बढ़ते सियासी रसूख और अपेक्षाओं के बीच लगातार मजबूत हो रहे विक्रमादित्य

कोई नेता महज एक दफा का विधायक हो और समर्थक उसे बतौर मुख्यमंत्री प्रोजेक्ट करें, ऐसे उदाहरण सियासत में कम ही देखने को मिलते है। पर शिमला ग्रामीण विधायक विक्रमादित्य सिंह ऐसे ही नेता है। 2017 में अपने पिता स्व वीरभद्र सिंह की सरपरस्ती में जब विक्रमादित्य सिंह ने पहला चुनाव लड़ा था, तो शायद ही किसी को इल्म हो कि महज़ पांच साल में विक्रमादित्य इतनी दूर निकल आएंगे। पर विक्रमादित्य सिंह ने ऐसा कर दिखाया। न सिर्फ पांच साल अपने निर्वाचन क्षेत्र में उनका प्रभाव दिखा बल्कि प्रदेश का ऐसा कोई कोना नहीं है, जहाँ विक्रमादित्य सिंह का प्रभाव न दिखे। ये ही कारण है कि वे कांग्रेस के स्टार प्रचारक भी रहे और इस बार चुनाव लड़ने वाले उन चुनिंदा चेहरों में शामिल है जो अपने निर्वाचन क्षेत्र से निकल कर अन्य क्षेत्रों में पार्टी के लिए प्रचार करते दिखे। हालांकि सियासी चश्मे से देखे तो फिलवक्त विक्रमादित्य सीएम की रेस में नहीं दिखते, पर उनके समर्थक ऐसा नहीं मानते।
इस बार विक्रमादित्य सिंह शिमला ग्रामीण सीट से अपना दूसरा चुनाव लड़ रहे है। शिमला शहरी व ग्रामीण क्षेत्र पहले शिमला निर्वाचन क्षेत्र में ही आते थे, लेकिन 2008 में परिसीमन बदलने के बाद शिमला शहरी और शिमला ग्रामीण सीट अस्तित्व में आई। तब रोहड़ू सीट भी आरक्षित हो गई थी। ऐसे में वीरभद्र सिंह ने 2012 के विधानसभा चुनाव में शिमला ग्रामीण सीट से चुनाव लड़ा। तब वीरभद्र सिंह ने भाजपा के ईश्वर रोहाल को करीब 20 हजार वोटों से हराया था और वे मुख्यमंत्री भी बन गए। फिर आया 2017 का विधानसभा चुनाव जब वीरभद्र सिंह ने शिमला ग्रामीण से चुनाव नहीं लड़ा, कारण था उनके बेटे विक्रमादित्य सिंह की चुनावी राजनीति में एंट्री करवाना। वीरभद्र ये जानते थे कि विक्रमादित्य को पहली बार चुनाव लड़वाने के लिए सबसे सुरक्षित सीट शिमला ग्रामीण ही होगी, इसलिए उन्होंने इस सीट को विक्रमादित्य के लिए छोड़ा और खुद अर्की विधानसभा सीट से चुनाव लड़ा। विक्रमादित्य के सर पर पिता का आशीर्वाद तो था, मगर अपनी ही पार्टी की ओर से आ रही कड़ी चुनौतियां भी थी। परिवारवाद के नाम पर खड़े हो रहे सवाल और संभावित भीतरघात उनके लिए समस्याएं खड़ी कर रहा था। इसके बावजूद भी वे चुनाव जीत गए।
शिमला ग्रामीण सीट से पहली बार चुनाव लड़े 28 साल के विक्रमादित्य ने तब भाजपा के अनुभवी डॉ. प्रमोद शर्मा को शिकस्त दी थी। विपक्ष में रहते हुए भी विक्रमादित्य सिंह ने अपने निर्वाचन क्षेत्र में करीब 90 करोड़ के विकास कार्य करवाए है। शिमला ग्रामीण विधानसभा क्षेत्र में विक्रामादित्य की पकड़ की झलक साफ तौर पर देखने को मिलती है। वहीँ इस बार भाजपा ने उनके विरुद्ध इस सीट से रवि मेहता को मैदान में उतारा है। जाहिर है यहाँ भाजपा की राह आसान नहीं दिख रही। फिर भी सियासत में कुछ भी मुमकिन है और भाजपा आशावान जरूर होगी। बहरहाल विक्रमादित्य सिंह अपनी जीत को लेकर आश्वस्त है और यदि प्रदेश में कांग्रेस सरकार बनती है तो उनको अहम ज़िम्मा मिलना भी लगभग तय है। स्व वीरभद्र सिंह का पुत्र होने के चलते जाहिर है विक्रमादित्य सिंह से लोगों को खासी अपेक्षाएं है। अब तक इन अपेक्षाओं के बोझ में विक्रमादित्य सियासी तौर पर निखरते दिखे है, और उनके समर्थकों को उम्मीद है कि ये सिलसिला आगे भी बरकरार रहेगा।