तख्त पलटा तो ताज किसके सिर सजेगा ?
हिमाचल प्रदेश में अगली सरकार चुनने के लिए 12 नवंबर को मतदान हो चुका है। आठ दिसंबर को नतीजा भी सामने होगा और तब तक दोनों ही मुख्य राजनीतिक दल अपनी जीत का दावा कर रहे है। भाजपा रिवाज बदलने की बात दोहरा रही है, तो कांग्रेस तख़्त और ताज बदलने की। रिवाज बदला तो ये तय है कि अगले मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ही होंगे, पर सवाल ये है कि यदि तख्त पलटा तो मुख्यमंत्री का ताज किसके सिर होगा ? मतदान के बाद कांग्रेस के तमाम बड़े नेता दो तिहाई बहुमत के साथ सत्ता वापसी का दावा कर रहे है। इस दावे के पीछे कई कारण है, मसलन माना जा रहा है कि पुरानी पेंशन और महंगाई जैसे मुद्दे कांग्रेस के पक्ष में गए है। इसके अलावा पार्टी का टिकट आवंटन भी बेहतर दिखा है और सीमित बगावत भी कांग्रेस के दावे को और बल दे रही है। ऐसे में कोई बड़ा उलटफेर नहीं हुआ तो कांग्रेस के सत्ता वापसी के दावे में दम दिख रहा है। बहरहाल, सवाल ये ही है कि अगर प्रदेश में तख्त पलटा तो ताज किसके सिर सजेगा ?
1985 से लेकर 2017 तक हुए आठ विधानसभा चुनावों में वीरभद्र सिंह ही कांग्रेस का मुख्य चेहरा रहे। हालांकि उनके रहते भी कांग्रेस में सीएम पद को लेकर कई मर्तबा संशय रहा है, लेकिन हर बार वीरभद्र इस दौड़ में इक्कीस रहे। 1993 में पंडित सुखराम, 2003 में विद्या स्टोक्स और 2012 में ठाकुर कौल सिंह के अरमानों पर वीरभद्र सिंह ने पानी फेरा। अब वीरभद्र सिंह नहीं रहे है और इस बार यदि कांग्रेस सत्ता में लौटी तो किसके अरमान पूरे होते है और किसके अरमानों पर पानी फिरता है, ये देखना रोचक होगा। हिमाचल प्रदेश कांग्रेस में कई चेहरे ऐसे है जिनका नाम भावी सीएम को तौर पर चर्चा में है। कई नेताओं के समर्थक मुख्यमंत्री के तौर पर उन्हें प्रोजेक्ट कर रहे है, तो कई नेता वरिष्ठता और अनुभव के आधार पर अपना दावा आगे रख रहे है। जबकि कई मुख्य दावेदार अब तक बिलकुल शांत है और संभवतः आंकड़ों को अपने पक्ष में करने में जुटे है। दरअसल, बाजी वहीं मारेगा जिसके पास आलाकमान के आशीर्वाद के साथ समर्थक विधायकों का संख्याबल भी होगा। ऐसे में कांग्रेस की सत्ता वापसी हुई तो मुख्यमंत्री पद के लिए रोचक मुकाबला देखने को मिल सकता है।
पार्टी में मुख्यमंत्री पद के दावेदारों की बात करें तो प्रदेश अध्यक्ष प्रतिभा सिंह, चुनाव प्रचार समिति के अध्यक्ष सुखविंद्र सिंह सुक्खू, नेता प्रतिपक्ष मुकेश अग्निहोत्री, वरिष्ठ नेता कौल सिंह ठाकुर, रामलाल ठाकुर और आशा कुमारी वो प्रमुख नाम है जिनके समर्थक खुलकर उन्हें मुख्यमंत्री के तौर पर प्रोजेक्ट कर रहे है। इनके अलावा एक और नाम समर्थकों द्वारा जमकर प्रोजेक्ट किया जा रहा है, वो है युवा नेता विक्रमादित्य सिंह। हालांकि ये वर्तमान स्थिति में व्यवहारिक नहीं लगता, पर इससे विक्रमादित्य की लोकप्रियता का अंदाजा जरूर लगाया जा सकता है। इनके अलावा आलाकमान के अपनी नजदीकी के बूते कर्नल धनीराम शांडिल भी रेस में बताये जा रहे है। समर्थक हर्षवर्धन चौहान और चौधरी चंद्र कुमार के नाम को भी आगे कर रहे है। यहां जिक्र सबका जरूरी है क्यों कि ये वो ही कांग्रेस है जिसने वरिष्ठ नेताओं को किनारे कर, तमाम कयासों को गलत साबित करते हुए पंजाब में चरणजीत सिंह चन्नी को मुख्यमंत्री बना दिया था।
