चुल्ली का तेल : स्वास्थ्य के लिए रामबाण, अब अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर मिली पहचान

हिमाचल प्रदेश औषधियों एवं अन्य उपयोगी पौधों, जड़ी बूटियों व फलों का समृद्ध भंडार है। प्रदेश की जलवायु में विविधता के कारण यहां विभिन्न प्रकार के औषधीय पेड़ पौधे है, जो कई तरह की बिमारियों व रोगों के उपचार के लिए लाभदायक है। ऐसे ही औषधीय गुणों से परिपूर्ण है हिमाचल के ऊपरी क्षेत्र में पाए जाने वाली चुल्ली। चुल्ली को आम भाषा में जंगली खुबानी भी कहा जाता है। यूँ तो ये फल खुद में भी काफी उपयोगी है मगर इसके बीज का तेल असली कमाल करता है। हिमाचल में जंगली खुबानी से बनाए जाने वाले चुल्ली के इस तेल में कई लाभकारी गुण है। जंगली खुबानी का फल जिस तरह से स्वास्थ्य के लिए लाभकारी होता है, उसी प्रकार से इसके तेल के भी कई फायदे होते हैं। ख़ास बात तो ये है की चुल्ली का तेल हिमाचल से जीआई टैग प्राप्त करने वाले उत्पादों में भी शामिल है। चुल्ली को वाइल्ड एप्रिकोट भी कहा जाता है। चुल्ली का तेल खुबानी के बीजों से बनता है। इसके बीजों या गिरी को दबाकर या पतला कर के तेल निकाला जाता है। ये तेल गंधहीन होता है। ये तेल स्वास्थ्य के लिए तो रामबाण है ही, जनजातीय क्षेत्रों में लोगों की आर्थिक मजबूत करने में भी बड़ी भूमिका निभा सकता है।
पौष्टिक तत्वों से भरपूर है चुल्ली का तेल
चुल्ली का तेल पौष्टिक तत्वों से भरपूर होता है। इस तेल में विटामिन ई, सैचुरेटेड और अनसैचुरेटेड फैटी एसिड, ओलिक एसिड, लिनोलेनिक एसिड, पामिटिक एसिड, स्टीयरिक एसिड और एराचिडिक एसिड होते हैं।
कहाँ पाई जाती है जंगली खुबानी
खुबानी को भारत और पश्चिमी चीन का देशज माना जाता है। खेती के साथ साथ हिमालय के जंगलों में भी जंगली तौर पर खुबानी उगती है, खासकर कश्मीर और हिमाचल के किन्नौर में तो यह जंगल का एक अंश बन गया है। जंगली खुबानी विशेष तौर पर भारतीय मूल की मानी जाती है। यह शीतोष्ण क्षेत्रों में पाई जाती है और जंगली खुबानी के वृक्ष, या स्थानीय क्षेत्रों में चुल्ली नाम से जाने वाले वृक्ष उत्तरी-पश्चिमी हिमालयी क्षेत्र में, विशेष रूप से हिमाचल प्रदेश के कुल्लू एवं शिमला के क्षेत्र तथा उत्तराखंड के गढ़वाल की पहाड़ियों में भी पाये जाते हैं।
कैसे की जाती है चुल्ली की खेती
हिमालय की पहाड़ियों में जंगली खुबानी की कई प्रकार की किस्में पाई जाती हैं। ऊँचाइयों वाले हिमालय के पर्वतीय भाग इसके अच्छे उत्पादक क्षेत्र माने जाते है। इसकी खेती के लिए समशीतोष्ण और शीतोष्ण जलवायु वाली जगह अच्छी होती है। इसके पौधे अधिक गर्मी के मौसम में विकास नहीं कर पाते हैं। जबकि सर्दी के मौसम में आसानी से विकास कर लेते हैं। इसके पौधों को अधिक बारिश की जरूरत नही होती। फूल खिलते वक्त बारिश या अधिक ठंड का होना इसके लिए उपयुक्त नहीं होता। इसकी खेती के लिए भूमि का पी.एच. मान सामान्य होना चाहिए। खुबानी का पेड़ 5 वर्ष की आयु से फल देना आरम्भ करता है और 35 वर्ष की आयु तक देता रहता है। जंगली खुबानी के पेड़ों में अत्यधिक फूल आने के कारण फलों की संख्या भी अधिक होती है। खुबानी के प्रति पेड़ से लगभग 30-40 किलोग्राम फल प्रति वर्ष प्राप्त हो जाते हैं।
