खुशवंत सिंह : वो लेखक जो हिमाचल का न होकर भी हिमाचल का था
हिमाचल की प्राकृतिक ख़ूबसूरती और सरल जीवन शैली ने देश की कई बड़ी हस्तियों को अपनी ओर आकर्षित किया है, जो यहाँ आए तो हमेशा के लिए यहीं के होकर रह गए। इन हस्तियों में से एक है प्रसिद्ध लेखक, पत्रकार, उपन्यासकार, पद्मविभूषण खुशवंत सिंह। 50 से अधिक वर्षों के लिए, खुशवंत सिंह ने कई गर्मियां हिमालय की तलहटी में बसे कसौली के एक घर में बिताई, जिसे उनके पिता ने एक ब्रिटिश दंपति से खरीदा था, जो आजादी के बाद भारत छोड़ गए थे। कसौली के अपर मॉल स्थित राज विला, उनकी कोठी थी। कई किताबें उन्होंने यहीं लिखीं। इनमें 'आई शैल नॉट हियर द नाइटिंगेल', 'हिस्ट्री ऑफ सिक्ख्स' जैसी पुस्तकें शामिल हैं। वर्ष 1947 में भारत और पाक के विभाजन के समय हिमाचल के कसौली से जुड़ी लेखनी की डोर खुशवंत सिंह ने अंत तक कायम रखी।
खुशवंत सिंह स्वयं को ‘आधा हिमाचली’ बताते थे। हिमाचल से उनके लगाव का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि उन्होंने अपनी पत्नी की अस्थियां कसौली स्थित घर के पेड़ों की जड़ों में डाल दी थी। खुशवंत की आखिरी पुस्तक ‘द गुड, द बैड एंड द रेडिक्युलस’ नाम से प्रकाशित हुई, जिसका विमोचन भी कसौली में हुआ। यहां का सादा रहन-सहन, खान-पान, प्रदूषण रहित वातावरण और स्वच्छ विचारों वाले लोगों का प्रभाव जीवन के अंतिम पड़ाव तक उन पर रहा। हिमाचल में अपने निवास एवं पदयात्राओं के विषय खुशवंत सिंह ने लिखा था कि हिमाचल में उनका ठिकाना शिमला, मशोबरा और कसौली तक ही सीमित था। आसपास की पहाड़ियों और घाटियों को उन्होंने पैदल चलकर ही देखा और जिया भी।
खुशवंत सिंह का नाता हिमाचल से ओर अधिक मजूबत बनाने के लिए हर साल कसौली खुशवंत सिंह का लिट् फेस्ट का आयोजन किया जाता है। ये हिमाचल प्रदेश का सबसे बड़ा लिटरेरी फेस्ट है और इसमें देश विदेश के कई नामी लेखक और विचारक शिरकत करते रहे है। दिलचस्प बात ये है कि खुशवंत सिंह के जीवित रहते हुए ही इसकी शुरुआत हो गई थी और अब भी हर वर्ष ये आयोजित होता है। यही नहीं 14 अक्टूबर 2016 को हिमाचल प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह ने खुशवंत सिंह की स्मृति में कसौली से कालका तक उनके द्वारा अक्सर प्रयोग किए जाने वाले वनमार्ग को 18 लाख रुपए की लागत से ‘खुशवंत सिंह ट्रैक’ के नाम से विकसित करने के आदेश दिए थे।
दबंग पत्रकार और बेबाक साहित्यकार खुशवंत सिंह अक्सर विवादों में घिरे रहते थे। वे एक राजनयिक और वकील भी थे, किन्तु उन्हें उनकी पत्रकारिता एवं साहित्यिक कृतियों के लिए विशेष रूप से जाना जाता है। खुशवंत सिंह उन चंद लोगों में से एक है जिन्हें नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता। 2 फरवरी, 1915 को पंजाब के खुशाब जिले (अब पाकिस्तान में) के हदाली में एक प्रमुख बिल्डर शोभा सिंह और वीरन बाई के घर पैदा हुए थे। खुशवंत सिंह ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा दिल्ली के मॉडर्न स्कूल से की थी । 1930 से 1932 के बीच उन्होंने दिल्ली के सेंट स्टीफंस कॉलेज से इंटरमीडिएट ऑफ आर्ट्स की पढ़ाई की। उन्होंने 1934 में गवर्नमेंट कॉलेज, लाहौर से बीए पूरा किया। कानून की पढ़ाई के लिए, वे लंदन के किंग्स कॉलेज गए और 1938 में उन्होंने लंदन विश्वविद्यालय से एलएलबी की उपाधि प्राप्त की। 