2024 में मुश्किल होगी जंग-ए-कांगड़ा

" ....हिमाचल प्रदेश विधानसभा चुनाव के नतीजों ने प्रदेश के चारों सांसदों को भी आईना दिखाने का काम किया है। कोई भी सांसद अपने संसदीय क्षेत्र में अपनी पार्टी को इक्कीस साबित नहीं कर पाया। कांगड़ा, हमीरपुर और शिमला संसदीय क्षेत्र में भाजपा पिछड़ी, तो मंडी में कांग्रेस। अब जाहिर है लोकसभा चुनाव से पहले दोनों ही राजनैतिक दलों के सांसदों पर बेहतर करने का दबाव होगा। हालांकि लोकसभा चुनाव और विधानसभा चुनाव में मुद्दे भी अलग होते है और चेहरे भी, फिर भी इस बात को खारिज नहीं किया जा सकता कि विधानसभा चुनाव के नतीजे हवा बनाने - बिगाड़ने में बड़ा किरदार निभा सकते है। "
कांगड़ा वो संसदीय क्षेत्र है जहाँ भाजपा अपनी स्थापना के बाद से ही मजबूत रही है। भाजपा की स्थापना के बाद से हुए दस लोकसभा चुनावों में से यहाँ सात में भाजपा को जीत मिली है। पूर्व मुख्यमंत्री और भाजपा के वरिष्ठ नेता शांता कुमार खुद इस क्षेत्र से चार बार सांसद रहे है। वहीं बीते तीन लोकसभा चुनाव भाजपा लगातार जीत चुकी है। बावजूद इसके, इस बार कांगड़ा में भाजपा की राह आसान नहीं दिखती। दरअसल कांगड़ा संसदीय क्षेत्र में भाजपा का ग्राफ लगातार गिरा है, कम से कम हाल ही में हुए विधानसभा चुनाव के नतीजे तो ये ही बयां करते है।
2019 में सांसद बने किशन कपूर हिमाचल में तो सबसे ज्यादा मतों के अंतर से जीते ही थे, साथ ही पूरे देश में भी सबसे अधिक मत प्रतिशत हासिल करने का रिकॉर्ड भी उन्होंने अपने नाम किया था। मोदी लहर में किशन कपूर ने कुल 72.02 प्रतिशत वोट हासिल किए थे। तब कांगड़ा संसदीय क्षेत्र में पड़े कुल 10 लाख 6 हजार 989 मतों में से कपूर की झोली में 7 लाख 25 हजार 218 मत आए। शानदार जीत हासिल करके किशन कपूर लोकसभा पहुंचे और इसके बाद धर्मशाला विधानसभा उपचुनाव में भी भाजपा ने जीत दर्ज की। पर 2022 का चुनाव आते -आते भाजपा का जादू फीका पड़ गया और पार्टी इस संसदीय क्षेत्र की 17 में से सिर्फ पांच सीटें ही जीत पाई, जो जयराम सरकार की विदाई का एक अहम कारण है। इससे पहले वर्ष 2017 के विधानसभा चुनाव में 13 सीटें भाजपा की झोली में गई थी।
कांगड़ा संसदीय क्षेत्र की जो पांच सीटें भाजपा जीती है उनमे से दो जिला चम्बा की है और तीन जिला कांगड़ा की। सिर्फ डलहौज़ी, चुराह, सुलह, नूरपुर और कांगड़ा सीट पर भाजपा अपनी साख बचाने में कामयाब हुई है। वहीं हारने वाले 12 की लिस्ट में जयराम कैबिनेट के दो मंत्री, राकेश पठानिया और सरवीण चौधरी भी शामिल है। इसके अलावा पार्टी के प्रदेश महासचिव त्रिलोक कपूर को भी पालमपुर की जनता ने नकार दिया। वहीं सांसद किशन कपूर की परम्परागत सीट धर्मशाला में भी पार्टी को शिकस्त मिली। जाहिर है कांगड़ा संसदीय क्षेत्र में भाजपा की हार सांसद के रिपोर्ट कार्ड में भी जुड़ेगी।
क्या नए चेहरे पर दांव खेलेगी भाजपा ?