चुल्ली से तेल निकालने की पारंपरिक विधि
तेल निकालने के लिए बीजों को हाथ से तोड़ा जाता है ताकि ये छिटककर दूर न चले जाएँ। इसके बाद भीमल के तार का लूप बनाया जाता है, जिसके अंदर बीजों को डालकर नदी के किनारे पाये जाने वाले छोटे, गोलाकार पत्थरों से इन्हें तोड़ा जाता है। इससे बाहर निकली गिरियों को धुप में सुखाया जाता है फिर इसे ‘ओखली’ के अंदर चूर किया जाता है। इसके बाद इसका पेस्ट बनाया जाता है और पानी मिलाकर धुप में इस पेस्ट को हाथ से फेंटने से तेल निकलने लगता है। इस पेस्ट को खासकर तेल निकालने के उद्देश्य से तैयार किए गए लकड़ी के बर्तन में रखा जाता है, लेकिन हाल में कुछ समय में किसानों द्वारा व्यवसाय के दृष्टिकोण से शक्तिचालित तेल निष्कर्षक इकाइयाँ सड़कों के आस पास संस्थापित की गई है। परंतु इससे केवल आस–पास के लगभग 1 से 3 किलोमीटर के दायरे में रहने वाले किसानों को ही फायदा मिल सका, जबकि पहाड़ी क्षेत्र के गांव के किसानों के पास तेल निकालने का एक मात्र विकल्प इसे खुद अपने हाथों से कूटना ही रहता है।
जंगली खुबानी के उपयोग
जंगली खुबानी यानी चुल्ली के तेल के अलावा भी इसको कई तरह से उपयोग में लाया जा सकता है। इसमें फलों को सुखाकर उस समय प्रयोग किया जा सकता है जब इन फलों का मौसम न हो। खुबानी को नेक्टर, शराब तथा जैम बनाने के लिए भी उपयोग में लाया जाता है। हिमाचल प्रदेश के पहाड़ी क्षेत्रों में इसकी गुठलियों की गिरी से तेल निकालकर खाने के काम में लाया जाता है। अधिक अम्ल तथा कम चीनी विद्यमान होने के कारण जंगली खुबानी सामान्य उपयोग के लायक नहीं रहता है। इससे चटनी आदि बनाने के उत्साहवर्द्धक परिणाम प्राप्त हुए हैं। यह फल बड़ी तेजी से नष्ट होता है परंतु इसे कई रूपों में संरक्षित कर रखा जा सकता है। इसके डिब्बाबंद खाद्य पदार्थ व पेस्ट तैयार किये जा सकते हैं। इसके फलों को पकाया जाता है और इनके गूदों की एक पतली सतह किसी साफ कपड़े पर बिछाई जाती है जिसे पसारकर सुखाया जाता है और तैयार मीठे पापड़ (एक प्रकार की सूखी मिठाई) को महत्वपूर्ण भोज्य पदार्थ के रूप में उपयोग में लाया जाता है। खुबानी से कई तरह के उत्पाद तैयार किए जाते हैं। हिमाचल प्रदेश में सामान्य कृष्य खुबानी के साथ जंगली खुबानी के फलों को मिश्रित कर जैम, मकरंद व पापड़ जैसे कई प्रकार के उत्पाद तैयार किए जाते हैं। इसके गुदों से तैयार किए गए बच्चों के आहार काफी पौष्टिक होते हैं जो की कैल्शियम, फास्फोरस व लौह तत्व के अच्छे स्रोत होते हैं। इसके बीजों के तेल को खाने एवं खली को जैविक खाद के रूप में प्रयोग किया जा सकता है।
