पूर्वोत्तर भाजपा गठबंधन के साथ, कांग्रेस खाली हाथ

होली से पहले पूर्वोत्तर के तीन राज्यों में भाजपा ने भगवा लहराया है। त्रिपुरा और नागालैंड में सत्ताधारी गठबंधन ही जीता है और मेघालय में सत्ता के लिए पुराने साथी फिर गठबंधन को साथ आ गए हैं। निसंदेह ये भाजपा के लिए बड़ी जीत है। दरअसल 'पूर्वोत्तर के अंतर्गत आठ राज्य आते हैं। इनमें त्रिपुरा, मेघालय, नगालैंड, असम, मणिपुर, मिजोरम, सिक्किम और अरुणाचल प्रदेश शामिल हैं। 2014 तक इनमें से ज्यादातर राज्यों में या तो कांग्रेस या फिर लेफ्ट का राज हुआ करता था। एक दौर ऐसा भी था जब बीजेपी को हिंदी भाषी पार्टी बोलकर ही खारिज कर दिया जाता था। इसके बाद कहानी बदलने लगी। एक-एक करके इन आठ में से छह राज्यों में भाजपा ने या तो अकेले दम पर सरकार बनाई या फिर सरकार का हिस्सा बनी। अब ये आंकड़ा सात पहुँच सकता है। सिर्फ मिजोरम में एमएनएफ की सरकार है। भाजपा ने कोशिश तो 2014 से पहले भी की, लेकिन उसे सफलता सिर्फ 2003 में मिली जब अरुणाचल में बीजेपी की सरकार बनी थी। तब कांग्रेस के एक दिग्गज नेता ने पार्टी के अंदर ही बगावत की थी और कई नेता बीजेपी में शामिल हो गए थे। उस वजह से पहली बार किसी पूर्वोत्तर राज्य में बीजेपी की सरकार बनी थी, लेकिन उसके बाद बीजेपी के लिए पूर्वोत्तर में सियासी सूखा ही रहा और जमीन पर समीकरण 2014 के बाद बदलने शुरू हुए।
पूर्वोत्तर में बीजेपी की ग्रोथ के कई कारण है जिनमें से एक सरकारी योजनाओं का जमीन पर पहुंचना भी है। बीजेपी ने पूर्वोत्तर के राज्यों के लिए नॉर्थ-ईस्ट डेवलपमेंट अलायंस यानी नेडा का गठन किया है। इसके संयोजक असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा शर्मा हैं। साल 2015 में इसका गठन किया गया और इसका मक़सद था कि बीजेपी पूर्वोत्तर राज्यों में उन क्षेत्रीय दलों को एक साथ लाए जो कांग्रेस से खुश नहीं हैं। 2016 में बीजेपी ने 15 साल से चले आ रहे कांग्रेस के शासन को असम में ख़त्म करके अपनी सरकार बनाई। 2018 में 30 साल से काबिज लेफ़्ट सरकार को हटाकर पहली बार बीजेपी ने त्रिपुरा में सरकार बनाई। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी खुद 2017 के बाद से 47 बार नार्थ-ईस्ट जा चुके हैं। चुनाव से पहले उन्होंने त्रिपुरा, नगालैंड और मेघालय में 3 बड़ी रैलियां कीं। नार्थ-ईस्ट के 8 राज्यों में हर 15 दिन में कोई न कोई केंद्रीय मंत्री जरूर पहुंचता है। केंद्र सरकार ने 2024-25 के लिए नार्थ ईस्ट का बजट 5892 करोड़ किया है, ये 2022-23 के मुकाबले 113% ज्यादा है।
नेडा का गठन ही बताता है कि बीजेपी के लिए पूर्वोत्तर राज्य कितने अहम रहे हैं। पूर्वोत्तर के राज्यों की आबादी में आदिवासियों की बहुलता है और ईसाई अल्पसंख्यकों की तादाद यहां ज्यादा है, ऐसे में जब इन राज्यों में बीजेपी जीतती है तो उसके लिए इस नैरेटिव को काउंटर करना और आसान हो जाता है कि वह अल्पसंख्यक विरोधी है। अब जीत के बाद बीजेपी ये कह सकती है कि वह अगर अल्पसंख्यक विरोधी होती, तो उसे ये जीत ना मिलती। साथ ही यहाँ 26 लोकसभा सीटें हैं, जो बाकी भारत के मध्य आकार के एक राज्य के बराबर है। भाजपा ने पूर्वोत्तर के चुनावों को इसलिए इतना ज्यादा महत्व दिया, क्योंकि वर्ष 2024 में होने वाले लोकसभा चुनाव के मद्देनजर यहां की 26 लोकसभा सीटें उसके लिए बहुत अहम हैं। लोकसभा चुनाव में अगर अन्य राज्यों में उसके खिलाफ सत्ता विरोधी रुझान हुआ तो पूर्वोत्तर से उसकी भरपाई की जा सकती है। वहीँ दशकों से कांग्रेस के गढ़ रहे पूर्वोत्तर कांग्रेस का सफाया हो गया है। त्रिपुरा में भले ही उसे कुछ सीटें मिली हैं जो कि सांत्वना पुरस्कार से ज्यादा कुछ नहीं है, लेकिन कुल मिलाकर पूर्वोत्तर के इलाके में कांग्रेस लगातार हार रही है। बात ये है कि तीनों ही राज्यों में देश की सबसे पुरानी राष्ट्रीय पार्टी कांग्रेस की स्थिति सबसे ज्यादा खराब हुई है। तीनों ही राज्यों से कांग्रेस का प्रदर्शन निराशाजनक रहा है। वह भी तब जब 2016 तक नॉर्थ ईस्ट के ज्यादातर राज्यों में कांग्रेस और लेफ्ट का ही कब्जा था।
