घुटनों पर आ गया था पाकिस्तान और गवाह बना था शिमला
"1971 के युद्ध में भारत ने पकिस्तान को वो नासूर रोग दिया है, जो हमेशा उसे दर्द देता रहेगा। पाकिस्तान के दो टुकड़े कर बांग्लादेश बनाने में भारत ने निर्णायक भूमिका निभाई थी। पाकिस्तान घुटनों पर था और उसके सामने समझौते के सिवा कोई विकल्प नहीं था। नतीजन, समझौता हुआ और जगह मुकर्रर हुई शिमला। ये समझौता करने पाकिस्तानी राष्ट्रपति ज़ुल्फ़िक़ार अली भुट्टो ने कभी घास की रोटी खाकर भी भारत से हजार साल तक जंग करने की कसमें खायी थी। पर हालात ने भुट्टों को हकीकत का आईना दिखा दिया। हालाँकि इस समझौते के बाद भी पाकिस्तान अपनी पूरी निर्लज्जता के साथ नापाक हरकतें करता रहा। भारत में घुसपैठ भी करवाता रहा और कायराना हमले भी। 1999 में हुआ कारगिल वॉर भी इसी का नतीजा है जहाँ फिर पाकिस्तान ने मुँह की खाई। "
साल था 1972 और जुलाई के पहले सप्ताह में हिमाचल प्रदेश की राजधानी शिमला पर पूरी दुनिया की निगाहें टिकी थी। 1971 में बांग्लादेश लिबरेशन वॉर में भारत के शामिल होने का असर ये हुआ था कि पूर्वी पाकिस्तान, बांग्लादेश के रूप में एक स्वतंत्र देश बन चुका था। उधर इस युद्ध ने न सिर्फ पाकिस्तान के दो टुकड़े कर दिए थे बल्कि पाकिस्तान की सेना ने पूर्वी पाकिस्तान में भारतीय सेना के सामने आत्मसमर्पण कर दिया था। पाक सैनिकों ने घुटने टेक दिए थे और पाकिस्तान के आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार, करीब 73 हज़ार युद्धबंदी भारतीय हिरासत में थे, जिसमें 45 हजार सैनिक या अर्धसैनिक शामिल थे। हालाँकि ये संख्या 93 हजार के आसपास मानी जाती है। साथ ही पश्चिमी पाकिस्तान का लगभग 5 हज़ार वर्ग मील क्षेत्र भारत के कब्जे में था। भारत की तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी दुनिया में एक ताकतवर नेता के रूप में उभरी थी और देश में उनकी लोकप्रियता शिखर पर थी।
उधर पाकिस्तान में तत्कालीन राष्ट्रपति ज़ुल्फिकार अली भुट्टो की समस्याएं कम होने का नाम नहीं ले रही थी। इंदिरा गाँधी की कूटनीति और भारतीय सेना के पराक्रम का जो कहर पाकिस्तान पर टूटा था, उसकी भरपाई तो नहीं हो सकती थी लेकिन युद्धबंदी और पाकिस्तान की जमीन पर भारतीय कब्जा छुड़वाना पाकिस्तान के लिए हर हाल में जरूरी था। ऐसे में वार्ता ही एकमात्र विकल्प था। सो 1972 में भारत और पाकिस्तान के बीच 28 जून से वार्ता शुरू हुई और 1 जुलाई तक कई दौर की वार्ता हुई। इस वार्ता का मकसद कश्मीर से जुड़े विवादों को आपसी बातचीत और शांतिपूर्ण ढंग से हल निकालना था। नतीजन, 2 जुलाई 1972 को दोनों देशों के बीच शिमला में समझौता हुआ, जिसे शिमला समझौता के नाम से जाना जाता है। इस समझौते में पाकिस्तान के तत्कालीन प्रधानमंत्री जुल्फिकार अली भुट्टो अपनी बेटी बेनजीर भुट्टो के साथ शिमला आए थे। दिलचस्प बात ये है कि बाद में बेनजीर भुट्टो भी पाकिस्तान के प्रधानमंत्री बनी।
