अपेक्षाओं का बोझ और खाली खजाने की चाबी

प्रदेश में कांग्रेस पार्टी की सरकार बन चुकी है और सरकार के सामने वादों की कसौटी पर खरा उतरने की चुनौती है। कड़े संघर्ष और जद्दोजहद के बाद कांग्रेस ने भाजपा को सत्ता से बाहर कर दोबारा से सत्ता कब्जा ली है। सत्ता में आने के लिए कांग्रेस ने जनता से बेतहाशा वादे किए है और जनता ने उन वादों पर ऐतबार भी किया है, जिसके बूते प्रदेश में आज सरकार कांग्रेस की है। अब जनता से जो वादे किये गए है उन्हें निभाने की बारी आ गई है। सत्ता का सुख तो अब कांग्रेस को मिलेगा ही मगर उसी के साथ -साथ अपेक्षाओं का बोझ भी कांग्रेस सरकार पर आ गया है। सुक्खू सरकार के एक कंधे पर प्रदेश की जनता की बेतहाशा उम्मीदों का बोझ है और दूसरी पर खाली सरकारी खजाने की चाबी। पिछले कुछ वर्षों से जो आर्थिक स्थिति बनी है, जाहिर है इस सरकार के लिए लगभग 70 हज़ार करोड़ के कर्ज तले दबी प्रदेश की आर्थिकी को संभालना सबसे बड़ी चुनौती होने वाली है। इस पर जो वादे कांग्रेस ने जनता और खास तौर पर प्रदेश के कर्मचारियों से किये है वो कब तक पूरे होते है, इस पर भी सबकी निगाहें टिकी रहेगी। हिमाचल की राजनीति में कर्मचारियों के प्रभाव से सभी राजनीतिक दल भली भांति परिचित है और इसलिए चुनाव से पहले कर्मचारियों को रिझाने के लिए कांग्रेस ने वादों की बौछार भी की है। कांग्रेस ने कर्मचारियों की पुरानी पेंशन बहाल करने के साथ- साथ लगभग हर लंबित मांग को पूरा करने का वादा किया है। अब नतीजे आने के बाद कर्मचारियों की उम्मीद भरी निगाहें सरकार पर टिकी है और हो भी क्यों ना, माना जा रहा है कि इस बार कांग्रेस की जीत का एक बड़ा कारण कर्मचारियों का साथ है। अब कितने वादे पूरे होते है और कितने अधूरे रहते है ये तो वक्त ही बताएगा, बहरहाल आपको बताते है कि प्रदेश के कर्मचारियों की लंबित मांगें क्या है।
क्या होगा ओपीएस बहाली का फार्मूला ?
कांग्रेस मेनिफेस्टो में पहली गारंटी पुरानी पेंशन की बहाली थी। कांग्रेस के प्रचार प्रसार में पुरानी पेंशन के मुद्दे का इस्तेमाल भरपूर दिखा। कांग्रेस के हर प्रत्याशी की जुबां पर पुरानी पेंशन का मुद्दा था और उनके फोन के पीछे वोट फॉर ओपीएस का लोगो। वादा किया गया था कि पहली कैबिनेट में ही पुरानी पेंशन बहाल कर दी जाएगी। अब सरकार बनने के बाद सबसे पहले सरकार से सवाल भी पुरानी पेंशन को लेकर ही हो रहे है। हिमाचल एनपीएस कर्मचारी महासंघ ने कांग्रेस की जीत के बाद शिमला में प्रदेश कार्यकारिणी की बैठक बुलाकर पूरी उम्मीद जताई है कि प्रदेश मंत्रिमंडल की पहली बैठक में पुरानी पेंशन बहाल कर दी जाएगी। एनपीएस के कर्मचारी नए मुख्यमंत्री से मिल चुके हैं। नए सीएम सुखविंदर सिंह सुक्खू ने भी कहा है कि पहली