चुल्ली के तेल के है कई फायदे
हृदय को स्वस्थ रखने में है उपयोगी
हृदय को स्वस्थ रखने और इससे संबंधित समस्याओं को ठीक करने में खुबानी का तेल लाभकारी साबित हो सकता है। एनसीबीआई (नेशनल सेंटर फॉर बायोटेक्नोलॉजी इंफॉर्मेशन) की वेबसाइट पर पब्लिश एक रिसर्च के मुताबिक, खुबानी के तेल में शक्तिशाली कार्डियो प्रोटेक्टिव प्रभाव होता है। यह दिल के दौरे से बचाव में मदद कर सकता है। इसी वजह से इसे हृदय स्वास्थ्य के लिए जरूरी बताया जाता है।इंफ्लेमेशन के लिए
इंफ्लेमेशन और उससे जुड़ी समस्या से राहत पाने के लिए खुबानी के तेल का उपयोग किया जा सकता है। इस संबंध में प्रकाशित एक मेडिकल रिसर्च के मुताबिक, खुबानी के अर्क में एंटी-इंफ्लेमेटरी गुण होता है, जो पेट से संबंधित इंफ्लेमेशन की समस्या को कम कर सकता है। इसके अलावा, इस तेल में मौजूद लिनोलिक पॉलीअनसैचुरेटेड फैटी एसिड भी इंफ्लेमेशन से राहत दिला सकते है। ऐसे में खुबानी के तेल के फायदे में इन्फ्लेमेशन को काम करना भी गिना जा सकता है।आंखों के लिए
खुबानी के तेल का उपयोग करके आंखों को स्वस्थ रखा जा सकता है। इससे संबंधित एक मेडिकल रिसर्च के अनुसार, खुबानी के बीज का अर्क ड्राई आई सिंड्रोम (शुष्क आंखों) से राहत दिलाने में मदद कर सकता है। इसमें मौजूद बायोएक्टिव कंपाउंड को ड्राई आई डिजीज के लिए लाभकारी माना गया है। इसी वजह से खुबानी के तेल को आंखों के स्वास्थ्य के लिए अच्छा माना गया है।कैंसर से बचने के लिए
कैंसर एक ऐसी समस्या है, जिससे हर कोई बचे रहने की कामना करता है। ऐसे में खुबानी का तेल इस समस्या को दूर रखने में सहायक साबित हो सकता है। इस संबंध में पब्लिश एक वैज्ञानिक अध्ययन के मुताबिक, खुबानी बीज में साइनोजेनिक ग्लाइकोसाइड होता है। यह एक तरह का कंपाउंड है, जिसे कैंसर से बचाव के लिए अच्छा माना जाता है (5)। हालांकि, यह कैंसर का इलाज नहीं हो सकता है। कैंसर जैसी गंभीर समस्या के लिए डॉक्टरी इलाज जरूरी है।डार्क सर्कल के लिए
डार्क सर्कल की समस्या त्वचा में नमी की कमी की वजह से भी हो सकती है। ऐसे में इस समस्या से छुटकारा पाने के लिए खुबानी के तेल का उपयोग किया जा सकता है। दरअसल, खुबानी के तेल में मॉइस्चराइजिंग प्रभाव होता है, जो त्वचा में नमी बनाए रखने का काम कर सकता है। इससे डार्क सर्कल में कुछ हद तक सुधार नजर आ सकता है।बालों को करता है मज़बूत
चूली के तेल में विटामिन के होता है जो कि स्कैल्प को पोषण देकर बालों को झड़ने से रोकता है। इससे बालों के रोमछिद्र मजबूत होते हैं। इसमें मौजूद विटामिन ए डैंड्रफ के साथ-साथ त्वचा रोगों जैसे कि सोरायसिस और एक्जिमा के इलाज में मदद करता है। वहीं विटामिन ए फ्री रेडिकल्स और यूवी किरणों से होने वाले खतरे को भी कम करते है।