शिमला समझौते में सहमति बनी थी कि कश्मीर को लेकर भारत और पाकिस्तान के बीच जितने भी विवाद हैं, उनका हल बातचीत कर निकाला जाएगा। समझौता ये भी हुआ था कि दोनों देश इस विवाद को अंतरराष्ट्रीय मंचों पर नहीं उठाएंगे। समझौते में युद्ध बंदियों की अदला-बदली पर भी सहमति बनी थी, जिसके तहत युद्ध के दौरान बंदी बनाए गए सैनिकों को उनके देश को सौंप दिया जाएगा। इसमें राजनयिक संबंधों को सुधारने और सामान्य किए जाने का जिक्र भी था और फिर से व्यापार शुरू करने की बात भी कही गई थी। इसके अलावा इस समझौते में कश्मीर में दोनों देशों के बीच नियंत्रण रेखा यानी लाइन ऑफ़ कण्ट्रोल स्थापित किए जाना निर्धारित हुआ था और यह भी समझौता था कि दोनों देश एक दूसरे के खिलाफ बल का प्रयोग नहीं करेंगे। तय ये भी हुआ था कि दोनों ही देशों की सरकारें एक दूसरे देश के खिलाफ प्रचार को रोकेगी।
आधी रात को हुआ था शिमला समझौता :
2-3 जुलाई 1972 की आधी रात को यह समझौता हुआ था। प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी और पाकिस्तान के राष्ट्रपति जुल्फिकार अली भुट्टो के बीच 2 जुलाई की रात करीब 10.30 बजे बातचीत शुरू हुई, जो देर रात 12 बजकर 40 मिनट तक चली। इसी समय भारत-पाकिस्तान के बीच एक समझौते के दस्तावेज पर हस्ताक्षर किए गए। इसी समझौते को शिमला समझौता कहा जाता है। समझौते के दस्तावेजों पर हस्ताक्षर की तारीख 2 जुलाई 1972 दर्ज है। जबकि वास्तव में इस दस्तावेज़ पर 3 जुलाई की सुबह हस्ताक्षर किए गए थे।
खुद मैडम प्राइम मिनिस्टर ने लिया था जायजा :
भारत और पाकिस्तान के बीच शिखर-वार्ता 28 जून से 1 जुलाई 1972 तक होनी थी। चार दिन तक चलने वाली इस वार्ता में सात दौर की बातचीत प्रस्तावित थी। इस वार्ता के लिए प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी 27 जून को ही शिमला पहुंच गई थी। उन्होंने खुद यहाँ व्यवस्थाओं का जायजा लिया। तब उन्होंने पत्रकारों से कहा कि शिखर वार्ता पाकिस्तान के लिए शत्रुता भुलाकर नई शुरुआत करने का अवसर है।
शिमला समझौता के मुख्य बिंदु-
* दोनों देश शांतिपूर्ण तरीकों से आपसी बातचीत के जरिये या अन्य शांतिपूर्ण तरीके से अपने मतभेदों को आपसी सहमति से हल करने की प्रतिबद्धता पर सहमत हुए।
* दोनों देशों के बीच भविष्य जब बातचीत होगी कोई मध्यस्थ या तीसरा पक्ष नहीं होगा।
* शिमला समझौता के बाद भारत ने 93 हजार पाकिस्तानी युद्धबंदियों को रिहा कर दिया था।
* 1971 के युद्ध में भारत द्वारा कब्जा की गई पाकिस्तान की जमीन भी वापस कर दी गई।
* दोनों देशों ने तय किया कि 17 दिसंबर 1971 को पाकिस्तानी सेना के आत्मसमर्पण के बाद दोनों देशों की सेनाएं जिस स्थिति में थी उस रेखा को वास्तविक नियंत्रण रेखा माना गया।
* तय हुआ कि दोनों ही देश इस रेखा को बदलने या उसका उल्लंघन करने की कोशिश नहीं करेंगे।
* सहमति बनी कि दोनों देशों के बीच आवागमन की सुविधाएं स्थापित की जाएगी ताकि दोनों देशों के लोग आसानी से आ जा सकें।
* दोनों देश सभी विवादों और समस्याओं के शांतिपूर्ण समाधान के लिए सीधी बातचीत करेंगे और किसी भी स्थिति में एकतरफा कार्यवाही करके कोई परिवर्तन नहीं करेंगे।
* दोनों देश एक-दूसरे के खिलाफ न तो बल प्रयोग करेंगे, न प्रादेशिक अखण्डता की अवहेलना करेंगे और न ही एक दूसरे की राजनीतिक स्वतंत्रता में कोई हस्तक्षेप करेंगे।
* दोनों ही सरकारें एक दूसरे देश के खिलाफ प्रचार को रोकेगी और समाचारों को प्रोत्साहन देगी जिससे संबंधों में मित्रता का विकास हो।
आज भी मौजूद है टेबल :