कैबिनेट में हम पुरानी पेंशन स्कीम लागू करेंगे। मुख्यमंत्री ने कहा है कि जिन राज्यों में पुरानी पेंशन दी जा चुकी है उनके मॉडल को स्टडी कर प्रदेश में भी सरकार पुरानी पेंशन देगी। अब कर्मचारियों को उम्मीद है कि जल्द उन्हें उनके संघर्ष का फल मिलेगा। दरअसल, हिमाचल प्रदेश के कर्मचारियों का सबसे बड़ा मुद्दा पुरानी पेंशन की बहाली ही है। कर्मचारी लगातार इसकी मांग कर रहे है। पुरानी पेंशन वो मुद्दा है जिसने चाहे-अनचाहे हिमाचल प्रदेश के चुनावी समीकरण बदल कर रख दिए। इस चुनाव में महंगाई, बेरोज़गारी और विकास के मुद्दों की तो चर्चा हुई ही लेकिन इसी के साथ पुरानी पेंशन बहाली की मांग भी वो मुद्दा बनी जिसने भाजपा की नाक में दम कर दिया और प्रदेश के चुनावी समीकरणों को प्रभावित भी किया। अब कांग्रेस सरकार के लिए ऐसी विकट आर्थिक स्थिति में पुरानी पेंशन को बहाल करना बड़ी चुनौती है। इस योजना को लागू करने के लिए एकमुश्त दो हजार करोड़ रुपये चाहिए और हर माह 500 करोड़ की जरूरत होगी। भाजपा सरकार कई बार ये स्पष्ट कर चुकी है कि प्रदेश के आर्थिक हालात ऐसे नहीं है कि पुरानी पेंशन लागू की जाए। हिमाचल सरकार अपने बल बूते ओल्ड पेंशन का भुगतान नहीं कर पाएगी, क्योंकि राज्य का राजकोष केंद्र सरकार से मिलने वाले रेवेन्यू डेफिसिट ग्रांट पर चलता है। अब नई सरकार कर्मचारियों को पुरानी पेंशन देती है या नहीं यह देखना रोचक होगा।
यहाँ इस बात को ध्यान में रखना भी बेहद ज़रूरी है कि हाल ही में संसद में वित्त राज्य मंत्री भागवत कराड ने स्पष्ट किया है कि जिन राज्यों में पुरानी पेंशन बहाल हो गई है उनके प्रस्तावों पर पीएफआरडीए की तरफ से सरकार के और कर्मचारी के अंशदान के रूप में जमा राशि को राज्य सरकार को लौटाने का कोई प्रावधान नहीं है। पीएफआरडीए ने कहा है कि नेशनल पेंशन स्कीम के तहत जमा कर्मचारियों के पैसों को राज्यों को ट्रांसफर नहीं किया जा सकता है। राजस्थान और पंजाब जैसे राज्यों ने कर्मचारियों के एनपीएस डिपॉजिट को राज्यों को ट्रांसफर करने की मांग की थी। उनका तर्क था कि पुरानी पेंशन स्कीम को लागू करके राज्य कर्मचारियों को पेंशन देंगे लेकिन पीएफआरडीए का कहना है कि इस योजना में एम्प्लॉयी के फंड को एम्प्लॉयर को ट्रांसफर नहीं किया जा सकता है जिससे पुरानी पेंशन देने वाले राज्यों की चिंता बढ़ गई है। नई पेंशन स्कीम में कर्मचारियों का अब तक जो पैसा काटा गया वह पीएफआरडीए में जमा होता था। कुछ राज्य सरकारों ने एनपीएस को खत्म करके ओपीएस लागू करने के लिए कर्मचारी और सरकार द्वारा जमा किए गए हजारों करोड़ वापस देने की मांग की जिसे देने से केंद्र सरकार की एजेंसी ने इंकार कर दिया है।
क्या मिलेगा नियुक्ति की तिथि से वरिष्ठता का लाभ ?
