सलाम इंडिया : समाज के तमस को कर्मों की ज्योति से मंद करते गुमनाम नायक
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‘कर्म प्रधान विश्व करि राखा, जो जस करहि सो तस फल चाखा’ ....हाल ही में राष्ट्रपति भवन में नागरिक अलंकरण समारोह का आयोजन हुआ जिसमें राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने विभिन्न पटलों पर अपनी आभा बिखेरने वाले समाज के कई नायकों को सम्मानित किया। पद्म विभूषण, पद्म भूषण और पद्मश्री पुरस्कार पाने वालों की फेहरिस्त में खास रहे कुछ गुमनाम नायकों के नाम। ये वो नायक है जिन्होंने ताउम्र किसी एक नेक मकसद के लिए अपना सब कुछ झोंक दिया, जिन्होंने जमीनी स्तर पर काम करते हुए मील का पत्थर स्थापित किया। समाज के तमस को निरंतर अपने कर्मों की ज्योति से मंद करते इन गुमनाम नायकों के चेहरे आज सबके सामने है, जिन्हें कुछ दिन पहले शायद ही कोई जानता होगा, पर अब ये शक्ति, सामर्थ्य और दृढ़ता के प्रतीक है। नए भारत की तस्वीर में सम्पन्नता, खुशहाली और मानवता के रंग भरने वाले इन गुमनाम रंगरेजों को उचित सम्मान देना निसंदेह एक सुपहल है।
'इनसाइक्लोपीडिया ऑफ फारेस्ट' :
नंगे पैर राष्ट्रपति से पद्म श्री पुरस्कार ग्रहण करती पर्यावरणविद् तुलसी गौड़ा सही मायनों में 'इनसाइक्लोपीडिया ऑफ फारेस्ट' है। 72 वर्षीय आदिवासी महिला तुलसी गौड़ा कर्नाटक के होनाली गांव की रहने वाली है और 12 साल की उम्र से वे अब तक 30 हजार से भी ज्यादा पौधे रोप चुकी हैं। उन्हें पौधों और जड़ी-बूटियों की विविध प्रजातियों का ज्ञान है जिसके चलते उन्हें इन्साइक्लोपीडिया ऑफ फॉरेस्ट कहा जाता है। उन्होंने फॉरेस्ट डिपार्टमेंट में अस्थाई तौर पर सेवाएं भी दी है और वे आज की नई पीढ़ी के लिए प्रेरणा है।
'सीड मदर' है पद्मश्री रहीबाई :
महाराष्ट्र के अहमदनगर जिले की आदिवासी किसान राहीबाई सोमा पोपरे को बीज माता या सीड मदर के नाम से भी जाना जाता है। कृषि के क्षेत्र में उनका योगदान अतुलनीय है जिसके लिए उन्हें पद्म श्री पुरस्कार से सम्मानित किया गया। राहीबाई सोमा पोपरे का सफर बेहद रोचक है। उन्होंने अपने परिवार से खेती की पारंपरिक विधियां सीखीं और जंगल के संसाधनों का ज्ञान एकत्र किया। फिर दो दशक पहले उन्होंने देशी बीज तैयार करना शुरू किया। उन्होंने पूरे महाराष्ट्र में घूम-घूमकर देशी बीजों का संरक्षण करने का अभियान शुरू किया। उनके पास एक बीज बैंक है जिसमें करीब 200 प्रकार के देशी बीज हैं।
एक फल बेचने वाले ने बदली कई जिंदगियां :