कांगड़ा संसदीय क्षेत्र में रिकॉर्ड जीत दर्ज करने वाले सांसद किशन कपूर पर क्या पार्टी 2024 में फिर दांव खेलेगी, इसे लेकर भी कयासबाजी अभी से जारी है। माहिर मान रहे ही कि विधानसभा चुनाव में भाजपा के लचर प्रदर्शन का खामियाजा किशन कपूर को उठाना पड़ सकता है और पार्टी यहाँ किसी नए चेहरे को भी मैदान में उतार सकती है। कांग्रेस छोड़ कर भाजपा में आएं पवन काजल और धर्मशाला के पूर्व विधायक विशाल नेहरिया के नाम भी यहाँ से चर्चा में है।
उधर, विधानसभा चुनाव में कांगड़ा संसदीय क्षेत्र की 12 सीटें जीतने वाली कांग्रेस की राह भी उतनी आसान नहीं है, जितना माना जा रहा है। इसका सबसे बड़ा कारण तो ये है कि लोकसभा चुनाव प्रदेश नहीं बल्कि देश के मुद्दों पर होगा और देश में कांग्रेस की स्थिति मजबूत नहीं है। दूसरा बड़ा कारण है सुक्खू सरकार पर लग रहे जिला कांगड़ा की उपेक्षा के आरोप। जिला कांगड़ा की दस सीटों पर कांग्रेस की जीत मिली है लेकिन सुक्खू कैबिनेट में अब तक महज एक मंत्री पद मिला है और दो सीपीएस बनाये गए है। वहीँ संसदीय क्षेत्र के लिहाज से बात करें तो भटियात विधायक कुलदीप सिंह पठानिया को विधानसभा अध्यक्ष बनाया गया है। हालांकि सुक्खू कैबिनेट में अभी तीन पद रिक्त है और जानकार मान रहे है कि इनमें से दो स्थान जिला कांगड़ा को देकर कांग्रेस क्षेत्रीय संतुलन सुनिश्चित करेगी।
माहिर मान रहे है कि कांग्रेस के सामने सबसे बड़ी चुनौती होगी लोकसभा चुनाव में दमदार चेहरा उतारना। पिछले चुनाव में पार्टी ने ओबीसी समुदाय में बड़ी पैठ रखने वाले पवन काजल को उम्मीदवार बनाया था लेकिन काजल रिकॉर्ड अंतर से हारे थे। अब काजल भी भाजपा में चले गए है। कांग्रेस के संभावित उम्मीदवारों में पूर्व सांसद और मंत्री चंद्र कुमार चौधरी और पूर्व मंत्री और विधायक सुधीर शर्मा के नाम को लेकर कयास जरूर लग रहे है। वहीँ युवा चेहरों में सुक्खू सरकार के आईटी सलाहकार गोकुल बुटेल निसंदेह एक दमदार विकल्प हो सकते है।
दमदार विकल्प हो सकते है गोकुल बुटेल
सुक्खू सरकार में आईटी सलाहकार गोकुल बुटेल लोकसभा चुनाव में पार्टी के लिए एक बेहतरीन विकल्प हो सकते है। प्रदेश और कांगड़ा की सियासत में बुटेल परिवार के वर्चस्व पर कोई संशय नहीं है। वहीँ गोकुल निजी तौर पर पार्टी आलाकमान की भी पसंद माने जाते है। उन्हें कई राज्यों में पार्टी के प्रचार संभालने का अनुभव भी है जो उनके पक्ष में जा सकता है। प्रदेश में भी गोकुल बुटेल एक ऐसा नाम है जिसे लेकर संभवतः किसी को कोई ऐतराज नहीं होगा। यानी गोकुल के नाम पर कांग्रेस एकजुट होकर मैदान में उतर सकती है।