नियुक्ति तिथि से वरिष्ठता का लाभ देने का वादा भाजपा ने अपने 2017 के घोषणा पत्र में किया था। भाजपा सरकार तो बनी लेकिन सरकार इस वादे को भूल गई। हज़ारों कर्मचारियों में इस बात को लेकर टीस है। हालात ये है कि इसके चलते कई सीनियर कर्मचारी जूनियर हो चुके है और जूनियर सीनियर। जाहिर है ये मुद्दा कर्मचारियों के स्वाभिमान से जुड़ा भी है। दरअसल वर्ष 2008 में बैचवाइज और कमीशन आधार पर लोकसभा आयोग और अधीनस्थ कर्मचारी चयन आयोग द्वारा कर्मचारियों की नियुक्तियां अनुबंध के तौर पर की जाने लगी l पहले अनुबन्ध काल 8 साल का हुआ करता था जो बाद में कम होकर 6 फिर 5 और फिर 3 साल हो गया और हाल ही में ये दो साल हो गया है। ये अनुबन्ध काल पूरा करने के बाद यह कर्मचारी नियमित होते है। अनुबंध से नियमित होने के बाद इन कर्मचारियों की अनुबंधकाल की सेवा को उनके कुल सेवा काल में नही जोड़ा जाता, इसी को लेकर प्रभावित कर्मचारियों को आपत्ति है। इनका कहना है कि अनुबंध काल अधिक होने से पुराने कर्मचारियों को वित्तीय नुकसान के साथ प्रमोशन भी समय पर नहीं मिल पाती l अब मांग है कि उनको नियुक्ति की तिथि से वरिष्ठता प्रदान की जाए ताकि उन्हें समय रहते प्रमोशन का लाभ मिल सके। अनुबंध काल की सेवा का वरिष्ठता लाभ ना मिलने के कारण उनके जूनियर साथी सीनियर होते जा रहे हैं। हिमाचल अनुबंध नियमित कर्मचारी संगठन के अनुसार पूर्व सरकार कर्मचारी की सेवा की गणना उनके नियमितीकरण से करती रही, ना कि उनकी प्रथम नियुक्ति से। संगठन का कहना है कि ऐसा करना लोकसेवा आयोग और अधीनस्थ सेवा बोर्ड जैसी संवैधानिक संस्थाओं की मान्यता पर प्रश्नचिन्ह लगाने जैसा है। दो वर्ष पूर्व नियुक्त हुए कर्मचारियों को दो वर्ष बाद सभी सेवा लाभ मिल रहे हैं, लेकिन हैरानी की बात है कि जो कर्मचारी 7 साल पहले सेवा में आए हैं उनको वित्तीय और अन्य सेवा लाभों से वंचित रखा जा रहा है। कमीशन और बैच के आधार पर नियुक्त यह कर्मचारी सभी नियमों और सेवा शर्तों को पूरा करके नियुक्त हुए हैं। इसलिए इनकी सर्विसेज को प्रमोशन और अन्य सेवा लाभों के लिए नियुक्ति की तिथि से गिना जाए, ना कि नियमितीकरण की तिथि से।
एरियर का भुगतान सबसे बड़ी चुनौती
नई सरकार के लिए सबसे एक और बड़ी चुनौती पे-कमिशन एरियर के भुगतान की होगी। राज्य में सरकारी विभागों और निगम-बोर्डों के सवा चार लाख कर्मचारियों और पेंशनरों को करीब 8000 करोड़ के एरियर का भुगतान अभी बाकी है। राज्य सरकार के पास इस देनदारी को चुकाने के लिए वित्तीय संसाधन अब नहीं बचे हैं। इस साल के लिए राज्य की लोन लिमिट 9700 करोड़ थी और इसमें से 7000 करोड़ लोन ले लिया गया है। सिर्फ 2700 करोड़ लोन ही लिया जा सकता है