प्रतिभा सिंह पर टिकी निगाहें, क्या मंडी उपचुनाव से करेगी कमबैक
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वीरभद्र सिंह के निधन के बाद क्या उनकी पत्नी प्रतिभा सिंह उनकी राजनीतिक विरासत को संभालने आगे आएगी ? क्या प्रतिभा सिंह आगामी उपचुनाव से चुनावी राजनीति में कमबैक करेंगी ? अगर प्रतिभा सिंह उपचुनाव लड़ती है, तो क्या वे मंडी संसदीय क्षेत्र का उपचुनाव लड़ेगी या अर्की विधानसभा का उपचुनाव ? फिलवक्त ये वो सवाल है जिनका जवाब सब तलाश रहे है। सबकी नजरें वीरभद्र सिंह के परिवार की तरफ टिकी है, विशेषकर वीरभद्र सिंह के समर्थकों और निष्ठावानों की।
हालांकि माहिर मानकर चल रहे है कि आगामी उपचुनाव से प्रतिभा सिंह की सक्रिय राजनीति में वापसी तय है, पर जब तक वीरभद्र सिंह के परिवार का कोई बयान नहीं आता, ये सिर्फ कयास ही है।
1962 में वीरभद्र सिंह पहली बार सांसद बने थे, तब से अब तक बुशहर रियासत की सियासत में भरपूर भागीदारी रही है। सिर्फ आपातकाल के दौरान 1977 से 1980 तक ही ऐसा वक्त आया है जब बुशहर रियासत से कोई संसद या विधानसभा में न रहा हो। इन तीन वर्षों को छोड़ कर खुद वीरभद्र सिंह किसी न किसी सदन का हिस्सा रहे है। वहीं उनकी पत्नी प्रतिभा सिंह भी मंडी सीट से दो बार सांसद रही है। वर्तमान में वीरभद्र सिंह के पुत्र विक्रमादित्य सिंह भी शिमला ग्रामीण सीट से विधायक है। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि वीरभद्र सिंह कितने मजबूत नेता रहे है और बुशहर रियासत का लोकतांत्रिक राजनीति में क्या रसूख है। जाहिर सी बात है कि वीरभद्र सिंह के जाने के बाद अब उनके समर्थक चाहेंगे कि उनकी इस पकड़ को बरकरार रखा जा सके। पर अंतिम निर्णय तो वीरभद्र सिंह के परिवार को ही लेना है।
अगर कांग्रेस पार्टी के लिहाज से बात करें तो वीरभद्र सिंह के साथ लोगों की सहानुभूति और संवेदनाएं दोनों है और इसी लहर पर सवार होकर कांग्रेस उपचुनाव का रण जीतने की आस में होगी। ऐसे में यदि प्रतिभा सिंह उपचुनाव में मैदान में होती है तो कांग्रेस के लिए जीत की आस और प्रबल होगी। निसंदेह यदि प्रतिभा सिंह इच्छा जताती है तो पार्टी बिना देर लगाएं उनके पीछे खड़ी होगी।
मंडी में कैलक्युलेटेड, तो अर्की में हाई रिस्क !
प्रतिभा सिंह यदि चुनाव लड़ने की इच्छा व्यक्त करती तो मैदान मंडी संसदीय क्षेत्र होगा या अर्की विधानसभा क्षेत्र, ये यक्ष प्रश्न है। अर्की वीरभद्र सिंह का आखिरी निर्वाचन क्षेत्र रहा है। ऐसे में अर्की उपचुनाव को जीतना कांग्रेस के लिए प्रतिष्ठता का सवाल होगा। वहीं वीरभद्र सिंह के परिवार के लिए भी ये चुनाव वर्चस्व बरकरार रखने की चुनौती है। उनकी पत्नी और पूर्व सांसद प्रतिभा सिंह को अर्की से चुनाव लड़वाने की मांग अभी से जोर पकड़ने लगी है। दरअसल अर्की में कांग्रेस की गुटबाजी किसी से छिपी नहीं है और एक गुट विशेष प्रतिभा सिंह को मैदान में उतारने का पक्षधर है। पर इस स्थिति में वीरभद्र परिवार का सब कुछ दांव पर होगा। खुदा न खास्ता नतीजा प्रतिकूल रहा तो वर्चस्व भी धुंधला जायेगा।
वहीं प्रतिभा सिंह यदि मंडी संसदीय क्षेत्र से मैदान में होती है तो उन्हें बुशहर रियासत के दायरे में आने वाले क्षेत्रों से अच्छी सहानुभूति मिल सकती है, विशेषकर रामपुर, किन्नौर, आनी, करसोग और सिराज में। 2014 की मोदी लहर में भी प्रतिभा सिंह मंडी से करीब 40 हजार वोट से ही हारी थी जो अंतर आश्रय शर्मा के उम्मीदवार रहते 2019 में करीब चार लाख पहुंच गया था। ऐसे में सहानुभूति के रथ पर सवार होकर प्रतिभा सिंह 2014 के 40 हजार के अंतर को पाट सकती है। और अगर नतीजा उनके पक्ष में नहीं आता है तो भी उन्हें आश्रय शर्मा की तरह एकतरफा हार मिलेगी, ऐसा नहीं लगता। सो प्रतिभा सिंह के लिए मंडी से चुनाव लड़ना नपातुला जोखिम है। जबकि अर्की का चुनाव मंडी के बनिस्बत छोटा जरूर है पर वहां जोखिम बड़ा होगा।