शिमला समझौता जिस टेबल पर हुआ उसे आनन-फानन में राजभवन के किसी कोने से लाकर रखा गया था। उसपर टेबल क्लॉथ तक नहीं था। पर आज वही टेबल ऐतिहासिक हो गया है और राजभवन के मुख्य हाल में शान से रखा गया है। उस वक्त रखे गए दोनों देशों के छोटे ध्वज भी टेबल पर मौजूद हैं। समझौते की गवाह एक श्वेत-श्याम तस्वीर टेबल के पीछे दीवार पर टंगी है, तो दो फ्रेम की गई तस्वीरें टेबल पर हैं। इस टेबल को राजभवन में जाकर देखने के लिए लोगों में खासी उत्सुकता है।
साल था 1972 और जुलाई के पहले सप्ताह में हिमाचल प्रदेश की राजधानी शिमला पर पूरी दुनिया की निगाहें टिकी थी। 1971 में बांग्लादेश लिबरेशन वॉर में भारत के शामिल होने का असर ये हुआ था कि पूर्वी पाकिस्तान, बांग्लादेश के रूप में एक स्वतंत्र देश बन चुका था। उधर इस युद्ध ने न सिर्फ पाकिस्तान के दो टुकड़े कर दिए थे बल्कि पाकिस्तान की सेना ने पूर्वी पाकिस्तान में भारतीय सेना के सामने आत्मसमर्पण कर दिया था। पाक सैनिकों ने घुटने टेक दिए थे और पाकिस्तान के आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार, करीब 73 हज़ार युद्धबंदी भारतीय हिरासत में थे, जिसमें 45 हजार सैनिक या अर्धसैनिक शामिल थे। हालाँकि ये संख्या 93 हजार के आसपास मानी जाती है। साथ ही पश्चिमी पाकिस्तान का लगभग 5 हज़ार वर्ग मील क्षेत्र भारत के कब्जे में था। भारत की तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी दुनिया में एक ताकतवर नेता के रूप में उभरी थी और देश में उनकी लोकप्रियता शिखर पर थी।
उधर पाकिस्तान में तत्कालीन राष्ट्रपति ज़ुल्फिकार अली भुट्टो की समस्याएं कम होने का नाम नहीं ले रही थी। इंदिरा गाँधी की कूटनीति और भारतीय सेना के पराक्रम का जो कहर पाकिस्तान पर टूटा था, उसकी भरपाई तो नहीं हो सकती थी लेकिन युद्धबंदी और पाकिस्तान की जमीन पर भारतीय कब्जा छुड़वाना पाकिस्तान के लिए हर हाल में जरूरी था। ऐसे में वार्ता ही एकमात्र विकल्प था। सो 1972 में भारत और पाकिस्तान के बीच 28 जून से वार्ता शुरू हुई और 1 जुलाई तक कई दौर की वार्ता हुई। इस वार्ता का मकसद कश्मीर से जुड़े विवादों को आपसी बातचीत और शांतिपूर्ण ढंग से हल निकालना था। नतीजन, 2 जुलाई 1972 को दोनों देशों के बीच शिमला में समझौता हुआ, जिसे शिमला समझौता के नाम से जाना जाता है। इस समझौते में पाकिस्तान के तत्कालीन प्रधानमंत्री जुल्फिकार अली भुट्टो अपनी बेटी बेनजीर भुट्टो के साथ शिमला आए थे। दिलचस्प बात ये है कि बाद में बेनजीर भुट्टो भी पाकिस्तान के प्रधानमंत्री बनी।
शिमला समझौते में सहमति बनी थी कि कश्मीर को लेकर भारत और पाकिस्तान के बीच जितने भी विवाद हैं, उनका हल बातचीत कर निकाला जाएगा। समझौता ये भी हुआ था कि दोनों देश इस विवाद को अंतरराष्ट्रीय मंचों पर नहीं उठाएंगे। समझौते में युद्ध बंदियों की अदला-बदली पर भी सहमति बनी थी, जिसके तहत युद्ध के दौरान बंदी बनाए गए सैनिकों को उनके देश को सौंप दिया जाएगा। इसमें राजनयिक संबंधों को सुधारने और सामान्य किए जाने का जिक्र भी था और फिर से व्यापार शुरू करने की बात भी कही गई थी। इसके अलावा इस समझौते में कश्मीर में दोनों देशों के बीच नियंत्रण रेखा यानी लाइन ऑफ़ कण्ट्रोल स्थापित किए जाना निर्धारित हुआ था और यह भी समझौता था कि दोनों देश एक दूसरे के खिलाफ बल का प्रयोग नहीं करेंगे। तय ये भी हुआ था कि दोनों ही देशों की सरकारें एक दूसरे देश के खिलाफ प्रचार को रोकेगी।
