यहां भगवान और राजा दोनों रूपों में पूजे जाते हैं श्रीराम
** मध्य प्रदेश के निवाड़ी जिले के ओरछा में है यह प्रसिद्ध मंदिर
** मध्य प्रदेश पुलिस सुबह-शाम देती है गार्ड ऑफ ऑनर
मध्य प्रदेश के निवाड़ी जिले के ओरछा में भगवान राम का प्रसिद्ध मंदिर है। यह एक मात्र ऐसा मंदिर है, जहां श्रीराम, 'भगवान और राजाÓ दोनों ही रूपों में पूजे जाते हैं। यह मंदिर करीब 400 साल पुराना बताया जाता है। इस मंदिर के बारे में बहुत सी कहानियां प्रसिद्ध हैं। माना जाता है प्रभु श्रीराम को यह मंदिर इतना पसंद है कि वह रात में अयोध्या रुकते हैं और सुबह होते ही बाल रूप में यहां आकर विराजमान हो जाते हैं।
कई मान्यताओं के अनुसार अयोध्या के रामलला का वास्तविक विग्रह (प्रतिमा) ओरछा में ही विराजमान है। भले ही ओरछा का महत्व अयोध्या के समान न हो, लेकिन उससे कम भी नहीं है।
मंदिर का इतिहास
ओरछा में राजा रामचंद्र के मंदिर की स्थापना का इतिहास दो भक्तों की ईश्वर भक्ति से जुड़ा हुआ है। बुंदेलखंड क्षेत्र के तत्कालीन शासक मधुकर शाह महान कृष्ण भक्त थे, लेकिन दूसरी ओर उनकी पत्नी महारानी कुंवरि गणेश हमेशा ही श्री राम की भक्ति में लीन रहती थी। दोनों के बीच अपने आराध्य को सर्वश्रेष्ठ साबित करने की होड़ लगी रहती थी। एक बार राजा ने महारानी से वृंदावन चलने के लिए कहा लेकिन महारानी ने प्रस्ताव ठुकराते हुए अयोध्या जाने की जिद कर ली। इस पर राजा ने व्यंग्य करते हुए कहा कि अगर महारानी राम की इतनी ही बड़ी भक्त हैं तो उन्हें अयोध्या से ओरछा लाकर दिखाएं। महारानी ने चुनौती स्वीकार कर ली और निकल पड़ी अयोध्या के लिए। ऐसा माना जाता है कि 21 दिनों तक महारानी कुंवरि गणेश ने अयोध्या में भगवान राम की तपस्या की, लेकिन जब उन्हें भगवान राम का कोई संकेत नहीं प्राप्त हुआ तो उन्होंने सरयू नदी में छलांग लगा दी। नदी में छलांग लगाने के बाद उनकी गोद में भगवान श्री राम प्रकट हो गए। महारानी ने उनसे ओरछा चलने की प्रार्थना की। श्री राम इसके लिए तैयार हो गए, लेकिन उन्होंने शर्त रखी कि वो पुष्य नक्षत्र के दिन ही चलेंगे और जहां उन्हें विराजमान कर दिया जाएगा, वहां से दोबारा उठेंगे नहीं। महारानी ने उनकी दोनों शर्तें मान लीं। ओरछा के रामराजा मंदिर में जड़े शिलालेख के अनुसार महारानी, भगवान राम को विक्रम संवत 1631 (सन् 1574) में चैत्र शुक्ल की नवमी को ओरछा लेकर आईं। ऐतिहासिक तथ्यों के अनुसार महारानी, भगवान राम को अयोध्या से लेकर ओरछा तक पुष्य नक्षत्र में कुल 8 माह 28 दिनों तक पैदल चलीं। इसके बाद उनकी योजना भगवान राम को सन् 875 में बने चतुर्भुज मंदिर में स्थापित करने की थी, लेकिन उन्होंने भगवान राम के विग्रह को उस स्थान पर रख दिया, जहां आज रामराजा मंदिर का निर्माण किया गया है। भगवान राम अपनी शर्त के अनुसार वहीं स्थापित हो गए, जिसके कारण उसी स्थान पर मंदिर का निर्माण किया गया।