कर्नाटक के मंगलुरु के संतरा बेचने वाले 68 वर्षीय 'पद्म श्री' हरेकला हजब्बा की कहानी बेमिसाल है। वे खुद कभी स्कूल नहीं गए, इसलिए चाहते थे कि गांव के बच्चों की जिंदगी उनके जैसी न बीते। हरेकाला के गांव न्यूपडपू में कई साल तक कोई स्कूल नहीं था, सो हजब्बा ने पैसे जमा कर गांव में एक स्कूल का निर्माण कर ग्रामीण शिक्षा में क्रांति लाने का काम किया। संतरे बेचकर रोजाना करीब 150 रुपए कमाने वाले हरेकाला हजब्बा ने एक प्राइमरी स्कूल खड़ा करवा दिया जिसमें कक्षा दसवीं तक 175 बच्चे पढ़ते हैं। वर्ष 2000 में अपनी जिंदगीभर की कमाई लगाकर उन्होंने एक एकड़ जमीन पर बच्चों के लिए स्कूल बनाया था ।
हिम्मता राम भंभू की हिम्मत और जज्बे को सलाम :
ये हिम्मता राम भंभू की हिम्मत और जज्बा ही है कि उन्होंने राजस्थान के नागौर के पास एक गांव की 25 बीघा जमीन पर न सिर्फ 11,000 पेड़ों वाला जंगल खड़ा किया है, बल्कि पांच साल में पांच लाख से ज्यादा पेड़ लगाए हैं। हिम्मताराम पिछले 25 साल से पेड़ों के संरक्षण के लिए काम कर रहे हैं और राजस्थान के कम पेड़ वाले जिलों जैसे नागौर, जोधपुर, जैसलमेर, बाड़मेर, सीकर में अब तक साढ़े पांच लाख पौधे रोप चुके हैं। इसी अतुल्य योगदान के लिए उन्हें पद्मश्री सम्मान प्रदान किया गया। हिम्मताराम ने 6 एकड़ जमीन पर एक खास तरह का बायोडायवर्सिटी सेंटर भी बनाया है जो मोर, चिंकारा जैसे दुर्लभ पशु-पक्षियों के लिए रिहैबिलिटेशन सेंटर बन गया है।
गैस त्रासदी पीड़ितों की आवाज थे अब्दुल जब्बार :
भोपाल गैस त्रासदी देश के सबसे दर्दनाक हादसों में से एक थी। इसी मानवीय चूक की वजह से आज तक बच्चे विकलांग पैदा हो रहे हैं। अर्से से इस त्रासदी के पीड़ितों के लिए रह-रह कर आवाज़ उठती रहती हैं। इन्हीं उठती आवाजों में से एक आवाज ऐसी थी भोपाल गैस त्रासदी के पीड़ितों को न्याय दिलाने के लिए 35 साल तक संघर्ष करने वाले अब्दुल जब्बार की। भोपाल गैस पीड़ितों को इंसाफ दिलाने से लेकर उनके पुनर्वास तक की लड़ाई लड़ते रहे ‘जब्बार भाई’ को मरणोपरांत पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
'एलिफैंट डॉक्टर' ने बचाई है हजारों हाथियों की जान :
भारत के वन्य जीव समुदाय में 'एलिफैंट डॉक्टर' के नाम से मशहूर 60 साल के डॉक्टर कुशल कुंवर शर्मा अपनी जिंदगी के 35 साल हाथियों की देखभाल और इलाज करने में गुजार चुके है। डॉक्टर शर्मा ने असम और पूर्वोत्तर राज्यों के जंगलों से लेकर इंडोनेशिया के जंगल तक हजारों हाथियों की जान बचाई है। वे देश के पहले पशुचिकित्सक है जिन्हें पद्मश्री मिला है। पूर्वोत्तर राज्यों के घने जंगलों में हाथियों का इलाज करने के लिए अब तक करीब तीन लाख किलोमीटर की दूरी तय कर चुके डॉ. शर्मा 20 से अधिक बार अपनी जान जोखिम में डाल चुके है। पिछले 15 सालों से बिना कोई साप्तहिक छुट्टी लिए डॉ. शर्मा लगभग 10,000 हाथियों का इलाज करने का रिकॉर्ड कायम कर चुके है।
भूमिहीन लोगों की मसीहा है कृष्णम्मल जगन्नाथन :
