यहां रामकृष्ण परमहंस को हुए थे मां काली के दर्शन
दक्षिणेश्वर काली मंदिर पश्चिम बंगाल के हुगली नदी तट पर बेलूर मठ के दूसरी तरफ स्थित है। यह बंगालियों के अध्यात्म का प्रमुख केंद्र है। यह काली मंदिर 51 शक्तिपीठों में से एक माना जाता है। मान्यता है कि यहां पूजा करने वालों को मां काली कभी निराश नहीं करती, मां अपने भक्तों की मुराद जरूर पूरी करती हैं। कहा जाता है कि इस स्थान पर माता सती के दाएं पैर की चार अंगुलियां गिरी थीं। इस मंदिर में देवी काली की मूर्ति की जिह्वा खून से सनी है और देवी नरमुंडों की माला पहने हुए हैं। कहा जाता है कि कभी श्री रामकृष्ण परमहंस यहां पुजारी थे। यहां देश-विदेश से हजारों श्रद्धालु मां काली के दर्शनों के लिए आते हैं।
काली मां का ये मंदिर नवरत्न की तरह निर्मित है और यह 46 फुट चौड़ा तथा 100 फुट ऊंचा है। मंदिर के भीतरी भाग में चांदी से बनाए गए कमल के फूल जिसकी हजार पंखुड़ियां हैं, पर मां काली शस्त्रों सहित भगवान शिव के ऊपर खड़ी हुई हैं। इस मंदिर में 12 गुंबद हैं। यह मंदिर हरे-भरे, मैदान पर स्थित है। इस विशाल मंदिर के चारों ओर भगवान शिव के बारह मंदिर स्थापित किए गए हैं।दक्षिण की ओर स्थित यह मंदिर तीन मंजिला है। ऊपर की दो मंजिलों पर नौ गुंबद समान रूप से फैले हुए हैं। गुंबदों की छत पर सुंदर आकृतियां बनाई गई हैं। मंदिर के भीतरी स्थल पर दक्षिणा माँ काली, भगवान शिव पर खड़ी हुई हैं। देवी की प्रतिमा जिस स्थान पर रखी गई है उसी पवित्र स्थल के आसपास भक्त बैठे रहते हैं तथा आराधना करते हैं।
रानी रासमणि ने करवाया मंदिर निर्माण
दक्षिणेश्वर काली मंदिर के बारे में जो कथा प्रचलित है उसके अनुसार बंगाल की रानी रासमणि मां काली की बहुत बड़ी भक्त थी। कोलकाता में मां काली का सिद्ध मंदिर नहीं होने की वजह से रानी समुद्र के रास्ते काशी में स्थित मां काली के मंदिर दर्शन के लिए जाती थी। कहते हैं कि एक दिन रानी अपने सगे-संबंधियों के साथ काली मंदिर जाने की तैयारी कर रही थी। तभी रात उन्हें मां काली ने स्वप्न में दर्शन दिए और इसी स्थान पर मां काली का मंदिर बनवाने के लिए कहा। देवी के बात सुनकर रानी ने 1847 ई. में यहां मंदिर का निर्माण करवाना शुरू किया जो साल 1855 में बनकर तैयार हुआ। मंदिर परिसर 25 एकड़ क्षेत्र में फैला हुआ है। इस मंदिर में मां काली की मूर्ति दक्षिण-पूरब के ओर स्थापित की गई है। दक्षिणेश्वर मंदिर मां काली के लिए ही बनाना गया है। मंदिर के भीतरी भाग में बनाया गया कमल का फूल हजार पंखुड़ियों वाला है जिस पर मां काली शस्त्र सहित भगवान शिव के ऊपर खड़ी हैं। कहते हैं कि तभी से यह स्थान मां काली के सिद्ध धाम से प्रसिद्ध हुआ।
रासमणि के द्वारा करवाया गया मंदिर का निर्माण कार्य करीब 8 वर्षों तक चला। उस जमाने में दक्षिणेश्वर मंदिर को बनवाने में 9 लाख रुपए खर्च हुए थे। उस स्थान पर मंदिर तो बन गया लेकिन एक नयी समस्या सामने आ गई। दरअसल तब कोई पुजारी इस मंदिर में पूजा करवाने को तैयार नहीं हुआ। एक शूद्र स्त्री द्वारा मंदिर का निर्माण करवाया जाना तत्कालीन समाज के मानदंडों के विरुद्ध था।
रामकृष्ण परमहंस को हुए थे साक्षात दर्शन
माना जाता है कि इस स्थान पर रामकृष्ण परमहंस को मां काली ने साक्षात दर्शन दिए थे। कहा जाता है कि रामकृष्ण परमहंस को विश्वास था कि कठोर साधना से मां काली के साक्षात दर्शन किये जा सकते है। इस कारण इन्होंने पूरी निष्ठा के साथ मां काली की पूजा-अर्चना किया करते थे। इनकी भक्ति को देखते हुए उन्हें दक्षिणेश्वर काली मंदिर का पुजारी बनाया गया था। कहते हैं कि 20 वर्ष की आयु में रामकृष्ण परमहंस ने अपनी अनवरत साधना के बल पर मां काली के साक्षात दर्शन किए। रामकृष्ण ने काली माता की आराधना करते हुए ही परमहंस की अवस्था प्राप्त की थी। रामकृष्ण खाना पीना छोड़कर आठों पहर माता काली को निहारते रहते थे। मां काली के दर्शन न पाकर दुखी रामकृष्ण अपना सिर काटने के लिए तैयार हो गए पर माना जाता है कि स्वयं मां काली ने उनका हाथ पकड़ उन्हें ऐसा करने से रोक दिया। इस मंदिर से लगा हुआ परमहंस देव का एक कमरा है। इसमें उनका पलंग और कुछ स्मृति चिन्ह हैं।
51 शक्तिपीठों में से एक है दक्षिणेश्वर काली मंदिर
देवी पुराण में 51 शक्तिपीठों का वर्णन मिलता है। शास्त्रों की मानें तो जहां-जहां देवी सती के अंग के टुकड़े, उनके वस्त्र या आभूषण गिरे, वहां-वहां शक्तिपीठ का उदय हुआ। इस तरह देशभर में माता के 51 शक्तिपीठ माने जाते हैं। ऐसी मान्यता है कि जब विष्णु भगवान ने अपने चक्र से मां सती के शरीर के टुकड़े किए थे तो उनके दाएं पैर की कुछ उंगलियां इसी जगह पर गिरी थी। काली मां के भक्तों के लिए यह दुनिया के सबसे बड़े और प्रसिद्ध मंदिरों में से एक है।
तांत्रिक गतिविधियों के लिए प्रसिद्ध है यह मंदिर
दक्षिणेश्वर काली मंदिर के दर्शन के लिए सालभर भक्तजनों की भीड़ लगी रहती है। मां काली का यह मंदिर तांत्रिकों के लिए काफी महत्वपूर्ण तीर्थ है और उनका यहां साल भर आना-जाना लगा रहता है। वहीं यहां सैकड़ों तांत्रिक पूरे भारत से आ कर काली मां की पूजा करते हैं। दीपावली की रात कार्तिक अमावस्या के अवसर पर यहां विशेष आयोजन होता है। रात भर मंदिरों का पट खुला रहता है। तंत्र-मंत्र साधना के लिए देश के कोने-कोने से साधक और तंत्र विद्या से जुड़े लोग पहुंचते हैं।