दाड़लाघाट में बंदरों को ज़हर देकर मारने से स्थानीय ग्रामीणों में रोष
दाड़लाघाट के अंतर्गत लोगों द्वारा बंदरों को ज़हर देकर मारने से स्थानीय ग्रामीण रोष प्रकट कर रहे है, वो लोगों से आग्रह कर रहे हैं कि बन्दर भी हमारी ही तरह एक संजीव प्राणी है जिन्हें भी पेट के भरण पोषण के लिए जीना पड़ता है,परंतु लोग उन्हें जहर देकर मार रहे हैं। यह बात ठीक नहीं है। बता दें कि लोगों द्वारा बंदरों को खाने की वस्तु में जहर डालकर मारा जा रहा है। इससे बन्दर पानी की तलाश में निकलते हैं और जैसे ही वो पानी पीते हैं मर जाते हैं। इस से बंदर वहीं सड़ गल रहे हैं और उसी पानी को लोगों द्वारा पिया जाता है। उससे आजकल कई लोगों को बुखार,टायफायड सहित अन्य बीमारियां लग रही है। स्थानीय ग्रामीणों में ललित गौतम,ललित गर्ग, दीपक,सदानन्द,अजय गौतम,नरेश, प्रकाश,राज कुमार,होशियार,सींग,राजू दिलीप शुक्ला,वीरेंद्र शुक्ला आदि का कहना है कि पहले भी लोग कृषि करते थे परंतु वह लोग झुगी बनाकर दिन में बंदरों की तो रात में सूअरों से फसल की रक्षा करते थे,परंतु वे लोग बंदरों को कभी नही मारते थे। पहले के समय मे बंदरों और जंगली जानवरों के लिये फसल का हिस्सा छोड़ा जाता था। फलदार पौधे लगाए जाते थे ताकि इन्हें भी भोजन मिल सके और प्रकृति का संतुलन भी बना रहे,परन्तु आज के दौर में लोगों का बंदरों को मारना एक होड़ सी लग गयी है,जो कि आने वाले समय के लिये चिंताजनक है। बन्दर भी प्रकृति का एक हिस्सा है और धार्मिक दृष्टि से भी इन्हें मारना निषेध है। कुछ लोगों का तर्क है कि बन्दर की जनसंख्या बढ़ गयी है तो मारना उचित है। उनसे हम यह पूछते हैं कि इंसानो की जनसंख्या भी तो बढ़ रही है तो क्या इंसानो को भी मारना शुरू कर दोगे। उन्होंने सरकार से आग्रह किया है कि बंदरों के लिये कोई ऐसी व्यवस्था की जाए ताकि बन्दर भी आराम से जंगलो में रह सके। सरकार को चाहिये कि जंगल मे फलदार वृक्ष लगाए जाएं ताकि बन्दर जंगल की तरफ रुख कर सके। वहीं जब इस बारे डीएफओ कुनिहार सतीश नेगी से बात की गई तो उन्होंने बताया कि इस बारे में उन्हें कोई जानकारी नहीं है और न ही इस प्रकार की कोई शिकायत उनके पास आई है। अगर ऐसा होगा तो इस पर कार्यवाही की जाएगी।