भोरंज में लगातार आठ हार के बाद कांग्रेस को आस !

कभी मेवा विस क्षेत्र के नाम से मशहूर रही भोरंज सीट के अतीत पर निगाह डालें तो ये सीट भाजपा के लिए सच में मेवा ही रही है। कहते है की एक शिक्षक ने लंबे समय तक इस विधानसभा क्षेत्र की सेवा की जिसका मेवा भाजपा को मिला। अध्यापन से राजनीति में आए ईश्वर दास धीमान यहां से लगातार छह बार विधायक रहे और दो बार प्रदेश के शिक्षा मंत्री भी रहे। बेशक वर्ष 2008 में विधानसभा पुनर्सीमांकन के बाद इस विधानसभा क्षेत्र का नाम भोरंज हो गया, लेकिन भाजपा का सिक्का यहां चलता रहा। जब तक आईडी धीमान जीवित रहे भोरंज में भाजपा के लिए सब ठीक था। उनकी मृत्यु के बाद उनके बेटे अनिल धीमान को 2017 में टिकट मिला और प्रदेश में कांग्रेस की सरकार होते हुए भी वह सीट निकाल गए। बेशक डॉ अनिल धीमान ने कांग्रेस सरकार के रहते हुए उपचुनाव जीतकर भाजपा की जीत की परंपरा को आगे बढ़ाया था लेकिन उसी विधानसभा चुनाव में विधायक रहते हुए भी उनका टिकट काटकर भाजपा ने कमलेश कुमारी को दे दिया। जयराम सरकार में फिर भाजपा ने कमलेश कुमारी को उप मुख्य सचेतक बनाकर उन्हें मजबूत करने की कोशिश भी की, लेकिन दूसरी ओर डॉक्टर अनिल धीमान और उनके समर्थक खोई हुई राजनीतिक जमीन को पाने के लिए मैदान में डटे रहे। डॉ अनिल धीमान ने सार्वजनिक मंच से यह घोषणा कर दी है कि अगर भाजपा ने उनको टिकट नहीं दिया तो वह निर्दलीय मैदान में उतरेंगे। नतीजन इस बार भाजपा ने यहां से सीटिंग विधायक कमलेश कुमारी का टिकट काटकर डॉ अनिल धीमान पर भरोसा जताया है। पर भाजपा के बागी पवन कुमार ने यहां से निर्दलीय चुनाव लड़ा है, जो इस बार यहाँ के समीकरण बदल सकता है। भोरंज में कांग्रेस की बात की जाए तो यहां पार्टी कभी भी ना तो सहज दिखी है न ही स्थिर। पार्टी हर बार चेहरे बदलती रही जिसका खामियाजा पार्टी को भुगतान पड़ा। पर इस बार पार्टी ने यहां 2017 के प्रतयाशी सुरेश कुमार को ही फिर टिकट दिया है। वहीं पार्टी काफी हद तक एकजुट भी दिखी है। ऐसे में 1990 से लगातार आठ बार हार के बाद इस बार यहां कांग्रेस बेहतर करती दिख रही है।