उपचुनाव से भागने के प्रयास में भाजपा, पर जनता देगी करारा जवाब: रोहित ठाकुर

पूर्व सीपीएस और जुब्बल कोटखाई से पूर्व विधायक रोहित ठाकुर को भले ही सियासत विरासत में मिली हो लेकिन दो दशक के अपने राजनीतिक सफर में रोहित ठाकुर निरंतर खुद को साबित करते आ रहे है। अपनी सादगी से लोगों के बीच अपनी पैठ बनाने वाले रोहित विपक्ष में रहते हुए भी जनता की आवाज लगातार बुलंद कर रहे है। जुब्बल कोटखाई क्षेत्र में उपचुनाव होने है और पिछले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के प्रत्याशी रहे रोहित का एक बार फिर पार्टी प्रत्याशी बनना लगभग तय माना जा रहा है। उपचुनाव टलने, सेब के गिरते दाम, और क्षेत्र के विकास जैसे कई अहम मसलों पर फर्स्ट वर्डिक्ट ने रोहित ठाकुर से विशेष बातचीत की। रोहित ठाकुर ने प्रदेश में संभावित उपचुनाव पर सरकार की मंशा पर सवाल उठाये, साथ ही सड़क, स्वास्थ्य, विकास परियोजनाओं, कृषि-बागबानी पर भी सरकार को आड़े हाथ लिया। पेश है इस विशेष बातचीत के मुख्य अंश:
सवाल : प्रदेश में होने वाले 4 उपचुनाव फिलहाल टल चुके हैं, इस पर आपका क्या कहना है?
जवाब : हिमाचल के जनजातीय क्षेत्रों में जब पंचायती राज चुनाव करवाए जा सकते हैं, तो विधानसभा चुनाव क्यों नहीं, यह सरकार के विरोधाभास व इसके दोहरे मापदंड को दर्शाता है। हिमाचल के मुख्य सचिव ने सरकार के दबाव में निर्वाचन आयोग को जो रिपोर्ट सौंपी है, उसमें कोविड जैसे फैक्टर बताए गए है। दरअसल भाजपा की मंशा ही नहीं है कि अभी हिमाचल में उपचुनाव हों, क्योंकि प्रदेश में सरकार ने कुछ भी नहीं किया। यही कारण है कि सरकार असहज महसूस कर रही है। हालांकि मुख्यमंत्री अपने दौरों के दौरान यही ब्यान देते रहे कि सितंबर में उपचुनाव होंगे, लेकिन लगता है कि सरकार को आभास हो गया था कि जनता कांग्रेस का ही साथ देगी। भाजपा हार के डर से दोहरे मापदंड अपना रही है, और उपचुनाव से भागने के प्रयास में है। यही वजह है कि मुख्य सचिव ने उपचुनावों को टालने से संबंधित रिपोर्ट सरकार के दबाव में तैयार की है। बहरहाल देर सवेर ही सही उपचुनाव और आगामी विधानसभा चुनाव में प्रदेश की जनता भाजपा को करारा जवाब देगी।
सवाल : पराला मंडी में सीए स्टोर स्थापित करने का श्रेय किस सरकार को देते है ?
जवाब : भाजपा केवल जुमलों में विश्वास रखती है। किसी भी बड़ी परियोजना के लिए मंजूरी मिलना मुश्किल कार्य होता है, जबकि घोषणाएं करना आसान। भाजपा जब से सत्ता में आई तब से मात्र घोषणा ही करती रही है। वीरभद्र सरकार में प्रदेश को मिले सबसे बड़े 1134 करोड़ के बागवानी प्रोजेक्ट के तहत सीए स्टोर को पराला में बनाने की मंजूरी मिली थी। इसके साथ ही अन्य क्षेत्रों में भी सीए स्टोर निर्माण की मंजूरी दी गई थी। भाजपा सरकार का इस प्रोजेक्ट से कोई लेना देना नहीं है, यह सरकार केवल श्रेय लेने की होड़ में लगी है। जयराम सरकार ने तो प्रदेश के बागवानों को मिलने वाली निशुल्क कीटनाशक दवाइयों पर भी रोक लगा दी है। इससे पता लगता है कि यह सरकार बागवानों की कितनी हितेषी है? इस प्रोजेक्ट को मंजूर करवाने में पूर्व मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह व पूर्व बागवानी मंत्री विद्या स्टोक्स का योगदान रहा है। अन्यथा वर्तमान बागवानी मंत्री के ब्यान तो साफ दर्शाते हैं कि उन्हें बागवानी की कोई समझ ही नहीं है। वे कभी सेब खुले में बेचने की हिदायत देते हैं तो कभी यूनिवर्सल कार्टन की बात कर हास्यास्पद ब्यान देते हैं। कांग्रेस सरकार ने एपीडा के तहत हिमाचल में सात सीए स्टोर स्थापित करने का प्लान तैयार किया था। इनमें से 3 सीए स्टोर जुब्बल कोटखाई में ही स्थापित करने का प्रावधान रखा गया था, चूंकि यह क्षेत्र सेब बाहुल्य के लिए जाना जाता है। यदि प्रदेश में सीए स्टोर समय से तैयार किये जाते तो बागवानों के पास आज सेब भंडारण करने का सही विकल्प होता।
सवाल : जुब्बल - कोटखाई विधानसभा क्षेत्र में पिछले 4 वर्षों से विकासात्मक कार्यों को किस तरह से देखते हैं?
