हिमालय रेंज की 28 किमी लंबी गुफा है करोल भव्य गुफा
सोलन में प्राकृतिक सुंदरता की कमी नही है। हिमालय रेंज की सबसे पुरानी और लंबी 28 किमी गुफा का इतिहास आज भी रहस्यमय है। हम ज़िक्र कर रहे है कालका-शिमला हाईवे के समुद्र तल से 7 हजार फीट की ऊंचाई पर स्थित करोल गुफा की। इस गुफा को करोल टिब्बा के नाम से भी जाना जाता है। करोल पर्वत का सौंदर्य इतना है कि हर कोई यहां आने की चाहत रखता है। करोल पर खड़े होकर एक तरफ हिमालय तो दूसरी ओर मैदानी राज्यों के दर्शन होते है। यहां से शिमला, चायल, कसौली, अपर हिमाचल की बर्फ से ढ़की पहाड़ियां और धौलाधार रेंज भी नजर आती है। वहीं चंडीगढ़ व अन्य मैदानी क्षेत्रों को भी देखा जा सकता है. करोल पर खड़े होकर एक तरफ हिमालय तो दूसरी ओर मैदानी राज्यों के दर्शन होते है। यहां से शिमला, चायल, कसौली, अपर हिमाचल की बर्फ से ढ़की पहाड़ियां और धौलाधार रेंज भी नजर आती है। वहीं चंडीगढ़ व अन्य मैदानी क्षेत्रों को भी देखा जा सकता है। गुफा के बारे में और अधिक जानने के लिए फर्स्ट वर्डिक्ट टीम ने यंहा के स्थानीय लोगो से बात की तो बहुत सी बातें सामने आयी, यहाँ के लोगो की माने तो गुफा के अंदर अलौकिक शक्तियां हैं, जिनका रहस्य अभी तक वैज्ञानिक भी नहीं सुलझा पाए हैं। गुफा 50 फ़ीट तक ही पाया जाता है, गुफा में पानी होने के कारण गुफा में जाने का रास्ता काफी जटिल है व फिसलन भरा है। लोगो का मानना ये भी है कि यह गुफा पांडव काल की है और इस स्थान से शुरू होकर 28 किमी दूर कालका के पिंजोर पार्क निकलती है। एक जर्मनी के साइंटिस्ट ने जब इस गुफा के अंदर प्रयोग के तौर पर रंगीन पानी डाला तो यह पिंजौर गार्डन के पानी के प्राकृतिक चश्मों में निकला। इससे ये प्रमाण होता है कि गुफा पिंजौर में ही निकलती है। इस के बाद भी कई वैज्ञानिको ने इस गुफा का मुआयना किया और हर बार वैज्ञानिको के सामने नई बातें आती है। स्थानीय लोगो को इस गुफा से काफी आस्था है। मान्यता है कि इस गुफा में भगवान शिव ही नहीं बल्कि पांडवों ने भी यहां तपस्या की थी। किवदंती के मुताबिक महाभारत में जब शकुनि ने पांडवों को लाक्ष्य गृह में जिंदा जलाने की योजना तैयार की तो भीष्म पितामह ने पांडवों को भगाने के लिए इस गुफा का निर्माण किया था। पांडव यहां पर पांच वर्ष तक रहे थे। गुफा के अंदर कई अजीबोगरीब चीजें हैं जिन्हें देखने के बाद किसी की अंदर जाने की हिम्मत नहीं पड़ती। एक अन्य मान्यता ये भी है कि इस गुफा में भगवान शिव और उनका परिवार रहता था। गुफाके अंदर कई शिवलिंग भी बने हुए हैं। जो ऐसे में अनेकों रहस्य समेटे हुए हैं।जामवंत से भी सम्मलित है कहानी, इस गुफा का संबंध जामवंत से भी रहा है। कहते हैं कि लंका युद्ध के बाद जब श्रीराम ने सबकी विदाई की तो जामवंत ने कहा था कि लंका में इतने बडे योद्धाओं के साथ मलयुद्ध करके भी मेरी भुजाएं संतुष्ट नहीं हुई हैं तो श्रीराम ने उन्हें जामवंत की यह इच्छा द्वापर युग में पूरी होने की बात कही थी। उसके बाद से जामवंत इसी गुफा में रहने लगे थे। द्वापर युग के अंत में श्रीकृष्ण के साथ जामवंत का युद्ध हुआ तो फिर श्रीकृष्ण ने उन्हें त्रेता युग में उनकी इच्छा के बारे में बताया। उसके बाद जामवंत को अपनी कागलती का एहसास हुआ था। संस्कृत के शब्दकोष में करोली शब्द का अर्थ 'रीछ की गुफा' है। गुफा के मुहाने पर प्राचीन ठाकुरद्वारा मंदिर व आषाढ़ माह के पहले रविवार को लगने वाला मेला सिद्ध बाबा करोल इस घटना से जुड़े हैं। बताते हैं कि आषाढ़ माह के पहले रविवार को ही श्रीकृष्ण का जामवंती से इसी गुफा में विवाह हुआ था। ऐसे पहंच सकते है गंतव्य करोल खुम्ब सिटी के नाम से मशहूर सोलन शहर करोल पर्वत की गोद में बसा हुआ है। जनवरी माह में बर्फबारी के दौरान पूरा पहाड़ बर्फ की सफेद चादर में लिपट जाता है। करोल पर्वत जाने के लिए सोलन के चंबाघाट से भी रास्ता जाता है। सोलन शहर से आगे कालका शिमला एनएच पर डेडघराट क्षेत्र के पास से पांडव गुफा के लिए रास्ता जाता है। इसमें करीब साढ़े पांच किलोमीटर की चढ़ाई बान व देवदार के घने जंगलों के बीच से तय करनी पड़ती है। अन्य राज्यों से आने वाले सोलन तक रेलगाड़ी के माध्यम से भी आ सकते हैं। उसके आगे बस या गाड़ियों के माध्यम से भी जा सकते हैं।