समय किन्नौर के बच्चों का एडमिशन रोहड़ू पॉलीटेक्निकल कॉलेज में लिया गया। 2013 में मैंने पहली बार कोशिश की कि इस पॉलीटेक्निकल कॉलेज को रोहड़ू से किन्नौर शिफ्ट कर पाऊं। लेकिन किन्नौर में कोई ऐसा उचित स्थान उपलब्ध नहीं था जहां इस कॉलेज को शिफ्ट किया जा सके। 2007 में उरनी 8 करोड़ की लागत से जय प्रकाश कंपनी द्वारा एक आईटीआई बनाई गई थी। इस बिल्डिंग को हम लेना चाहते थे लेकिन कंपनी नहीं मानी। पर साल 2017 में जब ये बिल्डिंग जे एस डव्लू कंपनी के पास चली गई तो बात बन गई। कंपनी पॉलीटेक्निकल कॉलेज चलाने के लिए सरकार को ये बिल्डिंग एक रूपए लीज पर देने के लिए सहमत हो गई।अक्टूबर 2017 में सरकार ने अप्रूवल भी दे दिया। मगर फिर भाजपा की सरकार आई और काम रुक गया। मैं लगातार तीन सालों से विधानसभा में ये मुद्दा उठा रहा हूँ मगर सरकार सुनती नहीं। सरकार कल्पा में पॉलीटेक्निकल कॉलेज बनाने पर अड़ी हुई है।
सवाल : किन्नौर में नौतोड़ पर ज़मीन का न मिलना भी एक बड़ी समस्या है, लोग असमंजस में है की उन्हें ज़मीन मिलेगी या नहीं, आपका इस बारे में क्या कहना है ?
जवाब : प्रदेश के पहले मुख्यमंत्री और प्रदेश निर्माता यशवंत सिंह परमार की सोच थी कि हिमाचल के जनजातीय क्षेत्रों के लोग ज़मीन से वंचित ना रहे। इसीलिए ये नियम बनाया गया कि हिमाचल में जिन लोगों के पास 20 बीघे से कम ज़मीन है उन्हें नौतोड़ के आधार पर सरकारी ज़मीन दी जाए, थोड़ा बहुत नज़राना देने पे। 1968 में ये स्कीम शुरू हुई मगर बाद में इस स्कीम को बंद कर दिया गया। 1983 में जब वीरभद्र पहली बार मुख्यमंत्री बनें तो उन्होंने जनजातीय क्षेत्र के लोगों के लिए नौतोड़ की सुविधा खुली रखी। फिर 1998 में जब धूमल साहब की सरकार बनी तो उन्होंने फारेस्ट कंज़र्वेशन एक्ट 1980 को सख्ती से लागू करने के आदेश जारी किये जिससे नौतोड़ मिलना बंद हो गया क्यों कि हिमाचल में जो भी ज़मीन है वो सब फारेस्ट के अंतर्गत आती है। इसके लिए केंद्र सरकार से परमिशन चाहिए जो बहुत जटिल है।
साल 2012 में नौतोड़ लागू करवाने के लिए मैंने कुछ ऐसा किया जो पहले हिंदुस्तान में कभी नहीं हुआ था। भारत के संविधान के अनुछेद 5 के तहत गवर्नर व प्रेसिडेंट को जनजातीय क्षेत्र के लोगों के लिए रियायत देने की अनुमति है। मैंने उस समय के गवर्नर से दरख्वास्त की और पहली बार जनजातीय क्षत्र के लोगो को नौतोड़ पर ज़मीन देने के लिए फारेस्ट कन्सेर्वटिव एक्ट 1980 को निरस्त किया गया। ये एक ऐतिहासिक कदम था। लोगों को ज़मीनें मिली। 2017 तक 500 लोगों को सैंक्शंड पट्टे दिए। किन्नौर में जो 7500 मामले लंबित पड़े थे उनकी जॉइंट इंस्पेक्शन करवाकर उन्हें निपटाया गया। पर जयराम सरकार ने आने के बाद इस संदर्भ में कुछ नहीं किया। दरअसल इस सरकार कि मंशा ही नहीं है कि जनजातीय क्षेत्र के लोगों को राहत दी जाए। विशेषकर किन्नौर के साथ जयराम सरकार ने पहले दिन से ही सौतेला व्यवहार किया है।