और इस राशि से भी इस वित्त वर्ष में 31 मार्च तक वेतन और अन्य देय जिम्मेदारियों का भुगतान किया जाना है। यही वजह है कि एरियर और महंगाई भत्ते को चुकाने के लिए आर्थिक संसाधन नहीं दिख रहे। राज्य के कर्मचारियों को सात फीसदी महंगाई भत्ता अभी बकाया है और 31 फीसदी डीए ही अभी दिया जा रहा है, जबकि भारत सरकार ने 38 फीसदी तक भुगतान कर दिया है। बहुत से कर्मचारी-अधिकारी वर्ग ऐसे हैं, जिनका एरियर ही 10 लाख तक का है। ऐसे कर्मचारियों को भी पहली किस्त में सिर्फ 50 हजार मिले हैं। इस हिसाब से गणना करें, तो 10 लाख का भुगतान कितनी किस्तों में होगा, यह अपने आप में बड़ा सवाल है।
मजबूत आउटसोर्स नीति की दरकार
राज्य के सरकारी विभागों में काम कर रहे 28000 आउटसोर्स कर्मचारियों के लिए स्थायी नीति बनाने की प्रक्रिया भी पूरी नहीं हो पाई। जाते-जाते भाजपा सरकार ने ऐलान ज़रूर किया था मगर अब तक मांग पूरी नहीं हो पाई है। इसकी वजह यह है कि चुनाव से पहले फाइनेंस सेक्रेटरी की अध्यक्षता में हुई एक बैठक में कुछ प्वाइंट तय किए गए थे, लेकिन इसके बाद दूसरी बैठक अब तक नहीं हो पाई है। विधानसभा चुनाव की घोषणा से पहले कैबिनेट ने यह फैसला किया था कि आउटसोर्स कर्मचारियों को अब कौशल विकास निगम के तहत ही लाया जाएगा और बीच में से ठेकेदारों को हटा दिया जाएगा। इससे इन्हें जॉब सिक्योरिटी मिल जानी थी, जबकि वित्तीय मसलों पर कैबिनेट ने कुछ स्पष्ट नहीं कहा था। इसके लिए कौशल विकास निगम को कौशल विकास एवं रोजगार निगम के रूप में बदलने और इसे कंपनी बनाने का फैसला हुआ था। इसके बाद अतिरिक्त मुख्य सचिव फाइनेंस प्रबोध सक्सेना ने तकनीकी शिक्षा और श्रम विभाग के सचिवों के साथ एक बैठक कर इनसे कुछ डॉक्यूमेंटेशन सबमिट करने को कहा था। इस बैठक में तकनीकी शिक्षा विभाग के सचिव अमिताभ अवस्थी और श्रम एवं रोजगार विभाग के सचिव अक्षय सूद मौजूद थे। ये डॉक्यूमेंट तैयार हैं, लेकिन अभी दूसरी बैठक की डेट तय नहीं हुई है। पिछली बैठक में तकनीकी शिक्षा विभाग को कौशल विकास निगम के मेमोरेंडम ऑफ अंडरस्टैंडिंग और मेमोरेंडम ऑफ एग्रीमेंट के नियम और शर्तों पर रिपोर्ट देने को कहा गया था। अब जब तक दूसरी बैठक नहीं हो जाती, तब तक यह तय नहीं है कि आउटसोर्सिंग को लेकर कैबिनेट में हुए फैसले के अनुसार पॉलिसी कब बनेगी। श्रम विभाग से यह डिटेल मांगी गई थी कि पूरे प्रदेश में अब तक कितने आउटसोर्स कर्मचारी हैं। हालांकि यह डाटा इससे पहले कैबिनेट सब कमेटी ने तैयार कर लिया था और पहले से ही सरकार के पास मौजूद था। अब सवाल यह है कि नई सरकार आगे क्या करती है।
पे रिवीजन रूल्स से अब भी संतुष्ट नहीं कर्मचारी
