अद्भुत व अलौकिक है एलोरा का कैलाश मंदिर
भारत में कई अद्भुत व चमत्कारिक मंदिर है। हर मंदिर की अपनी विशेषता व महत्व है। ऐसा ही एक मंदिर एलोरा की गुफाओं में स्थित है। भगवान शिव को समर्पित यह मंदिर एलोरा के कैलाश मंदिर के नाम से जाना जाता है। एलोरा की 34 गुफाओं में कैलाश मंदिर सबसे अद्भुत है। इस मंदिर का महत्व कैलाश मंदिर से कम नहीं माना जाता है। मंदिर का आकार का भी कुछ कुछ कैलाश से मेल खाता हुआ ही है। कैलाश मंदिर का निर्माण मालखेड स्थित राष्ट्रकूट वंश के नरेश कृष्ण प्रथम ने 760-753 ई में करवाया था। यह औरंगाबाद के एलोरा जिला स्थित लयण-श्रृंखला में है। विशाल कैलाश मंदिर देखने में बेहद अलौकिक ही, और इस मंदिर का निर्माण बेहद खूबसूरती के सतह किया गया है। कैलाश मंदिर की खास बात यह है कि इस विशालकाय मंदिर को तैयार करने में करीब 150 साल लगे थे और करीब 7000 मजदूरों ने लगातार इस मंदिर को बनाने का काम किया था। अन्य मान्यताओं के अनुसार ऐसा भी कहा जाता है कि मंदिर का निर्माण परलौकिक शक्तियों द्वारा 18 वर्ष में पूरा कर लिए गया था, जोकि मंदिर के वास्तु चित्रकला के हिसाब से संभव प्रतीत नहीं होता। एलोरा कैलाश मंदिर में एक और हैरान करने वाली बात यह कि यहाँ देश विदेश से लोग भगवान शिव के दर्शन के लिए आते है लेकिन इस मंदिर में एक भी पुजारी नहीं है। मंदिर में पूजा नहीं की जाती है।
एक ही पत्थर को तराश कर बनाया गया मंदिर
मंदिर का निर्णाम एक पहाड़ी को काट कर किया गया है। बताया जाता है कि जिस पहाड़ी को काट कर मंदिर का निर्माण किया गया था उसका भार लगभग 40 हज़ार टन था। मंदिर जिस चट्टान से बनाया गया है उसके चारों ओर सबसे पहले चट्टानों को ‘U’ आकार में काटा गया है जिसमें लगभग 2,00,000 टन पत्थर को हटाया गया। पत्थरों को काटकर बनाए गए इस मंदिर कि ऊंचाई 90 फुट है। यह मंदिर 276 फ़ीट लम्बा व 154 फ़ीट चौड़ा है। इस मंदिर के आंगन के तीनों ओर कोठारिया हैं और सामने खुले मंडप में नंदी विराजमान है और उसके दोनों ओर विशालकाय हाथी और स्तंभ बने हैं। यह कृति भारतीय वास्तु-शिल्पियों के कौशल का अद्भुत नमूना है। कैलाश मंदिर में विशाल और भव्य नक्काशी है। आमतौर पर पत्थर से बनने वाले मंदिरों को सामने की ओर से तराशा जाता है, लेकिन 90 फुट ऊँचे कैलाश मंदिर की सबसे बड़ी विशेषता है कि इसे ऊपर से नीचे की तरफ तराशा गया है। कैलाश मंदिर एक ही पत्थर से निर्मित विश्व की सबसे बड़ी संरचना है।
कैलाश की तर्ज पर हुआ है मंदिर निर्माण
कैलाश मंदिर को हिमालय के कैलाश का रूप देने का भरपूर प्रयास किया गया है। शिव का यह दो मंजिला मंदिर पर्वत चट्टानों को काटकर बनाया है। यह मंदिर दुनिया भर में एक ही पत्थर की शिला से बनी हुई सबसे बड़ी मूर्ति के लिए प्रसिद्ध है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार यहाँ दर्शन करने वाले भक्तों को वैसा ही फल मिलता है जैसा फल भक्तों को कैलाश में मिलता है। इसलिए जो लोग कैलाश दर्शन के लिए नहीं जा पाते, वें यहाँ आकर भगवान शिव की आराधना करते है। मान्यताओं के अनुसार यहाँ आने वाले हर व्यक्ति की इच्छा पूरी होती है।
मंदिर के निर्माण को लेकर है कई रहस्य