जवाब : विकास पर तो इस सरकार ने पूर्ण विराम ही लगा दिया है। हिमाचल की भौगोलिक परिस्थितियां कैसी होती है, इससे कोई भी अज्ञात नहीं है। पहाड़ी क्षेत्रों में जनता के लिए सड़कें जीवन रेखा का कार्य करती हैं। ऐसे में सरकार ने सड़कों का कोई विकास नहीं किया। इस क्षेत्र में ठियोग-खड़ापत्थर-हाटकोटी सबसे प्रमुख मार्ग है। इसके लिए कांग्रेस सरकार ने बेहतरीन प्रयास करते हुए करीब यह काम पूरा करवा दिया था। मात्र 8 फीसदी कार्य इस सरकार के लिए शेष रह गया था, इसे भी वर्तमान सरकार पूरा करवाने में विफल रही। इसके अलावा कांग्रेस सरकार के समय में इस क्षेत्र के लिए विभिन्न 61 विकासात्मक प्रोजेक्ट स्वीकृत किये गए थे। इन प्रोजेक्टस में विभिन्न फंडिंग एजेंसियों व योजनाओं के तहत करीब 250 करोड़ रुपए की राशि खर्च होनी थी, लेकिन भाजपा सरकार ने चार बार बजट बनाने के बाद भी इस क्षेत्र के लिए कोई कार्य नहीं किया। वहीं स्वास्थ्य सुविधाओं की बात करें तो कांग्रेस सरकार ने प्रदेश में 14 स्वास्थ्य संस्थान खोले थे, जो आज के कोविड जैसे समय में जनता के लिए वरदान साबित हो रहे हैं, लेकिन वर्तमान सरकार ने नए संस्थान खोलना तो दूर, बल्कि जो थे भी उनमें से भी 6-7 संस्थान बन्द कर दिए हैं। इनमें एक संस्थान जुब्बल - कोटखाई का भी बंद कर दिया है। कांग्रेस सरकार ने पब्बर नदी से 38 करोड़ की उठाऊ पेयजल योजना स्वीकृत की थी, लेकिन इस महत्वाकांक्षी परियोजना का भाजपा सरकार टेंडर भी फाइनल नहीं कर पाई है। ऐसे में लोगों को पेयजल समस्या का कितना सामना करना पड़ रहा है, इसका जवाब आने वाले चुनावों में जनता ही देगी।
सवाल : बागवानों को सेबों के उचित दाम क्यों नहीं मिल रहे हैं, आप इसका क्या कारण मानते हैं?
जवाब : बागवानों को सेब के उचित दाम नहीं मिल रहे हैं। यह निजी कंपनियों और मंडियों में आढ़तियों की मिलीभगत का ही परिणाम है कि उन्हें सेब पैदावार की लागत का पैसा भी नहीं मिल पा रहा। बागवानों से ये लोग पहले सस्ते में सेब खरीदेंगे और फिर अपने सीए स्टोर में भंडारण कर कुछ समय बाद महंगे दामों में बेचेंगे। बागवानों का सेब पर लागत मूल्य लगातार बढ़ा ही है। पहले कार्टन के दाम बढ़े फिर डीजल-पेट्रोल महंगा होने से ट्रांसपोर्ट का खर्चा बढ़ा। इसके अलावा सरकार की तरफ से जो बागवानों को कीटनाशक दवाएं उपलब्ध करवाई जाती थी, उन्हें भी सरकार ने अब बंद कर दिया है। हालांकि प्रदेश में जब उपचुनाव की सुगबुगाहट चल रही थी, तो मुख्यमंत्री ने उस समय ऊपरी क्षेत्र के दौरे के दौरान खड़ापत्थर में आनन-फानन में आकर जनता को संबोधित करते हुए कई घोषणाएं तो कर दी, लेकिन वे कागजों पर ही सिमट कर रह गई। उस दौरान मुख्यमंत्री ने घोषणा की थी कि वह स्वयं कीटनाशक दवाइयों को लेकर बागवानी विभाग के साथ समीक्षा करेंगे और बागवानों को निशुल्क दवाई उपलब्ध करवाने का प्रयास करेंगे। मैं आपको बता दूं कि बागवानों की जब फसल तैयार हो चुकी हो और तुड़ान का वक्त चल रहा हो, तो उस समय ऐसी घोषणाएं बागवानों के साथ बेमानी है। एमआईएस के तहत खरीदे गए सेब को भी सरकार मंडियों में बेच रही है। इसका भी सीधा असर बागवानों पर पड़ रहा है, जबकि मंडी मध्यस्थता योजना के तहत जो निम्न स्तर का सेब खरीदा गया है, इसे डिस्ट्रॉय कर बागवानों से बी-ग्रेड व ऑफ़ वैरायटी खरीदनी चाहिये।
सवाल : राजनीति में वंशवाद को आप कितना सही मानते हैं, चूंकि दोनों दलों पर परिवारवाद के आरोप-प्रत्यारोप लगते रहे हैं?
जवाब : यह सरकार शुरू से ही परिवारवाद का ढिंढोरा पीटती आई है। हिमाचल में होने वाले उपचुनाव और 2022 में होने वाले विधानसभा चुनाव में देखना होगा कि परिवारवाद की राजनीति कौन करता है और कौन नहीं करता है। भाजपा की कथनी और करनी में कितना अंतर है, यह तो आने वाले समय में पता लग जाएगा।