संकट कटे मिटे सब पीरा, जो सुमिरै हनुमत बलबीरा
जो भी सच्चे मन से संकट मोचन मंदिर में आता है, बजरंबली उसके कष्ट हर लेते है
संकट कटे मिटे सब पीरा, जो सुमिरै हनुमत बलबीरा। खूबसूरत वादियों के लिए मशहूर हिमाचल प्रदेश की राजधानी शिमला में संकट मोचन हनुमान जी भी विराजमान है।अगर आप निरंतर किसी परेशानी से गुजर रहे हैं, तो संकट मोचन की शरण में चले आईये। मान्यता है कि जो भी सच्चे मन से संकट मोचन के मंदिर में आता है, बजरंबली उसके कष्ट हर लेते है। संकट मोचन के मंदिर में भक्तों को बेहद सुकून और शांति मिलती है, यही कारण है कि दूर- दूर से लोग नियमित तौर पर यहाँ आते है।
नीम करौली बाबा की इच्छानुसार हुई स्थापना
बीती सदी में पचास के दशक की बात है, जब संत नीब करौरी बाबा (जिन्हें नीम करौली बाबा के नाम से भी जाना जाता है) तारादेवी नाम की इस पहाड़ी पर आकर एक कुटिया में दस-बारह दिन तक रहे थे। कहा जाता है कि इस जगह पर योग-ध्यान करते हुए वे लीन हो गए और उन्हें लगा कि इस स्थान पर भगवान हनुमान जी के एक मंदिर का निर्माण होना चाहिए। बाबा ने अपनी इच्छा अपने अनुयायियों को बताई और आखिरकार सन 1962 में हिमाचल के तत्कालीन लेफ्टिनेंट गवर्नर राजा बजरंग बहादुर सिंह (भद्री रियासत के राजा) और अन्य भक्तों ने इस मंदिर का निर्माण कार्य शुरू करवाया। 21 जून, 1966 मंगलवार को इस मंदिर में विधिवत प्राण प्रतिष्ठा हुई और धीरे-धीरे इसकी लोकप्रियता व मान्यता फैलती चली गई।
जाने संकट मोचन मंदिर के बारे में :-
- हनुमान मंदिर के साथ यहां राम-सीता-लक्ष्मण, गणपति और शंकर जी का भी मंदिर है।
- मंदिर परिसर में नवग्रह का भी है मंदिर।
- रोजाना बड़ी तादाद में स्थानीय लोगों के साथ लगभग सभी पर्यटक यहाँ दर्शन करने आते हैं।
- हनुमान जी का मंदिर होने के कारण हर मंगलवार और शनिवार को यहां ज्यादा भीड़ होती है।
- मंदिर में हर रविवार को भंडारे का आयोजन किया जाता हैं।
- मंदिर परिसर में बाबा नीब करौरी जी का भी है एक छोटा-सा मंदिर हैं।
- मान्यता हैं कि यहां आकर सच्चे मन से प्रार्थना करने पर बड़े-बड़े संकट भी टल जाते हैं।
- शिमला से यहां टैक्सी के अलावा स्थानीय बस से भी आया-जाया जा सकता है।
- मंदिर परिसर में नई गाड़ियों की पूजा भी होती हैं।
- मंदिर में शादियों के लिए भी विशेष प्रावधान हैं।
इसलिए लगाते हैं हनुमान जी को सिंदूर
तुलसीदास रामायण के अनुसार एक दिन भगवान हनुमान जी ने माता सीता को मांग में सिंदूर लगाते हुए देखा। हनुमानजी ने आश्चर्यपूर्वक पूछा- माता! आपने यह सिंदूर मस्तक पर क्यों लगाया है? इस पर सीता जी ने ब्रह्मचारी हनुमान को उत्तर दिया, पुत्र! इसके लगाने से मेरे स्वामी की दीर्घायु होती है और वह मुझ पर प्रसन्न रहते हैं। ये सुनकर बजरंबली प्रसन्न हुए और उन्होंने सोचा कि जब उंगली भर सिंदूर लगाने से श्री राम की आयु में वृद्धि होती है तो फिर क्यों न सारे शरीर पर इसे पोतकर अपने स्वामी को अजर-अमर कर दूं। इसी तात्पर्य से हनुमान जी सारे शरीर में सिंदूर पोतकर राजसभा में पहुंचे तो भगवान उन्हें देखकर हंसे और बहुत प्रसन्न भी हुए। इस अध्याय के बाद हनुमान जी की इस उदात्त स्वामी-भक्ति के स्मरण में उनके शरीर पर सिंदूर चढ़ाया जाने लगा।