धर्मशाला : क्या काम कर गया 'सुधीर ही सुधार है' का नारा ?
धर्मशाला प्रदेश की दूसरी "कागजी" राजधानी है। कहते है धर्मशाला में सियासत कभी थमती नहीं। इस चुनाव में भी धर्मशाला हॉट सीट बनी हुई है। ये कांग्रेस के दिग्गज नेता सुधीर शर्मा की सीट है और यहाँ इस बार भी सुधीर शर्मा ने पूरे दमखम से चुनाव लड़ा है। वहीं दूसरी ओर इस बार धर्मशाला में भाजपा ने सिटींग विधायक का टिकट काट कर हाल ही में आम आदमी पार्टी से भाजपा में लौटे राकेश चौधरी को मैदान में उतारा है। इस टिकट के बदलाव के चलते भाजपा ने यहां विरोध का सामना भी किया। पार्टी ने यहां सीटिंग विधायक विशाल नेहरिया को तो मना लिया, लेकिन पार्टी टिकट के एक अन्य चाहवान विपिन नेहरिया को नहीं मना पाई। विपिन नेहरिया भाजपा जनजातीय मोर्चा के प्रदेश उपाध्यक्ष रहे है, परन्तु टिकट न मिलने पर उन्होंने बगावत कर दी और बतौर निर्दलीय चुनाव लड़ा।
यूँ तो कांग्रेस में सुधीर शर्मा को टिकट मिलने से कई लोग नाराज थे, लेकिन उन्होंने खुल कर बगावत नहीं की। जानकर मानते है कि जितनी नाराजगी भाजपा में राकेश चौधरी को लेकर रही, उतनी ही नाराजगी कांग्रेस में सुधीर शर्मा को लेकर भी रही, बस फर्क रहा कि भाजपा की नाराजगी खुले तौर पर सामने आई और कांग्रेस की नाराजगी अंदर ही अंदर चलती रही। फिर भी यहाँ सुधीर शर्मा 2012 से 2017 के अपने कार्यकाल में करवाएं गए विकास कार्यों को लेकर दमखम से चुनाव लड़े है। उनका नारा 'सुधीर ही सुधार है' भी चर्चा में रहा और वे जीत को लेकर आश्वस्त दिख रहे है। सुधीर का दावा है कि धर्मशाला की जनता सुधार कर चुकी है और आठ दिसम्बर को वे फिर धर्मशाला के विधायक होंगे।
उधर भाजपा अगर जीत दर्ज नहीं कर सकी तो कई सवाल उठेंगे। दरअसल सवाल तो अभी से उठ रहे है। 2019 में इसी धर्मशाला सीट पर उपचुनाव हुआ था और तब पार्टी ने विशाल नेहरिया को टिकट दिया था। विरोध में राकेश चौधरी ने निर्दलीय चुनाव लड़ा। हालांकि तब जीत विशाल की हुई लेकिन अब भाजपा ने तब बगावत करने वाले को ही टिकट दे दिया। इस पर राकेश चौधरी इस बीच आम आदमी पार्टी में जाकर भी वापस आएं है। फिर भी पार्टी को चौधरी में ही जीत की सम्भावना दिखी। अब चौधरी जीत गए तो ठीक, वरना अभी से पार्टी के भीतर उठे रहे सवाल भाजपा को बहुत चुभने वाले है।