मंदिर को लेकर जानकारी मिलती है कि इसका निर्माण राष्ट्र कृष्ण प्रथम ने कराया था। कहा जाता है कि एक बार राजा गंभीर रूप से बीमार हो गए थे। तमाम कोशिशों और इलाज के बाद भी राजा को ठीक कर पाना असंभव सा प्रतीत हो रहा था। फिर रानी ने भगवान शिव की आराधना की। उन्होंने कहा कि वह राजा के ठीक होते ही भगवान शिव के एक भव्य मंदिर का निर्माण करवाएगी व मंदिर का शिखर देखने तक व्रत धारण करेगी। राजा के स्वस्थ होने के बाद रानी को बताया गया कि मंदिर के निर्माण के लिए कई वर्ष लग जाएंगे व इतने लम्बे समय तक व्रत रख पाना संभव नहीं है। फिर रानी ने भगवान शिव से मंदिर के निर्माण के लिए मदद मांगी। मान्यता है कि तब उन्हें भगवान शिव द्वारा भूमि अस्त्र प्रदान किया गया जो पत्थर को भाप बना सकता था। इस अस्त्र का ज़िक्र ग्रंथो में भी किया गया है। कहा जाता है कि उसी अस्त्र से इस मंदिर का निर्माण किया गया तथा निर्माण के उपरांत इसे गुफा के नीचे दबा दिया गया। जानकारों की माने तो इतने कम समय में पारलौकिक शक्तियों से मंदिर का निर्माण किया जा सकता है अन्यथा इतना कम समय ऐसे मंदिर का निर्माण करना सम्भव नहीं है।
मंदिर को लेकर है कई मान्यताएं
माना जाता है कि मंदिर के नीचे हाथियों का निर्माण किया गया है। मान्यता है कि यह मंदिर पूरी तरह से उसी के ऊपर टिका हुआ है। इनके ऊपर भगवान विष्णु के कई रूप और महारभारत के दृश्य भी अंकित किये गए है। मंदिर की दीवारों पर अलग अलग लिपियों का प्रयोग किया है जिन्हें आज तक कोई नहीं समझ पाया है। कहा जाता है कि अंग्रेज़ी हुकूमत के दौरान इन गुफाओं में शोध कार्य शुरू किया गया था लेकिन वहां हाई रेडियोऐक्टिविटी के चलते शोध करना मुश्किल हो गया। तब अंग्रेज़ों ने शोध कार्य बंद करके इन गुफाओं को बंद कर दिया था। बता दें कि आज़ादी मिलने के बाद भी यह गुफाएं बंद पड़ी हुई है। एक मान्यता ये भी है कि इन गुफाओं के आगे भी दुनिया हो सकती है जहाँ से ये रेडियोऐक्टिव किरणें आती हैं क्योंकि यह किरणें गुफाओं में किसी एक स्त्रोत से ही आती है। मुग़ल शासक औरंगजेब ने भी इस मंदिर को नुकसान पहुँचाने का बहुत प्रयास किया था लेकिन छोटे-मोटे नुकसान के अलावा वह इसे किसी भी प्रकार की क्षति पहुँचाने में असफल रहा।
यूनेस्को ने 1983 में ही इस जगह को 'विश्व विरासत स्थल' घोषित किया है। इस मंदिर में आज तक कभी पूजा हुई हो, इसका प्रमाण नहीं मिलता। यहां आज भी कोई पुजारी नहीं है। इस मंदिर को कब बनाया गया, इसका उल्लेख कहीं नहीं मिलता। मंदिर के पत्थरों की कार्बन डेटिंग उसे एक लाख साल पुराना बताती है। एक्सपर्ट्स के मुताबिक इस मंदिर को 200 बीसी और 650 एडी के मध्य बनाया गया। इस मंदिर को बनाने वाले शिल्पकारों ने एक विशालकाय शिला को ऊपर से तराशना शुरू किया था। आमतौर पर पत्थरों को सामने से तराशा जाता है, लेकिन इस मंदिर के लिए वर्टिकल (ऊपर से नीचे की तरफ) तराशा गया। औरंगाबाद से 30 किमी दूर बना कैलाश मंदिर 50 मीटर गहरा है। जानकारों के मुताबिक इस मंदिर को 2 लाख टन भारी शिला को तराशकर बनाया गया है। किंवदंती के मुताबिक इसका निर्माण एक हफ्ते में हुआ था, लेकिन इतिहासकारों की मानें तो इस मंदिर को 700 मजदूरों ने लगभग 150 साल में तैयार किया होगा। कैलाश मंदिर एलोरा की 34 गुफाओं में 16वें नंबर की गुफा माना जाता है।