दिल्ली में प्रदूषण ने छिनी लोगों से राहत की सांसे
मानव की विकास सम्बंधित गतिविधियाँ जैसे भवन निर्माण, यातायात न केवल प्राकृतिक संसाधनों को घटाती है बल्कि इतना कूड़ा-कर्कट उत्पन्न करती है, इस वजह से वायु, जल, मृदा और समुद्र सभी प्रदूषित हो जाते है। वैश्विक ऊष्मण बढ़ता है और अम्ल वर्षा बढ़ जाती है। मानव द्वारा की गई गतिविधियाँ किसी न किसी प्रकार से पर्यावरण को प्रतिकूल रूप से प्रभावित करती ही है। एक पत्थर काटने वाला उपकरण वायुमंडल में निलंबित कणिकीय द्रव्य, उड़ते हुए कण और शोर फैला देता है। गाड़ियाँ अपने पीछे लगे निकास पाइप से नाइट्रोजन, सल्फर डाइऑक्साइड, कार्बन डाइऑक्साइड, कार्बन मोनोऑक्साइड और हाइड्रोजन का मिश्रण भरा काला धुआँ छोड़ते है, इससे वातावरण प्रदूषित होता है। घरेलू अपशिष्ट और खेतों से बहाये जाने वाले कीटनाशक और रासायनिक उर्वरकों से दूषित पानी, जल निकायों को प्रदूषित करता है। चमड़े के कारखानों से निकलने वाले गंदे कूड़े और पानी में बहुत से रासायनिक पदार्थ मिले होते है और उनसे तीव्र दुर्गंध निष्कासित होती है। दिल्ली को दिलवालों की दिल्ली कहा जाता है। पर इस दिलवालों की दिल्ली में प्रदूषण थमने का नाम ही नहीं ले रहा। राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र होने के कारण दिल्ली के आस-पास कारखानों की स्थापना होना भी स्वाभाविक ही है। वैसे दिल्ली में प्रदूषण की समस्या पहले से ही है, लेकिन दिवाली के बाद यहाँ प्रदूषण की समस्या कुछ ज्यादा ही बढ़ गई थी। दिवाली के पटाखों से धुआं-धुआं हुई दिल्ली, लोगों को सांस लेने में भी काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है। दिल्ली के अलग-अलग इलाकों में पीएम10 और पीएम 2.5 लेवल 950 तक पहुंच गया था। हालाँकि अब दिवाली को बीते हुए भी 1 महीना हो चूका है। पर फिर भी दिल्ली में प्रदूषण की समस्या में कोई सुधार नहीं देखा गया है।