'मोहब्बत की दुकान' लगाकर सियासत में पांव जमाते राहुल

इन दिनों राहुल गांधी अपनी 'मोहब्बत की दुकान' अमेरिका में लगा रहे हैं। राहुल का अंदाज भी बदला है और सियासत का तौर तरीका भी। शायद ये ही कारण है कि राहुल के हर वार पर भाजपा पलटवार करने में जरा भी चूक नहीं कर रही। ये वो ही भाजपा है जो कल तक राहुल गांधी को 'पप्पू' बताती थी, पर आज उनके बयानों को लेकर गंभीर है।
दरअसल इस बात को दबी जुबान विरोधी भी स्वीकार रहे है कि राहुल बदले -बदले से है। भारत जोड़ो यात्रा ने उनकी छवि भी बदली है और वो अब ज्यादा परिपक्व भी दिख रहे है। इस पर 'मोहब्बत की दुकान' की पंच लाइन का लाभ भी कांग्रेस को मिलता दिखा है।
इसके जरिए कांग्रेस अल्प संख्यक समुदाय को साधने की रणनीति पर आगे बढ़ी है, जो कभी कभी उसकी सबसे बड़ी ताकत रहा है। अब पार्टी पूरी शिद्दत के साथ इस वोट बैंक को दोबारा अपने साथ लाने में जुटी है। कर्नाटक में पार्टी की कामयाबी के पीछे भी अल्पसंख्यक वर्गों के समर्थन को बड़ा कारण माना जाता है। अब 2024 में भी कांग्रेस इसी रणनीति पर आगे बढ़ती दिखती है। वहीँ अमेरिका में केरल की इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग से गठबंधन को लेकर राहुल ने कहा है कि मुस्लिम लीग पूरी तरह से सेक्युलर पार्टी है।
कांग्रेस ये भी जानती है कि वह केवल मुस्लमान मतदाताओं के सहारे सत्ता में नहीं लौट सकती। यही कारण है कि राहुल गांधी अमेरिका में दलितों और सिखों के मुद्दे पर भी बोल रहे है। ये भी कांग्रेस के परंपरागत वोटर रहे हैं। राहुल का जातीय जनगणना के मुद्दे को मजबूती से उठाना इसी दिशा में बड़ा कदम है। संभव है कि कांग्रेस इस मुहिम को जल्द तेज करें।
बहरहाल राहुल गाँधी ने अमेरिका से अपने ही अंदाज में भाजपा और पीएम मोदी पर वार किया है। कभी राहुल पीएम नरेंद्र मोदी को 'भगवान से भी ज्यादा जानकार' कह तंज कसते है, तो कभी देश की संस्थाओं पर सरकार का कब्जा होने जैसे आरोप जड़ रहे हैं। राहुल बीच कार्यक्रम में अपना फ़ोन निकालकर कहते है, 'हेलो मिस्टर मोदी', जासूसी के ये आरोप गंभीर है और राहुल को वो लाइमलाइट भी दे रहे है। बाकायदा अमेरिका में पत्रकार वार्ता करके राहुल बेबाकी से अपना पक्ष रख रहे है, बेरोजगारी और आर्थिक असमानता जैसे विषयों पर सरकार को घेर रहे है। निसंदेह कांग्रेस बीते कुछ वक्त से आम जनता से सीधे जुड़े मुद्दों के इर्दगिर्द आगे बढ़ी है, जो भाजपा के लिए परेशानी का सबब हो सकता है। कर्नाटक चुनाव भी इसका बड़ा उदाहरण है जहाँ कांग्रेस का भ्रष्टाचार का मुद्दा भाजपा के तमाम धार्मिक मुद्दों पर भारी पड़ा है।
राहुल गाँधी ने अमेरिका से एक और बड़ा दावा किया है। राहुल ने कहा है कि 2024 के चुनाव नतीजे सबको चौंकाएंगे और भाजपा सत्ता से बाहर होगी। विपक्ष एकजुट हो रहा है और इस संबंध में काफी अच्छा काम हो रहा है। दरअसल कर्नाटक और उसके पहले हिमाचल प्रदेश के विधानसभा चुनाव में गैर भाजपाई वोटर्स ने एकजुट होकर परिवर्तन के लिए वोट किया हैं। यदि राष्ट्रीय स्तर पर कांग्रेस गठबंधन इसे दोहरा पाई तो नतीजे सच में चौंका सकते है। हालांकि डगर कठिन ही नहीं, बेहद कठिन है।
उधर दस साल से केंद्र की सत्ता पर काबिज भाजपा को महंगाई, बेरोजगारी, दस साल का एंटी इनकमबेंसी, महिला खिलाड़ियों के सम्मान सहित कई मोर्चों पर जूझना पड़ रहा है। दस साल में पहली बार भाजपा को शायद कुछ परेशानी हुई हो। पर कांग्रेस की बदली रणनीति को भाजपा समझ रही है और राहुल गांधी को काउंटर करने के लिए दिग्गज नेताओं की फौज मैदान में है। राहुल के हर वार पर पलटवार हो रहा है और उनके बयानों को देश को बदनाम करने वाला बताया जा रहा हैं। जाहिर है भाजपा इसे देश के सम्मान से जोड़ने की रणनीति पर आगे बढ़ रही है।
फिलवक्त कांग्रेस लोकसभा चुनाव से पहले मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान विधानसभा चुनाव में अच्छा करना चाहेगी। वहीँ 2019 में करीब 200 लोकसभा सीटें ऐसी थी जहाँ लड़ाई कांग्रेस और भाजपा के बीच थी। करीब पौने दो सौ सीटों पर भाजपा और क्षेत्रीय दलों के बीच कड़ा मुकाबला था। इन पौने चार सौ सीटों पर अगर विपक्ष गठबंधन कर तालमेल के साथ लड़े, तो शायद कुछ बात बने। पर क्या गठबंधन होगा, इसी सवाल के जवाब में सम्भवतः भविष्य की राजनैतिक तस्वीर छिपी है।
ब्रांड मोदी का जलवा और भाजपा अब भी इक्कीस ....
बेशक कर्नाटक और हिमाचल प्रदेश में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के आक्रामक चुनाव प्रचार के बावजूद भाजपा हारी हो, लेकिन इन वजह से मोदी फैक्टर की लोकप्रियता को खारिज नहीं किया जा सकता। जनता को पता था कि वह मुख्यमंत्री का चुनाव कर रही है, प्रधानमंत्री का नहीं। 2018 में भी इसी तरह भाजपा को राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में शिकस्त मिली थी, पर जब लोकसभा चुनाव हुए तो भाजपा ने शानदार जीत दर्ज की ।
पीएम मोदी अभी भी भारतीय राजनीति का सबसे बड़ा ब्रांड है और उनकी लोकप्रियता आम जनता के बीच अभी भी कायम है। भाजपा अपने गढ़ उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, राजस्थान, गुजरात, बिहार, झारखंड और पूर्वोत्तर के राज्यों में अभी भी बेहद मजबूत है।
वहीँ 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने करीब 37 प्रतिशत वोटों के साथ 303 सीटों पर जीत दर्ज की थी, जबकि कांग्रेस को 20 प्रतिशत वोट भी नहीं मिले थे और पार्टी 52 पर सिमट गई थी। करीब 18 फीसदी वोटों का का यह अंतर लांघना कांग्रेस के लिए आसान नहीं होने वाला।