हिमाचल में सरकारी कर्मचारियों के लिए लागू किए गए नए वेतन आयोग को लेकर पे-रिवीजन रूल्स से कर्मचारी अब तक पूरी तरह संतुष्ट नहीं है। राइडर में फंसे कर्मचारियों के लिए हायर ग्रेड-पे जारी करने की अधिसूचना के बाद से कुछ कर्मचारी फिक्सेशन का विरोध करते रहे। कुछ कर्मचारी संगठन अब भी यह विरोध कर रहे हैं कि राइडर की नोटिफिकेशन में सभी 19 कैटेगरी की फिक्सेशन बढ़ी हुई ग्रेड-पे के इनिशियल पर 2.25 का गुणांक लगाकर की गई है। यह गलत है, क्योंकि मनमर्जी से बढ़ी हुई ग्रेड-पे के इनिशियल में फिक्सेशन कैसे हो सकती है? दूसरी ओर जेबीटी भी अपनी फिक्सेशन गलत करने का आरोप लगा रहे थे। वेतन संशोधन के मामले में शिक्षा विभाग में टीजीटी आरोप लगा रहे हैं कि उन्हें इससे कोई फायदा नहीं हुआ है। इसी तरह की कुछ आपत्तियां ऐसे कर्मचारियों की हैं, जिनका लेवल एक ही है, लेकिन फिक्सेशन की राशि अलग-अलग है। मल्टीपर्पज हेल्थ वर्कर की फिक्सेशन में भी विसंगतियों के आरोप हैं। स्टाफ नर्स, क्राफ्ट इंस्ट्रक्टर, टीजीटी इत्यादि में भी अलग-अलग स्तरों से फीडबैक नेगेटिव है। अब आने वाली सरकार कितनी जल्दी ये विसंगतियां दूर करती है इसपर सबकी निगाहें टिकी हुई है।
क्या एचआरटीसी को रोडवेज का दर्जा देगी सरकार ?
एचआरटीसी के कर्मचारी सरकार बनने से पहले ही अपनी लंबित मांगें सामने रख चुके है। एचआरटीसी की संयुक्त समन्वय समिति के महासचिव खेमेंद्र गुप्ता ने सरकार से आग्रह किया है कि प्रदेश एचआरटीसी कर्मचारियों की समस्याओं को प्रमुखता से सुलझाया जाए। उन्होंने मांग उठाई है कि पिछले काफी समय से चली आ रही एचआरटीसी कर्मचारियों की मुख्य मांग एचआरटीसी को रोडवेज का दर्जा दिया जाए। एचआरटीसी कर्मचारियों की समस्याओं को समाप्त करने का यही एक समाधान हैं। रोडवेज का दर्जा मिलने से एचआरटीसी कर्मचारियों को उनका वेतन व अन्य भत्तों का भुगतान ट्रेजरी के माध्यम से किया जाना चाहिए, ताकि वेतन व अन्य भत्तों के भुगतान में उन्हें देरी न हो। इसके अलावा उन्होंने यह मांग भी उठाई कि नई सरकार में एचआरटीसी कंडक्टरों की वेतन विसंगति को प्रमुखता से दूर किया जाए। परिचालकों को जारी किए नए ग्रेड पे में 2400 से 1900 ग्रेड पे पर ला कर रख दिया है, इससे हर परिचालक को वेतन में करीब दस से पंद्रह हजार का आर्थिक नुकसान हो रहा है। इसके अलावा उन्होंने 36 महीनों से लंबित नाइट ओवर टाइम को जारी करने की मांग उठाई हैं।
