‘अंग्रेज सरकार दा टिघा पर ध्याड़ा’... एक था पहाड़ी गांधी, जिसे हुकूमत ने भुला दिया
भारत मां जो आजाद कराणे तायीं
मावां दे पुत्र चढ़े फांसियां
हंसदे-हंसदे आजादी दे नारे लाई..मैं कुण, कुण घराना मेरा, सारा हिन्दुस्तान ए मेरा
भारत मां है मेरी माता, ओ जंजीरां जकड़ी ए.
ओ अंग्रेजां पकड़ी ए, उस नू आजाद कराणा ए..कांशीराम जिन्द जवाणी, जिन्दबाज नी लाणी
इक्को बार जमणा, देश बड़ा है कौम बड़ी है.
जिन्द अमानत उस देस दी
ये वो दौर था जब हिंदुस्तान के हर कोने में आजादी के लिए नारे लग रहे थे। क्रांतिकारी देश को आज़ाद करवाने के लिए हर संभव प्रत्यन कर रह थे। पुरे मुल्क में हजरत मोहनी का लिखा गया नारा इंकलाब जिंदाबाद क्रांति की आवाज बन चूका था। उसी दौर में हिमाचल की शांत पहाड़ियों में एक व्यक्ति पहाड़ी भाषा और लहजे में क्रांति की अलख जगा रहा था। वो गांव-गांव घूमकर अपने लिखे लोकगीतों व कविताओं से आम जन को आजादी के आंदोलन से जोड़ रहा था। नाम था कांशी राम, वहीँ काशी राम जिन्हे पंडित नेहरू ने बाद में पहाड़ी गाँधी का नाम दिया। वहीँ बाबा काशी राम जो 11 बार जेल गए और अपने जीवन के 9 साल सलाखों के पीछे काटे। वहीँ बाबा कशी राम जिन्हें सरोजनी नायडू ने बुलबुल-ए-पहाड़ कहकर बुलाया था। और वहीँ बाबा काशी राम जिन्होंने कसम खाई कि जब तक मुल्क आज़ाद नहीं हो जाता, वो काले कपड़े पहनेंगे। 15 अक्टूबर 1943 को अपनी आखिरी सांसें लेते हुए भी कांशी राम के बदन पर काले कपड़े थे और मरने के बाद उनका कफ़न भी काले कपड़े का ही था। ‘अंग्रेज सरकार दा टिघा पर ध्याड़ा’ यानी अंग्रेज सरकार का सूर्यास्त होने वाला है, जैसी कई कवितायेँ लिख पहाड़ी गाँधी ने ब्रिटिश हुकूमत से लोहा लिया था।
मुल्क आज़ाद हो गया लेकिन ये विडम्बना का विषय है कि सियासतगारों ने पहाड़ी गाँधी को भुला दिया। बस कभी -कभार, खानापूर्ति भर के लिए पहाड़ी गाँधी को याद कर लिया जाता है। उनका पुश्तैनी मकान भी पूरी तरह ढहने की कगार पर है, मानो एक तेज बरसात का इन्तजार कर रहा हो। 2017 में विधानसभा चुनाव से ठीक पहले वीरभद्र सरकार को पहाड़ी गाँधी की याद आई और डाडासिबा में उनके पुश्तैनी घर को कांशीराम संग्रहालय बनाने का वादा किया गया। खेर चुनाव के बाद सरकार बदल गई और जयराम ठाकुर मुख्यमंत्री बने। वर्ष 2018 में बाबा काशीराम की जयंती पर 11 जुलाई को जयराम ठाकुर ने भी काशीराम संग्राहलय बनाने की घोषणा की, किन्तु एक वर्ष बीत जाने के बाद भी कुछ नहीं हुआ।
- बाबा कांशी राम की शादी 7 साल की उम्र में हो गई थी। उस वक्त पत्नी सरस्वती की उम्र महज 5 साल थी।
- साल 1905 में कांगड़ा घाटी में आये भूकंप में करीब 20 हजार लोगों की जान गई और 50,000 मवेशी मारे गए। तब लाला लाजपत राय की कांग्रेस कार्यकर्ताओं की एक टीम लाहौर से कांगड़ा पहुंची जिसमें बाबा काशी राम भी शामिल थे। उनकी ‘उजड़ी कांगड़े देश जाना’ कविता आज भी सुनी जाती है।
- लाहौर में कांशी राम की मुलाकात मशहूर देश भक्ति गीत ‘पगड़ी संभाल जट्टा’ लिखने वाले सूफी अंबा प्रसाद और लाल चंद ‘फलक’ से हुई जिसके बाद कांशी राम संगीत और साहित्य के माध्यम से आजादी का लड़ाई में रम गए।
- 1919 में जब जालियांवाला बाग हत्याकांड के वक्त बाबा कांशी राम भी अमृतसर में थे।इसके बाद ब्रिटिश राज के खिलाफ बगावत के जुर्म में कांशीराम को 5 मई 1920 को लाला लाजपत राय के साथ दो साल के लिए धर्मशाला जेल में डाल दिया गया।
- 1931 में भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरू को फांसी मिलने के बाद उन्होंने प्रण लिया कि जब तक मुल्क आज़ाद नहीं हो जाता, तब तक वो काले कपड़े पहनेंगे।उन्हें ‘स्याहपोश जरनैल’ भी कहा गया।
- वर्ष 1937 में जवाहर लाल नेहरू ने होशियारपुर के गद्दीवाला में एक सभा को संबोधित करते हुए बाबा कांशीराम को पहाड़ी गांधी कहकर संबोधित किया था, जिसके बाद से कांशी राम को पहाड़ी गांधी के नाम से ही जाना गया।
- बाबा काशी राम ने 1 उपन्यास, 508 कविताएं और 8 कहानियां लिखीं।
- 23 अप्रैल 1984 को तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने कांगड़ा के ज्वालामुखी में बाबा कांशी राम पर एक डाक टिकट जारी किया था।
- काशी राम के नाम पर हिमाचल प्रदेश से आने वाले कवियों और लेखकों को अवॉर्ड देने की भी शुरुआत हुई थी, पर पिछले कुछ सालों से ये अवार्ड नहीं दिया जा रहा है।
- बाकी कांशीराम के नाम से उनके गांव में एक सरकारी स्कूल बना है, जो पंजाब के मुख्यमंत्री प्रताप सिंह कैरों ने बनवाया था। दरअसल, हिमाचल बनने से पहले बाबा कशी राम का गृह क्षेत्र पंजाब में आता था।