दो सीएम देने वाले निर्वाचन क्षेत्र में कौन जीतेगा अबकी बार ?
मुख्यमंत्री शिमला का होगा, कांगड़ा का होगा, मंडी का होगा या हमीरपुर का होगा...इस तरह की कयासबाजी और बयानबाजी अक्सर सियासी गलियारों में आम है। स्वभाविक बात है कि किसी जिला से मुख्यमंत्री का होना बड़ी बात है। पर हिमाचल प्रदेश में एक ऐसा निर्वाचन क्षेत्र भी है जिसने प्रदेश को दो मुख्यमंत्री दिए है। ये विधानसभा सीट है जुब्बल कोटखाई, हिमाचल प्रदेश का इकलौता ऐसा निर्वाचन क्षेत्र है जिसने दो मुख्यमंत्री दिए है, ठाकुर रामलाल और वीरभद्र सिंह। इसी सीट से जीतकर कुल तीन बार ठाकुर राम लाल ने मुख्यमंत्री पद की शपथ ली, तो एक बार वीरभद्र सिंह ने। नौ बार के विधायक और तीन बार मुख्यमंत्री रहे ठाकुर रामलाल की कर्मभूमि जुब्बल कोटखाई क्षेत्र रहा है। 1977 में ठाकुर रामलाल जब पहली बार मुख्यमंत्री बने थे तब वे इसी सीट से विधायक थे। फिर 1980 में जब शांता सरकार को गिराकर ठाकुर रामलाल दूसरी बार मुख्यमंत्री बने तब भी वे इसी सीट से विधायक थे। 1982 में विधानसभा चुनाव हुए और कांग्रेस ने रिपीट किया और जुब्बल कोटखाई से विधायक ठाकुर रामलाल तीसरी बार मुख्यमंत्री बने। फिर 1983 में हिमाचल की सियासत में टिम्बर घोटाले के चलते बवाल मच गया। तब इसी बवाल में मुख्यमंत्री ठाकुर रामलाल की कुर्सी चली गई और वीरभद्र सिंह पहली बार सीएम बने थे। सियासत के जादूगर वीरभद्र सिंह ने जनता की नब्ज को भांपते हुए विधानसभा जल्दी भंग करवा दी और 1985 में ही विधानसभा चुनाव करवा दिए। दिलचस्प बात ये है कि 1985 के विधानसभा चुनाव में वीरभद्र सिंह ने अपना चुनाव क्षेत्र बनाया जुब्बल कोटखाई को। वीरभद्र सिंह जीत गए और दूसरी बार मुख्यमंत्री भी बन गए। यानी जुब्बल कोटखाई को दूसरा मुख्यमंत्री मिल गया।
यहां वीरभद्र सिंह भी हारे है
1990 में वीरभद्र सिंह हैट्रिक लगाने के इरादे से मैदान में उतरे। उस चुनाव में वीरभद्र दो सीटों से लड़े, रोहड़ू और जुब्बल कोटखाई। रोहड़ू में तो वीरभद्र जीत गए लेकिन जुब्बल कोटखाई में करीब पंद्रह सौ वोट से हार गए। दिलचस्प बात ये है कि वीरभद्र सिंह को हराने वाले थे ठाकुर रामलाल जिन्हें कुर्सी से हटाकर वीरभद्र सिंह पहली बार सीएम बने थे।
इस बार कौन जीतेगा ?
मौजूदा चुनाव की बात करें तो यहाँ त्रिकोणीय मुकाबला है और ये सीट बेहद रोचक है। कांग्रेस ने ट्राइड एंड टेस्टेड मौजूदा विधायक और ठाकुर रामलाल के पौते रोहित ठाकुर को फिर मैदान में उतारा है, तो भाजपा ने उपचुनाव से सबक लेते हुए चेतन बरागटा पर दाव खेला है। पिछले साल हुए उपचुनाव में इस सीट पर भाजपा की जमानत जब्त हुई थी जिसके बाद भाजपा ट्रैक पर जरूर लौटी है। यहाँ मुकाबले को दिलचस्प बनाया है माकपा के विशाल शांगटा ने। शांगटा दमदार तरीके से चुनाव लड़े है और क्या उन्होंने कांग्रेस को अपेक्षित एंटी इंकम्बैंट वोट में भी ठीकठाक सेंध मारी है, इसका जवाब इस सीट का नतीजा तय करेगा। रोहित ठाकुर यहाँ जीत को लेकर आश्वस्त जरूर है लेकिन यहाँ नतीजा चौंकाने वाला हो सकता है।