परिचालकों के अलावा एचआरटीसी कर्मचारियों की और भी कई समस्याएं लंबित है। चुनाव आचार संहिता लगने से ठीक पहले परिवहन मंत्री की अगुवाई में हुई बीओडी की बैठक में एरियर सैलरी के साथ देने का वादा हुआ था, लेकिन यह अधर में लटक गया है। पिछले महीने से कर्मचारी इसकी इंतजार कर रहे हैं, लेकिन लगता है कि अभी इसकी पहली किस्त के लिए तो इंतजार करना ही पड़ेगा। वहीं एचआरटीसी में 100 पीस मील कर्मचारियों ने अनुबंध पर लिए जाने के लिए पांच से छह वर्ष का कार्यकाल पूरा कर दिया है, लेकिन यह कार्यकाल पूरा करने के बाद भी निगम प्रबंधन पीस मील कर्मियों को अनुबंध पर लेने को नहीं लाया गया। पीस मील कर्मचारियों का कहना है कि अन्य पीस मील कर्मियों को अनुबंध पर लिए जाने के बाद प्रदेश में 230 पीस मील कर्मचारी बाकी रह गऐ थे, जिनमें सितंबर माह में 100 ने अनुबंध के लिए पांच और छह वर्ष समयबद्ध नीति के मुताबिक अपनी समय अवधि को पूर्ण किया है, लेकिन इन सभी पात्र पीस मील कर्मचारियों को अनुबंध में लेने के लिए निगम मुख्यालय से निगम प्रबंधन द्वारा निगम की कर्मशालाओं के लिए कोई अधिसूचना जारी नहीं की गई।
एचआरटीसी पेंशनर्स ने भी मांग उठाई है कि अगले महीने समय पर एचआरटीसी पेंशनर्स को पेंशन प्रदान की जाए और 2016 के बाद रिटायर हुए कर्मचारियों की पे फिक्सेशन भी कर दी जाए। हिमाचल परिवहन सेवानिवृत्त कर्मचारी कल्याण मंच ने चेताया है कि अगर अगले महीने एचआरटीसी पेंशनर्स को समय पर वेतन नहीं मिलता है और 2016 के बाद रिटायर हुए कर्मचारियों की पे-फिक्सेशन नहीं होती हैं तो फिर नई सरकार का स्वागत एचआरटीसी पेंशनर्स नए तरीके से करेंगे। हिमाचल परिवहन सेवानिवृत्त कर्मचारी कल्याण मंच के प्रदेशाध्यक्ष बलराम पुरी का कहना है कि एचआरटीसी में 2016 के उपरांत सेवानिवृत्त हुए लगभग 2500 कर्मचारियों को अभी तक नया वेतनमान नहीं मिला है। जबकि इससे पहले रिटायर हुए कर्मचारियों को सितंबर माह में नया वेतनमान मिल चुका हैं।
पुलिस जवानों को मिलती है सात रुपये प्रतिदिन डाइट मनी
चुनाव से पहले पुलिस जवान सरकार से मांग करते रहे मगर पुलिस जवानों की न ही डाइट मनी बढ़ी है और न ही अतिरिक्त वेतन बढ़ाया गया है। पुलिस जवानों को आज भी 24 घंटे सेवाएं देने के लिए दिया जा रहा अतिरिक्त वेतन वर्ष 2012 के स्केल के हिसाब से दिया जा रहा है। ऐसे में पुलिस जवानों को 30 से 35 हजार रुपए का हर वर्ष वित्तीय नुकसान झेलना पड़ रहा है। इसके अलावा पुलिस जवानों को मिलने वाली डाइट मनी इतनी कम है कि डाइट मनी की राशि में चाय का कप तक नहीं लिया जा सकता है। प्रदेश के पुलिस जवानों को 210 रुपए प्रतिमाह के हिसाब से डाइट मनी दी जा रही है, जो प्रतिदिन के हिसाब से सात रुपए है। आज के समय में चाय का एक कप की कीमत भी बाजार में दस से 15 रुपए है। कुछ समय पहले पुलिस जवानों ने प्रदेश सरकार से वेतन विसंगति के साथ-साथ डाइट मनी की समस्या हल करने की मांग उठाई थी। इसके अलावा पुलिस जवानों ने अतिरिक्त वेतन को नए पे स्केल के हिसाब से देने की मांग उठाई थी, लेकिन प्रदेश सरकार पुलिस जवानों की दोनों मांगों को पूरा नहीं कर पाई।
