'नीरज' के साथ बिताया हर पल अब भी याद हैं मदन हिमाचली को
- गोपाल दास नीरज को फर्स्ट वर्डिक्ट का नमन
मदन हिमाचली के शब्दों में ...
"सांसों की डोर के आखिरी पड़ाव तक बेहतहरीन नगमे लिखने के ख्वाहिशमंद मशहूर गीतकार पद्मभूषण कवि गोपालदास सक्सेना 'नीरज' की वीरवार को पहली पुण्यतिथि हैं। उनकी प्रथम पुण्यतिथि मैँ उनके चरणों मे विनम्र श्रद्धा सुमन अर्पित करता हूँ। मैं खुद को बेहद खुशनसीब समझता हूँ कि मुझे उनके साथ मंच पर बैठने का सौभाग्य प्राप्त हैं।
दरअसल, वर्ष 1992 में अखिल भारतीय हिन्दी साहित्य सम्मेलन प्रयाग ( इलाहाबाद) में आयोजित हुआ था। मैं भी इसमें शरीक होने इलाहाबाद गया था।उस साहित्य सम्मेलन की अध्यक्षता स्वयं गोपाल दास नीरज जी कर रहे थे। उनके साथ मंच साँझा करने का सुअवसर मिलना, मेरे लिए स्वर्ग मिलने से काम नहीं था। आज भी वो कवि सम्मलेन एक स्मरणीय समारोह के रुप में मेरे मानस पटल पर अँकित है। नीरज दबँग साहित्यकार तो थे ही, उनकी साहित्कारों के स्वाभिमान के संरक्षण में भी महत्वपूर्ण भूमिका रही हैं। उस समारोह का हर पल, नीरज द्वारा कहा गया हर शब्द अब भी मेरे मन-मष्तिष्क में जीवंत हैं, मानो कल की ही बात हो। मुझे याद हैं तब अपने सम्बोधन मे इन्होंने कहा था कि साहित्यकार निर्भीक होकर रचना धर्मिता निभाएं। केवल मात्र साहित्यकार ही ऐसा व्यक्तित्व का धनी है जो समाज का सही चित्रण कर सकता है तथा परिवेश में फैली विषमताओं को तह से उकेर कर समाज के सामने प्रस्तुत कर सकता हैं। इसलिए साहित्यकार अपने स्वाभिमान को किसी के आगे गिरवी न रखें और कालजयी रचनाओं का सृजन करें।"