इश्क़ ने 'ग़ालिब' निकम्मा कर दिया वरना हम भी आदमी थे काम के
मिर्ज़ा असद-उल्लाह बेग ख़ां उर्फ “ग़ालिब” उर्दू एवं फ़ारसी भाषा के वो महान शायर जिनकी शायरी के बगैर हर मोहब्बत अधूरी है , वो शायर जिन्हे उर्दू भाषा का सर्वकालिक महान शायर माना गया है, वो शायर जिसे फ़ारसी कविता के प्रवाह को हिन्दुस्तानी जबान में लोकप्रिय करवाने का श्रेय भी दिया जाता है। ग़ालिब को मुख्यतः उनकी उर्दू ग़ज़लों को लिए याद किया जाता आज। पेश है मिर्ज़ा ग़ालिब की लिखी सबसे ज़ादा ख़ूबसूरत पंक्तियाँ :
ग़ैर लें महफ़िल में बोसे जाम के
हम रहें यूं तिश्ना-लब पैग़ाम के
ख़स्तगी का तुम से क्या शिकवा कि ये
हथकण्डे हैं चर्ख़-ए-नीली-फ़ाम के
ख़त लिखेंगे गरचे मतलब कुछ न हो
हम तो आशिक़ हैं तुम्हारे नाम के
दिल को आंखों ने फंसाया क्या मगर
ये भी हल्क़े हैं तुम्हारे दाम के
शाह के है ग़ुस्ल-ए-सेह्हत की ख़बर
देखिए कब दिन फिरें हम्माम के
इश्क़ ने 'ग़ालिब' निकम्मा कर दिया
वरना हम भी आदमी थे काम के