भगवान राम ने रखी थी ये दो शर्तें
प्रभु राम ओरछा चलने को राजी तो हो गए लेकिन उन्होंने रानी के समक्ष 2 शर्ते रख दी। पहली शर्त यह थी कि हम जहां विराजमान होंगे, वहां से हमें कोई हिला नहीं पाएगा और दूसरी शर्त ओरछा के राजा हम ही होंगे। रानी उनकी सारी शर्तें मानकर उन्हें अपने महल में ले आईं। चूंकि मूर्ति को कोई हिला नहीं सकता था, इसलिए रानी के महल को ही मंदिर में तब्दील कर दिया गया और फिर यहां के राजा हो गए भगवान राम।
मंदिर को लेकर एक अन्य मान्यता
ऐसा कहा जाता है कि जब अयोध्या में इस्लामिक आक्रांताओं का आक्रमण हुआ और मंदिर को तोड़ दिया गया तो साधु-संतों ने भगवान राम के वास्तविक विग्रह को सरयू नदी में बालू के नीचे दबा दिया था। बाद में भगवान राम का यही वास्तविक विग्रह महारानी कुंवरि गणेश की गोद में प्रकट हुआ। अकबर के शासनकाल में बुंदेलखंड के राजा मधुकर शाह ही ऐसे शासक थे, जिन्होंने अपनी हिंदू पहचान को गर्व से धारण किया। इतिहास में इस बात का प्रमाण है कि जब अकबर ने अपने दरबार में तिलक लगाने को प्रतिबंधित किया था, तब मधुकर शाह ने इस निर्णय का पूरा विरोध किया था और मधुकर शाह के विरोध के कारण ही अकबर को निर्णय वापस लेना पड़ा। इसके बाद साधुओं को यह भरोसा हुआ कि मधुकर शाह भगवान राम के विग्रह को भली-भांति सुरक्षित रख पाएंगे। इसी कारण अंतत: भगवान राम ओरछा में विराजमान हुए।
यहां कोई भी वीआईपी नहीं
जाता है कि ओरछा में कोई भी वीआईपी नहीं है। अगर कोई वीआईपी है, तो वह राजा रामचंद्र हैं। मध्य प्रदेश पुलिस के जवानों के द्वारा सूर्यास्त और सूर्योदय के समय राजा रामचंद्र को बंदूकों की सलामी अर्थात गार्ड ऑफ ऑनर दिया जाता है। ओरछा में यह गार्ड ऑफ ऑनर बाकी किसी को भी नहीं दिया जाता। ऐसा माना जाता है कि त्रेतायुग में राजा दशरथ अपने पुत्र श्रीराम का राज्याभिषेक नहीं कर सके, ऐसे में राजा मधुकर शाह ने अपना कर्तव्य निभाया और राजा रामचंद्र का राज्याभिषेक किया एवं अपना राज्य राजा रामचंद्र को सौंप दिया। यह परंपरा आज भी चली आ रही है।
धूमधाम से मनाया जाता है रामनवमी का त्योहार
ओरछा के रामराजा मंदिर में श्रीरामनवमी का त्यौहार बड़ी ही भव्यता के साथ मनाया जाता है। इसके अलावा विवाह पंचमी को उनके राज्याभिषेक की वर्षगांठ भी बड़ी धूमधाम से मनाई जाती है। इसके अलावा दशहरा, दीपावली और नवरात्रि भी रामराजा मंदिर के प्रमुख त्योहारों में से एक है। दीपावली के दिन मंदिर को इस प्रकार सजाया जाता है, जिसका वर्णन शब्दों में किया ही नहीं जा सकता है।