चुल्ली की कई प्रकार की किस्में
भारत में पर्वतीय क्षेत्रों में जंगली खुबानी यानि चुल्ली की खेती के लिए कई प्रकार की किस्में है। इसमें शीघ्र तैयार होने वाली किस्म कैशा, शिपलेज अर्ली, न्यू लार्ज अर्ली, चौबटिया मधु, डुन्स्टान और मास्काट आदि होती है। मध्यम अवधि में तैयार होने वाली किस्म शक्करपारा, हरकोट, ऐमा, सफेदा, केशा, मोरपार्क, टर्की, चारमग्ज और क्लूथा गोल्ड होती है। इसके अलावा देर से पकने वाली किस्में रायल, सेंट एम्ब्रियोज, एलेक्स और वुल्कान आदि शामिल है। सुखाकर मेवे के रुप में प्रयोग होने वाली किस्में चारमग्ज, नाटी, पैरा पैरोला, सफेदा, शक्करपारा और केशा आदि शामिल है। मीठी गिरी वाली किस्में जिसमें सफेदा, पैराचिनार, चारमग्ज, नगेट, नरी और शक्करपारा आदि शामिल है। तराई और शीतल मैदानी क्षेत्रों वाली किस्में- समुद्रतल से 1000 मीटर की ऊँचाई पर सिपलेज अर्ली और कैशा आदि किस्में उगाई जा सकती हैं और इनके साथ पालमपुर स्पेशल, आस्ट्रेलियन और सफेदा किस्में भी उपयुक्त पाई गई हैं।
जीआई टैग प्राप्त है चुल्ली का तेल
प्रदेश में चुल्ली के तेल को सदियों से बेचा जा रहा है, लेकिन मार्केट में चुल्ली के तेल की ज्यादा कीमत नहीं मिलती थी। इसे देखते हुए हिमाचल प्रदेश पेटेंट सूचना केंद्र विज्ञान एवं पर्यावरण परिषद ने जीआई एक्ट 1999 के तहत रजिस्ट्रार जीआई में सफलतापूर्वक पेटेंट करवाया है। हिमाचली चुल्ली तेल को सर्टीफिकेट नंबर 337 और जीआई रजिस्ट्रेशन नंबर 467 के तहत पेटेंट किया गया। इस पेटेंट से अब हिमाचली चुल्ली के तेल को अब अंतरराष्ट्रीय बाजार में पहचान मिली है और निर्माताओं को बाजार कीमत। इसके साथ-साथ देश के रेलवे स्टेशन, एयरपोर्ट्स सहित सभी प्रमुख बस अड्डों पर इन्हें बेचने की भी मंजूरी मिली है। हिमाचल में चुल्ली का तेल जिला किन्नौर सहित जिला शिमला और कुल्लू के कई क्षेत्रों में पाया जाता हैं। कुछ समय पहले की बात करे तो चुल्ली के तेल को ज्यादा तवज्जो नहीं दी जाती थी, लेकिन चुल्ली के तेल के पेटैंट के बाद बाजार में इसकी कीमत में इज़ाफ़ा तो हुआ ही है और लोगों का रुझान चुल्ली की ओर बढऩे भी लगा है। अब लोग फिर से चुल्ली यानी वाइल्ड एप्रीकॉट के पेड़ लगाकर इसे आर्थिक साधन के तौर पर भी देखने लगे हैं। जीआई टैग मिलने के बाद चुल्ली का तेल अब आसानी से अमेज़न जैसी अन्य ऑनलाइन साइट्स पर भी उपलब्ध है।
बीते दो-तीन साल में बढ़ी मांग