प्रतिभा सिंह : विस चुनाव नहीं लड़ा, पर दावा कम नहीं
हिमाचल प्रदेश को कभी महिला मुख्यमंत्री नहीं मिली है। अब तक 6 पुरुषों को ही मुख्यमंत्री बनने का गौरव मिला है। ऐसे में इस बार सुगबुगाहट है कि क्या प्रदेश को पहली महिला मुख्यमंत्री मिलेगी ? ऐसे में निसंदेह प्रतिभा सिंह एक बेहद मजबूत दावेदार है। पार्टी आलाकमान को भी वीरभद्र सिंह के नाम के असर का बखूबी अंदाजा है और उपचुनाव के नतीजों में इसका असर भी दिख चुका है। इस बार भी चुनाव सामग्री में जिस तरह स्व वीरभद्र सिंह के नाम का इस्तेमाल किया गया है वो 'वीरभद्र ब्रांड' में आलाकमान के भरोसे को दर्शाता है। वहीं मंडी संसदीय उपचुनाव जीतकर प्रतिभा सिंह भी अपनी काबिलियत सिद्ध कर चुकी है। इसके बाद उन्हें प्रदेश संगठन की कमान भी दी गई। हालांकि प्रतिभा सिंह ने खुद विधानसभा चुनाव नहीं लड़ा है, बावजूद इसके बतौर मुख्यमंत्री प्रतिभा सिंह का दावा कम नहीं है। वैसे अब तक न तो प्रतिभा सिंह ने खुलकर सीएम पद के लिए अपनी दावेदारी आगे रखी है और न ही खुलकर इंकार किया है। वे 'वेट एंड वॉच' की नीति पर आगे बढ़ रही है। हालांकि होलीलॉज कैंप के कुछ नेता जरूर उनकी दावेदारी जताते रहे है। बहरहाल प्रतिभा सिंह मुख्यमंत्री बने या न बने लेकिन होलीलॉज के प्रभाव को नकारा नहीं जा सकता।
सुखविंद्र सिंह सुक्खू : दावे को कमतर आंकना भूल
सुखविंद्र सिंह सुक्खू वो नेता है जो अपनी शर्तों पर सियासत करते आएं है। जो नेता वीरभद्र सिंह से टकराते हुए खुद की सियासी जमीन तैयार कर ले, उसके दावे को कमतर आंकना किसी के लिए भी बड़ी भूल सिद्ध हो सकता है। सुक्खू कांग्रेस प्रचार समिति के अध्यक्ष भी है और अगर पार्टी सत्ता में लौटी तो श्रेय उनको भी जायेगा। आलाकमान से उनकी नजदीकी भी जगजागीर है। सीएम बनने के सवाल पर सुखविंद्र सिंह सुक्खू एक मंजे हुए नेता की तरह जवाब देते आ रहे है। मतदान से पहले वे एक ही बात दोहरा रहे थे, कि पहले विधायक बनना होगा। अब मतदान के बाद सुक्खू साफ़ कह रह है कि चुने हुए विधायक सीएम तय करेंगे। दरअसल सुक्खू के जिन समर्थकों को इस बार टिकट मिला है, माना जा रहा उनमें से अधिकांश अपनी-अपनी सीटों पर अच्छा कर रहे है। इसके अलावा ये ही मुमकिन है कि होलीलॉज कैंप के बाहर के कई अन्य नेता भी खुद का दावा कमजोर पड़ने पर अपने समर्थकों सहित सुक्खू का साथ दे सकते है। यानी सुक्खू संख्याबल के मामले में भी कम नहीं माने जा सकते।
ठाकुर कौल सिंह: वरिष्ठता और अनुभव की बिसात पर दावा
करीब पांच दशक लम्बे अपने राजनीतिक सफर में कौल सिंह ठाकुर ने पंचायत समिति से लेकर कैबिनेट मंत्री तक का फासला तय किया है। वे प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष भी रहे है और कांग्रेस ने निष्ठावान सिपाही है। जानकार मानते है कि अगर मुख्यमंत्री पद के दावेदारों में सहमति नहीं बनती है तो कौल सिंह ठाकुर वो नाम है जिसपर वरिष्ठता का हवाला देकर सहमति बनाई जा सकती है। होलीलॉज से भी कौल सिंह ठाकुर के सम्बन्ध अब बेहतर दिख रहे है, ऐसे में उन्हें इसका लाभ मिल सकता है। हालांकि कुछ लोग मानते है कि ठाकुर कौल सिंह की राह में जी 23 गुट को उनका समर्थन आड़े आ सकता है। पर इससे वे पहले ही मुकर चुके है। यहां एक फैक्टर और काम कर सकता है, वो होगा जिला मंडी में कांग्रेस का प्रदर्शन। दरअसल 2017 के चुनाव में मंडी में कांग्रेस का खाता भी नहीं खुला था। ऐसे में अगर इस बार कांग्रेस अच्छा करती है तो ठाकुर कौल सिंह इसका क्रेडिट लेने में पीछे नहीं हटेंगे।