आधी रात को हुआ था शिमला समझौता :
2-3 जुलाई 1972 की आधी रात को यह समझौता हुआ था। प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी और पाकिस्तान के राष्ट्रपति जुल्फिकार अली भुट्टो के बीच 2 जुलाई की रात करीब 10.30 बजे बातचीत शुरू हुई, जो देर रात 12 बजकर 40 मिनट तक चली। इसी समय भारत-पाकिस्तान के बीच एक समझौते के दस्तावेज पर हस्ताक्षर किए गए। इसी समझौते को शिमला समझौता कहा जाता है। समझौते के दस्तावेजों पर हस्ताक्षर की तारीख 2 जुलाई 1972 दर्ज है। जबकि वास्तव में इस दस्तावेज़ पर 3 जुलाई की सुबह हस्ताक्षर किए गए थे।
खुद मैडम प्राइम मिनिस्टर ने लिया था जायजा :
भारत और पाकिस्तान के बीच शिखर-वार्ता 28 जून से 1 जुलाई 1972 तक होनी थी। चार दिन तक चलने वाली इस वार्ता में सात दौर की बातचीत प्रस्तावित थी। इस वार्ता के लिए प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी 27 जून को ही शिमला पहुंच गई थी। उन्होंने खुद यहाँ व्यवस्थाओं का जायजा लिया। तब उन्होंने पत्रकारों से कहा कि शिखर वार्ता पाकिस्तान के लिए शत्रुता भुलाकर नई शुरुआत करने का अवसर है।
शिमला समझौता के मुख्य बिंदु-
* दोनों देश शांतिपूर्ण तरीकों से आपसी बातचीत के जरिये या अन्य शांतिपूर्ण तरीके से अपने मतभेदों को आपसी सहमति से हल करने की प्रतिबद्धता पर सहमत हुए।
* दोनों देशों के बीच भविष्य जब बातचीत होगी कोई मध्यस्थ या तीसरा पक्ष नहीं होगा।
* शिमला समझौता के बाद भारत ने 93 हजार पाकिस्तानी युद्धबंदियों को रिहा कर दिया था।
* 1971 के युद्ध में भारत द्वारा कब्जा की गई पाकिस्तान की जमीन भी वापस कर दी गई।
* दोनों देशों ने तय किया कि 17 दिसंबर 1971 को पाकिस्तानी सेना के आत्मसमर्पण के बाद दोनों देशों की सेनाएं जिस स्थिति में थी उस रेखा को वास्तविक नियंत्रण रेखा माना गया।
* तय हुआ कि दोनों ही देश इस रेखा को बदलने या उसका उल्लंघन करने की कोशिश नहीं करेंगे।
* सहमति बनी कि दोनों देशों के बीच आवागमन की सुविधाएं स्थापित की जाएगी ताकि दोनों देशों के लोग आसानी से आ जा सकें।
* दोनों देश सभी विवादों और समस्याओं के शांतिपूर्ण समाधान के लिए सीधी बातचीत करेंगे और किसी भी स्थिति में एकतरफा कार्यवाही करके कोई परिवर्तन नहीं करेंगे।
* दोनों देश एक-दूसरे के खिलाफ न तो बल प्रयोग करेंगे, न प्रादेशिक अखण्डता की अवहेलना करेंगे और न ही एक दूसरे की राजनीतिक स्वतंत्रता में कोई हस्तक्षेप करेंगे।
* दोनों ही सरकारें एक दूसरे देश के खिलाफ प्रचार को रोकेगी और समाचारों को प्रोत्साहन देगी जिससे संबंधों में मित्रता का विकास हो।
आज भी मौजूद है टेबल :
शिमला समझौता जिस टेबल पर हुआ उसे आनन-फानन में राजभवन के किसी कोने से लाकर रखा गया था। उसपर टेबल क्लॉथ तक नहीं था। पर आज वही टेबल ऐतिहासिक हो गया है और राजभवन के मुख्य हाल में शान से रखा गया है। उस वक्त रखे गए दोनों देशों के छोटे ध्वज भी टेबल पर मौजूद हैं। समझौते की गवाह एक श्वेत-श्याम तस्वीर टेबल के पीछे दीवार पर टंगी है, तो दो फ्रेम की गई तस्वीरें टेबल पर हैं। इस टेबल को राजभवन में जाकर देखने के लिए लोगों में खासी उत्सुकता है।