रामपुर के रहने वाले मूरत सिंह चौहान का कहना है कि चुल्ली का तेल काफी औषधीय गुणों से संपूर्ण है और काफी वर्षों से इसका सेवन न केवल किन्नौर वासी बल्कि जितने भी पर्वतीय क्षेत्र है वहां के लोग सर्दियों में खासकर इसका उपयोग करते हैं। पहले चुल्ली के तेल को बुजुर्ग ज्यादा उपयोग में लाते थे लेकिन जैसे-जैसे औषधीय गुणों का पता चल रहा है वैसे ही युवाओं में भी इसके प्रति रुझान बढ़ रहा है। पहले मशीन नहीं होती थी तो ऐसे में पत्थर जिसे कोल्हू कहा जाता है उसे उपयोग में लाकर चुल्ली का तेल निकाला जाता था जो काफी जटिल होता था, लेकिन आधुनिकरण के दौर में काफी तकनीक आ गई है। मशीनों के जरिए तेल को निकाला जाता है हालांकि ऐसे प्रक्रिया से गुजर कर गुणवत्ता थोड़ी कम हो जाती है। उन्होंने बताया कि बीते दो-तीन साल में चुल्ली के तेल के प्रति लोगों का रुझान काफी ज्यादा बढ़ने लगा है। किन्नौर क्षेत्र की अगर बात की जाए तो यहां पर देश के विभिन्न कोने से पर्यटक आते हैं तो ऐसे में पर्यटक चुल्ली के तेल की इंक्वायरी करते हैं जो काफी अच्छी बात भी है।
-मूरत सिंह चौहान
व्यापार मंडल अध्यक्ष, झाकड़ी
पेट सम्बंधित रोगों के लिए रामबाण
किन्नौर के कल्पा की रहने वाली नीता शोठा का कहना है कि चुल्ली के तल में अनसैचुरेटेड फैटी एसिड,विटामिन ई, विटामिन के, मैग्नीशियम,कॉपर,पाेटैशियम सहित कई विटामिन्स मौजूद है, इसलिए ये ना केवल त्वचा के लिए बल्कि हर एक रोग खासकर पेट से सम्बंधित रोगों के लिए रामबाण है। हालांकि चुली के गुट्टी का प्रयोग नवजात के मालिश में प्रयोग किया जाता है। स्वाद में कड़वा होने की वजह से लोग इसे ज्यादा पसंद नही करते किंतु जो इसके गुणों से परिचित होते है वो चुली के तेल की एहमियत समझते है।
-नीता शोठा, कल्पा ब्लॉक
ऑइल यूनिट स्थपित कर हो सकती है अच्छी आमदनी
निचार ब्लॉक के सुखदेव नेगी ने बताया कि हाल ही में चूली के तेल को जी.आई. यानी जियोग्राफिकल इंडिकेशन ऑफ गुड्स एक्ट में शामिल किया गया जो खुशी की बात है। उम्मीद है कि इससे क्षेत्र में पाए जाने वाले उत्पाद की अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अलग पहचान होगी। बाजार में वाजिब दाम मिलेंगे। मुझे लगता है कि चुली की खेती युवाओं के लिए कारगर सिद्ध हो सकती है क्योंकि इसमें मेहनत ज्यादा नहीं है, और ऑइल यूनिट स्थपित कर के भी अच्छी आमदनी हो सकती है।
-सुखदेव नेगी, निचार ब्लॉक
जीआई टैग से मिली अंतराष्ट्रीय पहचान
पूह ब्लॉक के चंद्र प्रकाश ने कहा आज तो कई हाईटेक मशीने आ गयी है, इस तेल के गुणों का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि पहले पूर्वज ओखली समान पत्थर में चुली के बीजों को डालते थे और डंडे के सहारे उसे कूट कर तेल रिफाइन किया जाता था। क्योंकि बुजुर्ग भी इसे औषधीय के रूप में इस्तेमाल करते थे। घी की भांति इसका सेवन किया जाता था। आज मशीने आ गयी है और अब यह प्रक्रिया सरल है। खुशी इस बात की है कि जीआई टैग मिलने से चुली के तेल को अंतराष्ट्रीय लेवल पर अलग पहचान मिलेगी।
-चंद्र प्रकाश, पूह ब्लॉक