1947 में बाकि सिख परिवारों की तरह ही खुशवंत सिंह के परिवार को भी अपना घर छोड़ हिंदुस्तान आना पड़ा। विभाजन के बाद वह अपने परिवार के साथ समर कॉटेज कसौली में आ गए। वर्ष 1956 में प्रकाशित ‘ट्रेन टू पाकिस्तान’ उपन्यास का आइडिया उन्होंने विभाजन के समय पाकिस्तान से कसौली तक किए गए सफर से लिया। वे कसौली जीप में पहुंचे थे और वो जीप हथियारबंद सिक्खों से लदी थी, जो अपने परिवार को लेकर पलायन कर रहे थे। इस दौरान दंगों ने उन्हें झकझोर कर रख दिया था। 'ट्रेन टू' पाकिस्तान में इन्हीं पहलुओं का जिक्र है। इसी रचना से उन्हें साहित्य में अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर नाम और ग्रोव प्रेस अवार्ड मिला।
खुशवंत सिंह के बारे में एक बेहद खास बात रही है कि उन्होंने अपनी जिंदगी के आखिरी पड़ाव तक लिखना नहीं छोड़ा था। खुशवंत सिंह 99 साल की उम्र में भी सुबह 4 बजे उठकर लिखना पसंद करते थे। सिख परिवार में जन्मे खुशवंत सिंह बिल्कुल अलग तरह के पत्रकार और लेखक थे। उन्होंने खुद को एक "आकस्मिक लेखक" के रूप में वर्णित किया था। उन्होंने भारत और विदेशों में सरकार के लिए काम किया। वह सत्ता के गलियारों के काफी करीब थे। भारतीय विदेश सेवा में शामिल होने से पहले उन्होंने लाहौर उच्च न्यायालय में एक वकील के रूप में अपना पेशेवर करियर शुरू किया और 8 साल तक काम किया। एक पत्रकार के रूप में भी खुशवन्त सिंह ने ख्याति अर्जित की। 1951 में वे आकाशवाणी से जुड़े थे और 1951 से 1953 तक भारत सरकार के पत्र 'योजना' का संपादन किया। 1980 तक मुंबई से प्रकाशित प्रसिद्ध अंग्रेज़ी साप्ताहिक 'इलस्ट्रेटेड वीकली ऑफ इंडिया' और 'न्यू डेल्ही' के संपादक रहे।1983 तक दिल्ली के प्रमुख अंग्रेज़ी दैनिक 'हिन्दुस्तान टाइम्स' के संपादक भी वही थे। तभी से वे प्रति सप्ताह एक लोकप्रिय 'कॉलम' लिखते थे, जो अनेक भाषाओं के दैनिक पत्रों में प्रकाशित होता था। खुशवन्त सिंह उपन्यासकार, इतिहासकार और राजनीतिक विश्लेषक के रूप में विख्यात रहे। खुशवंत सिंह की एक खास बात ये भी रही कि वो जितने लोकप्रिय भारत में थे उतने ही पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान में भी थे।
खुशवंत को कई पुरस्कारों से नवाज़ा गया था
अपने जीवनकाल के दौरान, खुशवंत सिंह को कई पुरस्कार मिले। उन्हें पद्म भूषण से सम्मानित किया गया था जिसे उन्होंने 1984 में ऑपरेशन ब्लू स्टार के विरोध में लौटा दिया था। खुशवंत सिंह को पंजाब रत्न पुरस्कार (2006), पद्म विभूषण (2007), साहित्य अकादमी फैलोशिप अवार्ड (2010),टाटा लिटरेचर लाइव अवार्ड (2013), और किंग्स कॉलेज, लंदन की फैलोशिप (2014) से भी सम्मानित किया गया था। इसके अलावा उन्हें 1996 में, रॉकफेलर फाउंडेशन की ओर से अनुदान से सम्मानित किया गया। सुलभ इंटरनेशनल सोशल सर्विस ऑर्गनाइजेशन ने जुलाई 2000 में उनके "शानदार तीक्ष्ण लेखन" में उनकी निर्भीकता और ईमानदारी के लिए उन्हें "मैन ऑफ द ईयर अवार्ड" से सम्मानित किया। पंजाब विश्वविद्यालय ने उन्हें 2011 में मानद डी. लिट की उपाधि से सम्मानित किया। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने उन्हें 2012 में अखिल भारतीय अल्पसंख्यक मंच वार्षिक फैलोशिप पुरस्कार प्रदान किया। उन्हें निशान-ए-खालसा का आदेश भी दिया गया था।