होमगार्ड की मांग, मिले स्थायी रोजगार
करीब 6 दशक के लगातार संघर्ष के बावजूद आज तक प्रदेश के होमगार्ड जवानों को उनका हक नहीं मिल पाया है। पुलिस की तर्ज पर गृहरक्षक कानून व्यवस्था बनाए रखने की ड्यूटी निभाते हैं, वर्दी भी खाकी पहनते है, ट्रेनिंग भी उतनी ही कठोर होती है, मगर सरकारी कर्मचारी होने के नाते इन्हें सुविधाएं तो छोड़िए, स्थाई रोज़गार भी नहीं मिलता। होमगार्ड जवानों को न तो सरकारी कर्मचारी होने का सम्मान मिल पाया है और न ही इनके लिए कोई ठोस नीति बनाई गई है। गृह रक्षकों ने अपने हक की खातिर सुप्रीम कोर्ट तक लड़ाई लड़ी। इसका लाभ यह हुआ कि उनका वेतन बेहतर हो गया, मगर ये अब तक नियमित नहीं हो पाए हैं। होमगार्ड एसोसिएशन का कहना है कि पूर्व सरकार इनके लिए नियमितीकरण की नीति तैयार नहीं कर पाई है। प्रदेश सरकार अपने कार्यकाल में हर वर्ग को सहायता पहुंचाने की कोशिश में थी। चुनाव के लिहाज़ से महत्वपूर्ण माने जाने वाले कर्मचारी फैक्टर को साधने के पूरे प्रयास किए जा रहे थे, मगर होमगार्ड जवानों का कहना है कि एक उनका वर्ग ही ऐसा है जिसकी अब तक अनदेखी की गई है। अब देखना होगा क्या नई सरकार इनकी मांगें पूरी करेगी।
कॉर्पोरेट सेक्टर कर्मचारी मांगे पेंशन
हिमाचल प्रदेश सरकार के विभिन्न कॉर्पोरेट सेक्टर से सेवानिवृत्त कर्मचारियों को अब नई सरकार से उम्मीदें हैं। सभी सेवानिवृत्त कर्मचारी भी नई सरकार के समक्ष अपनी मांगें रखेंगे और उन्हें उम्मीद है कि नई सरकार प्रदेश के 5000 सेवानिवृत्त कर्मचारियों को पेंशन का लाभ देगी। निगमित क्षेत्र के सेवानिवृत्त कर्मचारियों के अनुसार उन्हें 2004 तक पेंशन की सुविधा मिलती थी लेकिन उसके बाद से पेंशन नहीं मिल रही है। वर्ष 1999 में भाजपा सरकार ने बोर्डों और निगमों के कर्मचारियों को पेंशन देने के संबंध में अधिसूचना जारी की थी ,मगर उन्हें पेंशन नहीं मिली। हिमाचल प्रदेश में बिजली बोर्ड, परिवहन निगम, शिक्षा बोर्ड, नगर निगम जैसे मंडलों व निगमों से सेवानिवृत्त कर्मचारियों को अब भी पेंशन मिल रही है, लेकिन, पर्यटन निगम समेत 20 ऐसे मंडल हैं जिनके कर्मचारियों को सेवानिवृत्ति के बाद पेंशन की सुविधा नहीं मिल रही है। एमसीएच से काटे गए पैसे में से उन्हें 1000 से 3000 ही मिल रहे हैं। हिमाचल प्रदेश में भाजपा ने वर्ष 2017 में अपने घोषणा पत्र में निगम के कर्मचारियों को पेंशन सुविधा देने का वादा किया था, लेकिन निगम व बोर्ड के सेवानिवृत्त कर्मचारियों से किए गए वादे को सभी भूल गए हैं। अब इन कर्मचारियों को उम्मीद है कि कांग्रेस सरकार इनकी पेंशन भी बहाल करेगी।