खतरे में है विश्व धरोहर कालका-शिमला रेलवे रूट
विश्व धरोहर कालका -शिमला रेलवे रूट खतरे में है। लालफीताशाही और हुकूमत में इच्छाशक्ति की कमी के चलते आज यह विरासत बदहाली के दौर से गुजर रही है। कहीं डंगे टूटे पड़े है तो कही ट्रैक से सट कर निर्माण हो रहा है। इसे विडम्बना ही कहेगे कि जिस 100 किलोमीटर लंबे बेहद दुर्गम रेलवे रूट का निर्माण ब्रिटिश हुकूमत ने महज तीन वर्ष में कर दिखाया था , देश की चुनी हुई लोकतान्त्रिक सरकारें आज उसकी देख रेख भी ठीक से नहीं कर पा रही । हालांकि वर्ष 2007 में प्रदेश सरकार ने इसे हेरिटेज घोषित किया और वर्ष 2008 में इसे यूनेस्को वर्ल्ड हेरिटेज की फेहरिस्त में शामिल किया गया। लेकिन बावजूद इसके इस विश्व धरोहर की बदहाली जस की तस कायम है। बल्कि दिन ब दिन बदतर होती जा रही है । आलम यह है कि ट्रैक का जो हिस्सा वर्तमान में काम नहीं आ रहा , वहां तो कबाड़ियों ने पटरियों के नट बोल्ट तक खोल डाले । लेकिन सुध लेने को कोई तैयार नहीं है। न विश्व का सबसे बड़े विभागों में शुमार भारतीय रेलवे सेवा और न ही सरकार। बस कभी कभार एनक्रोचमेंट की एवज में विभाग नोटिस थमा अपने कर्तव्य की इतिश्री कर लेता है।
ब्रिटिश व्यवस्था से ले सबक
वर्ष 1903 में तत्त्कलीन ब्रिटिश वाइसराय लार्ड कर्ज़न ने ट्रैक का औपचारिक उद्घटान किया था। 11 दशकों से अधिक के सफर के बाद हम आज इस विषय धरोहर के निर्माण से सबक ले या इसकी बदहाली पर चिंतन करे ,ये मंथन का विषय है । ब्रिटिश राज में अफसरों की जवाबदेही का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि तत्कालीन ब्रिटिश इंजीनियर बरोग ने टनल संख्या 33 के निर्माण में असफल होने पर शर्मिंदगी के चलते आत्महत्या कर ली थी। हुकूमत ने उन पर एक रुपए का जुर्माना भी ठोका था। और आज आज़ाद भारत में अफसरशाही इस कदर हावी है कि किसी ब्रिज के गिरने से भीषण हादसा पेश आने पर भी अधिकारी ज़िम्मेदारी से भागते है।
ब्रिटिश इंजीनियरों ने टेके घुटने , बल्खु ने थामी कमान
कालका -शिमला रेलवे ट्रैक के निर्माण की कहानी बेहद दिलचस्प है। वर्ष 1898 में इस नैरो गेज रेलवे ट्रैक की नींव रखी गई । लेकिन निर्माण शुरू हुआ वर्ष 1900 में। और महज 3 वर्षो में ब्रिटिश हुकूमत ने 100 किलोमीटर लंबे इस दुर्गम ट्रैक का निर्माण कार्य भी पूरा कर लिया। जो आज के तकीनीक दौर में भी आसान नहीं है। उस दौरान मार्ग पर 20 स्टेशन व 107 टनल का निर्माण किया गया था। जिनमे से 18 स्टेशन और 102 टनल वर्तमान में कार्यरत है। निर्माण के दौरान टनल नंबर 33 ब्रिटिश हुकूमत के सामने सबसे बड़ी चुनोती थी। इसी टनल में इंजीनियर बरोग आत्महत्या कर चुके थे। जिसके बाद निर्माण कार्य इंजीनियर एचएस हेर्रिन्ग्टन ने संभाला। लेकिन सभी विशेषज्ञों ने घुटने टेक दिए । जिसके बाद हेर्रिन्ग्टन ने स्थानीय चरवाहे बल्खु को इसका दायित्व सौपा। और नतीजा सबके सामने है। जिस टनल को निकालने में नामी ब्रिटिश इंजीनियर घुटने टेक चुके थे उसे बल्खु ने निकाल अपना लोहा मनवाया।