त्रिपुरा
कभी वामपंथी दलों का गढ़ रहे त्रिपुरा में भाजपा गठबंधन ने लगातार दूसरी बार पूर्ण बहुमत की सरकार बनाने में सफलता हासिल की है। गठबंधन को राज्य में 33 सीटों पर जीत मिली है। अकेले भाजपा को त्रिपुरा की 60 सदस्यीय विधानसभा में 32 सीटों पर सफलता मिली है। यहाँ कांग्रेस और लेफ्ट गठबंधन को बड़ा झटका लगा। कांग्रेस ने तीन सीटों पर जीत हासिल की, जबकि लेफ्ट के खाते में 11 सीटें आईं। मतलब गठबंधन करने के बावजूद दोनों को कुछ खास फायदा नहीं मिला। हालांकि, पहली बार चुनाव लड़ रही टिपरा मोथा ने बड़ी कामयाबी हासिल की। इनके 42 में से 13 प्रत्याशियों ने चुनाव में जीत दर्ज की। त्रिपुरा में भाजपा की सहयोगी आईपीएफटी को टिपरा मोथा पार्टी के कारण भारी नुकसान हुआ है। नतीजों को देखा जाए तो यहाँ भाजपा जीतने में तो कामयाब रही मगर पार्टी का वोट शेयर घटा है। भाजपा को 38.97 फीसदी वोट हासिल हुए हैं। पिछले विधानसभा चुनाव में भाजपा को 43.59 फीसदी वोट शेयर के साथ 36 सीटों पर सफलता मिली थी।
नगालैंड
इस बार नगालैंड की 59 सीटों पर चुनाव हुए। यहां जुन्हेबोटो की आकुलुटो सीट से भाजपा प्रत्याशी और निर्वतमान विधायक काजहेटो किन्मी निर्विरोध चुनाव जीत चुके थे। ऐसे में इस सीट पर चुनाव नहीं हुए। भारतीय जनता पार्टी और नेशनलिस्ट डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव पार्टी (एनडीपीपी) का गठबंधन हुआ। इसके तहत एनडीपीपी ने 40 और भाजपा ने 20 सीटों पर अपने प्रत्याशी उतारे थे। इसके अलावा कांग्रेस और एनपीएफ अलग-अलग चुनाव लड़े। कांग्रेस ने 23 और एनपीएफ ने 22 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे थे। 19 निर्दलीय प्रत्याशियों ने भी चुनाव में ताल ठोकी थी। 2018 में यहां विधानसभा के सभी 60 सदस्य सरकार का हिस्सा बन गए थे। मतलब कोई भी विपक्ष में नहीं था। इस बार भी यहां भाजपा गठबंधन ने बड़ी जीत हासिल की। भाजपा के 20 में से 13 उम्मीदवार चुनाव जीत गए। वहीं, एनडीपीपी के 40 में से 25 प्रत्याशी विजयी हुए। कांग्रेस यहां एक भी सीट नहीं जीत पाई। एनपीपी के पांच उम्मीदवार चुनाव जीत गए। यहां एनसीपी ने भी बड़ा खेल किया। एनसीपी के सात प्रत्याशी चुनाव जीत गए हैं। चार निर्दलीय, दो लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) और एनपीएफ, आरपीआई के दो-दो उम्मीदवार चुनाव जीतने में कामयाब रहे। रोचक बात ये भी है कि नगालैंड के इतिहास में आज तक एक भी महिला चुनकर विधानसभा नहीं पहुंची थीं। अब तक नगालैंड से मात्र एक महिला सांसद रानो साइजा चुनी गई थीं। वह 1977 में छठी लोकसभा में चुनकर संसद पहुंची थीं। पर इस बार नागालैंड की जनता ने चार महिला प्रत्याशियों में से दो- दीमापुर तृतीय विधानसभा से हेकानी जखालू और अंगामी सीट से सलहूतुनू क्रुसे को चुनकर विधानसभा में भेजा है।
मेघालय
सबसे रोमांचक मुकाबला मेघालय में हुआ। यहां 60 में से 59 सीटों पर चुनाव हुए थे। एक सीट पर एक प्रत्याशी की मौत के चलते चुनाव रद्द हो गया। 59 सीटों पर हुए चुनाव के नतीजों ने आज सभी को हैरान कर दिया। किसी भी पार्टी को पूर्ण बहुमत नहीं मिला है। एनपीपी सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी है। इनके 25 प्रत्याशियों ने जीत हासिल की। दूसरे नंबर पर यूडीपी रही। इनके 11 उम्मीदवार चुनाव जीत गए। भाजपा के तीन, टीएमसी के पांच, कांग्रेस के पांच, एचएसपीडीपी, पीडीएफ के दो-दो उम्मीदवारों ने जीत हासिल की। दो निर्दलीय विधायक भी चुने गए। वाइस ऑफ द पीपल पार्टी के चार उम्मीदवार चुनाव जीत गए।