सामाजिक कार्यकर्ता कृष्णम्मल जगन्नाथन को पद्म भूषण पुरस्कार से सम्मानित किया गया है। 1926 में जन्मी कृष्णम्मल जगन्नाथन की कहानी करोड़ों लोगों के लिए प्रेरणा है। वे एक भूमिहीन दलित परिवार में जन्मी और परिवार की माली हालत भी ठीक नहीं थी। फिर भी उस दौर में घरवालों ने उन्हें ग्रेजुएशन तक तालीम दिलाई। तदोपरांत वे गांधीजी के सर्वोदय आन्दोलन से जुड़ गईं और उसी दौरान अपने पति शंकरलिंगम जगन्नाथन से मिली। आज़ादी के बाद1950 में इनकी शादी हुई और उसके बाद से ही पति-पत्नी ने मिलकर भूमिहीन किसानों को ज़मीन दिलाने का आन्दोलन शुरू किया। इनकी सामाजिक संस्था LAFTI ने 14,000 से ज़्यादा भूमिहीन लोगों को ज़मीन दिलाने में मदद की है। साथ ही इनकी संस्था कुटीर उद्योग चलवाने में भी जरुरतमंदो की मदद करती है।
हौंसला बड़ा हो तो कोई राह मुश्किल नहीं :
लद्दाख के जुनूनी सामाजिक कार्यकर्ता छुल्टिम छोंजोर ने वो कर दिखाया था जो किसी आम व्यक्ति के लिए असंभव लगता है। पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित छोंजोर ने अकेले ही लद्दाख के रामजक से कारग्याक गांव तक एनपीडी रोड का निर्माण किया था। 60-वर्षीय सामाजिक कार्यकर्ता छुल्टिम छोंजोर ने अकेले ही कारगिल के जांस्कर क्षेत्र में रामजक को कारग्याक गांव से जोड़ने वाली 38 किलोमीटर की सड़क निर्माण कर साबित किया है कि हौंसला बड़ा हो तो कोई राह मुश्किल नहीं।
'शवों के मसीहा' को कोटि - कोटि नमन :
'शवों के मसीहा' कहे जाने वाले समाजसेवी मोहम्मद शरीफ चचा को मानवीय संवेदना पर किए गए उनके कामों के लिए साल 2019 में पद्मश्री से नवाजे जाने की घोषणा हुई थी जिसके बाद बीते दिनों राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने पद्मश्री अवार्ड देकर उन्हें सम्मानित किया। साइकिल मैकेनिक से सामाजिक कार्यकर्ता बने शरीफ, लावारिस शवों का अंतिम संस्कार करते हैं। उत्तर प्रदेश के फैजाबाद के निवासी 83 वर्षीय मोहम्मद शरीफ के बारे में कहा जाता है कि उन्होंने पिछले 25 वर्षों में 25,000 से अधिक लावारिस शवों का अंतिम संस्कार का इंतजाम किया है। 1992 में मोहम्मद शरीफ के बड़े बेटे रईस की एक सड़क हादसे में मौत हो गई थी। शरीफ को इस हादसे के बारे में पता नहीं था और रईस की लाश सड़क पर ही पड़ी रही। कहते है रईस की लाश को जानवरों ने नोच खाया था और इस कारण मोहम्मद शरीफ अपने बेटे को दफ्ना भी नहीं पाए। इसके बाद मोहम्मद शरीफ ने कसम खाई कि किसी भी किसी शव की दुर्गति नहीं होने देंगे।
सबसे बुजुर्ग कामकाजी पत्रकार है लालबियाकथांगा पचुआउ :
मिजोरम के 94 वर्षीय पत्रकार लालबियाकथांगा पचुआउ को बीत दिनों पद्म श्री से सम्मानित किया गया है। उन्हें 2016 में मिजोरम सूचना और जनसंपर्क विभाग और मिजोरम पत्रकार संघ ने देश में सबसे बुजुर्ग कामकाजी पत्रकार बताया था। उम्र को मात देकर लालबियाकथांगा पचुआउ एक पत्रकार के तौर पर अपनी हरसंभव भागीदारी सुनिश्चित कर रहे है।