मुकेश अग्निहोत्री : ये भी पकड़ सकते है ओकओवर का रास्ता
नेता प्रतिपक्ष मुकेश अग्निहोत्री कांग्रेस के तेज तर्रार नेताओं में से हैं, जो 5 साल भाजपा सरकार को विधानसभा के भीतर से लेकर बाहर तक घेरते रहे हैं। 2017 के विधानसभा चुनाव के बाद जब कांग्रेस सत्ता से बाहर हुई तो बड़ा सवाल था कि आखिर सदन में कांग्रेस की अगुवाई कौन करेगा ? निगाहें उम्रदराज वीरभद्र सिंह पर थी और उन्होंने अपना भरोसा जताया मुकेश अग्निहोत्री पर। सदन में मुकेश अग्निहोत्री ने दमदार तरीके से न सिर्फ कांग्रेस का प्रतिनिधित्व किया बल्कि हर मुमकिन मौके पर जयराम सरकार को भी जमकर घेरा। अब यदि कांग्रेस सत्ता में वापसी करती है तो सीएम पद के दावेदारों में मुकेश अग्निहोत्री भी शामिल है। अग्निहोत्री होलीलॉज कैंप के माने जाते है और वीरभद्र सिंह के बाद होलीलॉज निष्ठावान विधायकों के लिए खासी अहमियत रखते है। ऐसे में माहिर मानते है कि होलीलॉज और मुकेश के बीच सीएम को लेकर एक राय दिख सकती है, चेहरा चाहे कोई भी हो।
आशा कुमारी : ये रानी भी है सीएम पद की दौड़ में
डलहौजी सीट से फिर एक बार किस्मत आजमा रही आशा कुमारी भी सीएम पद की दौड़ में है। आशा कुमारी दो बार प्रदेश में मंत्री रही है। केंद्र में भी उनका अच्छा रसूख है। वे पंजाब की प्रभारी भी रह चुकी है और पार्टी आलाकमान के नजदीक मानी जाती है। अब आशा कुमारी न सिर्फ सातवीं बार विधायक बनने के पथ पर है, बल्कि प्रदेश में कांग्रेस सरकार बनने की स्थिति में सीएम पद की दावेदार भी है। अलबत्ता आशा कुमारी ने अपनी दावेदारी को लेकर कभी कुछ नहीं कहा है लेकिन समर्थक उन्हें भी बतौर भावी सीएम प्रोजेक्ट कर रहे है। आशा भी मुकेश अग्निहोत्री की तरह होलीलॉज की करीबी रही है और वीभद्र सिंह के निधन के बाद बदले समीकरणों में दमदार दिख रही है।
ये दिग्गज भी है दौड़ में
पांच बार के विधायक राम लाल ठाकुर भी सीएम पद के दावेदारों में शुमार है। उन्हें 10 जनपथ का करीबी भी माना जाता है। अपने जमाने के जाने माने कबड्डी खिलाड़ी रहे राम लाल ठाकुर सियासी मैदान के भी मंजे हुए खिलाड़ी है। इस बार रामलाल ठाकुर चुनाव जीते तो छठी बार विधायक बनेंगे। वहीं दो बार सांसद रहने वाले कर्नल धनीराम शांडिल इस बार सोलन सीट से हैट्रिक लगाने के इरादे से मैदान में है। कर्नल भी गाँधी परिवार के करीबी है। हिमाचल में एससी समुदाय से कोई नेता कभी मुख्यमंत्री नहीं बना, ऐसे में कर्नल एक विकल्प हो सकते है। एक अन्य दावेदार हर्षवर्धन चौहान भी माने जा रहे है। हर्षवर्धन के खाते में शिलाई से पांच जीत दर्ज है और इस बार वे भी छठी जीत के इरादे से चुनावी मैदान में उतरे है। उनके पिता गुमान सिंह चौहान भी शिलाई से चार बार विधायक रहे है। इस बार हाटी फैक्टर के बावजूद अगर हर्षवर्धन चौहान जीत जाते है, तो जाहिर है उनका दावा भी मजबूत होगा।