आस्था और श्रद्धा का खेल है पत्थर मेला
सोलन तथा शिमला जिला की सीमा पर बसे धामी में दीपावली पर्व से अगले दिन एक रोमांचक पत्थरों के खेल वाला मेला आयोजित होता है। करीब 3:00 बजे राजपुरोहितों के साथ लोगों का एक समूह ढोल नगाड़े तथा शहनाई पारंपरिक वाद्य यंत्रों की मधुर धुनों के साथ भीमा काली के मंदिर में पूजा अर्चना करते हैं और उसके बाद मेला स्थल की ओर रवाना हो जाते हैं। इस रोमांच भरे मेले में यह खेल दो समुदायों के बीच में खेला जाता है। एक समुदाय धामी रियासत के राजा के महलों की ओर से कटैड़ु तुनड़ु,दगोई जठोटी खुंद,तथा दूसरा समुदाय जमोगी खुंद के रूप में सोलन जिला के पलानिया,गलोग की ओर से इस खेल में शामिल होता है। धामी के भीमा काली मंदिर के पास आयोजित होने वाला यह मेला तब तक चलता रहता है जब तक दोनों समुदायों के लोगों में से किसी एक समुदाय के किसी व्यक्ति के पत्थर लगने से खून न निकल जाए जिस भी व्यक्ति को पत्थर की चोट लगती है व खून बहने लगता है वह स्वयं को भाग्यशाली समझता है। उसका खून भीमा काली के मंदिर में चढ़ाया जाता है। एक किंवदंती के अनुसार सदियों पहले इस मेले में भीमा काली के मंदिर में नर बलि दी जाती थी। उसे रोकने के लिए धामी रियासत के राजा की रानी इसी स्थान पर सती हुई थी। उसके बाद इस स्थान पर नरबलि के स्थान पर पत्थर मारने वाला मेला लगता है। खेल का चौरा नामक स्थान पर होने वाले इस मेले में राजपरिवार के टीका नवदीप सिंह भी शामिल होते हैं। इस बार इसी समुदाय के देवांशु कश्यप को श्रद्धा का भाजन बनना पड़ा उनके सिर से निकले रक्त से भीमा काली के मस्तक पर टीका लगाया गया। उन्होंने बताया कि यह लोगों की अपार श्रद्धा का मेला बन गया है। यही कारण है कि आज तक इस खेल में कोई अप्रिय घटना नहीं हुई क्योंकि यह आस्था और श्रद्धा का खेल है उन्होंने यह भी कहा कि जो बाहर के दर्शक लोग आते हैं उन्हें इस में भाग नहीं लेना चाहिए। इस मेले में सोलन तथा शिमला जिला के लोग बढ़-चढ़कर भाग लेते हैं।